हवा और शान्ति के हक में कुछ हरित फैसले

23 May 2015
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Air pollution
Air pollution

जितना विकसित शहर, उतनी अधिक पर्यावरणीय समस्यायें। यह अनुभव सौ फीसदी सच है; भारत के महानगर, इसका उदाहरण बनकर सामने आये हैं। इस सच के सामने आने के साथ-साथ महानगर वासियों की चिन्तायें बढ़ी हैं और संचेतना भी। इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। किन्तु संवेदना जगाने का असल काम, मीडिया, कुछ याचिका-कर्ताओं और नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने किया है; इस बात से भी शायद आपको इन्कार न होगा। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली के पर्यावरण को लेकर ग्रीन ट्रिब्युनल के कुछ फैसले इसका प्रमाण हैं। आइये, इनका अवलोकन करें और खुद की संवेदना भी जगायें:

 

ध्वनि प्रदूषण


वाहनों का शोर: दिल्ली स्थित पंचशील पार्क निवासी उमेश सहगल ने बाहरी रिंग रोड के कारण ध्वनि प्रदूषण को लेकर शिकायत की, तो न्यायाधिकरण ने गत 11 मार्च को पंचशील पार्क को ‘शान्त क्षेत्र’ घोषित कर दिया। आदेश दिया: “वाहनों की रफ्तार 30 किलोमीटर हो। निगरानी हेतु कैमरें लगें और गति नियन्त्रण हेतु 1000 का जुर्माना लगे। जरूरत से ज्यादा भार लेकर चल रहे वाहनों की आवाजाही और प्रेशर हाॅर्न पर रोक लगे। निवासी भी ऐसी खिड़कियाँ लगायें, ताकि कम से कम आवाज भीतर जाये।’’ बात नहीं बनी, तो मुख्य सचिव को तलब किया। पाँच मई को प्रशासन और निवासी समिति की बैठक बुलाई।

 

वायु प्रदूषण


कूड़ा करकट: कूड़े में रबर, प्लास्टिक, पत्ते और जाने क्या-क्या होता है। अतः कूड़ा जलाने से निकलने वाली गैसें हवा में मिलकर उसे खराब करती हैं। हमारी सांस के जरिए इससे हमारी सेहत पर बुरा असर पड़ता है। जलवायु प्रदूषण के अन्य कारणों में से एक ऐसी गैसों का वायुमंडल में उत्सर्जन भी है। अतः खुले में कूड़ा जलाकर उसका निष्पादन करने का तरीका पूर्णतः अवैज्ञानिक और नुकसानदेह है। इस तथ्य के आलोक में जिला गाजियाबाद से एक शिकायत आई।

जानकारी हुई कि विजय नगर, प्रताप विहार, डूंडाहेड़ा, अकबरपुर-बहरामपुर, लालकुँआ, मिशलगढी, मेरठ रोड, राजनगर एक्सटेंशन, नंदग्राम, भाटिया मोड़, सैक्टर-33 संजयनगर, जागृति विहार, गुलधर, कविनगर, गोविन्दपुरम, कमला नेहरु नगर, शास्त्री नगर, विवेकांनद नगर, मोहन नगर, वसुंधरा मेें खुले में कूड़ा जलाया जाता है। न्यायाधिकरण सख्त हुआ। गाजियाबाद ही नहीं, पूरे एनसीआर में कहीं भी कूड़ा जलाने पर पाँच हजार रुपये जुर्माने का आदेश दिया। ईंट भट्टे तथा मिट्टी के बर्तन आदि बनाने वाली औद्योगिक इकाइयों पर रिपोर्ट माँगी। नगर आयुक्त ने कमर कसी। जुर्माने के साथ-साथ मुकदमा दर्ज करने की तैयारी की।

कूड़ा-करकट जलाने को लेकर न्यायाधिकरण की सख्ती का असर नई दिल्ली नगरपालिका की सक्रियता के रूप में भी दिखा। उसने दो टीम विशेष रूप से इस कार्य हेतु गठित की। पहली कार्रवाई के रूप में औरंगजेब रोड स्थित मेघालय हाउस के एक कर्मचारी को ऐसा करते पकड़ा; तुगलक रोड थाने में मामला दर्ज कराया और 5000 का चालान थमा दिया।

लोटस टैम्पल: भारत में एक ही बहाई मंदिर है। दिल्ली के कालकाजी स्थित यह बहाई मन्दिर, पर्यटकों और भक्तों के बीच लोटस टैम्पल के नाम से ज्यादा विख्यात है। इसकी संगमरमरी आभा और ध्यान केन्द्र, लोगों को आकर्षित करते हैं। मन्दिर के ऊपरी हिस्से को पीला होते देख वकील संजीव अलावादी को चिन्ता हुई। फरवरी, 2015 में उन्होंने हरित न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया। संजीव ने पीलेपन के लिए अवैध पार्किंग, मेट्रो निर्माण, वायु प्रदूषण और मन्दिर प्रशासन को दोषी बताया; कहा कि साल में चार बार इमारत को धोना चाहिए। ऐसा नहीं हो रहा। न्यायाधिकरण ने तत्काल, दो कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किए। एक सप्ताह में रिपोर्ट माँगी। यातायात पुलिस के संयुक्त आयुक्त मुक्तेश चन्द्र ने मामले में कड़ी कार्रवाई की सूचना दी।

वाहन प्रदूषण: दिल्ली की हवा में प्रदूषण को लेकर विज्ञान पर्यावरण केन्द्र, दिल्ली द्वारा एक अध्ययन ने सभी को चिन्तित किया। एक याचिका के जवाब में न्यायाधिकरण ने सात अप्रैल, 2015 को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली में 15 साल पुराने पेट्रोल वाहन और 10 साल पुराने डीजल वाहनों के संचालन पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। वाहन मालिक संघों ने इस आदेश को अनुचित बताया। उन्होंने कहा कि 15 साल का रोड टैक्स जमा है। अतः 10 साल पुराने डीजल वाहनों पर रोक उचित नहीं। मीडिया ने इस पर बहस चलाई राजनेता, वाहन मालिकों के साथ दिखे। अपील हुई, तो न्यायाधिकरण ने रोक के आदेश को दो सप्ताह के लिए आगे बढ़ा दिया। 17 अप्रैल को सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को नोटिस जारी किया। वायु प्रदूषण रोकने के लिए उठाये कदमों की जानकारी माँगी। वाहनों का घनत्व तथा वायु गुणवत्ता के नमूने, रिपोर्ट तथा वायु प्रदूषण रोकने पर सुझाव भी तलब किए।

मामला आगे बढ़ा, तो केन्द्र सरकार आगे आई। उसने न्यायाधिकरण के आदेश पर रोक की माँग की। दलील दी कि अचानक रोक से जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित होगी। केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मन्त्रालय ने अनुरोध किया कि गाड़ियों की उम्र को पैमाना बनाने की बजाय, उत्सर्जन की जाँच और फिटनेस प्रमाण पत्र को पैमाना बनाया जाये। दलील के पक्ष में सरकार की ओर से पिंकी आनंद ने आईआईटी के चार प्रोफेसरों का एक शोध पत्र का उल्लेख किया, जो मानता है कि 10 साल और इससे पुराने वाहनों से होने वाले प्रदूषण का स्तर इतना कम है कि इसकी उपेक्षा की जा सकती है।

यह लेख लिखे जाने तक न्यायधिकरण ने अपने आदेश पर रोक की अवधि 25 मई तक बढ़ा तो जरूर दी, किन्तु आई आई टी के शोधपत्र को लेकर जबरदस्त नाराजगी जाहिर की। वाहन और हवा पर आये इस शोधपत्र को एक तरह से हवाई करार दिया। शोधपत्र और आईआईटी पर कई सवाल दागे: “इस रिपोर्ट का आधार क्या है? इस पर टिप्पणी करने का आईआईटी का कोई काम नहीं है।.... यह रिपोर्ट सिर्फ निजी वाहनों पर आधारित है।.. यह रिपोर्ट वाणिज्यिक वाहनों के प्रदूषण पर चुप है।... इन्होंने किसी जगह से नमूने नहीं लिए।...किसी को अनुसंधान से सम्बद्ध नहीं किया। सिर्फ पुराने आँकड़ों पर भरोसा किया। यह रिपोर्ट समग्र नहीं है। आपके अनुसंधान में कमी है।’’

न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली न्यायपीठ ने कहा - “आईआईटी बेहतर काम कर सकता था। आपने बिना अध्ययन किए 100 पन्ने रख दिए। सिर्फ इसलिए कि आप आईआईटी है, आप हमेशा सही नहीं हो सकते।’’ पीठ ने चलते और खड़े हुए वाहनों को ध्यान में रखते हुए मूल आँकड़ों को सुधारने की सलाह की। गुस्साई पीठ ने पूरी रिपोर्ट को यह साबित करने की कोशिश बताया कि वाहनों पर प्रतिबन्ध का आदेश खराब है। ऐसी अनुचित कोशिश के लिए केन्द्र सरकार की भी खिंचाई की।

एक अन्य याचिका के जरिये भी दिल्ली में वायु प्रदूषण हेतु वाहनों को दोषी ठहराने का मामला सामने आया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार, राजधानी के सभी वाणिज्यिक तथा निजी वाहन सीएनजी जैसे स्वच्छ ईंधन से चलने चाहिए। दिल्ली निवासी देवेन्द्र पाल सिंह ने शिकायत की कि उबर, ओला आदि सेवा प्रदाता कम्पनियों की डीजल टैक्सियाँ इसका उल्लंघन कर रही हैं। इनके पास ऑल इण्डिया परमिट है। ये प्रदूषण कर रही है। इनकी समय-समय पर जाँच होती रहनी चाहिए। वह नहीं हो रही। दिल्ली सरकार व प्रशासन इन पर रोक लगाने में नाकाम साबित हुई है। न्यायाधिकरण ने इसके लिए दिल्ली सरकार, उबर इंडिया सिस्टम प्रा. लिमिटेड, एएनआई टेक्नोलाॅजी प्रा. लिमिटेड, तथा सेरेनडिपिटी इंफोलैब प्रा. लिमिटेड से जवाब माँगा है। तीन जुलाई को अगली सुनवाई होगी।

 

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