इजराइली सहयोग की फसल

24 Aug 2012
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इजराइल के सहयोग से भारत के कई सूखे इलाकों में इजराइली जल तकनीकों का इस्तेमाल कर फसल उगाने की कोशिश हो रही है और कोशिश कामयाबी की मिसाल भी बनती जा रही है। बीकानेर , महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों, हरियाणा के राजस्थान से जुड़े इलाकों में इजराइली जल तकनीकों से भरपूर फसल ली जा रही है। कामयाबी की नई इबारत के बारे में बता रहे हैं कुणाल मजूमदार।

राजस्थान में हुए इस प्रयोग से उत्साहित इजराइल अब पूरे देश में खेती और बागवानी के अलग-अलग क्षेत्रों में यही सफलता दोहराने की तैयारी में है। इस दिशा में पहला कदम बढ़ाया भी जा चुका है जब 2008 में दोनों देशों के लिए बीच एक कृषि सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर हुए। दिसंबर, 2011 में भारत और इजराइल के कृषि मंत्रालयों ने तीन साल की एक योजना को आखिरी स्वरूप दिया। इसमें कृषि विशेषज्ञों के संयुक्त दौरे, परिचर्चाएं और किसानों के लिए कोर्स जैसी चीजें शामिल हैं।

राजस्थान के बीकानेर से दक्षिण-पूर्व की तरफ बढ़ने पर हर तरफ या तो रेत पसरी नजर आती है या फिर छोटी-मोटी झाड़ियां।इस इलाके में किसी भी तरह की खेती नहीं होती। थोड़ी-बहुत हरियाली वहीं दिखती है जहां कुछ घास खुद ही उग आई हो। दो घंटे बाद हम राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 65 से बाईं तरफ कटती एक सड़क पर मुड़ते हैं। यह रास्ता डीडवाना नाम के कस्बे को जा रहा है। अचानक ही हमारे आस-पास का धूसरपन हरियाली में बदलने लगता है। रेतीली जमीन पर चारों तरफ पेड़ हीं पेड़ दिखते हैं। हमें पता चलता है कि यह बकलिया फार्म्स है जहां 30 हेक्टेयर जमीन पर लगभग 14,000 जैतून के पेड़ लगाए गए हैं। राजस्थान में ऐसे सात फार्म हैं और ये सारे ही भारत और इजराइल के बीच खेती में हो रहे एक खास सहयोग का नतीजा हैं। इस बदलाव की शुरुआत तब हुई जब 2006 में राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इजराइल की यात्रा पर गई थीं। इस देश के दक्षिणी इलाके में बने जैतून के एक फार्म ने उनका ध्यान खींचा। इजराइल की जलवायु राजस्थान से मिलती-जुलती है। राजे को लगा कि खेती का यह प्रयोग तो राजस्थान में भी किया जा सकता है। उनके आग्रह पर इजराइल की सरकार भी इस दिशा में मदद के लिए तैयार हो गई।

ऐसा नहीं था कि इससे पहले देश के सूखे इलाकों में इस तरह की कोशिशें नहीं हुई थीं। हुई थीं मगर वे सफल नहीं हो पाई थीं। दूसरी तरफ इजराइल था जो सघन पौधारोपण और बूंद-बूंद या टपक सिंचाई पद्धति के बल पर शुष्क जमीन में जैतून उगाने में कामयाब रहा था। राजे चाहती थीं कि ऐसा ही कुछ राजस्थान में भी हो। बाजार में जैतून के तेल की काफी मांग है। राजस्थान से शुरू हुआ यह प्रयोग धीरे-धीरे हरियाणा, महाराष्ट्र और बिहार में भी जड़ें जमा रहा है और इससे फायदा पाने वाले किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है इसके बाद राज्य में राजस्थान ऑलिव कल्टीवेशन लिमिटेड (आरओसीएल) नाम का एक उपक्रम बनाया गया। इसमें पैसा सरकार ने लगाया और विशेषज्ञता इंडोलिव नाम की एक इजराइली कंपनी और सिंचाई उपकरण बनाने वाली पुणे स्थित फिनोलेक्स प्लैसन इंडस्ट्रीज ने। इसके बाद राजस्थान के छह जिले चुने गए जहां जैतून के पौधे की सात किस्में उगाई जानी थीं। अधिक उत्पादन देने वाले जैतून के पौधों की कलमें इजराइल से आयात की गईं। टपक सिंचाई तकनीक (इसका आविष्कार इजराइल ने ही किया था) का इस्तेमाल किया गया। खाद, मृदा परीक्षण आदि की विशेषज्ञता भी इजराइल से आई।

इसके नतीजे काफी अच्छे रहे हैं। जिन सात जिलों में जैतून की खेती का यह प्रयोग हुआ, उनमें से चार में उत्पादन काफी अच्छा रहा है। इस कामयाबी से उत्साहित राजस्थान सरकार ने राज्य में जैतून की खेती को बढ़ावा देने के लिए काफी रियायतों की घोषणा की है। मसलन सरकार किसानों को जैतून की कलमों पर 75 फीसदी की सब्सिडी देगी। खाद में प्रति हेक्टेयर 3,000 रु. की सब्सिडी दी जाएगी और टपक सिंचाई के लिए 90 फीसदी की। बीकानेर के उत्तर में बसे लुखरणसर में जैतून तेल उत्पादन के लिए एक रिफाइनरी भी बन रही है।

लुखरणसर में हुए जैतून पौधारोपण के सुपरवाइजर सीताराम यादव कहते हैं, 'पिछले साल हमने हरे जैतूनों का अचार बनाया था। लेकिन रिफाइनरी बनने के बाद हम जैतून का इस्तेमाल तेल बनाने के लिए करेंगे।' बकलिया फार्म्स के मैनेजर कैलाश कलवनिया हमें रेत में हुआ यह चमत्कार दिखाते हैं। फूलों का मौसम खत्म हो चुका है और पेड़ों से छोटे-छोटे जैतून फूट रहे हैं। कलवनिया बताते हैं, 'हमने जो सात किस्में लगाई थीं उनमें बर्निया सबसे कामयाब रही है।' इजराइली विशेषज्ञ गेडेऑन पेलेग ने राजस्थान में जैतून परियोजना की जिम्मेदारी ले रखी है। 68 साल के पेलेग बताते हैं कि इस रेतीली जगह में जैतून की खेती का काम इस तरह नहीं हुआ है कि सीधे इजराइल की नकल कर ली गई हो। वे कहते हैं, 'यहां के लिए कौन-सी किस्म सबसे अच्छी है, यह समझने में हमें वक्त लगा।'

कहानी राजस्थान और हरियाणा के आगे भी जाती है। महाराष्ट्र में भी आम के क्षेत्र में इस प्रयोग के उत्साहजनक नतीजे दिख रहे हैं। उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने के लिए समझौता करने वाले राज्यों की कड़ी में सबसे नया नाम बिहार का है जहां आम और नींबू प्रजाति के फल उगाने के लिए उन्नत तकनीक का लाभ लिया जाएगा।

राजस्थान में हुए इस प्रयोग से उत्साहित इजराइल अब पूरे देश में खेती और बागवानी के अलग-अलग क्षेत्रों में यही सफलता दोहराने की तैयारी में है। इस दिशा में पहला कदम बढ़ाया भी जा चुका है जब 2008 में दोनों देशों के लिए बीच एक कृषि सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर हुए। दिसंबर, 2011 में भारत और इजराइल के कृषि मंत्रालयों ने तीन साल की एक योजना को आखिरी स्वरूप दिया। इसमें कृषि विशेषज्ञों के संयुक्त दौरे, परिचर्चाएं और किसानों के लिए कोर्स जैसी चीजें शामिल हैं। इस समझौते की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसके तहत कई उत्कृष्टता केंद्र बनेंगे जिनसे भारत के कई राज्यों के किसानों को उस शोध और तकनीक का फायदा मिल सकेगा जिसके लिए इजराइल दुनिया भर में जाना जाता है। इन केंद्रों की स्थापना के लिए अभी तक सात राज्यों की सरकारों के साथ इजराइल का समझौता हो चुका है।

सफलता की यह कहानी राजस्थान और हरियाणा के आगे भी जाती है। महाराष्ट्र में भी आम के क्षेत्र में इस प्रयोग के उत्साहजनक नतीजे दिख रहे हैं। हरियाणा सरकार द्वारा दी गई सब्सिडी इससे अलग थी। अब उन्होंने अपने फार्म में 6,000 वर्ग मीटर क्षेत्रफल और जोड़ लिया है। अब वे रीटेलरों को भी अपना माल बेचते हैं और खुले बाजार में भी। बजाज कहते हैं, 'मेरे खेतों में छह महीने में विभिन्न सब्जियों का 50 हजार किलो उत्पादन हुआ है।' इनमें टमाटर भी है और शिमला मिर्च भी और सफलता सिर्फ सब्जियों तक सीमित नहीं है। भिवानी जिले में रमेश तंवर छह हेक्टेयर में कीनू उगा रहे हैं। यह सफलता उन्हें सिरसा स्थित उत्कृष्टता केंद्र की सहायता से मिली है। वे बताते हैं, 'इस केंद्र से हमें कई तकनीकें मिलीं जिससे उत्पादन बढ़ गया है।' सिरसा केंद्र में जैतून उगाने का प्रयोग भी हो रहा है। हालांकि अभी यह काफी शुरुआती अवस्था में है।

तंवर और बजाज के फार्म उस 200 एकड़ जमीन का एक हिस्सा हैं जिसमें भारत-इजराइल उत्कृष्टता केंद्र द्वारा दी गई तकनीकों की मदद से खेती हो रही है। हरियाणा में बागवानी विभाग के महानिदेशक सत्यवीर सिंह कहते हैं, 'अब हमारा लक्ष्य 10 हजार हेक्टेयर का है।' ऐसे हर केंद्र की स्थापना राज्य सरकार द्वारा दिए गए छह करोड़ रु. से हुई है। आम, फूल और शहद उत्पादन के लिए तीन नए केंद्र भी खोले जा चुके हैं। हरियाणा सरकार गांवों के स्तर पर इन उत्कृष्टता केंद्रों के 14 छोटे संस्करण भी स्थापित कर रही है। बागवानी विभाग के अतिरिक्त महानिदेशक अर्जुन सिंह सैनी कहते हैं, 'इससे सही मायनों में यह सुनिश्चित होगा कि तकनीक किसान तक पहुंचे।' ये केंद्र किसानों की ही जमीन पर बनेंगे। सरकार इसके लिए 25 लाख रु. देगी।

इनका स्वामित्व किसानों के पास ही होगा। सैनी इसे पब्लिक-प्राइवेट-फार्मर पार्टनरशिप कहते हैं। कहानी राजस्थान और हरियाणा के आगे भी जाती है। महाराष्ट्र में भी आम के क्षेत्र में इस प्रयोग के उत्साहजनक नतीजे दिख रहे हैं। उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने के लिए समझौता करने वाले राज्यों की कड़ी में सबसे नया नाम बिहार का है जहां आम और नींबू प्रजाति के फल उगाने के लिए उन्नत तकनीक का लाभ लिया जाएगा। सैनी का मानना है कि देश को दूसरी हरित क्रांति की जरूरत है। वे कहते हैं कि खेती के मामले में बुनियादी चीजों से आगे जाना होगा। दिल्ली स्थित इजराइली दूतावास में अंतरराष्ट्रीय सहयोग, विज्ञान और कृषि के काउंसलर यूरी रुबिन्सटाइन उनकी बात से सहमति जताते हुए कहते हैं, 'हमारी कई जरूरतें एक जैसी हैं। शायद यही वजह है कि भारत सकार ने इस मोर्चे पर अमेरिका जैसे बड़े देशों के बजाय इजराइल के साथ साझेदारी का फैसला किया।'

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