इन कारणों से प्लास्टिक पर बैन लगना चाहिए

5 Oct 2019
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इन कारणों से प्लास्टिक पर बैन लगना चाहिए।
इन कारणों से प्लास्टिक पर बैन लगना चाहिए।

प्लास्टिक न केवल इंसानो बल्कि प्रकृति और वन्यजीवों के लिए भी खतरनाक है, लेकिन प्लास्टिक के उत्पादों का उपयोग दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण सबसे अहम पर्यावरणीय मुद्दों में से एक बन गया है। एशिया और अफ्रीकी देशों में प्लास्टिक प्रदूषण सबसे अधिक है। यहां कचरा एकत्रित करने की कोई प्रभावी प्रणाली नहीं है। तो वहीं विकसित देशों को भी प्लास्टिक कचरे को एकत्रित करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जिस कारण प्लास्टिक कचरा लगातार बढ़ता जा रहा है। इसमें विशेष रूप से ‘‘सिंगल यूज प्लास्टिक’’ यानी ऐसा प्लास्टिक जिसे केवल एक ही बार उपयोग किया जा सकता है, जैसे प्लास्टिक की थैलियां, बिस्कुट, स्ट्राॅ, नमकीन, दूध, चिप्स, चाॅकलेट आदि के पैकेट। प्लास्टिक की बोतलें, जो कि काफी सहुलियतनुमा लगती हैं, वे भी शरीर और पर्यावरण के लिए भी खतरनाक हैं। इन्हीं प्लास्टिक का करोड़ों टन कूड़ा रोजाना समुद्र और खुले मैदानों आदि में फेंका जाता है। जिससे समुद्र में जलीय जीवन प्रभावित हो रहा है। समुद्री जीव मर रहे हैं। कई प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। जमीन की उर्वरता क्षमता निरंतर कम होती जा रही है। वहीं जहां-तहां फैला प्लास्टिक कचरा सीवर और नालियों को चोक करता है, जिससे बरसात में जलभराव का सामना करना पड़ता है। भारत जैसे देश में रोजाना सैंकड़ों आवारा पशुओं की प्लास्टिकयुक्त कचरा खाने से मौत हो रही है, तो वहीं इंसानों के लिए प्लास्टिक कैंसर का भी कारण बन रहा है। इसलिए प्लास्टिक के उपयोग को कम करने के साथ ही ‘‘सिंगल यूज प्लास्टिक’’ पर प्रतिबंध लगाना अनिवार्य हो गया है।

प्लास्टिक थैलियां जल और जमीन दोनों को प्रदूषित करती हैं

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत से हर दिन करीब 26 हजार टन प्लास्टिक कूड़ा निकलता है, जिसमें से आधा कूड़ा यानी करीब 13 हजार टन अकेले दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु से ही निकलता है। इस प्लास्टिक कूड़े में से लगभग 10 हजार 376 टन कूड़ा एकत्रित नहीं हो पाता और खुले मैदानों में जहां-तहां फैला रहता है। हवा से उड़कर ये खेतों, नालों और नदियों में पहुंच जाता है तथा नदियों से समुद्र में।  जहां लंबे समय से मौजूद प्लास्टिक पानी के साथ मिलकर समुद्री जीवों के शरीर में पहुंच रहा है। वर्ष 2015 में "साइंस जर्नल" में छपे आंकड़ों के अनुसार हर साल समुद्र में  5.8 से 12.7 मिलियन टन के करीब प्लास्टिक समुद्र में फेंका जाता है। उधर मैदानों और खेतों में फैला प्लास्टिक कुछ अंतराल के बाद धीरे-धीरे जमीन के अंदर दबता चला जाता है तथा जमीन में एक लेयर बना देता है। इससे वर्षा का पानी ठीक प्रकार से भूमि के अंदर नहीं पहुंच पा रहा है और जो पहुंच भी रहा है उमें माइक्रोप्लास्टिक के कण पाए जाने लगे हैं, जिससे भूमि की उर्वरता प्रभावित हो रही है। दरअसल अधिकांश प्लास्टिक लंबे समय तक नहीं टूटते हैं बल्कि ये छोटे छोटे टुकड़ों में बंट जाते हैं, जिनका आकार 5 मिलीमीटर या इससे छोटा होता है। 

ग्रीन हाउस गैसों का करते हैं उत्सर्जन

अधिकांश प्लास्टिक पाॅलीप्रोपाइलीन से बना होता है, जिसे पेट्रोलियम या प्राकृतिक गैस से बनाया जाता है। जो जलाने पर हाइड्रोक्लोरिक एसिड, सल्फर डाइऑक्साइड, डाइऑक्सिन, फ्यूरेन और भारी धातुओं जैसे खतरनाक रसायन छोड़ता है, जिस कारण सांस संबंधी बीमारियां, चक्कर आना और खांसी आने लगती है। साथ ही रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घटने लगती है। डाइऑक्सिन के लंबे समय तक संपर्क में रहने से कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचता है। पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन, पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल हार्मोन में बाधा डालते हैं। प्लास्टिक के इन दुष्प्रभावों को देखते हुए करीब 40 देशों में प्लास्टिक की थैलियां प्रतिबंधित हैं। चीन ने भी प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लगाया था। प्रतिबंध के चार साल बाद ही फेंके गए प्लास्टिक थैलों की संख्या 40 बिलियन तक कम हो गई। 

समुद्री जीवों पर मंडरा रहा संकट

जिस प्रकार इंसानों और वन्यजीवों तथा पक्षियों की दुनिया है, उसी प्रकार एक दुनिया समुद्र और नदियों में पाई जाती है, जिसमें मछली, कछुए आदि जलीय जीव रहते हैं। इसके अलावा कई औषधियों की प्रजातियां भी समुद्र के अंदर पाई जाती हैं लेकिन वन्यजीव भोजन समझकर या भूलवश इस  प्लास्टिक का सेवन कर रहे हैं अथवा समुद्र में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक भोजन और सांस के साथ इनके पेट में पहुंच रहा है। जिस कारण लाखों जलीय जीवों की मौत हो चुकी हैं, जबकि कई तो रोजाना चोटिल भी होते हैं। कुछ महीने पहले फिलीपींस में एक विशालकाय मृत व्हेल के पेट से करीब 40 किलोग्राम प्लास्टिक निकली थी। माइक्रोप्लास्टिक पक्षियों के लिए भी मौत का सामान सिद्ध हो रहा है। जो ये प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि प्लास्टिक ने किस तरह जलीय जीवों के जीवन को प्रभावित कर दिया है।

सिंगल यूज प्लास्टिक का लाइफ इंसान के जीवन में केवल 10 से 20 मिनट की होती है। इसके बाद ये प्लास्टिक जीव जंतुओं और पर्यावरण के लिए मौत का सामान बन जाता है। तो वहीं अब भोजन में ही मिलकर इंसानों के पेट में भी पहुंचने लगा है, जिससे मानव जगत के उत्थान और सुविधा के लिए बनाया गया प्लास्टिक इंसान द्वारा इंसान और पृथ्वी के खिलाफ खड़ा किया गया एक हथियार बन गया है, जो धीरे-धीरे पृथ्वी में ज़हर घोल रहा है। इसलिए प्लास्टिक पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए और लोगों को ये समझना होगा कि प्लास्टिक के भी कई अन्य विकल्प हैं, लेकिन ये हम पर निर्भर करता है कि सहुलियत के लिए हम मौत की सामग्री (प्लास्टिक) चुनते हैं या जीवन के लिए पर्यावरण के अनुकूल कोई अन्य साधन।

 

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