इंसानी बंधन के शिकार बांध

25 Sep 2011
0 mins read

भरपूर बरसात के बावजूद राजस्थान में सैकड़ों बांध ऐसे रह गए जिनमें एक बूंद भी पानी नहीं आया। कारण जो भी हो, सरकारी महकमे की उपेक्षा या स्थानीय लोगों का अतिक्रमण पर बांधों की यह स्थिति चिंता का सबब है। जयपुर से 120 किलोमीटर दूर टोंक जिले में स्थित बीसलपुर बांध से राजधानी को पेयजल आपूर्ति करने पर सरकार ने 1,100 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। यह बांध अजमेर और दूसरे शहरों की प्यास भी बुझाता है लेकिन इंसान की कारगुजारियों की वजह से इस बांध पर भी संकट गहराने लगा है।

वर्षा की कमी के कारण सूखे से जूझते रहने वाले राजस्थान में इस बार बरसात के मौसम में बरसों बाद रेतीली जमीन ने हरियाली की चादर ओढ़ी है। ताल-तलैया लबालब हो गए, नदी-नालों में उफान आ गया, अत्यधिक पानी के कारण कई बांधों पर चादर चल निकली, बहुतेरे बांधों में गेट खोलकर पानी की निकासी करनी पड़ी और राजस्थान के कई इलाकों में तो बाढ़ भी आ गई। इस हरियाली और खुशहाल तस्वीर की तरह क्या सब कुछ मन को उल्लसित करने वाला रहा? नहीं, ऐसा कतई नहीं है। बरसात के इस मौसम ने राजस्थान की एक ऐसी तस्वीर भी सामने रखी है जो इंसान की विनाश की प्रवृत्ति को उजागर करने वाली है। वह यह है कि भरपूर बरसात के बावजूद राजस्थान में सैकड़ों की तादाद में ऐसे बांध रह गए जिनमें एक बूंद भी पानी नहीं आया।

राजस्थान में इस मौसम में भरपूर पानी बरसा है। सरकार के सिंचाई विभाग के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में एक भी जिला ऐसा नहीं बचा जहां औसत से कम पानी बरसा हो। दो जिलों - बारां और चूरू में तो औसतन 60 प्रतिशत से भी ज्यादा वर्षा हुई। इन जिलों के कई हिस्सों को भारी बरसात के कारण बाढ़ का भी सामना करना पड़ा है। वहीं अजमेर, बांसवाड़ा, बाड़मेर, डूंगरपुर, जैसलमेर, जालौर, प्रतापगढ़, झालावाड़, झुंझुनू, जोधपुर, कोटा और राजसमंद में औसत से 20 से 59 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई जबकि अलवर, भरतपुर, भीलवाड़ा, बीकानेर, बूंदी, चित्तौड़गढ़, दौसा, धौलपुर, हनुमानगढ़, जयपुर, करौली, नागौर, पाली, सिरोही और श्रीगंगानगर में औसत वर्षा हुई है। पानी की अत्यधिक आवक देखते हुए राजस्थान में चंबल पर बने कोटा बैराज और माही नदी पर बने माही बैराज सागर बांधों के एकबारगी तो सभी गेट खोलने पड़ गए। यहां तक कि उदयपुर जैसे शहर में भी अनेक इलाके बाढ़ की चपेट में आ गए लेकिन ऐसे बेहतरीन मानसून के बावजूद भी राजस्थान के अधिकांश बांधों में पानी की स्थिति भयावह तस्वीर पेश करती है।

इंसानी स्वार्थ के भेंट चढ़ते बांधइंसानी स्वार्थ के भेंट चढ़ते बांधराजस्थान भौगोलिक क्षेत्रफल के हिसाब से देश का सबसे बड़ा प्रांत है लेकिन दुर्भाग्यवश यह ऐसा इलाका है जिसमें देश के सतही जल का मात्र एक प्रतिशत ही उपलब्ध है। राजस्थान सरकार के सिंचाई विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, भरपूर बरसात के बावजूद राजस्थान के छोटे-बड़े कुल 722 बांधों में से मात्र 284 ही पूरी तरह भर सके हैं। प्रदेश में 251 बांधों में आंशिक पानी ही आया जबकि 186 बांध तो पूरी तरह खाली ही रह गए। इनमें एक बूंद पानी भी नहीं आ सका। राजस्थान में बड़े बांधों की संख्या कुल 274 है जिनकी भराव क्षमता 4.25 एमक्यूएम से ज्यादा है। इनमें 115 बांध ही भर सके। 118 बांधों में आंशिक रूप से ही पानी आया जबकि 41 बांध पूरी तरह से खाली ही पड़े हुए हैं। इसी तरह 448 मंझोले और छोटे बांधों में से 284 ही भर सके। इनमें 251 आंशिक रूप से भरे जबकि 146 तो पानी की बूंद तक के लिए तरस गए। जिन बांधों में बरसात के बावजूद पानी की बूंद तक नहीं आई उनमें सबसे प्रमुख जयपुर का रामगढ़ बांध है। किसी समय में यह विशाल बांध जयपुर शहर के पेयजल का सबसे प्रमुख स्रोत हुआ करता था। यह वही बांध है जिसमें 1982 के दिल्ली एशियाड के समय नौकायन की प्रतियोगिताएं हुई थीं। पिछले एक दशक से रामगढ़ बांध में लोग खेती कर रहे हैं।

इसी तरह अलवर का जयसमंद बांध, मंगलसर बांध, हंससरोवर बांध, भरतपुर का सीकरी बांध व मोती झील, अजमेर का नारायण सागर, टोरडीसागर जैसे बांध प्रदेश के उन सैकड़ों बांधों में शामिल हैं जहां पानी की आवक भरपूर बरसात के बावजूद नहीं होती। इनमें से ज्यादातर बांध पुराने समय के बने हुए ऐतिहासिक बांध हैं जो कुछ समय पहले तक अपने इलाके के प्रमुख जलस्रोत हुआ करते थे। इन बांधों से इन इलाकों में खेती तो होती ही थी, साथ ही ये इस क्षेत्र के पेयजल का भी स्रोत हुआ करते थे। विशेषज्ञों का कहना है कि वर्षा काल में भी इन बांधों का सूखा रह जाना इंसान के द्वारा बांधों की हत्या का नतीजा है। बांधों के कैचमेंट एरिया, जहां से इनमें पानी आता है, लोगों के अतिक्रमण के शिकार हैं। यहां पर स्थानीय लोगों के खेत व फार्म हाउस बन गए। खनन गतिविधियों ने भी बांधों में पानी की आवक बिल्कुल रोक दी है।

भरपूर बरसात के बावजूद सूखे पड़े बैराजभरपूर बरसात के बावजूद सूखे पड़े बैराजबांधों की बदहाली का मुद्दा समय-समय पर उठता भी रहा है लेकिन सरकारी अमले की ओर से अभी तक किसी भी मामले में प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई है। मजबूरन पर्यावरण प्रेमियों और समाज के जिम्मेदार लोगों ने कोर्ट की शरण ली है। रामगढ़ बांध के बारे में ऐसा ही एक मामला राजस्थान हाईकोर्ट में चल रहा है। कोर्ट ने हाल ही में राजस्थान सरकार के सिंचाई विभाग, वन विभाग और जयपुर विकास प्राधिकरण को रामगढ़ बांध और उसमें पानी आने के रास्ते से अतिक्रमण हटाने के लिए साझा कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही, कोर्ट ने राजस्व विभाग और जयपुर के जिला प्रशासन को नदी-तालाब, उनके किनारे तथा बहाव क्षेत्र में जमीनों का आवंटन नहीं करने के भी निर्देश दिए हैं। हालांकि न्यायालय ने रामगढ़ बांध के मामले में सरकार को निर्देश भले ही दे दिए हों लेकिन ऐसी कोशिशें सरकारी अमले के कान पर जूं तक रेंगने में कारगर होती नजर नहीं आतीं।

राजस्थान का तीसरा सबसे विशाल बांध है बीसलपुर। रामगढ़ बांध के सूख जाने के बाद बीसलपुर राजधानी जयपुर की प्यास बुझाने का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है। करीब दो साल पहले इस बांध से जयपुर को पेयजल की आपूर्ति शुरू हुई है। जयपुर से 120 किलोमीटर दूर टोंक जिले में स्थित इस बांध से राजधानी को पेयजल आपूर्ति करने पर सरकार ने 1,100 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। यह बांध अजमेर और दूसरे शहरों की प्यास भी बुझाता है लेकिन इंसान की कारगुजारियों की वजह से इस बांध पर भी संकट गहराने लगा है। इसका खुलासा भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (सीएजी) की ताजा रिपोर्ट करती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, बीसलपुर जयपुर की प्यास बुझाने के लिए एक अविश्वसनीय स्रोत है। यह बांध 1996 से 2010 के बीच केवल दो बार ही अपनी पूर्ण क्षमता तक भर सका। हालांकि, इस बार भी बीसलपुर पूरा भर गया है लेकिन सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक बीसलपुर पर गंभीर खतरा है और इस बांध की भराव क्षमता निरंतर घटती जा रही है। मई 2010 में राज्य जल संसाधन विभाग की बीसलपुर जलग्रहण क्षेत्र सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक, इस बांध के जलग्रहण क्षेत्र में 27,513 बांध, एनीकट, स्थानीय तालाब और खानें अस्तित्व में आ गई हैं। इससे इस बांध की भराव क्षमता अब 73 प्रतिशत रह गई है। ऐसे में उन संभावनाओं पर सवालिया निशान लग जाता है जो 2021 तक इस बांध से जयपुर की प्यास बुझाने के लिए व्यक्त की जा रही हैं। सरकार की उदासीनता व लोगों की बेरहमी का यह आलम बांधों के लिए घातक है।

Email:- kapil.bhatt@naidunia.com

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading