इस साल के सूखे में दक्षिण बिहार के लोगों की मदद करें

6 Aug 2010
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पानी की समस्या पर काम करने वाले विभिन्न स्वयंसेवी संगठन, संस्थाएँ एवं सरकार के विभाग इस विषम परिस्थिति में राहत कार्य के रूप में जलाशयों के जीर्णोद्धार के काम को ऊच्च प्राथमिकता दे कर तत्परतापूर्वक अभी से लग जाएँ। इससे सूखे के दौरान लोगों को काम भी मिल जायेगा और आगे कम वर्षा के समय इन जलाशयों से सिंचाई तो होगी ही साथ ही भूमिगत जल के संभरण एवं पेयजल की समस्या का भी दीर्घकालिक समाधान होगा। ऐतिहासिक रूप से विख्यात मगध प्रमण्डल (पूर्व में गया जिला) बिहार का दक्षिणी भाग है। मगध प्रमण्डल में चार जिले गया, औरंगाबाद, जहानाबाद तथा नवादा हैं। मगध क्षेत्र की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक गौरव और इसके अविछिन्न इतिहास का आधार इस इलाके की अद्भुत सिंचाई व्यवस्था रही है। फल्गु , दरधा, सकरी, किउल, पुनपुन और सोन मगध क्षेत्र की मुख्य नदियाँ हैं। दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवाहमान ये नदियाँ गंगा में मिलती हैं। ‘बराबर पहाड़’ के बाद फल्गु कई शाखाओं में बँट कर बाढ़ - मोकामा के टाल में समा जाती है। बौद्धकाल से ही मगध वासियों ने सामुदायिक श्रम से फल्गु, पुनपुन आदि इन नदियों से सैंकडों छोटी-छोटी शाखायें निकालीं, जिससे बरसात में पानी कोसों दूर खेतों तक पंहुचाया जा सके।

सामुदायिक श्रम से वाटर हार्वेस्टिंग की एक अद्भुत विधा और तकनीक का विकास सह्स्राब्दियों से इस इलाके में होता रहा, जो ब्रिटिश शासन तक चालू रहा। फल्गु-पुनपुन आदि के जल से आहर-पईन के जाल वाली विधा ने धान की खेती पर आधारित वह अर्थव्यवस्था तैयार की, जिसने मगध साम्राज्य, बौद्ध धर्म के उत्कर्ष, और पाल कालीन वैभव और संस्कृति को जन्म दिया। सिंचाई की इस विधा की विकास प्रक्रिया ब्रिटिश हुकूमत के प्रारंभिक काल – परमानेंट सेटलमेंट - तक कम से कम चलती रही। औपनिवेशिक शासन काल में जमींदारों के बीच पानी बंटवारे को ले कर इस व्यवस्था में ह्रास शुरू हुआ और आजादी के बाद तो यह व्यवस्था अनाथ हो गयी। नए दौर की नयी हुकूमत, संवेदनहीन नौकरशाही और नये जमाने की सिविल इंजीनियरिंग ने इस कारगर सिंचाई व्यवस्था की ऐसी-तैसी कर दी। फिर भी इस इलाके की अधिकांश खेती इसी से होती है।

अब समस्या यह है कि जो अपना रहा है, वह लोगों के हाथ में नहीं है। प्रकृति का प्रकोप अलग, सूखे लगातार पड़ रहे हैं। तीन सालों से पूरे प्रमंडल में अल्पवृष्टि के कारण सुखाड़ की स्थिति बनी हुई है। संकट गहरा रहा है। सरकार ने गांव-देहात में बिजली देने की घोषणा की है। लेकिन सरकार के आधुनिक नलकूप या तो बंद हैं या कारगर नहीं हैं। जल स्तर भी तो नीचे जा रहा है। ऐसी स्थिति में किसान खेतों में सिंचाई सुविधा के अभाव में खेती करने में अक्षम साबित हो रहे हैं। खेती की कौन कहे, अनेक इलाकों में पेय जल का संकट उत्पन्न हो रहा है। ठीक से अभी भी वर्षा नहीं हुई तो लगभग आधे क्षेत्र में पेय जल संकट होगा। सबसे बुरा हाल गया “शहर का है। फिर बारी आयेगी औरंगाबाद और नवादा की। नालंदा भी नहीं बचेगा।

मगध जल जमात एक मिला-जुला सामाजिक संगठन है। यह मगध क्षेत्र की जल संबंधी समस्याओं के समाधान हेतु सक्रिय रूप से पिछले पांच वर्ष से प्रयासरत है। इसके अनुरोध पर समाज के अनेक वर्गों के सहयोग से अनेक जलाशयों एवं सिंचाई प्रणालियों के जीर्णोद्धार का काम हुआ है।

मगध क्षेत्र पिछले साल भी सूखे की चपेट में आ गया था। बमुश्किल 30 प्रतिशत क्षेत्रों में धान एवं 50 प्रतिशत इलाके में रबी की खेती हो पाई थी। मगध जल जमात मगध की जनता एवं सरकार के शीर्षस्थ लोगों, जैसे- मंत्री, विधान सभा अध्यक्ष, आयुक्त, जिलाधिकारी आदि से लगातार चर्चा एवं आग्रह करता रहा है।

‘‘हमारा सुझाव एवं अनुरोध है कि पानी की समस्या पर काम करने वाले विभिन्न स्वयंसेवी संगठन, संस्थाएँ एवं सरकार के विभाग इस विषम परिस्थिति में राहत कार्य के रूप में जलाशयों के जीर्णोद्धार के काम को ऊच्च प्राथमिकता दे कर तत्परतापूर्वक अभी से लग जाएँ। इससे सूखे के दौरान लोगों को काम भी मिल जायेगा और आगे कम वर्षा के समय इन जलाशयों से सिंचाई तो होगी ही साथ ही भूमिगत जल के संभरण एवं पेयजल की समस्या का भी दीर्घकालिक समाधान होगा।’’

स्वयंसेवी संगठन भी इस नेक काम में अपनी सीधी भागीदारी कर सकते हैं। हम सबका आह्वान करते हैं और हमसे जो भी बनेगा सहयोग करेंगे।

समर्थन और सहभागिता की आशा के साथ, सधन्यवाद।

निवेदक
मगध जल जमात
मो। 9431476562
संपर्क कार्यालय
एम। आई। जी 87, हाउसिंग बोर्ड कालोनी,
गया बिहार

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