इतिहास बनने की कगार पर खड़े हैं गाँवों के पोखर

30 Apr 2016
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आज इंसानों की बात तो दूर दुधारू पशुओं को नहाने के लिये भी लोग मोटर चलाकर भूजल का इस्तेमाल करते हैं। आज गाँवों में लगभग हर दूसरे घर में बिजली संचालित मोटर या सबमर्सिबल पम्प लग चुके हैं। जिनके माध्यम का दोहन किया जाता है। इससे ना केवल बेशकीमती भूजल का स्तर नीचे जा रहा है बल्कि गाँव में उदासीनता का शिकार होकर पोखर और तालाब विलुप्त हो चुके हैं।मोदीनगर, 28 अप्रैल (संजय शर्मा)! मौजूदा समय में गिरता जल स्तर आज सभी जगह चिन्ता का विषय है और इसके लिये कोई दोषी है तो खुद समाज के लोग। पूर्वजों ने ग्रामीण समाज के लिये पोखरों और तालाबों का एक ऐसा जल संरक्षण तन्त्र निर्मित किया था जिनके सहारे सिर्फ वर्षाजल के सहारे ही पूरे वर्ष भर गाँव की पानी की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है लेकिन आज यह इतिहास बनते जा रहे हैं। किसी भी गाँव में प्रवेश करते ही नजर आने वाले ये पोखर और तालाब वहाँ की जलव्यवस्था का आधार हुआ करते थे। पेयजल के अलावा नहाने धोने के सभी कामों में तालाबों और पोखरों का ही जल इस्तेमाल किया जाता था लेकिन गाँव में अब यह एक तरह से खत्म हो गए हैं।

ये अतिक्रमण की भेंट चढ़ गए हैं। मोदीनगर क्षेत्र के हर गाँव में तालाब या तो अतिक्रमण का शिकार हैं या फिर गाँव के लोगों ने तालाबों को कूड़ेदान में बदलकर सूखने की कगार पर पहुँचा दिया है।

ज्ञात हो कि दो दशक पहले मोदीनगर क्षेत्र में 50 से अधिक छोटे बड़े पोखर और तालाब थे लेकिन इक्का दुक्का तालाब को छोड़कर सभी गायब हो चुके हैं। कुछ तालाबों के ऊपर तो अतिक्रमण करके बाकायदा आवासीय और व्यवसायिक निर्माण किए जा चुके हैं कि आज कोई देखकर ये बता भी नहीं सकता है कि वहाँ कभी कोई पोखर या तालाब भी था। आदर्श नगर स्थित राम की झौड़ी के ऊपर बने मकानों के नीचे कभी नगर का सबसे बड़ा तालाब हुआ करता था। इतना ही नहीं बेगमाबाद में भी कई ऐसे तालाब थे जोकि अपने आस-पास की जगह की पहचान माने जाते थे। लेकिन आज यही तालाब अपने पहचान भी खो चुके हैं।

भूजल पर निर्भरता ने पहुँचाया हाशिए पर


बीते कुछ वर्षों में जिस अनुपात से गाँवों में बिजली की उपलब्धता बढ़ी है इसी अनुपात में गाँव के लोगों का पोखरों और तालाबों से मोहभंग हुआ है।

आज इंसानों की बात तो दूर दुधारू पशुओं को नहाने के लिये भी लोग मोटर चलाकर भूजल का इस्तेमाल करते हैं। आज गाँवों में लगभग हर दूसरे घर में बिजली संचालित मोटर या सबमर्सिबल पम्प लग चुके हैं। जिनके माध्यम का दोहन किया जाता है। इससे ना केवल बेशकीमती भूजल का स्तर नीचे जा रहा है बल्कि गाँव में उदासीनता का शिकार होकर पोखर और तालाब विलुप्त हो चुके हैं।

अपने आप पूरा पारिस्थितिक तन्त्र होते हैं तालाब


गाँवों में पोखरों और तालाबों का महत्त्व सिर्फ जल संरक्षण के लिये ही नहीं होता है।

बल्कि हर तालाब अपने आप में एक पूरा पारिस्थितिक तन्त्र होता है जिसमें ना जाने कितने ही जलचर और उभयचर जीव आश्रय पाते हैं। तालाबों में हंस, सारस, जलमुर्गी, तीतर बटेर जैसे पक्षियों से लेकर सांप, मेंढक, कछुए, मछली जैसे जीव पलते थे लेकिन तालाबों व पोखरों के सूखने के चलते आज इन जीवों के लिये संकट पैदा हो गया है।

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