जैविक खेती से बढ़ता उत्पादन

22 Sep 2015
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जैविक उत्पादन हमारी सेहत के लिए सबसे कारगर हैं। जैविक उत्पाद खाने से तमाम बीमारियाँ दूर रहती हैं और शरीर स्वस्थ रहता है। खेती की लागत कम आती है और उत्पादन भरपूर मिलता है। यही वजह है कि सरकार की ओर से कृषि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए जैविक खेती को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। जैविक खेती से मिट्टी की उर्वराशक्ति भी बच रही है। साथ ही प्रदूषण नियन्त्रण की दिशा में बेहतर काम हो रहा है। लोगों के मन में जैविक उत्पाद के प्रति आकर्षण भी बढ़ा है। इस वजह से भी किसानों को जैविक उपज का भरपूर मूल्य मिल रहा है। सरकार की ओर से भी जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को जागरुक किया जा रहा है। यदि पूरे देश के किसान जैविक खेती करने लगे तो हमें रासायनिक खादों का आयात नहीं करना पड़ेगा।

भारत सरकार खेती को समृद्ध करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। जैविक खेती के दायरे में खाने-पीने की वे चीजें आती हैं जिन्हें सिंथेटिक फर्टिलाइजर (कृत्रिम खाद), कृृत्रिम कीटनाशक (सिंथेटिक पेस्टीसाइड) या कृत्रिम हाॅर्मोन (सिंथेटिक हार्मोन) की मदद के बगैर तैयार किया जाता है। ये कुदरती तरीके से तैयार चीजें होती हैं जो सेहत के लिहाज से काफी उपयोगी हैं। वैसे जैविक खेती की प्रथा भारत में कोई नयी नहीं लेकिन आज के माहौल में इसका महत्व इसलिए काफी बढ़ गया है क्योंकि लोग ज्यादा से ज्यादा फसल पैदा करने के लिए हर तरफ रासायनिक खाद और कीटनाशकों का खासा इस्तेमाल कर रहे हैं। रासायनिक खाद और कीटनाशकों का धड़ल्ले से इस्तेमाल ना सिर्फ जमीन की सेहत के लिए हानिकारक है, बल्कि इनसे तैयार कृषि उत्पाद इन्सानों और जानवरों की सेहत पर भी बुरा असर डालते हैं। जैविक खाद्य पदार्थों पर यूरोपियन यूनियन की एक गहरी रिसर्च बताती है कि आमतौर पर मिलने वाले खाद्य पदार्थों के मुकाबले जैविक खेती के प्रोडक्ट्स में 40 प्रतिशत ज्यादा एंटी-आॅक्सीडेंट पाए जाते हैं। एंटी-आॅक्सीडेंट वो तत्व हैं जो शरीर की कोशिकाओं को नुकसान करने वाले कणों से आपकी रक्षा करते हैं।

मुम्बई में भी जैविक खेती से तैयार आहार (आर्गेनिक फूड) को लेकर लोगों में काफी जागरुकता बढ़ी है। आर्गेनिक फल, सब्जी बाजार में मिलने वाले आम सामान से थोड़े ज्यादा दाम के होते हैं फिर भी सेहत की भलाई के लिए लोग इस पर खर्च कर रहे हैं। ऐसे में भारतीय किसानों को जैविक खेती के जरिए अधिक उत्पादन लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके पीछे मूल मकसद भारतीयों के स्वास्थ्य की हिफाजत और किसानों की लागत कम करना है। जैविक खेती कम लागत में अधिक और गुणवत्तापरक उत्पादन का मूलमंत्र बन गई है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि जिस तरह से जनसंख्या में वृद्धि हुई है, उस अनुपात में कृषि योग्य भूमि कम हो रही है। खेत का रकबा घटने के साथ ही हमें अधिक अनाज की जरूरत पड़ रही है। यह अपने आप में एक बड़ी चुनौती है, लेकिन इस चुनौती का मुकाबला करने के लिए जैविक खेती सबसे सशक्त माध्यम है। यदि हम रासायनिक खाद के जरिए तैयार किए गए उत्पाद का सेवन करते हैं तो उससे तमाम बीमारियाँ घेर लेती हैं। इन दिनों हाइपर टेंशन, ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारियाँ, गैस्ट्रो, किडनी रोग से जुड़ी तमाम बीमारियाँ बढ़ रही हैं। इन बीमारियों के बढ़ने के पीछे एक बड़ा कारण रासायनिक एवं कीटनाशक उत्पाद का सेवन करना है। ऐसी स्थिति में चिकित्सा एवं खानपान विशेषज्ञों का जोर है कि लोग जैविक तरीके से तैयार किए गए उत्पादन का सेवन करें। यही वजह है कि जैविक तरीके से तैयार उत्पादन का मूल्य भी भरपूर मिल रहा है।

वास्तव में जैविक कृषि एक समग्र उत्पादन प्रबन्धन सिस्टम है जो जैव विविधता, पोषक जैव वैज्ञानिक चक्र, मृदा माइक्रोबाॅयल और जैव रसायन क्रियाकलाप से सम्बन्धित कृषि स्थिति की प्रणाली के स्वास्थ्य का संवर्धन करता है। इसमें रसायन उर्वरक के स्थान पर माइक्रोबायल पोषक जैव शैवाल, फंगस, बैक्टीरिया, माइकोरिजा और एक्टिनोमाइसीन का उपयोग किया जाता है। कम्पोस्टिंग, हरा खाद बनाना, फसल चक्र, मिश्रित फसल आदि जैविक कृषि के अन्य सिद्धान्त हैं। जैविक खाद में मवेशी के गोबर, जानवरों के अपशिष्ट, ग्रामीण और शहरी कम्पोस्ट, अन्य पशु अवशिष्ट, फसलों के अपशिष्ट और हरा खाद शामिल हैं। इस प्रकार से ये अपशिष्ट मृदा की उर्वरकता और उत्पादकता बढ़ाने में उपयोगी होते हैं। विभिन्न राज्यों की रिपोर्ट में भी यह कहा गया है कि किसानों में जैविक खेती के प्रति ललक पैदा हुई है।

अधिकांश किसान जैविक खेती के प्रति इसलिए भी आकर्षित हो रहे हैं क्योंकि जैव उर्वरक से उत्पादन तो मिलता ही है, साथ ही मिट्टी की उर्वराशक्ति भी बरकरार रहती है। यह मृदा की जलधारिता क्षमता बढ़ाता है और सूक्ष्म जीवों के क्रियाकलाप को सक्रिय करता है जो मिट्टी में पौधों के भोजन तत्व तैयार करते हैं। इस तरह जैविक खेती से देशवासियों की सेहत भी सुधारी जा रही है और भरपूर मुनाफा भी कमाया जा सकता है। इस हिसाब से किसानों को जैविक खेती के प्रति जागरुक किया जा रहा है। रासायनिक खाद के लगातार प्रयोग से एक तरफ मिट्टी की उर्वरता प्रभावित हो रही है तो दूसरी तरफ किसानों को काफी पैसा खर्च करना पड़ रहा है। वहीं भारत को विभिन्न रासायनिक खादों को खरीदने के लिए दूसरे देश से सम्पर्क करना पड़ रहा है।

रासायनिक खाद उपभोग के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है। देश में 34 फीसदी नाइट्रोजन और 82 फीसदी फास्फेट के अलावा अन्य सौ फीसदी रासायनिक खाद हम दूसरे देशों से खरीदते हैं। अनाज उत्पादन की बढ़ती जरूरत को देखते हुए रासायनिक खाद के आयात का प्रतिशत भी बढ़ता जा रहा है, जबकि देशवासियों की सेहत के लिए यह ठीक नहीं है। ऐसे में सरकार की ओर से जैविक खाद को बढ़ावा देकर दोहरा अभियान शुरू किया गया है। एक तो जैविक खाद अपने ही देश में आसानी से तैयार किए जा सकते हैं और दूसरे हमें पड़ोसी देशों से आयात भी नहीं करना पड़ेगा। एक अनुमान के अनुसार दुनिया भर में साढ़े तीन करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि पर करीब 14 लाख उत्पादक जैविक खेती कर रहे हैं। कृषि भूमि का करीब दो-तिहाई हिस्सा घास भूमि है। फसल वाला क्षेत्र 82 लाख हेक्टेयर है जो कुल जैविक कृषि भूमि का एक चौथाई हिस्सा है। एशिया, लेटिन अमेरिका और आॅस्ट्रेलिया जैविक खाद्यान्नों के महत्त्वपूर्ण उत्पादक और निर्यातक हैं। जैविक उत्पाद की वैश्विक बिक्री वर्ष 2012 में करीब 80.59 अरब डाॅलर तक पहुँच गई है। जैविक उत्पादों के लिए उपभोक्ताओं की मांग मुख्य रूप से उत्तरी अमेरिका और यूरोप से है। भारत में वर्ष 2003-04 में जैविक खेती को लेकर गम्भीरता दिखाई गई और 42,000 हेक्टेयर क्षेत्र से जैविक खेती की शुरुआत हुई। मार्च 2010 तक यह बढ़कर 10 लाख 80 हजार हेक्टेयर हो गया। मार्च 2015 तक इसमें 25 फीसदी इजाफा हुआ है। वर्ष 2008-09 के दौरान, भारत ने करीब 18.78 लाख टन प्रमाणित जैविक उत्पादों का उत्पादन किया। इसमें से 591 करोड़ रुपये के करीब 54,000 टन खाद्य पदार्थों का निर्यात किया गया। भारत के जैविक निर्यातों में अनाज, दालें, शहद, चाय, मसाले, तिलहन, फल, सब्जियाँ, कपास के तन्तु, काॅस्मेटिक्स और बाॅडीकेयर उत्पाद हैं।

जैव उत्पाद की महत्ता को देखते हुए कृषि मन्त्रालय देश में जैविक खेती को बढावा देने के लिए राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना, राष्ट्रीय बागवानी मिशन, पूर्वोत्तर के लिए प्रौद्योगिकी मिशन और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना संचालित कर रहा है। राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना, गाजियाबाद स्थित राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र तथा बेंगलुरू, भुवनेश्वर, हिसार, इम्फाल, जबलपुर और नागपुर स्थित छह क्षेत्रीय केन्द्रों के माध्यम से अक्टूबर 2004 में लागू की गई। इसी तरह राष्ट्रीय बागवानी मिशन और पूर्वोत्तर के लिए प्रौद्योगिकी मिशन के तहत जैविक बागवानी खेती के लिए अधिकतम 10,000 रुपये प्रति हेक्टेयर लागत की 50 फीसदी की दर पर (प्रति लाभार्थी 4 हेक्टेयर तक) सहायता दी जाती है। वर्मी-कम्पोस्ट इकाइयाँ लगाने के लिए भी प्रत्येक लाभार्थी को 30,000 रुपये की लागत पर 50 फीसदी की दर पर सहायता मुहैया कराई जा रही है। उन किसानों के समूह को पाँच लाख रुपये की सहायता मुहैया कराई जा रही है जो जैविक खेती प्रमाणन के लिए 50 हेक्टेयर के क्षेत्र कवर करते हैं।

केन्द्र सरकार के प्रयासों के अलावा कर्नाटक, केरल, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, नागालैंड, सिक्किम, मिजोरम और उत्तराखण्ड पहले ही जैविक खेती को बढावा देने के लिए नीतियाँ तैयार कर चुके हैं। नागालैंड, सिक्किम, मिजोरम और उत्तराखण्ड ने भविष्य में 100 फीसदी जैविक होने का फैसला किया है। जैविक खेती को बढावा मिलने के पीछे मूल कारण है खेतों में रसायन डालने से जैविक व्यवस्था नष्ट होना तथा भूमि और जल-प्रदूषण बढना। इसी वजह से विभिन्न प्रदेशों में जैविक खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है। विभिन्न स्थानों पर जैविक उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण शुरू हो गया है। किसानों को पैम्पलेट एवं अन्य प्रचार सामग्री के जरिए जैविक खेती के फायदे बताए जा रहे हैं। हर गाँव में किसान मित्र नियुक्त किए जा रहे हैं।

सेहत, मिट्टी एवं पर्यावरण बचाने के लिए हम सभी देशवासियों को जैविक खेती के प्रति संकल्प लेना होगा। आज जैविक खेती समय की मांग भी है। खेतों में हमें उपलब्ध जैविक साधनों की मदद से खाद, कीटनाशक दवाई, चूहा नियन्त्रण हेतु दवा वगैरह बनाकर उनका उपयोग करना होगा। इन तरीकों के उपयोग से हमें पैदावार भी अधिक मिलेगी एवं अनाज, फल, सब्जियाँ भी विषमुक्त एवं उत्तम होंगी। प्रकृति के सूक्ष्म जीवाणुओं एवं जीवों का तन्त्र दोबारा हमारी खेती में सहयोगी कार्य कर सकेगा।

जैव उर्वरक क्या हैं


.जैव उर्वरक जीवाणु खाद है। खाद में मौजूद लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु वायुमण्डल में पहले से विद्यमान नाइट्रोजन को पकड़कर फसल को उपलब्ध कराते हैं और मिट्टी में मौजूद अघुलनशील फास्फोरस को पानी में घुलनशील बनाकर पौधों को देते हैं।। इस प्रकार रासायनिक खाद की आवश्यकता सीमित हो जाती है। वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध किया जा चुका है कि जैविक खाद के प्रयोग से 30 से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर भूमि को प्राप्त हो जाती है तथा उपज 10 से 20 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इसलिए रासायनिक उर्वरकों को थोड़ा कम प्रयोग करके बदले में जैविक खाद का प्रयोग करके फसलों की भरपूर उपज पाई जा सकती है। जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरकों के पूरक तो हैं ही साथ ही ये उनकी क्षमता भी बढ़ाते हैं। फास्फोबैक्टीरिया और माइकोराइजा नामक जैव उर्वरक के प्रयोग से खेत में फास्फोरस की उपलब्धता में 20 से 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होती है। इसका प्रयोग करने से फसल उत्पादन की लागत घटती है। नाईट्रोजन व घुलनशील फास्फोरस की फसल के लिए उपलब्धता बढ़ती है। भूमि की मृदा संरचना बेहतर रहती है।

जैविक खाद का प्रयोग कैसे करें


जैव उर्वरकों का प्रयोग बीजोपचार या जड़ उपचार अथवा मृदा उपचार द्वारा किया जाता है।

i. बीजोपचार- बीजोपचार के लिए 200 ग्राम जैव उर्वरक का आधा लीटर पानी में घोल बनाएँ इस घोल को 10-15 किलो बीज के ढेर पर धीरे-धीरे डालकर हाथों से मिलाएँ जिससे कि जैव उर्वरक अच्छी तरह और समान रूप से बीजों पर चिपक जाएँ। इस प्रकार तैयार उपचारित बीज को छाया में सुखाकर तुरन्त बुआई कर दें।

ii. जड़ उपचार- जैविक खाद का जड़ोपचार द्वारा प्रयोग रोपाई वाली फसलों में करते हैं। चार किलोग्राम जैव उर्वरक का 20-25 लीटर पानी में घोल बनाएँ। एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त पौध की जड़ों को 25-30 मिनट तक उपरोक्त घोल में डुबोकर रखें। उपचारित पौध को छाया में रखें तथा यथाशीघ्र रोपाई कर दें।

iii. मृदा उपचार- एक हेक्टेयर भूमि के लिए, 200 ग्राम वाले 25 पैकेट जैविक खाद की आवश्यकता पड़ती है। 50 किलोग्राम मिट्टी, 50 किलोग्राम कम्पोस्ट खाद में 5 किलोग्राम जैव उर्वरक को अच्छी तरह मिलाएँ। इस मिश्रण को एक हेकटेयर क्षेत्रफल में बुआई के समय या बुआई से 24 घंटे पहले समान रूप से छिड़कें। इसे बुआई के समय कूंडों या खूंडों में भी डाल सकते हैं।

जाने कैसे तैयार होता है कम्पोस्ट खाद


कम्पोस्टिंग वनस्पति और पशु अपशिष्ट को तुरन्त गलाकर खेत में मौजूद अन्य अपशिष्टों को भी पौधे के भोजन के लिए तैयार करते हैं। इन अपशिष्टों में पत्तियाँ, जड़ें, ठूंठ, फसल के अवशेष, पुआल, बाड़, घास-पात आदि शामिल हैं। तैयार कम्पोस्ट भुरभुरे, भूरा से गहरा भूरा आद्रता वाली सामग्री का मिश्रण जैसी होती है। मूल रूप से कम्पोस्ट दो प्रकार के होते हैं। पहला एरोबिक और दूसरा गैर-एरोबिक।

वर्मी कम्पोस्ट यानी केंचुआ खाद तैयार करने की विधि


केंचुआ खाद तैयार करने के लिए छायादार स्थान में 10 फीट लम्बा, 3 फीट चौड़ा, 12 इंच गहरा पक्का ईंट सीमेंट का ढाँचा बनाएँ जमीन से 12 इंच ऊँचे चबूतरे पर यह निर्माण करें। इस ढाँचे में आधी या पूरी पची (पकी) गोबर कचरे की खाद बिछा दें। इसमें 100 केंचुए डालें। इसके ऊपर जूट के बोरे डालकर प्रतिदिन सुबह-शाम पानी डालते रहें। इसमें 60 प्रतिशत से ज्यादा नमी ना रहे। दो माह बाद यह खाद बन जाएगी, 15 से 20 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से इस खाद का उपयोग करें। वर्मी कम्पोस्ट के लिए केंचुए की मुख्य किस्में- आइसीनिया फोटिडा, यूड्रिलस यूजीनिया और पेरियोनेक्स एक्जकेटस है। यह मिट्टी की उर्वरता एवं उत्पादकता को लम्बे समय तक बनाए रखती हैं। मृदा की उर्वराशक्ति बढती है जिससे फसल उत्पादन में स्थिरता के साथ गुणात्मक सुधार होता है। यह नाइट्रोजन के साथ फास्फोरस एवं पोटाश तथा अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों को भी सक्रिय करता है।

वर्मी कम्पोस्ट के लाभ


जैविक खाद होने के कारण वर्मी कम्पोस्ट में लाभदायक सूक्ष्म जीवाणुओं की क्रियाशीलता अधिक होती है जो भूमि में रहने वाले सूक्ष्म जीवों के लिए लाभदायक एवं उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। वर्मी कम्पोस्ट में उपस्थित पौध पोषक तत्व पौधों को आसानी से उपलब्ध हो जाते है। मृदा में जीवांश पदार्थ (ह्यूमस) की वृद्धि होती है, जिससे मृदा संरचना, वायु संचार तथा जल धारण क्षमता बढ़ने के साथ-साथ भूमि उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है। अपशिष्ट पदार्थों या जैव उपघटित कूड़े-कचरे का पुनः चक्रण आसानी से हो जाता है।

मटका खाद तैयार करने की विधि


मटका खाद तैयार करने के लिए गौमूत्र 10 लीटर, गोबर 10 किलो, गुड़ 500 ग्राम, बेसन 500 ग्राम- सभी को मिलाकर मटके में भरकर 10 दिन सड़ाएँ। फिर 200 लीटर पानी में घोलकर गीली जमीन पर कतारों के बीच छिड़क दें। 15 दिन बाद दोबारा इसका छिड़काव करें।

हरी खाद तैयार करने की विधि


हरी खाद बनाने में लेगुमिनस पौधे का उत्पादन शामिल होता है। उनका उपयोग उनके सहजीवी नाइट्रोजन या नाइट्रोजन फिक्सिंग क्षमता के कारण किया जाता है। कुछ क्षेत्रों में गैर लेगुमिनस पौध का भी उपयोग किया जाता है। आमतौर पर मैदानी इलाके में सनई, ढैंचा आदि को हरी खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है। पूरी फसल को मिट्टी पलट हल से जोत दिया जाता है। इससे फसल मिट्टी में दब जाती है और सड़ने के बाद खाद बन जाती है।

जैविक खेती में गुजरात आगे


कृषि मन्त्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत पूरे देश में 2047 हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक कृषि की जा रही है, जिसमें गुजरात की हिस्सेदारी 2,000 हेक्टेयर है। छत्तीसगढ़ में 45 हेक्टेयर और केरल में दो हेक्टेयर क्षेत्र जैविक खेती के अन्तर्गत है। जैविक खेती के तहत फसल चक्र प्रणाली, हरित खाद, जैविक कीटनाशक आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इससे मिट्टी की उर्वराशक्ति भी बरकरार रहती है और फसल भी अच्छी होती है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत गुजरात के अलावा आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश में भी बेहतर ढंग से जैविक खेती हो रही है। मध्य प्रदेश में 4.40 हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती हो रही है। मध्य प्रदेश में वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों और बाढ़ प्रबंधन कार्मिकों की एक विशेषज्ञ टीम के दिशानिर्देशन में जैविक कृषि 1565 गाँवों में कार्यान्वित की जा रही है। फसलों के लिए पोषक हरा खाद कम्पोस्ट, फास्फो कम्पोस्ट और गाय के गोबर और मूत्र से तैयार किण्वित रूप द्वारा दिया जाता है। कीटों का प्रबन्धन नीम और गौमूत्र आधारित किण्वन से किया जाता है। उत्तरांचल में जैविक खेती की शुरुआत वर्ष 2003 में हुई। इन दिनों करीब दो हजार हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती की जा रही है। इसमें 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा पर्वतीय क्षेत्र का है और बाकी मैदानी क्षेत्र का। जबकि उत्तर प्रदेश में कृषि विभाग के साथ ही कुछ निजी कम्पनियों की ओर से भी जैविक खेती के प्रति किसानों को जागरुक किया जा रहा है। किसानों में जैविक खेती के प्रति ललक पैदा हो रही है। कृषि विज्ञान केन्द्र एवं केन्द्र पोषित संस्था ‘आत्मा’ की ओर से भी जैविक खेती कराई जा रही है।

उत्तर प्रदेश के जौनपुर, सुल्तानपुर, फैजाबाद, मेरठ, बागपत, फरुर्खाबाद सहित विभिन्न जिलों में जैविक खेती को लेकर किसानों में प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई है। इसी तरह राजस्थान में खेती का रकबा भले कम हो, लेकिन इस राज्य के किसान खेती को लेकर काफी गम्भीर हैं। विपरीत परिस्थितियों के बाद भी राजस्थान में विभिन्न तरह की फसलें ली जा रही है। अब किसान जैविक खेती को लेकर काफी जागरुक हो गए हैं। कृषि विभाग के आँकड़ों की मानें तो राज्य के बांसवाड़ा, झालावाड़, अलवर, श्रीगंगानगर सहित आस-पास के इलाके में जैविक खेती को लेकर गम्भीर हैं। राज्य सरकार भी इस दिशा में किसानों का आगे बढ़ा रही है। जैविक खेती करने वाले किसानों को पुरस्कृत भी किया जा रहा है। बिहार में जैविक खेती की शुरुआत वर्ष 2000 में ही हो गई थी। बिहार ने वर्ष 2010-11 से 2014-15 की अवधि में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए 256 करोड़ रुपये की एक योजना का मंजूरी दी है। इसी तरह महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब में व्यापक स्तर पर जैविक खेती हो रही है। इसके अलावा छत्तीसगढ़, झारखंड, हिमाचल प्रदेश के कुछ किसान भी जैविक खेती के प्रति जागरुक हो रहे हैं। महाराष्ट्र में 1.50 लाख हेक्टेयर और उड़ीसा में 95,000 हेक्टेयर जमीन पर जैविक खेती हो रही है। भारत दुनिया में कपास का सबसे बड़ा जैविक उत्पादक देश है, और दुनिया में जैविक कपास के कुल उत्पादन का 50 प्रतिशत भारत में होता है।

(लेखिका न्यूट्रिशियन एक्सपर्ट एवं सोशल एक्टीविस्ट हैं। न्यूट्रिशियन, एग्रीकल्चर एवं सोशल इश्यू पर विभिन्न पत्रिकाओं एवं समाचार-पत्रों में लगातार लेखन कर रही हैं।)

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