जब गंगा ने किया पंडितराज जगन्नाथ का उद्धार

13 Feb 2016
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गंगाजीवन के उत्तर्राद्ध में पंडितराज ने यवन कन्या लवंगी से विवाह कर लिया। इस कारण, खास कर ब्राह्मणों ने उनकी चतुर्दिक निन्दा की। उन्हें जाति निष्काषित कर दिया गया। उन्हें उपेक्षा झेलनी पड़ी। इस माहौल में वह बुरी तरह आहत हुए। अवसाद की दशा में वह गंगा की शरण में गए। किंवदन्ती है कि गंगा की शरण में बैठकर अपनी रचना गंगा लहरी के एक-एक श्लोक का पाठ वह करते गए। हर श्लोक पर गंगा एक-एक सीढ़ी ऊपर उठती गई। और गंगा मैय्या ने उनके पास पहुँच कर उनका उद्धार किया।

इस किंवदन्ती के नायक पंडितराज जगन्नाथ 17वीं सदी के गिने चुने रचनाकारों में से एक हैं। उन्होंने अपनी कृतियों के माध्यम से संस्कृत साहित्य, दर्शन, साहित्यलोचन और व्याकरण के कोश को समृद्ध किया। अपनी रचनाओं से उन्होंने अमिट छाप छोड़ी। संस्कृत वाङ्गमय पर आज भी उनके प्रभाव को महसूस किया जा सकता है।

पंडितराज का जीवन


पंडितराज का जन्म बनारस के एक तेलुगू ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम पेरु भट्ट और माता का नाम लक्ष्मी था। पिता, वेदान्त, न्याय वैशेषिक, पूर्व मीमांसा और व्याकरण के अद्वितीय अध्येता थे। जगन्नाथ ने अपने पिता की छत्र-छाया में शिक्षा ग्रहण की।

युवावस्था में ही उनके ज्ञान का प्रकाश कुछ इस तरह उद्भाषित हुआ कि तत्कालीन बादशाह शाहजहाँ ने उन्हें पंडितराज की उपाधि से विभूषित किया। शाहजहाँ ने अपने पुत्र दाराशिकोह को संस्कृत की शिक्षा देने के लिये अपने दरबार में उन्हें सम्मानित स्थान दिया।

शाहजहाँ का शासन काल 30 वर्षों (1628 से 1658 तक) का है। इसी दौर में पंडितराज उसके आश्रय में रहे होंगे। अपने ग्रंथ जगदाभरण में उन्होंने ‘दिल्ली वल्लभ’ की चर्चा की है। सम्भव है कि इस शब्द से उनका संकेत दाराशिकोह की ओर हो, जो उस वक्त दिल्ली का गवर्नर हुआ करता था। रसगंगाधर में शाहजहाँ के अतिरिक्त असफाक खान और नूरुद्दीन की चर्चा आई है। असफाक खान के विषय में इसमें चर्चा की गई है।

असफाक खान नूरजहाँ का भाई अर्थात शाहजहाँ का मामा था उसकी मृत्यु 1641 ई. में हुई। अपनी रचना असफविलास में पंडितराज ने उसे सामन्तों में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया है।

अपनी विभिन्न रचनाओं में पंडितराज ने इनके अलावा नूरुद्दीन (जिसे कई व्याख्याकारों ने जहाँगीर माना है), कामरूप (आसाम) के अधिपति प्राणनारायण, उदयपुर के जगत सिंह आदि की भी चर्चा की है। इन उल्लेखों से शाहजहाँ के दरबार से पंडितराज के गहरे सम्बन्धों का पता चलता है।

पंडितराज का रचना संसार


पंडितराज की रचनाओं में रसगंगाधर, भामिनी विलास, असफ विलास, चित्रमीमांसा खण्डन, जगदाभरण, मनोरमाकुचमर्दनी रचना शब्द कौस्तुमशातेणोजन प्रमुख है।

पंडितराज ने अपनी रचना रसगंगाधर में काव्य के स्वरूप, कारण, भेद-प्रभेद, वाणियों के भेद, रस, भाव, गुण, लक्षण, उपमा और अलंकारों का विवेचन किया है। यह पूरा ग्रंथ आज उपलब्ध नहीं है। इस अधूरे ग्रंथ के सहारे भी कहा जा सकता है कि सूत्रवृत्ति शैली में रचित इस ग्रंथ में विषय का बहुत ही सूक्ष्म, गम्भीर और पांडित्यपूर्ण विवेचन किया गया है। रसगंगाधर संस्कृत साहित्य की आलोचना का प्रौढ़तम उदाहरण है। इसमें इनकी साहित्यक प्रतिमा का चरम प्रसार दिखलाई पड़ता है।

पंडितराज ने रस गंगाधर में अपनी पाँच लहरियों की चर्चा की है। गंगा लहरी (इसे पीयूष लहरी भी कहा जाता है), करुण लहरी, सुधालहरी, अमृत लहरी और लक्ष्मी लहरी, नामक पाँच लहरियाँ हैं। रसगंगाधर के उल्लेख के अनुसार ये पाँच भावों के अप्रतिम उदाहरण हैं। गंगा लहरी के 52 श्लोकों में गंगा की सरस, सुबोध और मनोहारी स्तुति की गई है। इसी प्रकार अमृत लहरी के दस श्लोकों में यमुना, करुण लहरी के 55 श्लोक में विष्णु, लक्ष्मी लहरी के 41 पद्यों में लक्ष्मी और सुधा लहरी में सूर्य की मनोहारी स्तुति की गई है।

पंडितराज के बारे में किंवदन्तियाँ


पंडितराज जगन्नाथ अपने युग के अप्रतिम व्यक्तित्व थे। उनके बारे में तरह-तरह की किंवदन्तियाँ प्रचलित हुई। इन किंवदन्तियों का ऐतिहासिक आधार नहीं है। उदाहरण के लिये अकबर के साथ पंडितराज के शतरंज खेलने की कथा को लिया जा सकता है। इसमें कहा गया है कि जब वे दोनों शतरंज खेल रहे थे, उसी वक्त किसी राजपूत स्त्री से उत्पन्न कन्या लवंगी ने सिर पर घड़ा रखे प्रवेश किया। नशे में चूर बादशाह ने उन्हें इसका वर्णन इच्छानुकूल करने के लिये और वायदा किया कि वह उनकी इस इच्छा को अवश्य पूरा करेगा।

पंडितराज के वर्णन से वह बहुत ही प्रभावित हुआ। वचनबद्ध होने के कारण बादशाह ने उस कन्या को उन्हें समर्पित किया। हालांकि अकबर और पंडितराज के जीवन काल में बड़ा अन्तर होने के कारण इस घटना को सत्य नहीं माना जा सकता है।

इसी घटना को दूसरी किंवदन्ती के रूप में कुछ हेर-फेर के साथ प्रस्तुत किया जाता रहा है। कहा जाता है कि लवंगी कोई और नहीं, शाहजहाँ की पुत्री थी। एक रोज शाहजहाँ के कुछ पूछने पर पंडितराज के उत्तर के बाद उसने लवंगी को उन्हें समर्पित कर दिया। पंडितराज के साथ काशी के पंडितों के द्वेष की अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। इस द्वेष का कारण राजदरबार से इनकी सम्बद्धता भी हो सकती है।

संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध रचनाकार अप्पय दीक्षित के साथ पंडितराज के तकरार की कथा भी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक रोज पंडितराज अपनी प्रेयसी लवंगी को गले लगाए चादर ओढ़ कर वाराणसी में गंगा के किनारे लेटे थे। उनकी सफेद शिखा चारपाई के बाहर लटक रही थी। उसी समय अप्पय दीक्षित गंगास्नान से लौट रहे थे। वृद्ध को एक युवती के साथ लेटा हुआ देख कर उन्होंने टिप्पणी की। इसी समय पंडितराज ने मुँह से चादर हटाया।

पंडितराज को देखकर उन्होंने तुरन्त बात बदल दी। अप्पय दीक्षित के नाम से इस सन्दर्भ में प्रचलित श्लोक उनका नहीं, स्वयं पंडितराज का है। रसगंगाधर में आक्षेपालंकार के उदाहरण के रूप में उन्होंने इसे प्रस्तुत किया है।

गंगा लहरी की गंगा


इन किंवदन्तियों के बीच लवंगी नामक यवनी कन्या से पंडितराज के सम्बन्ध के बारे में निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता। सम्भव है विलासित के आगार शाही दरबार से सम्बद्ध होने के कारण युवक पंडित राज का मन चंचल हो उठा हो और यवनी कन्या से उन्होंने सम्पर्क स्थापित किया हो।

कहा जाता है कि वृद्धावस्था में जब पंडितराज काशी पहुँचे तो अप्पय दीक्षित आदि विद्वानों ने मलेच्छ और यवनी संसर्ग से दूषित कहकर उनका तिरस्कार किया। उन्हें जाति बहिष्कृत कर दिया गया। दुखी पंडितराज गंगातट पर पहुँचे। उन्होंने गंगालहरी के पद्यों का पाठ कर गंगा मैय्या का स्मरण किया। माता जाह्णवी एक-एक पद्य पर एक एक सीढ़ी ऊपर उठती गई। बावनवाँ पद्य पूरा होते-होते वह पंडितराज और लवंगी के पास पहुँच गई। उन्होंने दोनों को अपने जल के स्नान से पवित्र कर दिया। काशी का पंडित समाज यह देखकर दंग रह गया।

गंगा लहरी पंडितराज की अप्रतिम रचना है इसके 52 श्लोकों में गंगा की स्तुति अलग-अलग भावों से की गई है। इन श्लोकों में वेद पुराणों के गंगा तत्त्व का अपूर्व वर्णन किया गया है।

उदाहरण के लिये एक श्लोक में कहा गया है कि “हे माता! पागल लोग भी जिन पापों को अत्यन्त निन्दित समझते हैं, पतित लोग भी जिसे त्याज्य मानते। संस्कारहीन बालक भी जिनका नाम तक नहीं लेते, दुर्जन लोग भी जिनसे भयभीत हो जाते। ऐसे कितनी ही पापों का नाश करने में निरन्तर लगी, तुम बिल्कुल नहीं थकतीं। तू अकेले ही इन पर विजय पाती हो।”

लेखक पेशे से पत्रकार और शोधार्थी हैं। शोधपरक वृत्त चित्र बनाने में इनकी विशेष रुचि हैं।

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