जब जलवायु परिवर्तन ने खत्म कर दिया एक अंतरराष्ट्रीय विवाद

Ghodamara Island is also slowly absorbed into the water.
Ghodamara Island is also slowly absorbed into the water.

सुंदरवन में जलवायु परिवर्तन का असर - भाग  1

घोड़ामारा आइलैंड भी धीरे-धीरे पानी में समा रहा है।घोड़ामारा आइलैंड भी धीरे-धीरे पानी में समा रहा है।

जलवायु परिवर्तन दुनियाभर के उन तमाम देशों के लिए खतरा है, जो समुद्र के किनारे बसे हुए हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते जलस्तर ने छोटे देशों के वजूद पर संकट ला दिया है। पश्चिम बंगाल का सुंदरवन भी इससे अछूता नहीं है। सुंदरवन में करीब 100 द्वीप हैं, जिनमें से कई द्वीपों पर खतरा मंडरा रहा है। जानकार बताते हैं कि पिछले 10-15 सालों में कई द्वीपों का अस्तित्व मिट चुका है। ऐसा ही एक द्वीप था - न्यू मूर। इस द्वीप के मालिकाने को लेकर चार दशक पहले भारत और बांग्लादेश के बीच काफी विवाद हुआ था। हालात तो यहां तक आ गए थे कि भारत की तरफ से युद्धपोत तक भेज दिया गया था। दोनों देशों की आपसी खींचतान के बीच एक दिन यह द्वीप पूरी तरह पानी में समा गया और इस तरह एक अंतरराष्ट्रीय विवाद का बिना किसी शोर-शराबे और बाहर या भीतर हस्तक्षेप के पटाक्षेप हो गया।

जानकार बताते हैं कि ये निर्जन टापू हरिभांगा नदी से करीब दो किलोमीटर दूर स्थित था, जिसकी लंबाई साढ़े तीन किलोमीटर और चौड़ाई तीन किलोमीटर थी। यह द्वीप करीब 50 सालों तक भौतिक रूप से मौजूद रहा था, लेकिन बढ़ते जलस्तर के चलते धीरे-धीरे ये पानी में समाने लगा था, ठीक घोड़ामारा द्वीप की तरह। 1985 से वर्ष 2000 के बीच इसमें तेजी से कटाव आया और इसी अवधि में यह पूरी तरह खत्म हो गया। सैटलाइट ईमेज का विश्लेषण कर इस टापू को डूब जाने का दावा करनेवाले समुद्र विज्ञानी सुगत हाजरा ने एक कार्यक्रम में कहा था, ‘अब इस द्वीप का कोई अस्तित्व नहीं बचा है। हाल के सैटेलाइट इमेज इसका सबूत देते हैं।’ वर्ष 2016 में प्रकाशित एक शोध पत्र के मुताबिक, सैटेलाइट के जरिए अलग-अलग तारीखों की तस्वीरें कैद की गईं। इनमें से 5 फरवरी 2010 को कैद की गई तस्वीर में साफ तौर पर दिखता है कि न्यू मूर की जगह नीला पानी बह रहा है।  इस तस्वीर के जरिए ही विशेषज्ञ इस नतीजे पर पहुंचे कि अब न्यू मूर द्वीप पूरी तरह मिट चुका है। शोधपत्र में लिखा गया है, भूस्खलन के चलते द्वीप के पूरी तरह खत्म होने के पीछे मुख्य किरदार समुद्र के जलस्त में बेतहाशा इजाफा है। 

बताया जाता है कि वर्ष 1980 से 2009 के बीच सुंदरवन के पानी के तापमान में प्रति दशक 0.5 डिग्री सेल्सियस की दर से इजाफा हुआ, जबकि वैश्विक स्तर पर प्रति दशक बढ़ोतरी महज 0.06 डिग्री सेल्सियस रही। पानी के तापमान में बढ़ोतरी के कारण जलीय जीवों की जीवनशैली पर गहरा व नकारात्मक असर हुआ। इसी तरह सुंदरवन के समुद्री जलस्तर में भी शेष हिस्सों की अपेक्षा ज्यादा इजाफा हुआ। शोध-पत्र की मानें, तो पिछले 25 वर्षों  में और जगहों की तुलना में सुंदरवन में समुद्री जलस्तर में दोगुना बढ़ोतरी हुई है।

जानकारों की मानें, तो ये द्वीप नवंबर 1970 में आए भोला तूफान के चलते अस्तित्व में आया था। उस वक्त बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान कहा जाता था। तूफा ने पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिम बंगाल के तटीय इलाकों में भारी तबाही मचाई थी। एक अनुमान के मुताबिक, इस तूफान ने तकरीबन पांच लाख लोगों की जान ले ली थी। हालांकि, वहां रहता कोई नहीं था, लेकिन एक भूखंड होने के नाते दोनों देश उस पर अपना दावा ठोक रहे थे। दोनों देशों के दावा ठोंकने के पीछे एक वजह ये भी थी कि टापू भारत और बांग्लादेश की समुद्री सीमा पर निकल आया था। शोधकर्ता इस नतीजे पर भी पहुंचे कि सुंदरवन का बंगाल की खाड़ी की तरफ के तरफ के हिस्से में तेजी से स्खलन हो रहा है। जादवपुर यूनिवर्सिटी के समुद्रविज्ञान विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ तुहीन घोष जलवायु परिवर्तन के असर को स्वीकार करते हुए हैं, ‘इस पर गहन  शोध करने की जरूरत है कि सुंदरवन में किस हद तक जलवायु परिवर्तन का असर हो रहा है।’ उल्लेखनीय है कि न्यू मूर से की तरह ही सुपारीभांगा, लोहाचारा और कबासगड़ी का भी अस्तित्व खत्म हो चुका है। इनमें से लोहाचरा द्वीप में 5 हजार से ज्यादा लोग रहते थे। जब पानी इनकी तरफ बढ़ने लगा, तो इन्हें दूसरे टापुओं पर शरण लेनी पड़ी।

 गायब होता न्यू मूर द्वीप सैटेलाइट इमेज में कैद।गायब होता न्यू मूर द्वीप सैटेलाइट इमेज में कैद।

सुंदरवन दुनिया का सबसे बड़ा मैनग्रो वन है। यह भारत और बांग्लादेश में स्थित है। भारत के हिस्से में जो सुंदरवन है, वहां की आबादी करीब 45 लाख है। अंग्रेजों ने सुंदरवन की अहमियत महसूस कर ली थी और 1865 में बने इंडियन फॉरेस्ट एक्ट के तहत 1875-76 में ही इसे ‘आरक्षित वन’ का दर्जा दे दिया था। वहीं, 1992 में इसे अंतरराष्ट्रीय महत्व का रामसर साइट का दर्जा और 1996 में यूनेस्को की तरफ से इसे हेरिटेज साइट का दर्जा दिया गया था। इंटरनेशनल साइंटिफिक जर्नल में कुछ वर्ष पहले छपे शोध-पत्र ‘क्लाइमेट चेंज – इम्पैक्ट ऑन द सुंदरवन्स’ में संदरवन के अस्तित्व पर मंडराते खतरों के पीछे सात वजहें रेखांकित की गई हैं। इनमें जनसंख्या के बढ़ते दवाब, प्रदूषण, तूफान, वनों की कटाई के साथ ही जलवायु परिवर्तन भी शामिल हैं।

शोध-पत्र में सुंदरवन के तापमान में इजाफा और समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी के पीछे जलवायु परिवर्तन को कारण बताया गया है। बताया जाता है कि वर्ष 1980 से 2009 के बीच सुंदरवन के पानी के तापमान में प्रति दशक 0.5 डिग्री सेल्सियस की दर से इजाफा हुआ, जबकि वैश्विक स्तर पर प्रति दशक बढ़ोतरी महज 0.06 डिग्री सेल्सियस रही। पानी के तापमान में बढ़ोतरी के कारण जलीय जीवों की जीवनशैली पर गहरा व नकारात्मक असर हुआ। इसी तरह सुंदरवन के समुद्री जलस्तर में भी शेष हिस्सों की अपेक्षा ज्यादा इजाफा हुआ। शोध-पत्र की मानें, तो पिछले 25 वर्षों  में और जगहों की तुलना में सुंदरवन में समुद्री जलस्तर में दोगुना बढ़ोतरी हुई है।

जादवपुर यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओसिनोग्राफिक स्टडीज की तरफ से 1986 से लेकर 2012 तक के रिमोट सेंसिंग व जीआईएस की मदद किये गये शोध में पता चला है कि सुंदरवन का मैनग्रो वन भी लगातार घट रहा है और इसकी मुख्य वजह जलवायु परिवर्तन है। शोध के अनुसार 1986 से 2012 तक मैनग्रो व में 124.418 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है। शोध में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ते जलस्तर ने मैनग्रो वन को काफी नुकसान पहुंचाया और भविष्य में इसके खतरे बढ़ेंगे। शोध पत्र में ये भी कहा गया है कि 1985 से वर्ष 2010 के बीच समुद्र के जलस्तर में प्रति वर्ष 2.6-4 मिलीमीटर का इजाफा हुआ है। जानकार बताते हैं कि हेरिटेज साइट का दर्जा पा चुका सुंदरवन जलवायु परिवर्तन की बड़ी कीमत चुका रहा है और अगर समय रहते जलवायु परिवर्तन को लेकर गंभीर और प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो बडा नुकसान होगा।

(लेखक नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया के फेलो हैं और ये स्टोरी नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया की फेलोशिप के तहत लिखी गई है)

 

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