जहान से पहले है जान

पर्यावरण
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सकल घरेलू उत्पाद की तर्ज पर अब सकल पर्यावरण उत्पाद (जीईपी) की तरफ भी कदम बढ़ाना होगा। आर्थिक विकास के साथ पारिस्थितिकीय समृद्धि की भी यह पहल होगी। बेहतर जहान के लिये पहले जान जरूरी है।

सबसे बड़ी समस्या बन चुके पर्यावरण को दुरुस्त करने की दिशा में नए साल में उम्मीद की किरणें तो दिखती हैं, लेकिन इसमें सुर्खी तभी आएगी जब आम जन अपने आचार, विचार और व्यवहार को पर्यावरण के प्रति मित्रवत करेगा। पोलैण्ड में हुए हालिया अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरणीय सम्मेलन में फॉरेस्ट फॉर क्लाइमेट पर सहमति बनी। यह निर्णय पर्यावरण के हित में इसलिये भी अहम है, क्योंकि वन ही जल, मिट्टी और हवा को उसका प्राकृतिक स्वरूप देते हैं।

गत वर्षों में पानी को बचाने के लिये उठाए गए कदमों के साथ वर्षा जल के संरक्षण पर ज्यादा जोर लगाना होगा। 4 अरब घनमीटर वर्षा के जल का हम 15 फीसद ही जोड़ पाते हैं। इस अथाह जल को समेटने के लिये नए और बड़े कदम उठाने होंगे। नदियों के जलागमों की जल-ग्रहण क्षमताओं को बढ़ाना हमारा बड़ा लक्ष्य होना चाहिए। आज ऐसे बहुत से प्रयोग हमारे सामने हैं जिनसे वर्षा नदियों के जीवन की वापसी सम्भव हुई है। प्रकृति के पानी संरक्षण के तरीकों को पुनर्जीवित करना होगा। इस ओर देश के जल मंत्रालय ने कुछ शुरुआत भी की है।

देश में बढ़ते वायु प्रदूषण को लेकर सरकार ने चिन्ताएँ की हैं। इस दिशा में पहल भी हुई हैं, लेकिन वह पर्याप्त नहीं हैं। दुनिया में 33 फीसद वायु प्रदूषण का कारण गाड़ियाँ ही हैं जिनकी संख्या हर रोज बढ़ती जा रही है। हमें सार्वजनिक यातायात का इस्तेमाल बढ़ाना होगा। सौर ऊर्जा का उपयोग बढ़ाकर हम खराब ऊर्जा स्रोतों से काफी हद तक मुक्ति पा सकते हैं। अच्छी बात यह है कि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर सौर एलायंस संगठन का भारत ही नेतृत्व कर रहा है।

हमें समझना होगा कि विकास और तरक्की के मानक सिर्फ उद्योग, ढाँचागत संरचनाएँ और आर्थिक समृद्धि ही नहीं हैं, हवा, मिट्टी, जंगल और पानी को भी इसके दायरे में लाना होगा। यह तभी सम्भव है जब इन्हें भी रोजगार व उद्योग की दृष्टि से देखा जाए। अब जब हवा पानी बिकता है तो इनके उत्पादन को भी रोजगारपरक बना देना चाहिए। मतलब खेती की तरह वन, वायु और जल की खेती की ओर कदम बढ़ाना होगा। जिस तरह से आर्थिक विकास को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से तोलने की कवायद की जाती रही है वैसे ही सकल पर्यावरण उत्पाद (जीईपी) की तरफ भी गम्भीरता से सोचने की जरूरत है। यह आर्थिक विकास के साथ पारिस्थतिकीय समृद्धि की भी पहल होगी। बेहतर जहान के लिये पहले जान जरूरी है और वो पर्यावरणीय योगदान से ही सम्भव है।

(लेखक हिमालयन एनवायनरमेंटल स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गनाइजेशन, देहरादून, के संस्थापक हैं।)

 

 

 

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