जी. एम. जिन्न का बोतल से बाहर आना

21 Dec 2014
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भारत में खुले खेतों मेें जी एम फसलों के परीक्षण की कहानी जैवसुरक्षा नियमों के खुल्लम खुल्ला उल्लंघन, जल्दबाजी में अनुमति, निगरानी क्षमताओं की कभी, सन्दूषण के खतरे को लेकर सामान्यतौर पर भेदभाव एवं सांस्थानिक पद्धतियों की कमी की कहानी है। पूरे यूरोप में भारत द्वारा निर्यात किए जाने वाले बासमती चावल में सन्दूषण (विकार) को लेकर चिन्ताएँ जाहिर की जा रही हैं। जीनवाच एवं ग्रीनपीस पिछले करीब 10 वर्षों से जीनान्तरित (जी एम सन्दूषण (विकार) रजिस्टर में आँकड़े एकत्रित कर रहे हैं और इसमें सन् 1997 से सन् 2013 के अन्त तक के मामले दर्ज हैं। इण्टरनेशनल जर्नल ऑफ फूड कण्टामिनेशन में लेखक द्वारा प्रकाशित नए दस्तावेज में फसल एवं देशों में उपलब्ध आँकड़ों या दर्ज 400 मामलों का विश्लेषण किया गया है। इस तथ्य के बावजूद कि दुनियाभर में कहीं भी आधिकारिक तौर पर जी एम चावल नहीं उगाया जाता है।

सन्दूषण के एक तिहाई मामले जीएम चावल के ही हैं। लेखकों का कहना है इतनी बड़ी संख्या में मामले सामने आने का सम्बन्ध राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार आयात होकर आने वाले जी एम चावल के सामान्य परीक्षण से हो सकता है। सबसे ज्यादा सन्दूषित खाद्य पदार्थ जर्मनी में आयात किए जाते हैंं, इसी वजह से यहाँ बहुत अधिक परीक्षण भी किया जाता है। इन वैज्ञानिकों ने अवैध जी एम फसलों से पैदा हुए सन्दूषण पर ज्यादा ध्यान दिया है।

इसी के समानान्तर विश्व भर में बिना किसी वैधता के हो रहे वाणिज्यिक उत्पादन पर भी ध्यान दिया गया है। इसके गैरआधिकारिक (अव्यावसायिक) जी एम सन्दूषण के नौ मामले सामने आए हैं जिनका जी एम फसलों पर पर्यावरणीय या खाद्य सुरक्षा विश्लेषण नहीं किया गया हैं। लेखकों का तर्क है कि यदि एक बार जीएम सन्दूषण हो गया तो इसे नियन्त्रित कर पाना कठिन हो जाएगा।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ जीनान्तरित फसलों के सन्दूषण (संकर परागण, मिलावट आदि) ने ही संख्या को बढ़ाने में योेगदान दिया है बल्कि इसके परीक्षण के तरीके (सामान्य एवं लक्षित देना) भी इसके लिए उत्तरदायी हैं। दस्तावेज का निष्कर्ष है कि सभी प्रायोगिक जीनान्तरित फसलों के परीक्षण के लिए कोई तयशुदा मानक उपलब्ध नहीं है, जिसकी वजह से जी एम सन्दूषण का पता लगाना असम्भव भले ही नहीं हो लेकिन अत्यन्त कठिन हो गया है।

बायोटेक औद्योगिक सलाहकार एवं प्रोमर इण्टरनेशनल के उपाध्यक्ष डॉन वेस्टकॉल को 13 वर्ष पूर्व 9 जनवरी 2001 को उद्धृत करते हुए टोरण्टो स्टार ने लिखा था, जीएम उद्योग से बाजार ने जरूरत से ज्यादा ऐसी उम्मीदें लगा ली है कि जी एम उत्पाद से बाजार पट जाएगा और हम और आप कुछ भी नहीं कर पाएँगे। इसके बाद आपके सामने सिवाय आत्मसमर्पण के कोई और चारा नहीं है। यह महज् अस्पष्ट उम्मीद भी नहीं है। यह उद्योग द्वारा थोपी गई अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक रणनीति है।

जीनान्तरित गेहूँ को व्यावसायिक उपयोग हेतु उगाने की अनुमति अमेरिका या विश्वभर में कहीं भी नहीं दी गई है। इसके बावजूद अमेरिका के कृषि विभाग (यू एस डी ए) ने पिछले वर्ष घोषणा की थी कि आरेगॉन के गेहूँ के खेत में बिना अनुमति वाला जीनान्तरित गेहूँ उगाया हुआ पाया गया है।

सन् 1994 से मोन्सेण्टो ने अमेरिका के 16 राज्यों की 4000 एकड़ से ज्यादा भूमि पर राउण्डअप रेडी गेहूँ के खेतों में 279 परीक्षण किए हैैैं। अमेरिकी कृषि विभाग ने स्वीकार किया है कि सन् 1998 से सन् 2005के मध्य मोन्सेण्टो द्वारा जीएम उत्पादों के परीक्षण खुले खेतों मे हुए हैं। जीनान्तरित गेहूँ ने खेतों की हद पार कर ली है और आरेगॉन (और सम्भवत 15 अन्य राज्यों में भी) के व्यावसायिक गेहूँ उत्पादन खेतोें में अपना रास्ता बना लिया।

इसके माध्यम से फैले स्वदोहराव (या प्रतिकृति) जेेनेटिक सन्दूषण से अमेरिका का पूरा गेहूँ उद्योग ही दागदार हो गया है। इसके पहले वर्ष 2006 में अमेरिका कृषि विभाग बायर क्राप साइंस के जीनान्तरित लिबर्टीलिंग 601 चावल के विपणन की अनुमति दे चुका है। इस जीनान्तरित चावल की किस्म ने खाद्य आपूर्ति एवं चावल के निर्यात में अवैध रूप से सन्दूषण को मूर्त रूप दिया है। अमेरिकी कृषि विभाग ने सफलतापूर्वक ‘‘सन्दूषण के माध्यम से अनुमति नीति” (अप्रूवल बाय कण्टेमेनेशन) को अनुमति दे दी है।

वर्ष 2005 में जीवविज्ञानी पुष्प भार्गव ने आरोप लगाया था कि ऐसी खबरें मिल रही हैं कि भारत में किसानों को जीनान्तरित फसलों की बिना अनुमति प्राप्त अनेक किस्में बेची जा रही हैं।

अरुण श्रीवास्तव ने वर्ष 2008 में लिखा था भारत में जीनान्तरित भिण्डी को अवैध रूप से बोया जा रहा है और गरीब किसानों को सभी तरह की सब्जियों के ‘‘विशेष बीज” बोने के लिए लालच दिया जा रहा है। उनका प्रश्न था कौन जानता है कि कितनी जगह अवैध रूप से जीनान्तरित चावल बोया गया होगा?

भारत में खुले खेतों मेें जी एम फसलों के परीक्षण की कहानी जैवसुरक्षा नियमों के खुल्लम खुल्ला उल्लंघन, जल्दबाजी में अनुमति, निगरानी क्षमताओं की कभी, सन्दूषण के खतरे को लेकर सामान्यतौर पर भेदभाव एवं सांस्थानिक पद्धतियों की कमी की कहानी है। पूरे यूरोप में भारत द्वारा निर्यात किए जाने वाले बासमती चावल में सन्दूषण (विकार) को लेकर चिन्ताएँ जाहिर की जा रही हैं।

पिछले दिनों पश्चिम बंगाल सरकार ने कहा था कि उसे बांग्लादेश से व्यावसायिक जीएम बैंगन बीजों के ‘‘घुसपैठ” की जानकारी प्राप्त हुई है। बांग्लादेश ने जीएम सब्जी-बीटी बैगन को व्यावसायिक रूप से जारी किया है जो कि मिट्टी में स्थित बेक्टीरीयम बेसिलस थुरुंजिंसिस से निकली जीन के प्रवेश से तैयार होता है। राज्य की मुख्यमन्त्री ममता बनर्जी के कृषि सलाहकार प्रदीप मजुमदार ने कहा है ‘‘संभावना है कि व्यावसायिक बीजों ने घुसपैठ की होे या उनकी तो तस्करी की गई हो। इससे पहले कि किसानों को नुकसान हो हमें बीटी बैंगन की स्थानीय देशज किस्मों पर पड़ने वाले विभिन्न प्रभावों का आकलन करना ही होगा।”

जीएम वाच वेबसाइट के अनुसार, अगर ऐसा होता है, तो यह जीएम उद्योेेेग की सोची समझी और समय पर खरी उतरी रणनीति का हिस्सा होगी जिसके अनुसार ‘‘पहले सन्दूषण फैला दो और बाद में नियमय सम्बन्धी अनुमोदन के लिए दबाव डालो ।” गौरतलब है अब तक कहीं भी बीटी बैंंगन की सुरक्षा सम्बन्धी स्वतन्त्र जाँच नहीं हुई है। जबकि उद्योग के स्वयं के परीक्षण बताते हैं कि यह जहरीला है। पश्चिम बंगाल के कृषि मन्त्री पुर्णेन्दु बोस का कहना है ‘‘हमने सुना है कि बांग्लादेश से सटे बंगाल के जिलो में बीटी बैंगन के बीज पाए गए हैं। हम अभी जी एम बीज जारी नहीं होने देंगे और बिना व्यवस्थित अध्ययन के तो निश्चित तौर पर नहीं।”

भारत में पिछली सरकार ने जी एम फसलों के खेतोें में परीक्षण पर रोक लगा दी थी लेकिन वर्तमान सरकार ने हाल ही में जी एम बैंगन व सरसों की दो किस्में की खेतों में परीक्षण की अनुमति दे दी है। पिछले ही साल वैज्ञानिकों एवं गैरसरकारी संगठनों के सदस्यों ने कोलकाता एवं अन्य स्थानों पर बांग्लादेश जो कि इस सब्जी के उद्गम और किस्मों की विविधता का केंद्र हैं में जीनान्तरित बैंगन को लगाए जाने यह कहते हुए विरोध किया था कि इसमें भारत की फसलों में सन्दूषण में वृद्धि होगी। अब यह चिन्ता मूर्तरूप लेती जा रही है। अन्य जगहों के अनुभव बताते है कि जी एम जीन का जिन्न यदि एक बार बोतल से बाहर आ जाता है तो फिर वापस नहीं जाता।

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