जैसे एनीमल किंगडम है, वैसे ही प्लांट किंगडम : - डॉ. मोहनराव भागवत

13 Oct 2020
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प्रकृति बंदन
प्रकृति बंदन

हमारी सनातन संस्कृति मुनष्य मात्र को ही नहीं, अखिल ब्रह्मांड को ईश्वर का विराट स्वरुप मानती है। इस विराट स्वरुप में ईश्वर सूक्ष्म रूप से प्रतिष्ठित है। श्रीमद्धशवदगीता के अनुसार सनातन का अर्थ है, जिसे अगि, जल, अस्त्र-शस्त्र से नष्ट न किया जा सके और जो प्रत्येक जीव-निर्जीव में विद्यमान है। पूरे विश्व में केवल हमारी संस्कृति ही है, जो एक व्यक्ति को परिवार से, परिवार को समाज से और समाज को विश्व से जोड़कर एक परिवार के रूप में देखती है। हिंदुत्व केवल धर्म नहीं, एक वैज्ञानिक जीवन पद्धति है। हमारी संस्कृति की जड़ें इतनी परिष्कृत एवं व्यापक हैं कि हमारे प्रत्येक कार्य का वैज्ञानिक विश्लेषण स्वयं सिद्ध है।

ऐसा ही कुछ देखने को मिला “प्रकृति बंदन' कार्यक्रम में। हिंदू आध्यात्मिक सेवा फाउंडेशन एवं पर्यावरण गतिविधि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा गत 30 अगस्त को पर्यावरण, वन एवं संपूर्ण जीव सृष्टि के संरक्षण के लिए प्रकृति वंदन का एक विशेष कार्यक्रम पूरे भारतवर्ष में संपन्‍न किया गया। पूरे देश में यह कार्यक्रम प्रातः 0 बजे से ! बजे तक चला, जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूज्य सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत जी का मार्गदर्शन भी लोगों को प्राप्त हुआ। लाखों लोगों ने अपने घरों में रहकर ही इस कार्यक्रम में भाग लिया। मात्र 10 दिनों में 11 लाख से अधिक लोगों ने इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए अपना पंजीयन करवाया। बच्चे, बुजुर्ग और महिलाओं ने इस कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।

सोशल मीडिया में भी यह कार्यक्रम काफी चर्चित रहा। 30 अगस्त को पूरे दिन ट्विटर पर “प्रकृति बंदन' ट्रेंड कर रहा था। सुबह के 3 घंटे तो ट्विटर पर टॉप ट्रेडिंग में “प्रकृति वंदन पहले स्थान पर था। इस मौके पर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने अपने उदबोधन में कहा कि पर्यावरण शब्द आजकल बहुत सुनने को मिलता है और बोला भी जाता है। अभी तक दुनिया मे जो जीवन जीने का तरीका था या है,वो तरीका पर्यावरण के अनुकूल नहीं है, वो तरीका प्रकृति को जीतकर मनुष्य को जीना है, यह तरीका ठीक नहीं, इससे सृष्टि से मानव जाति नष्ट हो जाएगी।

उन्होंने कहा कि अपनी प्राण धारणा के लिए हम सृष्टि से कुछ लेते हैं। शोषण नहीं करते, सृष्टि का दोहन करते हैं। यह जीने का तरीका हमारे पूर्वजों ने समझा और केवल एक दिन के नाते नहीं, एक देह के नाते नहीं, बल्कि पूरे जीवन मे उसको रचा-बसा लिया।

भागवत जी ने कहा कि हमारे यहां पेड़ पौधों की पूजा होती है। पेड़ों में भी जीवन है, इस सृष्टि का वो हिस्सा हैं, जैसे एनीमल किंगडम है, वैसे ही प्लांट किंगडम है। ये आधुनिक विज्ञान का ज्ञान हमारे पास आने के हजारों वर्ष पहले से देश का सामान्य अनपढ़ आदमी भी जानता है। हमारे यहाँ रोज चींटियों को आटा डाला जाता था, घर मे गाय को गो ग्रास निकाला जाता था, कुत्ते, पक्षियों और कीटों को भी भोजन निकाला जाता था, उसके बाद ही गृहस्थ भोजन करता था। हमारे यहां नदियों की भी पूजा होती है, पेड़ पौधों तुलसी की पूजा होती है। हमारे यहां पर्वतों की पूजा प्रदक्षिणा होती है। हमारे यहां गाय की भी और सांप की भी पूजा होती है। उन्होंने कहा कि संपूर्ण विश्व जिस एक चराचर चैतन्य से व्याप्त है, उस चैतन्य को सृष्टि के हर वस्तु में देखना, उसको श्रद्धा से, आत्मीयता से देखना, उसके साथ मित्रता का व्यवहार करना और परस्पर सहयोग से सबका जीवन चले ऐसा करना, ये जीवन का तरीका था। भगवद्गीता में कहा गया है-”परस्परं भावयंतम” यानी देवों को अच्छा व्यवहार दो, देव भी आपको अच्छा व्यवहार देंगे। परस्पर अच्छे व्यवहार के कारण सृष्टि चलती है। इस प्रकार का अपना जीवन था, लेकिन इस भटके हुए तरीके के प्रभाव में आकर हम उसको भूल गए|

संघ प्रमुख ने कहा कि जब सृष्टि सुरक्षित होगी, मानव जाति सुरक्षित होगी, तब जीवन सुंदर होगा। इस दिन को मनाते समय ऐसा भाव मन में नहीं रखना चाहिए कि हम कोई मनोरंजन का कार्यक्रम कर रहे हैं, बल्कि संपूर्ण सृष्टि के पोषण के लिए, अपने जीवन को सुंदर एवं पूर्ण बनाने के लिए और सबकी उन्नति के लिए हम ये कार्य कर रहे हैं, ऐसा भाव हमको  मन मे रखना चाहिए) इस अवसर पर पूज्य स्वामी सत्यरूपानंद जी महाराज (रामकृष्ण मिशन, विवेकानंद आश्रम रायपुर) ने कहा की शुद्ध पर्यावरण का जीवन पर बहुत प्रभाव रहता है। जिस प्रकार के पर्यावरण में आप रहेंगे, आपका जीवन भी वैसा ही बनेगा। मन एवं चिंतन शुद्ध हो, तो पर्यावरण भी शुद्ध होगा। पर्यावरण को साफ सुंदर शुद्ध रखना, हम सभी का कर्तव्य है। कार्यक्रम में लोगों ने विधि विधान से पेड़ की पूजा की, 3 बार ३& का उच्चारण कर तिलक, कलावा बांधकर, धूप दीप कर आरती उतारी गई और फिर 5 बार सबने पेड़ की प्रदक्षिणा की। और अंत मे पर्यावरण संरक्षण के लिए सबने अपने परिवार सहित संकल्प भी लिया। प्रकृति बंदन के इस कार्यक्रम ने समाज में एक नई ऊर्जा का संचार किया है। उम्मीद है आने वाला कल हम सभी के लिए आनंद का होगा और यह प्रकृति को परिवार रूप में मानकर एवं मां के स्वरूप में पूज कर ही संभव है। आइये हम सब मिलकर नित्य प्रकृति का वंदन करें और अपने जीवन एवं सृष्टि को खुशहाल बनाएं।

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