जीवनदायिनी यमुना को जीवन देने की तैयारी

5 Sep 2014
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तकनीक का इस्तेमाल कर एसटीपी को अपग्रेड करना अच्छी बात है। निश्चित ही इससे फायदा होगा। लेकिन इससे पहले यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि मौजूदा संयंत्रों की जितनी क्षमता है, उसका पूरा उपयोग हो पा रहा है या नहीं। क्योंकि मौजूदा समय में संयंत्रों की क्षमता के अनुरूप सीवर का शोधन नहीं हो पा रहा है। यमुना को निर्मल बनाने के लिए सीवर शोधन की गुणवत्ता को बेहतर बनाया जाएगा। इसके लिए दिल्ली जल बोर्ड यहां जल रहे सभी पुराने सीवर शोधन संयंत्रों (एसटीपी) की मरम्मत कर उन्हें अपग्रेड करेगा। ताकि यमुना में गिरने वाले सीवर के पानी से नदी में प्रदूषण न फैले। जल बोर्ड ने इस योजना पर काम शुरू कर दिया है। यमुना एक्शन प्लान तीन के तहत जल बोर्ड ने यह कदम उठाया है।

उल्लेखनीय है कि यमुना में बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर सीवर को शोधित करने के बाद ही यमुना में गिराने का प्रावधान है। मौजूदा समय से दिल्ली जल बोर्ड राजधानी में 21 जगहों पर लगे करीब 36 एसटीपी से 604 एमजीडी सीवर शोधित करता है। शोधित सीवर का पानी बाद में बड़े नालों के साथ मिलकर यमुना में गिरता है। लेकिन इन शोधन संयंत्रों की गुणवत्ता बहुत उच्च स्तर की नहीं होती। इसके अलावा नए एसटीपी भी बन रहे हैं और उनकी शोधन क्षमता उच्च गुणवत्ता की है। विभागीय अधिकारियों के मुताबिक पुराने सीवर शोधित संयंत्रों से निकले पानी में बीओडी (बायो ऑक्सीजन डिमांड) की मात्रा 20 प्रतिशत तक होती है। जबकि निर्माणाधीन पप्पनकला, निलोठी, दिल्ली गेट के अलावा कापसहेड़ा व चिल्ला संयंत्र को इस तरह डिजाइन किया गया है कि सीवर शोधन के बाद पानी में बीओडी व सस्पेंडेड सॉलिड (एसएस) की मात्रा 10 प्रतिशत से भी कम हो।

इसी तर्ज पर पुराने एसटीपी की मरम्मत की जाएगी। ताकि सीवर शोधन की गुणवत्ता बेहतर हो सके। जल बोर्ड के अनुसार यह कार्य चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा। इसके लिए टेंडर की प्रक्रिया भी चल रही है। इन संयंत्रों से जुड़ी ट्रंक सीवर लाइनों का भी जीर्णोद्धार किया जाएगा। निर्माणाधीन उच्च गुणवत्ता वाले पप्पनकला (20 एमजीडी), निलोठी (20 एमजीडी) व दिल्ली गेट (15 एमजीडी) एसटीपी के बारे में उम्मीद है कि इस वर्ष दिसंबर में ये तीनों शुरू हो जाएंगे।

यमुना एक्शन प्लान-तीन के तहत उठाया गया कदम


तकनीक का इस्तेमाल कर एसटीपी को अपग्रेड करना अच्छी बात है। निश्चित ही इससे फायदा होगा। लेकिन इससे पहले यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि मौजूदा संयंत्रों की जितनी क्षमता है, उसका पूरा उपयोग हो पा रहा है या नहीं। क्योंकि मौजूदा समय में संयंत्रों की क्षमता के अनुरूप सीवर का शोधन नहीं हो पा रहा है।

संयोजक यमुना जिये अभियान।

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