जल के आगमन से खुले आजीविका के द्वार

4 Nov 2018
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पेयजल योजना
पेयजल योजना

राज्य बनने के कुछ समय बाद विश्व बैंक के सहयोग से उत्तराखण्ड के आठ जिलों में ‘जलागम परियोजना’ की शुरुआत की गई थी। वर्तमान में इस योजना का दूसरा चरण आरम्भ हो चुका है। अक्टूबर माह के आरम्भ में विश्व बैंक की एक टीम देहरादून जिले के जनजातीय क्षेत्र जौनसार में इस योजना की समीक्षा के लिये आई थी। वहाँ के बाशिन्दों ने टीम के लोगों का जोरदार स्वागत किया।

योजना की सफलता का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसने हजारों मायूस चेहरों पर फिर से मुस्कान वापस लौटा दिया है।

जलागम परियोजना का ही कमाल है कि जिन गाँवों में कभी लोग पानी की एक-एक बूँद के लिये मिलों दौड़ लगाते थे, अब पानी की पहुँच उनके गाँव तक हो चुकी है। झुटाया ग्राम पंचायत के प्रधान बिशन सिंह चौहान ने बताया कि जलागम योजना के फलस्वरूप उनके गाँव की तस्वीर ही बदल गई। उन्होंने कहा “गाँव में पेयजल की सुविधा तो बहाल हुई ही, छोटे व मझोले किसान नगदी फसलों के उत्पादन से भी जुड़ गए जिससे स्वरोजगार को बढ़ावा मिला।”

कालसी विकासखण्ड में परियोजना क्षेत्र के 75 राजस्व ग्रामों में से 46 राजस्व ग्रामों में पानी पहुँच चुका है, लोग आसानी से अब सिंचाई की सुविधा कर पा रहे हैं। इसी का प्रतिफल है कि कृषि एवं सब्जी उत्पादन के क्षेत्र में वहाँ जबरदस्त वृद्धि हुई है।

टीम के सदस्यों को ग्रामीणों ने बताया कि आने वाले वर्ष में भी 24 राजस्व ग्रामों में पानी पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया है। वहीं योजना के अन्तर्गत 187 जलस्रोतों के उपचार पर कार्य भी किया जा रहा है। अलग-अलग ग्रामों में 56 प्राकृतिक जलस्रोतों के उपचार का कार्य काफी तेजी से हो रहा है। लोग खुश हैं कि उनके गाँव के जलस्रोत में पानी लौट आया है।

कालसी विकासखण्ड के 46 गाँवों में वानिकी और उद्यानीकरण के कार्य में विशेषकर निर्बल वर्ग के लोगों की सहभागिता को सुनिश्चित किया जा रहा है। विश्व बैंक द्वारा पोषित जलागम योजना से सीधे 5000 लोग लाभान्वित हुए हैं। यह तब सम्भव हो पाया जब लााभार्थी समूह के साथ सीधे ग्राम पंचायत की भागीदारी को बढ़ावा दिया गया है। यहाँ ग्राम पंचायत की सिफारिश के बिना कोई भी कार्य नहीं किया जाता है।

उल्लेखनीय है कि विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित, उत्तराखण्ड विकेन्द्रीकृत जलागम विकास परियोजना (ग्राम्या-2) को वर्ष 2014 में आरम्भ किया गया था। इस जलागम योजना की खास बात यह है कि विश्व बैंक की टीम प्रत्येक छः माह के अन्तराल में परियोजना क्षेत्रों के अर्न्तगत कराए गए कार्यों का निरीक्षण करती है। टीम के सदस्य रंजन सामन्त्रय, फोके फेनेमा, सुधरेन्द्र शर्मा, सोनाली ए डेविड, लीना मल्होत्रा, एबेल लुफाफा ने बताया कि वे गाँव-गाँव जाकर ग्रामीणों का सुझाव एकत्रित करते हैं और उनके आधार पर ग्राम पंचायत के साथ बैठकर योजना के क्रियान्वयन की रणनीति बनाते हैं। ये बातें उन्होंने देहरादून प्रभाग के विकासनगर ग्राम्या-2, के अन्तर्गत कालसी विकास खण्ड के ग्राम पंचायत झुटाया के राजस्व ग्राम निछिया तथा ग्राम पंचायत चापनू में कराए गए कार्यों के निरीक्षण दौरान बताया।

उत्तराखण्ड विकेन्द्रीकृत जलागम विकास परियोजना (ग्राम्या-2) से जुड़े अधिकारी भी जलागम परियोजना के सफलता की कहानी बयाँ करते हैं। अपर परियोजना निदेशक सह परियोजना निदेशक, ग्राम्या-2, नीना ग्रेवाल, कुमाऊँ एवं गढ़वाल मण्डलों के परियोजना-निदेशक, पी.के. सिंह, सयुक्त निदेशक, डॉ. आर.पी. कवि, उप परियोजना निदेशक, देहरादून प्रभाग विकासनगर, पी.एन. शुक्ल, पौड़ी प्रभाग के उप परियोजना निदेशक, अखिलेश तिवारी सहित अन्य अधिकारियों का कहना है कि गाँवों के विकास में इस परियोजना ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वे कहते हैं कि जब गाँवों में पेयजल की सुविधा हो, सिंचाई के साधन हों और समय-समय पर ग्रामीण किसान सरकारी विकास की योजनाओं से लाभान्वित हो रहे हों तो गाँव में खुशहाली स्वतः ही दिखाई देने लगती है।

जलागम परियोजना की बदौलत ही राज्य के आठ जिलों के किसानों में स्वरोजगार के प्रति आकर्षण पैदा हुआ है। योजना का पहला कार्य गाँव में सिंचाई व पेयजल की सुविधा को जुटाना होता है। इसके लिये गाँव के ही प्राकृतिक जलस्रोतों का सुधारीकरण किया जाता है। इसके साथ ही गाँवों में जल का आगमन होता है तो लोग कृषि और विकास कार्यों से स्वतः ही जुड़ जाते हैं। इसका सफल उदाहरण है कालसी विकासखण्ड के ग्राम पंचायत चापनू में विकसित हुआ 1.25 हेक्टेयर का अनार उद्यान एवं 5 हेक्टेयर क्षेत्रफल में झुटाया ग्राम पंचायत के निछिया गाँव में वनीकरण का कार्य। इसके अलावा 46 ग्राम पंचायतों में सामूहिक सिंचाई टैंक, सम्पर्क मार्ग-सुदृढ़ीकरण, पॉली हाउस, वाटर हार्वेस्टिंग टैंक, पशु आवास तथा कृषि सब्जी हेतु बाजार उपलब्ध करवाने के लिये सामूहिक संग्रहण केन्द्र जैसे कार्य भी किये गए हैं।

विश्व बैंक मिशन टीम जैसे चापनू और झुटाया गाँव में पहुँची ग्रामीणों ने जौनसारी रीति-रिवाज से उनका आतिथ्य सत्कार किया। ग्रामीणों के अनुसार अतिथि ईश्वर तुल्य होते हैं। गाँव के चौपाल पर एकत्रित ग्रामीणों ने जलागम एवं पर्यावरण से सम्बन्धित सांस्कृतिक कार्यक्रम पेश किये। झुटाया ग्राम पंचायत के प्रधान बिशन सिंह चौहान ने अतिथियों का अभिनन्दन किया। देहरादून प्रभाग के उप परियोजना निदेशक पी.एन. शुक्ल ने स्वागत करते हुए कहा कि ग्राम्या-2 परियोजना का मुख्य उद्देश्य, जल, जंगल एवं जमीन का विकास करना है। उन्होंने यह भी बताया कि कोई भी विकास, पर्यावरण की कीमत पर नहीं होना चाहिए। जून 2013 में केदारनाथ में हुई भयावह त्रासदी तथा केरल राज्य में आये विनाशकारी बाढ़ का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यदि हम अब भी नहीं चेते तो इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति बार-बार हो सकती है।

योजना की जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि परियोजना क्षेत्र के अन्तर्गत 187 जलस्रोतों का ट्रीटमेंट प्लान बना लिया गया है और 56 जलस्रोतों के ट्रीटमेंट का कार्य प्रारम्भ भी कर दिया गया है। पी.एन शुक्ला ने कहा, “शीघ्र ही अन्य जलस्रोतों के ट्रीटमेंट का भी कार्य शुरू कर दिया जाएगा जिससे परियोजना क्षेत्र के जलस्रोतों में पानी की वृद्धि होगी।” उन्होंने बताया कि उक्त समस्त कार्यों में पारदर्शिता का ध्यान रखते हुए ग्राम पंचायतों के माध्यम से ही कार्य कराया जाता है।

एक नजर में

1. जलागम परियोजना से उत्तराखण्ड के गाँवों की बदल रही तस्वीर, आर्थिक रूप से मजबूत हो रहे ग्रामीण। पहाड़ों पर लहलहा रहे अनार, नीबू, जामुन के पेड़ और खेतों में मौसमी फल-सब्जियाँ।

2. विश्व बैंक मिशन टीम द्वारा किया गया जलागम कार्यों का निरीक्षण, ग्रामीणों ने की सराहना।

3. कालसी विकासखण्ड के 46 गाँवों 5000 लोग जुड़े हैं जलागम परियोजना से। क्षेत्र में जल सुधारीकरण कार्य से 56 प्राकृतिक जलस्रोतों में लौट आया है पानी

 

 

 

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