जल के प्रताप को फैलाते राजेन्द्र सिंह

पूर्वी राजस्थान के सूखा प्रभावित क्षेत्रों में राजेन्द्र सिंह को ‘जल राणा’ कह के पुकारा जाता है। यह राजेन्द्र सिंह का बेहद निजी उद्यम था कि इस गरीब देहाती क्षेत्र में पानी की संभाल और उसके नतीजे से एक नये चैतन्य का उदय हुआ और आज राजस्थान के प्रत्येक गाँव में पानी के प्रति चेतना का जल स्तर ऊपर उठने लगा है।

जल राणा राजेन्द्र सिंह ने 1985 में जंगल और पानी की संभाल के लिये 'तरुण भारत संघ' की स्थापना की। ‘तरुण भारत संघ' नामक संगठन ने अपना गृह प्रवेश एक जोहड़ बना कर किया। तदुपरान्त 5 अक्तूबर, 2001 में थार मरुस्थल के मारवाड़ क्षेत्र के किसानों तथा स्थानीय नेतृत्व ने जल भगीरथी फाउंडेशन की स्थापना की गयी।

इसमें शामिल लोगों ने भू-जल के गिरते स्तर के बारे में चिंता व्यक्त की। इस अवसर पर राजा राज सिंह तथा राजेन्द्र सिंह ने इकट्ठे हो कर बड़ी मुहिम चलाने का कार्यक्रम बनाया। फिर जल चेतना यात्रा निकाली गई। कुछ दिन पूर्व वाटर कंजरवेशन बैठक रखी गई। इसका उद्घाटन जापान के राजदूत ने किया। फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका, यूरोपीय यूनियन के नुमाइंदों ने भी इसमें भाग लिया।

राजेन्द्र सिंह ने 'जल बिरादरी' नामक संगठन बनाया जो केवल पानी की संभाल के लिये ही बनाया गया। ‘तरुण भारत संघ' ने समस्त सूखा प्रभावित क्षेत्रों में छोटे-छोटे चेक डैम बनाये गये। पूरे क्षेत्र के लोगों ने गाँधी जी के ग्राम स्वराज के संकल्प के अनुरूप अरवरी संसद बनायी जिसमें 72 गाँवों के मुखिया शामिल हुए।

इस संसद द्वारा कुछ नियम लागू किये गये। जिनके अनुसार नदियों से सीधे वही किसान पानी ले सकते हैं जिनके पास अपनी जमीन नहीं है। गन्ने की खेती तुरन्त बन्द करवा दी गई, कारण ज्यादा पानी की खपत। राजेन्द्र सिंह ने अलवर क्षेत्र में पानी जंगल और पशु संरक्षण के बोरे में जोरदार लहर चलायी जो पूरे देश में लगभग फैलती जा रही है।

राजेन्द्र सिंह और उनकी छोटी सी संस्था ‘तरुण भारत संघ' के सद्चित प्रयासों के कारण आज 15 वर्षों में लगभग 17500 तालाब बनाये जा चुके हैं। उनके इन्हीं प्रयासों के चलते उन्हें अंतरराष्टीय मैगसेसे पुरस्कार से नवाजा गया। राजेन्द्र सिंह ने पुरस्कार प्राप्त करते समय कहा, यह सम्मान गाँव के समाज की मान्यता का सम्मान है, क्योंकि इसी समृद्ध समाज ने मुझे पानी का महत्व समझाया, 1984 से पहले मैं पानी और इसकी सम्भाल के बारे में कुछ नहीं जानता था, मेरी यह जीत अशिक्षित मान लिये गये लोगों के शिक्षित समाज की जीत है।

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