जल नीति के साथ सख्त कानून जरूरी

12 Aug 2019
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जल नीति के साथ सख्त कानून जरूरी।
जल नीति के साथ सख्त कानून जरूरी।

देश के बड़े हिस्से में पानी की किल्लत पहले से ही है। शहरीकरण, आबादी में वृद्धि और जीवनशैली में बदलाव के कारण भी पानी की माँग बढ़ी है, जिससे जल सुरक्षा के क्षेत्र में गम्भीर चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं।

धरती चारों ओर से पानी से घिरी है, फिर भी दुनियाभर में जल संकट है। कारण, प्राकृतिक स्रोतों से मिलने वाला मात्र 2.5 प्रतिशत जल ही पीने योग्य है, जबकि भूमिगत जल आधा प्रतिशत है। 97 प्रतिशत जल खारा है। भारत जैसे विकासशील देश में 80 आबादी को जलापूर्ति भूमिगत जल से होती है, पर यह जल भी प्रदूषित होता है। भारत में प्रभावी जल प्रबन्धन नहीं है, इसलिए यहाँ पानी की बचत कम और बर्बादी अधिक होती है। बढ़ती आबादी, प्रकृति से छेड़छाड़, कुप्रबन्धन तथा अनियमित या कमजोर मानसून भी एक बड़ा कारण है। इसके अलावा, जल स्रोतों में बढ़ता प्रदूषण पर्यावरण तथा स्वास्थ्य के लिए खतरनाक तो है ही, साफ पानी की उपलब्धता को भी प्रभावित कर रहा है। इसलिए जरूरी है कि प्रभावी जल नीति के साथ कानून बनाया जाए, जिसमें हर जरूरत के लिए पानी की उपलब्धता और इसे दूषित करने वालों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान हो।
 
भारत के शहरी इलाकों में पेयजल की स्थिति कहीं अधिक विस्फोटक है। शहरों पर देश की 30 प्रतिशत से अधिक आबादी का बोझ है। देश के करीब 200 शहरों में ताजा जल व बेकार पड़े जल के प्रबन्धन पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि इन शहरों में सतही जल को प्रदूषण से बचाने के सार्थक उपाय नहीं किए जा रहे हैं। देश में भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन हो रहा है और इस अनुपात में वर्षा जल संचित नहीं हो पा रहा है। ऊपर से इसकी प्रतिपूर्ति के मार्ग में कई कृत्रिम अवरोध खड़े कर दिए गए हैं, जिससे वर्षा का जल भूमि के नीचे नहीं जाता। इसका सबसे बड़ा कारण है वनों और वनस्पतियों को नष्ट कर दिया जाना। वन क्षेत्र सिकुड़ने के कारण जमीन के नीचे वर्षा जल के रिसाव में कमी आई है और कई क्षेत्रों में बाढ़ की विभीषिका उत्पन्न हुई है। देश में हर साल 4000 घन किमी यानी दो तिहाई पानी बेकार बह जाता है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि देश में करीब 43.2 करोड़ घनमीटर भू-जल भंडार का वर्षा जल से प्रतिपूर्ति आसानी से हो सकती है। इसके अलावा, 19 करोड़ घनमीटर पानी को विशेष प्रयासों द्वारा भूजल भंडार से जोड़ा जा सकता है। इससे इतर एक अनुमान यह भी है कि जमीन के नीचे करीब 108 करोड़ घनमीटर जल का भंडार है। इस तरह देश में 170 करोड़ घनमीटर भूजल का विशाल भंडार उपलब्ध है।

भारत में सालाना औसतन 1,170 मिलीलीटर वर्षा होती है, जो अमरीका में होने वाली औसत वर्षा से करीब छह गुना अधिक है। वर्षा और हिमपात से हमें सालाना 40 करोड़ हेक्टेयर मीटर पानी मिलता है, लेकिन इसका संरक्षण नहीं हो पाता। इसमें से लगभग 7 करोड़ हेक्टेयर मीटर पानी भाप बनकर उड़ जाता है और 11.5 करोड़ हेक्टेयर पानी नदियों में बेकार बह जाता है। करीब 12.5 करोड़ हेक्टेयर मीटर पानी धरती सोख लेती है। इसी से मिट्टी को नमी मिलती है, कुएँ आदि का भू-जलस्तर बढ़ता है और पेड़-पौधों की प्यास बुझती है। नदियों में बहने वाले पानी का कुछ हिस्सा सिंचाई और उद्योग-धंधे या पेयजल के रूप में प्रयुक्त होता है, जबकि शेष समुद्र के खारे पानी मे मिलकर बेकार हो जाता है। मतलब यह कि वर्षा तथा हिमपात से मिलने वाले पानी में से केवल  3.8 करोड़ हेक्टेयर मीटर यानी 9.5 प्रतिशत का ही उपयोग होता है। अगर सालाना मिलने वाले 40 करोड़ हेक्टेयर मीटर वर्षा जल को पूरी तरह रोक लिया जाए तो इतने क्षेत्र में एक मीटर पानी का भंडार एकत्र हो जाएगा। नरेन्द्र मोदी सरकार पूरे देश में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की योजना पर काम कर रही है। इसके तहत देश में हर घर तक 2030 तक साफ पानी पहुँचाने का लक्ष्य है। इसके लिए सालाना 23000 करोड़ रुपए के केन्द्रीय कोष की जरूरत पड़ेगी। भारत में लगभग 17.14 लाख ग्रामीण बस्तियाँ हैं। योजना के तहत करीब 77 प्रतिशत बस्तियों को प्रतिदिन रोजाना 40 लीटर से अधिक सुरक्षित पेयजल मुहैया कराया जा रहा है।

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