जल संचय


जल संचयप्रभु ने जो उपहार दिये हैं, इस धरती पर आये मनुष्यों को
इन सबमें जल सर्वश्रेष्ठ है, जीवन धन में यही ज्येष्ठ है।
है नहीं जड़-चेतन इस जग में, बिन जल जो जीवन जी पाए
जल से निर्जन में भी जीवन, बिन जल जन, निर्जन हो जाए।
साठ फीसदी जल मानव तन, वृक्षों में चालीस रहे यह
जगत वनस्पति जितनी महकी, सबका कारण जल ही है यह।
जग में जितनी भी खुशहाली, या वन-उपवन में हरियाली
उन सबको जल ही है देता, जीवन में प्राणों की लाली।
जब इस जग में था न कहीं कुछ, गैसों का गुब्बार महज था
प्रचंड धमाका हुआ अचानक, चूर सकल गुब्बार, सहज था।
कई करोड़ों वर्षों तक फिर, गैस खंड ब्रह्मांड में दमका
यह प्रक्रिया रुकी तब जब, तारक संग बनी नभगंगा।
इधर भूमि थी परत बनाती, उधर पनपती ज्वालामुखियाँ
जल ने ले अस्तित्व, जगत की, इसी समय खोली थीं अंखियाँ।
इस धरती पर जितना है जल, कुछ हिम है, कुछ वाष्प और जल
कुछ जल पेय, अपेय बहुत जल सर्वाधिक है सागर का जल।
जहाँ कहीं भी हरियाले वन, वहीं हो सके जल भी संचय
झड़ पत्तों से धरा सोखती, करती भू-गत फिर, जल संचय।
गन्दा जल, जिसमें मल जल भी बह-बहकर सागर में मिलता
सागर जल फिर दूषित होकर, फैलाता बीमारी हर पल।
गंधक सोडियम, कैल्शियम, पोटेशियम, क्लोरीन, मैग्नीशियम कार्बन
यह सब मिल दूषित करते हैं, जल पीने वालों के तन-मन।
जल प्रदूषण, मूल दुखों का, धरती पर है कहर बरसता
कहीं बाढ़, बीमारी आती, कहीं, बूँद हित जीव तरसता।
अगर बचाना है जीवन को, करना होगा जल का संचय
तो फिर मानव कसो कमर अब, रोको इसका, अतिशय अपव्यय।

दिनेेश चमोला “शैलेश”
अभिव्यक्ति, 167 गढ़ विहार (IIP)
देहरादून-248005
ईमेल : chamolade@yahoo.com

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