जल संचयन करके चना व अलसी की खेती

पहले से सूखे बुंदेलखंड में अनियोजित व अदूरदर्शी सरकारी अनुदानों व योजनाओं ने स्थिति को और भी विकट ही बनाया है।

परिचय


अपनी भौगोलिक बनावट एवं जलवायुविक संदर्भ के चलते बुंदेलखंड शुरू से ही कम वर्षा वाला क्षेत्र रहा है। तिस पर विकास के बढ़ते क्रम में लोगों ने भौतिक संसाधनों को जुटाकर उसके सहारे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अंधाधुंध तरीके से करना शुरू कर दिया। सरकार ने भी खेती को बढ़ावा देने के लिए ट्यूबवेल लगाने पर छूट प्रदान किया, जिससे काफी मात्रा में ट्यूबवेल लगाए गए और प्राकृतिक जलस्रोतों की उगाही हुई। नतीजतन विगत 5-6 वर्षों से लगातार सूखा के कारण स्थिति अत्यंत दयनीय हुई और लोगों की आजीविका गहरी मुश्किल में पड़ गई।

ऐसी स्थिति में जल के महत्व को समझते हुए खेतों में छोटे-छोटे तालाब बनाकर उनके माध्यम से वर्षा जल संग्रहित कर उनसे खेती करना एक अनूठी पहल साबित हुई। जालौन के विकास खंड डकोर के किसानों ने ऐसा ही प्रयास किया और संचित पानी से चना व अलसी की खेती कर सुखाड़ का मुकाबला आसानी से किया। चना व अलसी दोनों ही सिर्फ नमी चाहने वाली फसलें हैं और दलहनी होने के कारण खेत की नमी को अधिक दिनों तक संरक्षित भी रखती है।

यहां यह उल्लेखनीय है कि कम पानी की फसलें इस विधि से आसानी से उत्पादित की जा सकती हैं।

प्रक्रिया


खेत की मेड़बंदी एवं गड्ढा बनाना


खेत के ढलान वाले हिस्से में एक गड्ढा बनाया गया, ताकि पानी का बहाव आसानी से गड्ढे की तरफ हो सके। गड्ढे की लम्बाई 20 मीटर, चौड़ाई 20 मीटर व गहराई 3 मीटर थी। तत्पश्चात् खेत के चारों तरफ मेड़बंदी की गई, जिससे पानी बाहर न जा सके और वर्षा का जो भी जल हो, वह उसी गड्ढे में संचित हो।

वर्षा जल संग्रहण


बारिश का पानी उस गड्ढे में एकत्र हुआ और इस प्रकार इतना पानी एकत्र हो गया कि एक एकड़ खेत हेतु एक बार के लिए सिंचाई का पानी उपलब्ध हुआ।

चना एवं अलसी की खेती


सबसे पहले खेत में पलेवा कर दिया। तत्पश्चात् चना एवं अलसी की बुवाई सामान्य तरीके से कर दी गई। खेत में पलेवा के कारण नमी थी और चना व अलसी दोनों ही कम पानी क फसलें हैं। अतः दुबारा पानी के बगैर ही उपज प्राप्त हुई।

देख-रेख एवं मरम्मत कार्य


खेत में बने गड्ढे की देख-रेख एवं मरम्मत का कार्य किसान स्वयं रते हैं। इस प्रकार एक साथ दो कार्य होता है। खेती-बाड़ी की देख-भाल भी होती है और तालाब की मरम्मत भी होती रहती है ताकि अगले वर्ष जल-संचयन के लिए गड्ढा पर्याप्त रहे।

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