जल संरक्षण के लिए शहरी बुनियादी ढांचे का निर्माण

28 Dec 2019
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जल संरक्षण के लिए शहरी बुनियादी ढांचे का निर्माण
जल संरक्षण के लिए शहरी बुनियादी ढांचे का निर्माण

समूचे देश के शहरों में पानी की आपूर्ति और सवीरेज/सेप्टेज की चुनौतियों का कारगर समाधान खोजने और उससे जुड़े आर्थिक विकास के अवसरों का लाभ उठाने के लिए भारत सरकार द्वारा अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन ‘अमृत’ शुरू किया गया है। यह आलेख पाठकों को इस पहल से होने वाले शहरी परिवर्तन के विभिन्न पहलुओं से रूबरू करवाता है।

शहरी भारतः प्रमुख चुनौतियाँ और अवसर

भारत की शहरी आबादी में तेजी से वृद्धि देखी जा रही है। संयुक्त राष्ट्र की 2018 की विश्व शहरी करण सम्भावनाओं की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की लगभग 34 प्रतिशत जनसंख्या शहरों में रहती है- यानी 2011 के बाद से लगभग तीन प्रतिशत अंकों की वृद्धि 2031 तक यह और 6 प्रतिशत और 2051 तक आधे से अधिक देश की जनसंख्या शहरों में रह रही होगी। इस तरह की तीव्र वृद्धि से बुनियादी ढांचागत सेवाओं जैसे पानी की आपूर्ति, स्वच्छता, अपशिष्ट प्रबंधन और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन जैसी महत्त्वपूर्ण चुनौतियां सामने आती हैं। वर्तमान में, शहर देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 65 प्रतिशत योगदान देते हैं, जिसके 2030 तक 70 प्रतिशथ तक जाने की सम्भावना है (मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट, 2010)। इसके मद्देनजर, बुनियादी ढांचा शहरों को जन सेवाएं पर्याप्त रूप से प्रदान करने में सक्षम बनाएगा जिससे नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार आएगा और वे देश के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम हो सकेंगे।

भारत सरकार ने पिछले पांच वर्षों में इन क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण निवेश किए हैं, जिसके परिणामस्वरूप बुनियादी सेवाओं में उल्लेखनीय सुधार हुए हैं। हालांकि, चुनौतियां बनी हुई हैं। उदाहरण के लिए, 2011 की जनगणना के अनुसार 70 प्रतिशत शहरी घरों को पानी की आपूर्ति तक पहुँच थी, पर केवल 49 प्रतिशत के पास ही परिसर में पानी की आपूर्ति मौजूद थी। इसके अलावा, पर्याप्त शोधन क्षमता की कमी और आंशिक सीवरेज कनेक्टिविटी के कारण 65 प्रतिशत से अधिक अपशिष्ट जल को खुले नालों में छोड़ा जा रहा था जिसके परिणामस्वरूप पर्यावरणीय क्षति हुई और जल निकाय प्रदूषित हुए (सीपीसीबी, 2015)।

विश्व बैंक के जल और स्वच्छता कार्यक्रम (डब्ल्यूएसपी) 2011 के अनुमान के अनुसार भारत में अपर्याप्त स्वच्छता के कारण वर्ष 2006 में 2.4 खरब रुपए की सालाना क्षति हुई जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 6.4 प्रतिशत के बराबर था। सतत विकास लक्ष्य 6 (एसडीजी 6.1 और विशेष रूप से 6.3) को हासिल करने के लिए देश में सुरक्षित पेयजल मुहैया करवाना और सेप्टेज सहित अपशिष्ट जल के वैज्ञानिक शोधन की आवश्यकता है।

भारत सरकार ने पिछले पांच वर्षों में इन क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण निवेश किए हैं, जिसके परिणामस्वरूप बुनियादी सेवाओं में उल्लेखनीय सुधार हुए हैं। अमृत को देश भर के 500 शहरों में शुरू किया गया जिसका उद्देश्य मूलभूत सेवाएं प्रदान कराना जैसे सभी घरों में जल की आपूर्ति, सीवरेज और सेप्टेज तंत्र को महत्त्वपूर्ण रूप से उन्नत बनाना और गैर-मोटर चालित परिवहन और सार्वजनिक सुविधाएं जैसे पार्कों और हर शहर में कम-से-कम एक हरित स्थल उपलब्ध कराना है।

उपरोक्त के मद्देनजर, भारत सरकार ने अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन, अमृत को न केवल देश भर के शहरों में पानी की आपूर्ति और सवीरेज/सेप्टेज की चुनौतियों का समाधान करने के लिए, बल्कि उससे जुड़े आर्थिक विकास के अवसरों का लाभ उठाने के लिए भी शुरू किया।

अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन, अमृत

आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय के प्रमुख मिशनों में से एक अमृत का शुभारम्भ माननीय प्रधानमंत्री द्वारा 25 जून, 2015 को देश के 500 शहरों में किया गया जिसका उद्देश्य बुनियादी सेवाएं जैसे सभी घरों की जलापूर्ति प्रदान करना, सीवरेज और सेप्टेज तंत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार लाना और गैर-मोटर चालित परिवहन और सार्वजनिक सुविधाएं जैसे पार्कों और हर शहर में कम-से-कम एक हरित स्थल उपलब्ध कराना है जिससे सभी के जीवन की गुणवत्ता मे सुधार हो, विशेष रूप से गरीबों और वंचित वर्ग के जीवन में, यह एक केन्द्र प्रायोजित योजना है जिसका कुल परिव्यय 1,00,000 करोड़ रुपया है जिसमें 50,000 करोड़ रुपए की केन्द्रीय सहायता शामिल है जो 2015-2020 तक 5 वर्षों की अवधि में दी जाएगी।

बुनियादी ढांचा तैयार करने के अलावा मिशन की एक सुधार कार्यसूची भी है, जिसके अन्तर्गत 11 मदों का सेट है, जिसमें 54 लक्ष्य हैं जिन्हें चार वर्ष की अवधि में राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा हासिल किया जाना है। इन सुधारों में मोटे तौर पर नागरिकों को ऑनलाइन सेवाओं के प्रस्ताव शामिल हैं; सभी मंजूरियों के लिए सिंगल विंडो की स्थापना; नगरपालिका कैडर की स्थापना; बिलिंग और कर/उपयोगकर्ता शुल्क का कम-से-कम 90 प्रतिशत प्राप्त करना; बच्चों के लिए हर साल कम-से-कम एक पार्क तैयार करना; पार्क और खेल के मैदानों के लिए रखरखाव प्रणाली स्थापित करना; शहरी स्थानीय निकायों की क्रेडिट रेटिंग बनाना और नगरपालिका बॉन्ड जारी करना; मॉडल निर्माण के उपनियमों को लागू करना; और ऊर्जा और जल की लेखा परीक्षा करवाना।

योजना का कवरेज क्षेत्र

  1. 2011 की जनगणना के अनुसार एक लाख और उससे अधिक की आबादी वाले 476 शहर/कस्बे;
  2. राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश की राजधानियां जो ऊपर (i) में शामिल नहीं हैं;
  3. हेरिटेज सिटी डेवलपमेंट एंड ऑग्मेंटेशन योजना (हृदय) योजना के तहत आने वाले विरासत शहर; तथा
  4. प्रमुख नदियों के निकटवर्ती और पहाड़ी राज्यों/द्वीपों और पर्यटन स्थलों के कुछ शहर।

कुल मिलाकर, 500 शहरों को इस योजना के तहत शामिल किया गया था।

धनराशि का आवंटन

मिशन के पास 1,00,000 लाख करोड़ रुपए का आवंटन है जिसमें 50,000 करोड़ रुपए की केन्द्रीय हिस्सेदारी शामिल है। शेष राशि राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों द्वारा साझा की जानी है। कुल आवंटन में से विभिन्न परियोजनाओं के लिए 77,640 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। केन्द्र की हिस्सेदारी का दस प्रतिशत प्रशासनिक और कार्यालय व्यय (ए एंड ओई) के लिए और दूसरा 10 प्रतिशत सुधार प्रोत्साहन के लिए है।

  • केन्द्रशासित सुधार प्रोत्साहन के लिए है। द्वारा पूरी तरह से वित्त पोषित हैं। उत्तर पूर्व और पहाड़ी राज्यों में, परियोजना की लागत का 90 प्रतिशत केन्द्र द्वारा साझा किया जाता है। अन्य राज्यों में 10 लाख से ऊपर की आबादी वाले शहरों में परियोजना की लागत का एक-तिहाई और अन्य शहरों में परियोजना लागत का आधा हिस्सा केन्द्र सरकार द्वारा साझा किया जाता है।
  • केन्द्रीय सहायता (सीए) 20:40:40 के अनुपात की तीन किस्तों में जारी की जाती है। पहली किस्त राज्य वार्षिक कार्य योजना (एसएएपी) के अनुमोदन पर तुरन्त जारी की जाती है। आगामी किस्तें स्वतंत्र समीक्षा और निगरानी एजेंसी (आईआरएमए) की रिपोर्ट के साथ केन्द्रीय सहायता और उसी राज्य/शहरी स्थानीय निकाय के हिस्से के 75 प्रतिशत उपयोग प्रमाण पत्र प्राप्त होने के बाद जारी की जाती है।

अमृतः भारत के शहरीकरण की जरूरतों के साथ सम्बद्ध

सहकारी संघवाद

सहकारी संघवाद को ध्यान में रखते हुए, राज्य सरकारों को अपने अमृत शहरों के लिए परियोजनाओं के मूल्यांकन, अनुमोदन और मंजूरी का अधिकार दिया गया है-इस तरह ये तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन से भिन्न है जिसमें सभी परियोजनाओं को शहरी विकास मंत्रालय से मंजूरी दी जाती थी।

संस्थागत सुधारों के लिए रूपरेखा

अमृत संस्थागत सुधारों पर मुख्य रूप से जोर देता है, जिनका उद्देश्य शहरी स्थानीय निकायों के प्रशासन और संस्थागत क्षमताओं में सुधार करना है। सुधारों का लक्ष्य बेहतर सेवाएं प्रदान और अधिक जवाबदेही व पारदर्शिता है। राज्यों और अमृत शहरों में सुधारों (सुधार की प्रकारों और प्रमुख लक्ष्यों सहित) की एक रूपरेखा निर्धारित की गई है।

‘उत्तरोत्तर वृद्धि प्रक्रिया’ और प्राथमिकता के सिद्धान्त

नागरिकों के लिए जलापूर्ति के सम्पूर्ण कवरेज को सुनिश्चित करने और स्वच्छता कवरेज में सुधार के उद्देश्य से मिशन के तहत शहरी स्थानीय निकायों द्वारा क्रम दर क्रम बेंचमार्किंग के सिद्धान्त को अपनाया गया है, जो बेंचमार्क हासिल करने की एक क्रमिक प्रक्रिया है। जल और स्वच्छता की अत्यावश्यकता को ध्यान में रखते हुए, राज्यों को जल आपूर्ति और सीवरेज परियोजनाओं को प्राथमिकता देना था जिसमें जल आपूर्ति पहली प्राथमिकता है।

दंड की जगह प्रोत्साहन

पूर्ववर्ती जेएनएनयूआरएम के दौरान परियोजनाओं के लिए अतिरिरक्त केन्द्रीय सहायता (एसीए) का 10 प्रतिशत सुधारों को पूरा न होने पर रोक लिया जाता था। इसके चलते सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों ने यह 10 प्रतिशत राशि गवां दी क्योंकि कोई भी 100 प्रतिशत सुधारों को प्राप्त नहीं कर सका; इसलिए कई परियोजनाओं में धनराशि की कमी हो गई और वे अधूरी रह गईं। राज्यों को प्रोत्साहित करने और उनकी पहलों को रचनात्मक रूप से पुरस्कृत करने के लिए, सुधार क्रियान्वयन को अमृत के तहत प्रोत्साहित किया जाता है- सुधार प्रोत्साहन के लिए बजटीय आवंटन का 10 प्रतिशत रखा गया है और यह परियोजनाओं के लिए आवंटन से अधिक और अलग है। क्रियान्वयन के पिछले चार वित्तीय वर्षों में बेचमार्क के अनुरूप प्राप्त सुधारों के लिए प्रोत्साहन राशि के रूप में राज्यों/संघ शासित प्रदेशों को 400 करोड़, रुपए, 500 करोड़ रुपए, 340 करोड़, और 418 करोड़ रुपए की प्रोत्साहन राशि क्रमशः 2015-16, 2016-17, 2017-18 और 2018-19 के दौरान वितरित की गई थी। यह राशि किसी से सम्बद्ध नहीं है और इसका उपयोग राज्य/शहरी स्थानीय निकायों हिस्से के साथ या बिना, अमृत के तहत आने वाली किसी भी मद पर किया जा सकत है।

मिशन की निगरानी

क्रियान्वयन में प्रगति और खामियों को समझने के लिए विभिन्न स्तरों पर कार्यक्रम की निगरानी की जा रही है। राज्य स्तर पर, मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य उच्चस्तरीय स्टीयरिंग समिति मिशन परियोजनाओं की निगरानी करती है और इसकी सम्पूर्ण रूप से मंजूरी देती है। केन्द्रीय स्तर पर, सचिव, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय की अध्यक्षता में सर्वोच्च समिति, राज्य वार्षिक कार्य योजनाओं को मंजूरी देती है और प्रगति की निगरानी करती है। इसके अलावा, सभी परियोजनाओं की जियो टैगिंग के साथ मिशन एमआईएस डैशबोर्ड के जरिए रियल टाइम आधार पर परियोजनाओं की निगरानी की जाती है। इसके अलावा, जिला स्तरीय क्षेत्रीय समीक्षा और निगरानी समिति परियोजनाओं की विस्तृत जांच करती है। आईआरएमए प्रत्येक राज्य की समीक्षा के लिए नियुक्त किया जाता है और तीसरे पक्ष के रूप में वास्तविक स्तर पर मिशन की प्रगति की निगरानी करता है।

अब तक की प्रगति

आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने पहले तीन वर्षों मेंर ही सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों की राज्य वार्षिक कार्य योजनाओं को सम्पूर्ण मिशन अवधि के लिए 77,640 करोड़ रुपए की मंजूरी दे दी है। इसमें से 39,011 करोड़ रुपए (50 प्रतिशत) जल की आपूर्ति के लिए आवंटित किया गया है, सीवरेज और सेप्टेज परियोजनाओं के लिए 32,456 करोड़ रुपए (42 प्रतिशत), स्टॉर्म वाटर निकासी परियोजनाओं के लिए 2,969 करोड़ (4 प्रतिशत) रुपए, गैर-मोटरीकृत शहरी परिवहन के लिए 1,436 करोड़ रुपए (2 प्रतिशत), और 1,768 करोड़ रुपए (2 प्रतिशथ) हरित स्थलों और पार्कों के लिए आवंटित किया गया है।

77,640 करोड़ रुपए के स्वीकृत योजना परिव्यय में से 70,969 करोड़ रुपयों से 5,230 परियोजनाओं का अनुबंध किया गया है जिसमें से 6,469 करोड़ रुपयों की 2,111 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और शेष का काम प्रगति पर है। इसके अलावा 10,945 करोड़ रुपयों की परियोजनाएं निविदा के तहत हैं, जिसमें राज्यों/शहरों द्वारा लिए गए अतिरिक्त कार्य शामिल हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार, 500 मिशन शहरों के कुल 4.68 करोड़ शहरी घरों में से, 2.98 करोड़ घरों (64 प्रतिशत) में नल के पानी की आपूर्ति की गई। अमृत के तहत 39,011 करोड़ रुपयों के निवेश से 60 लाख परिवारों को अगस्त 2019 तक नए पानी के नल कनेक्शन प्रदान किए गए हैं। चालू परियोजनाओं और संमिलन के माध्यम से अन्य 79 लाख नए पानी के नल कनेक्शन दिए जाने की सम्भावना है। इसी तरह अमृत के तहत 32,456 करोड़ रुपए का निवेश जारी है जो सीवरेज के कवरेज को, जो 2011 में 31 प्रतिशत था, मिशन अवधि के अंत तक बढ़ाकर 62 प्रतिशत तक ले जाएगा। मिशन के तहत अब तक शहरों में घरेलू स्तरर पर 40 लाख सीवर कनेक्शन जोड़े गए हैं और इसके अलावा अतिरिक्त 105 लाख सीवर कनेक्शन प्रदान किए जाएंगें।

इसके अतिरिक्त, अमृत ने नागरिकों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए शहरों में हरित स्थल और पार्क, फुटपाथ, पैदल मार्ग, स्काईवॉक आदि के निर्माण में सहायता की है।

शहरी सुधार

कुछ महत्त्वपूर्ण सुधार निम्नलिखित हैं:

ऑनलाइन बिल्डिंग परमिशन सिस्टम (ओबीपीएम)

अप्रैल 2016 से दिल्ली और मुम्बई में निर्माण परमिटों में सुगम बिजनेस की सुविधा के लिए एक ऑनलाइन बिल्डिंग परमिशन सिस्टम (ओबीपीएस) क्रियान्वित हो चुका है जिसमें कॉमन एप्लीकेशन फॉर्म और अंदरूनी/बाहरी एजेंसियों से सभी क्लीयरेंस/ने ऑब्जेशन सर्टिफिकेट का सहज एकीकरण शामिल है।

नतीजतन, विश्व बैंक की डूइंग बिजनेस रिपोर्ट (डीबीआर) के अनुसार निर्माण परमिटों में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (ईओडीबी) में भारत के स्थान ने पिछले 3 वर्षों में 158 स्थानों की अभूतपूर्व प्रगति दर्ज की है। भारत का स्थान डीबीआर 2017 में 185 के मुकाबले डीबीआर 2020 में 27 तक पहुँच गया।

देशभर के सभी शहरों/कस्बों में 31 मार्च, 2020 तक ओबीपीएस लागू करने का लक्ष्य रखा गया है। अब तक, यह 440 अमृत शहरों सहित 1,832 शहरों में लागू किया गया है। 13 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, आन्ध्र प्रदेश, दादरा और नागर हवेली, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, तेलंगना और त्रिपुरा में ओबीपीएस को सभी शहरी स्थानीय निकायों में लागू किया गया है।

पारम्परिक स्ट्रीट लाइटों के स्थान पर एलईडी स्ट्रीट लाइटें लगाना

65 लाख पारम्परिक स्ट्रीट लाइटों को ऊर्जा कुशल एलईडी लाइटों से बदल दिया गया है। इससे प्रति वर्ष 139 करोड़ किलोवाट आवर्स की ऊर्जा बचत और कार्बनडाइऑक्साइड के उत्सर्जन में 11 लाख टन प्रति वर्ष की कमी हुई है।

क्रेडिट रेटिंग

कुल 485 अमृत शहरों में से 469 शहरों को क्रेडिट रेटिंग दी गई है, जहां क्रेडिट रेटिंग का काम करवाया गया था। एक सौ चौंसठ शहरों को निवेश योग्य ग्रेड (आईजीआर) का दर्जा दिया गया है, जिनमें से 36 शहरों की रेटिंग ए और उससे अधिक है। कम रेटिंग वाले शहर अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के उपायों का पालन कर रहे हैं ताकि वे क्रेडिट योग्य बनें और अपनी परियोजनाओं के लिए धनराशि जुटाएं।

नगर पालिका बांड

नगरपालिका बांडों के माध्यम से 2017-19 के दौरान 8 मिशन शहरों (अहमदाबाद, अमरावती, भोपाल, हैदराबाद, इंदौर, पुणे, सूरत और विशाखापत्तनम) द्वारा शहरी बुनियादी ढांचे के उन्नयन के लिए 3,390 करोड़ रुपए जुटाए गए हैं। प्रोत्साहन के रूप में, मंत्रालय प्रति शहर 100 करोड़ रुपए तक बांड जुटाने, जिसकी उच्चतम सीमा 200 करोड़ रुपए है। 13 करोड़ रुपए देता है। यह बॉन्ड की अवधि में 2 प्रतिशत के ब्याज सबवेंशन में तब्दील हो जाता है। 8 शहरों में बॉन्ड जुटाने के लिए 181 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं। बॉन्डों को जुटाने से शहरी स्थानीय निकायों में बेहतर प्रशासन, लेखा प्रणाली, वित्त, पारदर्शिता, जवाबदेही और सेवाओं के प्रदान में सुधार हुआ है। हम अगले 4 वर्षों में कम-से-कम 50 शहरों को बॉन्ड जुटाने का लक्ष्य देते हैं। इसके जरिए नागरिकों की सेवा करने के लिए उनकी आत्म-निर्भरता और आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। नगरपालिका के अधिकारियों की कार्य क्षमता को मजबूत करने के लिए, 52,673 अधिकारियों को तकनीकी प्रशिक्षण प्रदान किया गया है।

जल शक्ति अभियान-शहरी

जल के अभाव के राष्ट्रीय मुद्दे का हल खोजने के ले, जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार ने 1 जुलाई, 2019 से जल संरक्षम, पुनर्स्थापना, पुनर्भरण और पुनः उपयोग पर अभियान चलाकर जल शक्ति अभियान (जेएसए) शुरू किया है। देश भर में जल-संकट से जूझते 754 शहरों में सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) की व्यापक गतिविधियों के माध्यम से जलसंरक्षण उपायों को जन आन्दोलन बनाने के लिए राज्यों/ केन्द्रशासित प्रदेशों/शहरी स्थानीय निकायों के साथ आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय ने सक्रिय रूप से भाग लिया है।

यह अभियान दो चरणों में आयोजित किया गयाः 1 जुलाई, 2019 और 15 सितम्बर, 2019 के बीच चरण 1 और 30 सितम्बर, 2019 से 30 नवम्बर, 2019 के बीच चरण 2, उन राज्यों के लिए जहाँ से मानसून लौट रहा है। जल शक्ति अभियान (शहरी) के प्रमुख क्षेत्र इस प्रकार हैः

क. वर्षा जल संचयन

शहरी स्थानीय निकायों ने भूजल स्रोतों को रिचार्ज करने और जल के भंडारण के लिए वर्षा जल संचयन सेल की स्थापना, वर्षा जल संचयन संरचनाओं का निर्माण और स्थापना के लिए कदम उठाए हैं।

ख. शोधन किए अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग

शहरी स्थानीय निकायों ने सार्वजनिक भवनों में दोहरी पाइपिंग संरचना का निर्माण किया है और बागवानी, कार धोने, फायर हाइड्रेट आदि के लिए शोधित जल का पुनः उपयोग किया है।

ग. जल निकायों का कायाकल्प

शहरी स्थानीय निकायों ने निर्जीव कुलों और जल निकायों को फिर से साफ करने और उनका जीर्णोद्धार के लिए कई अनेक कदम उठाएं हैं।

घ. वृक्षारोपण

शहरी स्थानीय निकायों ने शहरों में वृक्षारोपण अभियान चलाने के लिए स्थानीय समुदाय के सदस्यों को जुटाने का संकल्प लिया है।

आगामी योजनाएं

अमृत ने शहरी क्षेत्रों में जल और स्वच्छता कवरेज को बेहतर बनाने में उल्लेखनीय प्रगति की है। परिकल्पना की गई हैकि मिशन की अवधि के दौरान 500 शहरों में बसी 60 प्रतिशत से अधिक शहरी आबादी को जलापूर्ति की सम्पूर्ण कवरेज के दायरे में लाया जाएगा और 60 प्रतिशत से अधिक को सीवरेज और सेप्टेज सेवाओं के कवरेज में लाया जाएगा। हालांकि, वर्तमान में 4,378 वैधानिक शहरों में से 3,500 से अधिक छोटे शहर/कस्बे जलापूर्ति और मल कीच (फेकल स्लज) और सेप्टेज प्रबंधन के बुनियादी ढांचे के निर्माण की किसी भी केन्द्रीय योजना के तहत शामिल नहीं हैं। एसडीजी के लक्ष्य 6 जिसके तहत सभी के लिए जल और स्वच्छता के सतत प्रबंधन को सुनिश्चित करना है, को ध्यान में रखते हुए और माननीय प्रधान मंत्री द्वारा बहुमूल्य जल के संरक्षण और विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करने हेतु जल जीवन मिशन की घोषणा करने और 115 आकांक्षी जिलों की विशेष जरूरतों का प्राथमिकता के आधार पर समाधान निकालने के लिए, इस मिशन की उपलब्धियों को छोटे शहरों तक भी ले जाना अत्यावश्यक है।

सन्दर्भ

  1. एसडीजी 6.1 सुरक्षित पेयजल सुलभ कराने पर बल देता है और 6.3 का उद्देश्य 2030 तक, प्रदूषण कम करके, कचरा फेंकना बंद करके और हानिकारक रसायनों तथा सामग्री को कम-से-कम छोड़ कर पानी की गुणवत्ता सुधारना, अनुपचारित गंदे पानी का अनुपात आधा करना और दुनियाभर में पानी की रिसाइकिलिंग और सुरक्षित ढंग से दोबारा इस्तेमाल में अधिक वृद्धि का निर्वहन कर रहा है।
  2. अमरावती में आन्ध्र प्रदेश कैपिटल रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी को प्रोत्साहन दिया गया है क्योंकि यह वहाँ शहरी स्थानीय निकायों के कार्यों का निर्वहन कर रहा है।
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