जल संरक्षण के नाम का केदारकुण्ड

9 May 2017
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सीमान्त जनपद उत्तरकाशी का ढ़काड़ा नाम का एक ऐसा गाँव जो हिमाचल और उत्तराखण्ड की सीमा पर स्थित है। इस गाँव से केदारनाथ की दूरी सैकड़ों किमी है। परन्तु गाँव में एक जलकुण्ड है, जिसे लोग केदारकुण्ड कहते हैं। जिस जमाने में इस कुण्ड की स्थापना हुई होगी उस जमाने में तो केदारनाथ की यात्रा पैदल ही नापनी पड़ती थी और महीनों लग जाते थे। ऐसा इस गाँव के लोग बताते हैं। फिर भी गाँव में केदारकुण्ड है। बरसात हो या अतिवृष्टी, सूखा पड़े या कोई आपदा आये। मगर केदारकुण्ड का पानी कभी भी ना तो कम होता है और ना ही इस कुण्ड का पानी बढ़ता है। यह रहस्य भी जल संरक्षण के लिये कम नहीं है। अर्थात कह सकते हैं कि यह एक प्रकार का जल विज्ञान है।

उल्लेखनीय हो कि ढ़काड़ा गाँव में अवस्थित केदारकुण्ड साल 1803 और 1991 के विनाशकारी भूकम्प से भी प्रभावित नहीं हुआ। और तो और इस कुण्ड का पानी न तो घटता है और न ही बढ़ता। ऐसा ग्रामीण बार-बार बताते रहते हैं कि इस कुण्ड की यही तो देवशक्ति है। दरअसल इसकुण्ड में जहाँ मछलियाँ अठखेलियाँ करती दिखाई दे रही होती है वहीं इसका पानी हर समय एकदम पारदर्शी ही रहता है। इसकी बनावट ऐसी है कि कुण्ड के भीतर कहीं भी सीमेंट का इस्तेमाल नहीं हो रखा है। नक्कासीदार पत्थरों से निर्मित कुण्ड की बनावट यूँ ही लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करती है कि एकबार के लिये कुण्ड में उतर जाऊँ। परन्तु ग्रामीणों की कुण्ड में उतरने की जो पाबन्दी है। इस कुण्ड में सिर्फ सफाई के दौरान ही कुछ चुनिंदा लोग उतरते हैं और सफाई के पश्चात कुण्ड के पानी को सिर्फ पेयजल के लिये उपयोग करते हैं। कुण्ड से बहते पानी को निकासी करके अलग जगह पर पानी के अन्य प्रयोजन के लिये व्यवस्था की गयी है।

केदारकुण्डयह कटुसत्य है कि यमुना घाटी में केदारकुण्ड का होना ही आश्चर्य जनक है। क्योंकि केदारनाथ और यमुना घाटी में कोसों का अन्तर है। बताया जाता है कि ढ़काड़ा गाँव के लोग टौंस घाटी के बावर क्षेत्र के बास्तिल गाँव से आकर यहाँ बसे हैं। एक जनश्रुति है कि तत्काल ढ़काड़ा गाँव का एक व्यक्ति जो गाँव का मुखिया था, जिसे ग्रामीणों ने सयाणा की उपाद्यी दे रखी थी ने केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमनोत्री की पद यात्रा की थी।

उन्हें इस यात्रा को करने में तीन माह का समय लगा था। बताते हैं कि उन्हें इस यात्राकाल में केदारनाथ की सिद्धी प्राप्त हुई है। संयाणा को स्नान के लिये जब गंगा जल की आवश्यकता पड़ती थी तो उन्हें बड़ा संकट झेलना पड़ता था, किन्तु उन्होंने केदारनाथ की स्तुति की और भगवान केदारनाथ ने उनके ढ़काड़ा गाँव में रात होने से पहले एक कुण्ड की उत्पत्ति कर डाली।

रात्रि होने पर यहाँ गाँव के बीचों-बीच कुण्ड दिखाई दिया। इस पर संयाण ने ग्रमीणों को एकत्रित किया और वहाँ पूजा अर्चना करके कुण्ड की प्रतिस्थापना कर डाली। इस कुण्ड का पानी हल्का सा हरा एंव साफ है। इसमें मछलियाँ भी है। इसका जलाभिषेक करने से लोग अपने को भाग्यशाली मानते हैं। स्थानीय लोगों का इस पानी पर आध्यात्मिक रूप से लगाव है।

केदारकुण्ड की उत्पत्ति के पश्चात वह गाँव का संयाणा प्रातः उठकर स्नान इस कुण्ड के पानी से ही करता था। आज भी उनकी पीढ़ी इस प्रथा को बचाये हुए है। इनके मकान के पास एक दूसरा कुण्ड भी है जो मिट्टी से दब गया है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि इस गाँव में खुदाई होगी तो पता नही क्या-क्या निकलेगा यही वजह है कि वे दूसरे कुण्ड की जानकारी किसी को भी नहीं देते।

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