जल संरक्षण में इन शहरों के प्रयास हैं काबिलेतारीफ

24 Nov 2019
0 mins read
जल संरक्षण में इन शहरों के प्रयास हैं काबिलेतारीफ
जल संरक्षण में इन शहरों के प्रयास हैं काबिलेतारीफ

दिल्ली की परेशानी

दिल्ली जलबोर्ड का दावा है कि सोनिया विहार सबसे अच्छे जल शोधन संयंत्रों में से एक है। आइए जानते हैं कि गंगा से आने वाला पानी दिल्ली के घरों में पहुंचने तक किन-किन शोधन चरणों से गुजरता है।

  • मुरादनगर से गंगा का पानी संयंत्र तक पहुंचता है।
  • कैस्केड एयरेटर प्रक्रिया द्वारा पानी को गंधहीन बनाया जाता है। ऑक्सीजन स्तर बढ़ाया जाता है। ऑक्सीकरण द्वारा बैक्टीरिया को कम किया जाता है।
  • क्लोरीन मिलाकर पानी को मथा जाता है। पाॅली एल्युमिनियम क्लोराइड मिलाकर पानी को सेडीमेंटेशन टैंकों में भेज दिया जाता है। 
  • गुरुत्व बल के कारण अशुद्धियां सेडीमेंटेशन टैंक की तली में बैठ जाती हैं।
  • फिल्ट्रेशन टैंक के सैंड बेड फिल्टर चैंबर से पानी को गुजारा जाता है।
  • क्लोरीनेशन के बाद पानी को पंपिंग केंद्रों तक पहुंचाया जाता है।

जापान का प्रयोग

टाॅयलेट फ्लश करने में पानी की सबसे अधिक बर्बादी होती है। फ्लश टैंक के आकार के आधार पर प्रत्येक फ्लश के साथ पांच से सात लीटर पानी बर्बाद होता है। इसे रोकने के लिए जापान ने एक नवोन्मेषी तरीका अपनाया। वहां की एक कंपनी ने शौचालय के फ्लश टैंक के ऊपर ही हाथ धोने के लिए वाॅश बेसिन लगवा दिए। इससे हाथ धोने के बाद ये पानी फ्लश टैंक में चला जाता है और टाॅयलेट फ्लश करने के लिए इस्तेमाल होता है।

कंबोडिया का कमाल

कंबोडिया की राजधानी नाॅम पेन्ह एक ऐसा शहर है तो तकनीक और विशेषज्ञता के मामले में भारत के दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों से काफी पीछे हैं। वर्ष 1993 तक नाॅम पेन्ह की जल आपूर्ति भारत के किसी भी बड़े शहर की तुलना में बदतर थी। कुशल प्रबंधन और मजबूत राजनीतिक सहयोग के दम पर 2003 तक इस शहर ने लोगों को 24 घंटे ऐसे पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की जिसे बिना किसी चिंता के सीधा नल से ग्रहण किया जा सकता था। नाॅम पेन्ह वाटर सप्लाई अथाॅरिटी जो कि एक सरकारी कंपनी है, 2003 से लाभ में है। सभी को पानी की आपूर्ति के बदले भुगतान करना होता है। केवल गरीबों को इस पर छूट उपलब्ध कराई गई। यदि इस कंपनी का प्रदर्शन देखा जाए तो यह लंदन और लाॅस एंजिलिस जैसे शहरो की जल आपूर्ति से बेहतर है। ऐसे में भारत के राजनेताओं और विशेषज्ञों को खुद से एक सवाल पूछना चाहिए कि यदि नाॅम पेन्ह जैसा छोटा शहर इस समस्या का कुशलतापूर्वक समाधान निकाल सकता है तो दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे शहर 24 घंटे स्वच्छ जल आपूर्ति क्यों नहीं उपलब्ध करा सकते ? दरअसल दृढ़ इच्छाशक्ति के अभाव में यह मसला कभी प्राथमिकता में ही नहीं आया।

मुंबई की कहानी

भारतीय मानक ब्यूरों की जांच में मुंबई के घरों में आपूर्ति हो रहे पानी के सभी नमूने मानकों पर खरे साबित हुए। आर्थिक राजधानी ने यह उपलब्धि ऐसे नहीं हासिल की। कभी यहां एक लाख मामले गंभीर डायरिया के हुआ करते थे। बीएमसी (बृहन्मुंबई म्युनिसिपल काॅर्पोरेशन) के अुनसार 2018-2019 के दौरान रोजाना जांचे जा रहे नमूनो में सिर्फ 0.7 फीसद में ही कोलीफाॅर्म बैक्टीरिया के प्रति पाॅजिटिव पाए गए। विश्व स्वास्थ्य संगठन का इसके लिए मानक 5 फीसद नमूने हैं। 

ऐसे हुआ बदलाव 

  • 2012-13 में जलजनित बीमारियों के प्रकोप के बाद बीएमसी ने जल आपूर्ति तंत्र के बदलने का निश्चय किया।
  • सतह की जलापूर्ति स्टील की पाइपलाइनों से होती थी। इसे भूमिगत कंक्रीट वाटर टनल में बदल दिया गया। आज ऐसी 14 टनल शहर में जलापूर्ति कर रही है।
  • सीवेज लाइन के साथ-साथ जा रही वाटर पाइपलाइनों को एक छह या नौ इंच की पाइपलाइन से बदला गया।
  • नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्ज इंस्टीट्यूट (नीरी) की मदद से जल जांचने वाली प्रयोगशालाओं को आधुनिक किया गया।
  • मेंब्रेन फिल्टर तकनीक अपनाई गई जो 24 घंटे में ही सटीक रीडिंग देती है।
  • नमूनों की जांच जल आपूर्ति विभाग की जगह स्वास्थ्य विभाग देने लगा। वही प्रमाणित करता है कि यह पानी इंसानों के पीने योग्य है या नहीं।
  • जलापूर्ति के हर केंद्र से नमूने लिए जाने शुरू हुए। 
  • दूषित पानी की शिकायत पर कदम उठाए जाने के समय में काफी कमी की गई। शिकायत मिलने पर तुरंत नमूने लिए जाते हैं। क्षेत्र की जलापूर्ति रोक दी जाती है। टैंकर तैनात कर दिए जाते हैं। उस पूरे इलाके के आपूर्ति तंत्र का पानी निकाला जाता है। फिर से आपूर्ति शुरू की जाती है और नमूने लिए जाते हैं। सही पाए जाने पर ही आपूर्ति शुरू की जाती है।

टाॅयलेट टू टैप

पिछले कई वर्षों से अमेरिकी राज्य कैलिफोर्निया सूखे की चपेट में है। इससे निजात पाने के लिए स्थानीय निकाय ने टाॅयलेट टू टैप नाम से वेस्ट वाॅटर मैनेजमेंट की एक परियोजना शुरू की। परियोजना के तहत लोगों के घरों से निकलने वाले दूषित जल का सौ फीसद शोधन होता है। तीन प्रक्रियाओं के जरिए दूषित जल को पीने लायक पानी में बदला जाता है। यह संयंत्र सीवेज से रोजना 37 करोड़ लीटर शुद्ध जल बना रहा है। यह पानी शुद्धता के अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर खरा उतरता है।

नदी में फूंक दी जान

दक्षिण भारतीय राज्य केरल में एक नदी है कोटम्परूर। एक दशक पहले जो नदी 12 किलोमीटर लंबी और सौ मीटर चैड़ी हुआ करती थी, वह प्रदूषण और रेत खनन माफिया के चलते अब खत्म होने की कगार पर थी। नदी को सुधारने के लिए ग्राम पंचायत ने पहल की। मनरेगा योजना के तहत 700 लोगों ने 70 दिन लगातार काम किया। लोगों ने नदी में जमा प्लास्टिक और कूड़ा कचरा कगराई में जाकर निकाला। नदी की धार अवरुद्ध कर रहे शैवाल और पेड़ पौधे निकाले गए और यह नदी अपने पुराने स्वरूप में लौट आई।

 

TAGS

toilet to tap waste water management, water conservation, success in water conservation, water conservation japan, water conservation india, water conservation in cambodia, water conservation california.

 

Posted by
Attachment
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading