जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन का कहर


प्रकृति का सन्तुलन ब्रह्माण्ड के पंच शाश्वत-तत्वों के आपसी सामंजस्य की गहन-गूढ़ता पर निर्भर होता है, क्योंकि इनमें से एक भी तत्व का आनुपातिक असन्तुलन समस्त वैश्विक संयोगी जटिलताओं की प्राकृतिकता को प्रभावित करता है।

मानवजनित तकनीकी विकास के कारण विभिन्न पृथ्वी प्रणाली घटकों के मध्य होने वाली परस्पर क्रियाओं में हो रहे निरन्तर असन्तुलन ने वैश्विक जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौती को जन्म दिया है। वर्तमान में वैश्विक जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण भूमण्डलीय तापन है, जो हरित गृह प्रभाव के परिणामस्वरूप ही उद्भूत हुआ है।

बीसवीं सदी में विश्व का औसत तापमान 0.6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है। विश्व के हिमनदों के पिघलने के कारण विश्व का औसत समुद्री जलस्तर इक्कीसवीं शताब्दी के अन्त तक 9 से 88 सेमी तक बढ़ने की सम्भावना है। भारत के हिमालय क्षेत्र में वर्ष 1962 से 2000 के बीच हिमनद 16 प्रतिशत तक घटे हैं।

पिछले चार दशकों से विश्व के लगभग सभी देश व संयुक्त राष्ट्र संघ विभिन्न अन्तरराष्ट्रीय पृथ्वी सम्मेलनों द्वारा इस अन्तरराष्ट्रीय समस्या के समाधान के प्रति प्रतिबद्ध हैं। इन सम्मेलनों में राष्ट्रीय जलवायु पैनलों ने सार्वजनिक रूप से राष्ट्रीय जलवायु योगदान मसौदे प्रस्तुत करते हुए वर्ष 2100 तक 2.7 डिग्री सेल्सियस तक भूमण्डलीय तापन को सीमित करने तथा वर्ष 2030 और 2050 के बीच उत्सर्जन को शून्य स्तर तक ले जाने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किये हैं।

विश्व भर के अनुसन्धान संस्थानों में वैश्विक जलवायु परिवर्तन से सम्बद्ध अनेक शोधकार्य भी चल रहे हैं। जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के आकलन के लिये समुचित तकनीक विकास, उनके कारणों और प्रक्षेपण सम्बन्धी समाधान तथा मानसून अन्तर-वार्षिक परिवर्तनीयता हेतु क्षेत्रीय और वैश्विक जलवायु प्रणोदों को चिन्हित करते हुए मानसून परिवर्तनीय और पूर्वानुमानीयता के अध्ययन के लिये उच्च विभेदन जलवायु मॉडलों, पृथ्वी प्रणाली मॉडलों अथवा उपग्रह आधारित आँकड़ों द्वारा वृहत-मानदण्डीय पूर्वानुमानों और मृदा आर्द्रता हेतु जल वैज्ञानिक मॉडलों को विकसित किया जाएगा।

विज्ञान के नित नवीन अन्वेषणों तथा आविष्कारों के अभिमान में चूर मानव द्वारा प्रतिपादित तथा कथित सभ्यतायी विकास, तीव्र औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, जनसंख्यायी भौगोलिक स्थानान्तरण, प्रौद्योगिक प्रगति, पर्यावरणीय निम्नीकरण आदि ने समस्त प्रकृति को असन्तुलन के इस संकट में धकेल दिया है और अब उससे समस्त विश्व मानो भयाक्रान्त हो रहा है।

विभिन्न पृथ्वी प्रणाली घटकों अर्थात वायुमण्डल, जैवमण्डल तथा जलमण्डल के मध्य होने वाली परस्पर क्रियाओं में हो रहे निरन्तर असन्तुलन ने जलवायु परिवर्तन जैसी वैश्विक चुनौती को जन्म दिया है। हालांकि जलवायु परिवर्तन के अनेक प्राकृतिक कारण जैसे- महाद्वीपीय अपसरण, ज्वालामुखी प्रस्फुटन, महासागरीय तरंगें और पृथ्वी का कक्षीय झुकाव भी होते हैं, परन्तु ये शाश्वत हैं, इनको चुनौतियाँ कदापि नहीं कहा जा सकता। निश्चित रूप से मानवजनित हरितगृह प्रभाव और वैश्विक तापन को जलवायु परिवर्तन के लिये उत्तरदायी आपराधिक प्रवृत्ति की श्रेणी में रखा जा सकता है।

वैसे भूवैज्ञानिक प्रमाणों एवं वायुमण्डलीय अध्ययनों के अनुसार, प्राकृतिक हरितगृह प्रभाव का प्रादुर्भाव पृथ्वी की उत्पत्ति के साथ ही माना जाता है, जिसके कारण प्रारम्भ से ही पृथ्वी पर ऊष्मा का एक सूक्ष्म सन्तुलन रहा है। यह एक ऐसी भूमण्डलीय प्रक्रिया है, जिसमें पृथ्वी पर पड़ने वाले सौर विकिरण से उसका धरातल गर्म होता है।

चूँकि यह सौर ऊर्जा वायुमण्डल से होकर गुजरती है, अतः इसका एक निश्चित भाग लगभग 30 प्रतिशत परावर्तित होकर अन्तरिक्ष में विलीन हो जाता है। तथा कुछ भाग धरती की सतह तथा समुद्र के माध्यम से परावर्तित होकर पुनः वायुमण्डल में चला जाता है। इस तरह पृथ्वी को ऊष्मा प्रदान करने के लिये लगभग 70 प्रतिशत शेष रह जाता है। अब सन्तुलन बनाए रखने के लिये पृथ्वी ग्राहित ऊर्जा की कुछ मात्रा वापस वायुमण्डल को लौटाती है। चूँकि पृथ्वी सूर्य की अपेक्षाकृत शीतल है एवं दृष्टव्य प्रकाश के रूप में ऊर्जा उत्सर्जित नहीं करती है।

विज्ञान के नित नवीन अन्वेषणों तथा आविष्कारों के अभिमान में चूर मानव द्वारा प्रतिपादित तथा कथित सभ्यतायी विकास, तीव्र औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, जनसंख्यायी भौगोलिक स्थानान्तरण, प्रौद्योगिक प्रगति, पर्यावरणीय निम्नीकरण आदि ने समस्त प्रकृति को असन्तुलन के इस संकट में धकेल दिया है और अब उससे समस्त विश्व मानो भयाक्रान्त हो रहा है।अतः यह अवरक्त विकिरणों अथवा ताप विकिरणों के माध्यम से इसे उत्सर्जित करती है। तथापि, वायुमण्डल में उपस्थित कुछ हरित गृह गैसें जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, जल-वाष्प, मीथेन, क्षोभ मण्डलीय ओजोन, क्लोरोफ्लोरो कार्बन्स आदि पृथ्वी के चारों ओर एक आवरण-जैसा बना लेती हैं एवं वायुमण्डल में वापस परावर्तित कुछ ऊष्मा को अवशोषित कर पृथ्वी के तापमान स्तर को अक्षुण्ण बनाए रखती हैं।

यदि प्राकृतिक हरित गृह प्रभाव नहीं होता तो सम्भवतः पृथ्वी पर जीवन भी नहीं होता। पृथ्वी के वातावरण के तापमान को प्रभावित करने वाले अनेक कारकों में से सबसे प्रमुख कारक यही हरित गृह प्रभाव है। वर्तमान में वैश्विक जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण भूमण्डलीय तापन है जो हरित गृह प्रभाव के परिणामस्वरूप ही उद्भूत हुआ है।

मानवजनित औद्योगिक विकास के कारण वातावरण में हरित गृह गैसों के अतिरेक मात्र में उत्सर्जन से प्राकृतिक हरित गृह गैस आवरण मोटा होता जा रहा है, जिससे प्राकृतिक हरित गृह प्रभाव समाप्त हो रहा है।

प्रश्न यह उठता है कि सामान्य तौर पर वे कौन से तथ्य हैं जो इंगित कर रहे हैं कि पृथ्वी भूमण्डलीय तापन से त्रस्त हो रही है। इसका सबसे सरल उत्तर है कि विश्व भर में प्रतिदिन भूमि और समुद्र के तापमान विभिन्न कारणों से मापे जा रहे हैं। इनमें मुख्य रूप से जलवायु सन्दर्भ स्टेशनों, मौसम स्टेशनों, जहाजों और स्वायत्त ग्लाइडरों द्वारा प्रायः प्रतिदिन लिये जा रहे आँकड़े सम्मिलित हैं। ये सतही मापन उपग्रहीय मापनों के साथ पूरक कहे जा सकते हैं।

इन आँकड़ीय दस्तावेजों के अलावा कुछ प्रत्यक्ष अनुभव भी हैं, जो चीख-चीख कर कह रहे हैं कि विश्व तप रहा है। इस भूमण्डलीय तापन से विचलित हुई वैश्विक जलवायु के परिर्वतनीय स्वरूप ने पृथ्वी के विभिन्न जैविक तथा अजैविक घटकों को निरन्तर कुप्रभावित करना प्रारम्भ कर दिया है।

वैश्विक जलवायु परिवर्तन का प्रभाव शनैः शनैः अब मानव स्वास्थ्य, मृदा उर्वरता, कृषि उत्पादकता, जैव-विविधता, पारिस्थितिक तंत्रों, वैश्विक वायु पद्धति से लेकर हिमनदों के पिघलने, समुद्र संस्तर में वृद्धि और अन्य समस्त जल संसाधनों पर भी दृष्टिगोचर होने लगा है।

असन्तुलित हो रहे प्राकृतिक हरित गृह प्रभाव के कारण ही बीसवीं सदी में विश्व का औसत तापमान 0.6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है। 21वीं शताब्दी का पहला दशक (2000-2009) भी अब तक का सबसे ऊष्ण दशक साबित हुआ है।

वर्तमान में वैश्विक जलवायु परिवर्तन एक ऐसी अन्तरराष्ट्रीय समस्या के रूप में उभरा है, जिसने न केवल विकसित या विकासशील देशों को ही, अपितु सकल विश्व को अपने शिकंजे में कस लिया है। यही कारण है कि पिछले चार दशकों से विश्व के लगभग सभी देशों व संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रतिबद्धता, विभिन्न अन्तरराष्ट्रीय पृथ्वी सम्मेलनों के माध्यम से गम्भीरतापूर्वक इस विषय पर विचार-विमर्श द्वारा इसके समाधान को खोजने में दिखने लगी है।

जलवायु परिवर्तन का जल के विभिन्न स्रोतों पर प्रभाव21वाँ संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन पेरिस, फ्रांस, में 30 नवम्बर से 12 दिसम्बर 2015 को आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन का सबसे सुखद पहलू यह रहा कि इतिहास में पहली बार विश्व के लगभग समस्त देश जलवायु परिवर्तन (पेरिस समझौते) को कम करने की प्रणालियों पर एक सार्वभौमिक समझौते को प्राप्त करने के अपने उद्देश्य को पूरा करने हेतु एकमत हुए।

वैश्विक जलवायु परिवर्तन से विश्व में जल की गुणवत्ता में गिरावट के साथ-साथ जहाँ उत्तरी अमेरिका में वर्षा में वृद्धि के कारण बाढ़, भूस्खलन तथा भूमि अपरदन, तो एशिया, अफ्रीका तथा ऑस्ट्रेलिया महाद्वीपों में अतिरिक्त अल नीनो की बारम्बारत के कारण सूखा तथा आँधी-तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप हो सकता है।

वैज्ञानिक शोधों ने स्पष्ट किया है कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप ध्रुवीय बर्फ और विश्व के हिमनदों के पिघलने के कारण विश्व का औसत समुद्री जलस्तर इक्कीसवीं शताब्दी के अन्त तक 9 से 88 सेमी तक बढ़ने की सम्भावना है जिससे समुद्र से 60 किमी की दूरी पर रहने वाले लोगों पर इसका अत्यधिक कुप्रभाव पड़ेगा।

ऐसा माना जा रहा है कि पिछले 50 सालों में अंटार्कटिका में 13 हजार वर्ग किलोमीटर बर्फ पिघल गई है। बांग्लादेश का गंगा-ब्रम्हपुत्र डेल्टा, मिस्र का नील डेल्टा तथा मार्शल द्वीप और मालदीव सहित अनेक छोटे द्वीपों का अस्तित्व सन 2100 तक समाप्त हो जाएगा। इसी तरह प्रशान्त महासागर का सोलोमन द्वीप भी डूबने के कगार पर है।

समुद्री जलस्तर में वृद्धि के साथ-साथ वैश्विक ऊपरी महासागरीय ऊष्माधारिता भी बढ़ रही है। हालांकि यह पाया गया है कि महासागरीय धाराओं की परिवर्तनशीलत तथा अन्य प्राकृतिक परिवर्तनों के फलस्वरूप महासागरीय ऊष्माधारिता में भी स्थानिक एवं सामयिक विविधता पाई गई है।

महासागरीय ऊष्माधारिता में वृद्धि का सम्बन्ध समुद्री जलस्तर में हो रही वृद्धि से भी है, जिसका कारण समुद्री जल का तापीय विस्तार हो सकता है। हिमनदों के द्रव्यमान, आयतन, क्षेत्रफल व लम्बाई में होने वाली न्यूनता को स्पष्ट तौर पर निरन्तर भूमण्डलीय तापन का संकेतक माना जा सकता है। हिमनदों से आने वाला जल-प्रवाह स्थानीय जल संसाधनों में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है।

एक शोध के अनुसार भारत के हिमालय क्षेत्र में वर्ष 1962 से 2000 के बीच हिमनद 16 प्रतिशत तक घटे हैं। पश्चिमी हिमालय में हिमनदों के पिघलने की प्रक्रिया में तेजी आई है। बहुत-से छोटे हिमनद पहले ही विलुप्त हो चुके हैं। कश्मीर में कोल्हाई हिमनद 20 मीटर तक पिघल चुका है।

गंगोत्री हिमनद 23 मीटर प्रतिवर्ष दी दर से पिघल रहा है। अगर पिघलने की वर्तमान दर कायम रही तो शीघ्र ही हिमालय से सभी हिमनद समाप्त हो जाएँगे जिससे गंगा, यमुना, ब्रम्हपुत्र, सतलुज, रावी, झेलम, चिनाब, व्यास आदि नदियों का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा।

भारत में जल संसाधन की उपलब्धता क्षेत्रीय स्तर पर जीवनशैली और संस्कृति के साथ जुड़ी हुई है। साथ ही इसके वितरण में पर्याप्त असमानता भी दिखती है। एक अध्ययन के अनुसार भारत में 71 प्रतिशत जल संसाधन की मात्रा देश के 36 प्रतिशत क्षेत्रफल में सीमित है और शेष 64 प्रतिशत क्षेत्रफल के पास देश के 29 प्रतिशत जल संसाधन ही उपलब्ध हैं।

वैश्विक तापमान एवं कार्बन डाइऑक्साइडभारत में धरातलीय जल के चार मुख्य स्रोत नदियाँ, झीलें, तलैया और तालाब हैं। यहाँ कुल नदियों तथा उन सहायक नदियों, जिनकी लम्बाई 1.6 किमी से अधिक है, को मिलाकर 10,360 नदियाँ हैं। भारत में सभी नदी द्रोणियों में औसत वार्षिक प्रवाह 1,869 घन किमी होने का अनुमान किया गया है।

वैश्विक जलवायु परिवर्तन के माध्यम से जल संसाधनों पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डालने वाली ओजोन परत को सुरक्षित रखने हेतु भारत पूर्णतः प्रतिबद्ध है। भारत मांट्रियल संघ (1987) में इंग्लैण्ड संशोधन के साथ सन 1992 में शामिल हुआ और यहाँ ओजोन प्रकोष्ठ एक राष्ट्रीय संस्थान के रूप में उसी समय से काम कर रहा है। इसके अतिरिक्त भारत संयुक्त राष्ट्र संरचना सम्मेलन (यूएनएफसीसीसी) का भी सदस्य है।

भारतीय जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के पड़ने वाले प्रभावों को दृष्टिगत रखते हुए केन्द्रीय जल आयोग और राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के संयुक्त संयोजन तथा जल संसाधन मंत्रालय के मार्गदर्शन में एक आधिकारिक रिपोर्ट तैयार की गई है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि जलवायु परिवर्तन का जल चक्र और जलतंत्र पर प्राकृतिक जल वैज्ञानिक प्रक्रियाओं में क्रमिक और कभी-कभी विशेष उल्लेखनीय परिवर्तन के कारण गहरा प्रभाव पड़ता है।

वर्तमान में जलविज्ञानीय प्रक्रियाओं एवं भू और वायुमण्डल के बीच की पारस्परिक क्रियाओं को जिन भौतिकीय परिकल्पनाओं के आधार पर गणितीय सूत्रों से निरूपित करते हैं, उनके द्वारा जलवायु परिवर्तन और जल संसाधन पर इसके प्रभाव का सही-सही आकलन नहीं किया जा सकता है।

व्यापक संचरण निदर्श के द्वारा जलवायु परिवर्तन की विभिन्न संकल्पनाओं में अधिक-से-अधिक विश्वसनीयता लाने के प्रयास किये जा रहे हैं। साथ ही, क्षेत्रीय स्तर पर जल संसाधन पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के आकलन के लिये समुचित तकनीक विकास। क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन के कारणों और प्रक्षेपण से जुड़े वैज्ञानिक प्रश्नों के समाधान तथा मानसून अन्तरवार्षिक परिवर्तनीयता के लिये क्षेत्रीय और वैश्विक जलवायु प्रणोदों को चिन्हित करते हुए मानसून परिवर्तनीयता और पूर्वानुमानीयता के अध्ययन के लिये उच्च विभेदन जलवायु मॉडलों, पृथ्वी प्रणाली मॉडलों अथवा उपग्रह आधारित आँकड़ो का उपयोग करते हुए वृहत-मानदण्डीय पूर्वानुमानों और मृदा आर्द्रता हेतु जल वैज्ञानिक मॉडलों को विकसित करने की दिशा में भी काम चल रहा है।

अन्ततोगत्वा, विज्ञान के इस नवीनतम पुनरूदयमान विषय क्षेत्र में मूलभूत और व्यावहारिक शोध के लिये प्राथमिक रूप से गहन अध्ययन व अनुसन्धान के साथ-साथ जल संसाधन के विकास और प्रबन्धन की नवीन नीतियों की आवश्यकता है।

सम्पर्क सूत्र :
डॉ. शुभ्रता मिश्रा
204, सनसेट लगून, विजी बी स्कूल के पास बायना वास्को-द-गामा, गोवा 403802

[मो. : 08975245042, 0832-2519860;

ई-मेल : shubhrataravi@gmail.com
एवं shubhrata@rediffmail.com


TAGS

Climate change affect water resources (information in Hindi), Response of water resources systems to climate change (information in Hindi), Impact of climate change on water resources (information in Hindi), Climate change and water resources in africa (information in Hindi), Climate change and water resources ppt (information in Hindi), Impact of climate change on water resources pdf (information in Hindi), Impact of climate change on water resources ppt (information in Hindi), Impact of climate change on water resources in india (information in Hindi), climate change and its impact on water resources (information in Hindi), Impact of climate change on water resources ppt (information in Hindi), Impact of climate change on water resources pdf (information in Hindi), Impact of climate change on water resources in africa (information in Hindi), Impact of climate change on water resources in india (information in Hindi), how does temperature affect water availability in an ecosystem? (information in Hindi), water issues including pollution and management strategies in india (information in Hindi), Climate change affect water resources water shortage (information in Hindi), hindi nibandh on Climate change affect water resources, quotes Climate change affect water resources in hindi, Climate change affect water resources hindi meaning, Climate change affect water resources hindi translation, Climate change affect water resources hindi pdf, Climate change affect water resources hindi, hindi poems Climate change affect water resources, quotations Climate change affect water resources hindi, Climate change affect water resources essay in hindi font, health impacts of Climate change affect water resources hindi, hindi ppt on Climate change affect water resources, Climate change affect water resources the world, essay on Climate change affect water resources in hindi, language, essay on Climate change affect water resources, Climate change affect water resources in hindi, essay in hindi, essay on Climate change affect water resources in hindi language, essay on Climate change affect water resources in hindi free, formal essay on Climate change affect water resources, essay on Climate change affect water resources in hindi language pdf, essay on Climate change affect water resources in hindi wikipedia, Climate change affect water resources in hindi language wikipedia, essay on Climate change affect water resources in hindi language pdf, essay on Climate change affect water resources in hindi free, short essay on Climate change affect water resources in hindi, Climate change affect water resources and greenhouse effect in Hindi, Climate change affect water resources essay in hindi font, topic on Climate change affect water resources in hindi language, Climate change affect water resources in hindi language, information about Climate change affect water resources in hindi language essay on Climate change affect water resources and its effects, essay on Climate change affect water resources in 1000 words in Hindi, essay on Climate change affect water resources for students in Hindi, essay on Climate change affect water resources for kids in Hindi, Climate change affect water resources and solution in hindi, kalimate change ka prabhav pani par hai in hindi, Climate change affect water resources quotes in hindi, Climate change affect water resources par anuchchhed in hindi, Climate change affect water resources essay in hindi language pdf, Climate change affect water resources essay in hindi language,


Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading