जल स्रोत संरक्षण से आबाद हुई बंजर भूमि

आर्थिक स्तर में सुधार के साथ ही गाँववासियों का वनों व जल स्रोतों के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ी फलस्वरूप ग्रामवासियों ने वर्ष 1998 में अपनी सम्पूर्ण सिविल भूमि पर वन पंचायत का गठन किया। वर्तमान में सभी ग्रामवासी वन पंचायत संगठन के अन्तर्गत अपने वनों का प्रबन्धन सुचारू रूप से कर रहे हैं।

छियोड़ी गाँव नैनीताल जिले के कोश्यिा-कुटौली तहसील में समुद्र तल से 1700 मीटर की ऊँचाई पर बसा है। इस गाँव में पहुँचने के लिए अल्मोड़ा-नैनीताल मोटर मार्ग में स्थित सुयाल खेत से 6 कि.मी. की सीधी चढ़ाई चढ़नी पड़ती है इस कारण यह गाँव हर प्रकार से उपेक्षित रहा है। वर्तमान में गाँव में कुल 33 परिवार निवास करते हैं जबकि लगभग इतने ही परिवार गाँव में मूलभूत सुविधाओं की कमी, पेयजल संकट व आय स्रोतों की कमी के कारण गाँव से स्थाई रूप से पलायन कर चुके हैं। स्थानीय निवासी परम्परागत खेती व पशुपालन में अपना जीविकोपार्जन करते हैं। गाँव में निजी भूमि के अतिरिक्त 60 हेक्टेयर सिविल वन भूमि है। किन्तु सिविल वन भूमि की कोई प्रबन्धन व्यवस्था न होने के कारण अधिकतर भूमि वृक्ष विहीन होने लगी थी। वर्ष 1995 में स्थानीय स्वयंसेवी संस्था ‘चिराग’ ने गाँववासियों के साथ मिल कर सिविल वनों के संरक्षण एवं संवर्धन का कार्य प्रारम्भ किया। ग्रामवासियों की सहभागिता से सिविल वन के एक क्षेत्र को (जिसका क्षेत्रफल 30 हे. है) स्थानीय उपयोग हेतु 5 वर्ष के लिये पूर्ण रूप से बंद करने के उपरान्त वन संवर्धन के लिये निम्न कार्य कियेः

1. ढाल के अनुरूप 4-6 मीटर की दूरी पर कन्टूर नालियों का निर्माण
2. कन्टूर नालियों में घास व झाड़ी प्रजातियों का रोपण
3. छोटी नालियों पर सोख्ता गड्ढों का निर्माण
4. परम्परागत खालों का जीर्णोद्धार
5. कन्टूर नालियों के मध्य ईंधन व चारा प्रजातियों का रोपण।

वन क्षेत्र का संवर्धन व संरक्षण करने से इन वन क्षेत्र के नीचे स्थित जल स्रोत के जल प्रवाह में वृद्धि होने लगी। इस जल स्रोत का उपयोग ग्रामवासियों ने वृक्षारोपण हेतु नर्सरी तैयार करने में किया जिसका वर्ष 1996 में जल प्रवाह 9 ली. प्रति मिनट था। इस स्रोत से लगभग 400 मीटर की दूरी पर ग्रामवासियों की निजी भूमि थी जो कि गाँव से दूर होने व पेयजल के अभाव में बंजर पड़ी थी। ग्रामवासियों ने संस्था के सहयोग से उक्त स्रोत से पेयजल हेतु पाइप लाइन का निर्माण किया।

इस बंजर तोक में वर्ष 1998 में पानी पहुँचने के साथ ही सभी किसानों ने अपने बंजर पड़े खेतों को पुनः आबाद करके सब्जी उत्पादन प्रारम्भ कर दिया। वर्तमान में सभी किसान अपनी भूमि में मटर, प्याज, बंदगोभी, टमाटर, शिमला मिर्च आदि सब्जियों का उत्पादन करने लगे हैं। जिससे प्रत्येक परिवार की वार्षिक आय में 5-10 हजार रुपये की वृद्धि हुई है। पेयजल की सुविधा व नकदी फसल में हुई वृद्धि से उत्साहित होकर वर्तमान में 3 किसानों ने स्थाई रूप से यहाँ रहना प्रारम्भ कर दिया है।

आर्थिक स्तर में सुधार के साथ ही गाँववासियों का वनों व जल स्रोतों के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ी फलस्वरूप ग्रामवासियों ने वर्ष 1998 में अपनी सम्पूर्ण सिविल भूमि पर वन पंचायत का गठन किया। वर्तमान में सभी ग्रामवासी वन पंचायत संगठन के अन्तर्गत अपने वनों का प्रबन्धन सुचारू रूप से कर रहे हैं।

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