जलग्रहण विकास में संस्थागत व्यवस्थाएँ - समूहों, संस्थाओं का गठन एवं स्थानीय नेतृत्व की पहचान

28 Aug 2018
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7.1 प्रस्तावना (Introduction)
वर्तमान में जलग्रहण विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु 2 विभिन्न प्रकार की मार्गदर्शिकाएँ प्रचलित है। 1 अप्रैल 2008 के पश्चात नई जलग्रहण परियोजनाएँ भारत सरकार द्वारा हाल ही में जारी काॅमन मार्गदर्शिका के अनुसार कार्यान्वित की जाएगी। पहले से स्वीकृत और चल रही जलग्रहण परियोजनाओं में पूर्ववर्ती मार्गदर्शी सिद्धांतों का अनुसरण किया जाएगा अतः 1 अप्रैल 2008 से पूर्व स्वीकृत हरियाली मार्गदर्शिका अनुसार वर्तमान में चल रहे जलग्रहण क्षेत्रों, राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना की जन सहभागिता मार्गदर्शिका के साथ-साथ नई काॅमन मार्गदर्शिका में उल्लेखित विभिन्न प्रावधानों का उल्लेख इस अध्याय में किया गया है।

जलग्रहण विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिये विभिन्न स्तरों पर व्यक्ति विशेष अथवा संस्था/विभाग विशेष की पहचान किया जाना महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है जो कि योजना के प्रारम्भिक चरण में अर्थात स्वीकृति उपरांत पूर्ण की जाती है। देश में आजादी के बाद से विकास का केन्द्र बिंदु ग्राम हुआ करता था। इसके उपरांत व्यक्ति विशेष को चिन्हित कर अनेकानेक अनुदानोन्मुख योजनाएँ क्रियान्वित की जाने लगी। समय बदलता गया एवं स्वावलंबन एवं सहभागिता प्राप्त करने के उद्देश्य से अनुदान में कमी की जाकर लाभार्थियों की हिस्सेदारी पर जोर दिया जाने लगा। यह हिस्सेदारी, श्रम, सामग्री अथवा नकद के रूप में, उन लोगों से ली जाने लगी जिनके लिये या जिनके खेतों में कर्तव्य हो रहा है।

इससे निःसंदेह सहभागिता आधारित विकास गति पकड़ सका स्थायित्व एवं रख-रखाव पर जो पूर्व में प्रश्न चिन्ह लगा रहता था वह समाप्त हुआ। इसके अतिरिक्त विकास योजनाओं के रणनीतिकारों ने राष्ट्रीय स्तर पर यह महसूस किया कि सफल विकास के लिये समूहगत विकास किया जाना आवश्यक है अर्थात एक समान सामाजिक आर्थिक स्तर, सोच वाले महिला एवं पुरुषों के समूह बनाकर। जलग्रहण विकास योजनाओं में क्रियान्वयन समूह के माध्यम से ही किया जाता है। जिन लोगों के पास भूमि होती है उनके उपभोक्ता समूह बनाए जाते हैं, जिन्हें प्रयोक्ता समूह भी कहा जाता है। ये समूह ऐसे भू-मालिक हैं जिनकी भूमि पर जलग्रहण गतिविधि से साीधा फायदा उन्हें पहुँचता है। दूसरी ओर ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करने वाले भूमिहीन परिवारों की आजीविका विकसित करने के उद्देश्य से स्वयं सहायता समूह बनाए जाते हैं। ये स्वयं सहायता समूह कोई भी रोजगारोन्मुख स्थानीय घरेलू उद्योग धंधा अपना सकते हैं एवं अपनी आर्थिक प्रगति सुनिश्चित कर सकते हैं। परियोजना मद से दोनों प्रकार के समूहों को सहायता प्रदान की जाती है।

राष्ट्रीय स्तर से लेकर जलग्रहण स्तर तक लगभग 8-10 विभिन्न स्तरों पर जलग्रहण परियोजनाओं के क्रियान्वयन की क्या-क्या व्यवस्थाएँ हैं, कौन-कौन किस-किस कार्य के लिये जिम्मेदार है, इन सबका उल्लेख मार्गदर्शिकाओं में एवं उससे जुड़े राजकीय परिपत्रों में किया गया है।

7.2 जलग्रहण विकास परियोजना के अंतर्गत संस्थागत व्यवस्थाएँ (Institutional Arrangements in Watershed Development Programmes)
जलग्रहण विकास कार्यक्रम ग्रामीण समाज का, ग्रामीण समाज के लिये एवं ग्रामीण समाज के द्वारा चलाया जाने वाला महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम है। इसके सुचारु क्रियान्वयन में कई संस्थाओं का योगदान होता है।

7.2.1 राज्य स्तर पर व्यवस्थाएँ
राज्य में जलग्रहण विकास परियोजनाएँ फंड फरमान एवं फंक्शनरीज के साथ 2003 में संविधान के 73वें संशोधन की मूल भावना को देखते हुए पंचायती राज संस्थाओं के अधीन की जा चुकी है। राज्य स्तर पर प्रमुख शासन सचिव स्तर के अधिकारी, जो कि ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग का कार्य देखते हैं, जलग्रहण परियोजनाओं के अन्तर्गत नीतिगत निर्देश एवं अन्तर्विभागीय समन्वय के कार्य से सम्बंधित है। इसके अतिरिक्त जलग्रहण कार्य की नियमित समीक्षा एवं निर्देश प्रदान करने हेतु राज के शासन सचिव पंचायती राज विभाग अधिकृत हैं।

आयुक्तालय जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग, जो कि जलग्रहण विकास कार्यों हेतु नोडल विभाग हैं, का कार्यालय पंत कृषि भवन में स्थित है। आयुक्त, जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण जो कि विभागाध्यक्ष है, के अतिरिक्त विभिन्न प्रकार की तकनीकी सहायता एवं सहयोग हेतु अनेक स्तर के अधिकारी नियोजित हैं।

भारत सरकार द्वारा जारी काॅमन मार्गदर्शिका के अनुसार देश में राष्ट्रीय वर्षा सिंचित क्षेत्र प्राधिकरण का गठन किया गया है। उक्त संस्था समस्त प्रकार की समस्त मंत्रालयों की जलग्रहण परियोजनाओं हेतु नीतिगत निर्देश प्रदान करने के लिये देश की सर्वोच्च अधिकार प्राप्त संस्था है।

7.2.2 राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी (एस.एल.एन.ए.)
राज्य स्तर पर काॅमन मार्गदर्शिका के अनुसार एक समर्पित राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी (एस.एल.एन.ए.) का गठन किया गया है। उक्त एजेंसी का एक स्वतंत्र बैंक खाता होगा। राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी के लिये केन्द्रीय सहायता सीधे ही एस.एल.ए. के बैंक खाते में प्राप्त होगी। राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी की अध्यक्षता अतिरिक्त मुख्य सचिव (विकास) द्वारा की जानी है तथा उक्त नोडल एजेंसी के सदस्य सचिव एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी, आयुक्त जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण घोषित किये गए हैं। कार्यकारी विभागों, कृषि विश्वविद्यालय, स्वयंसेवी संस्थानों एवं प्रशिक्षण संस्थानों में समन्वय सुनिश्चित करने के लिये राज्य स्तर पर पृथक से जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग कार्यरत है। आयुक्तालय जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग को राज्य नोडल एजेंसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी का कार्यालय घोषित किया गया है।

राज्य नोडल एजेंसी के सदस्यों में विभिन्न संबद्ध विभागों के प्रमुख शासन सचिव, शासन सचिव विभागाध्यक्ष, कृषि विश्वविद्यालय, अनुसंधान संस्था, गैर सरकारी संस्था इत्यादि के प्रतिनिधि भी सम्मिलित किये गए हैं। उक्त नोडल एजेंसी का कार्य राज्य में चल रहे समस्त जलग्रहण विकास कार्यक्रमों की नियमित समीक्षा करने के साथ-साथ योजना से संबंधित नीतिगत निर्देश प्रदान करना है।

पूर्व की जलग्रहण मार्गदर्शिकाओं के अनुसरण में राजस्थान में 30 मई 2001 को राज्य जल ग्रहण विकास समिति का गठन किया गया जिसमें ग्रामीण विकास, पंचायती राज, वन, वित्त, आयोजन, पशुपालन, सिंचाई सहकारिता, महिला व बाल विकास, कृषि उद्यान आदि विभाग के सचिव व निदेशक, राजस्थान लोक प्रशासन संस्थान तथा इन्दिरा गांधी पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान के निदेशक, अरावली के कार्यकारी निदेशक, राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर के कुलपति तथा राज्य कृषि अनुसंधान एवं प्रबंधन संस्थान, दुर्गापुरा के प्राचार्य इत्यादि सम्मिलित है। जलग्रहण विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की प्रगति का पर्यवेक्षण (माॅनिटरिंग), समीक्षा तथा मूल्यांकन करने के लिये वर्ष में दो बार समिति की बैठकें आयोजित किए जाने का उल्लेख था। इसी के साथ-साथ प्रबन्धकीय कठिनाइयों को हल करना, नीतिगत दिशा निर्देश प्रदान करना (यदि आवश्यक हो तो) तथा अन्तर्विभागीय समन्वयन सुनिश्चित करना भी समिति की जिम्मेदारी है। उक्त समिति के गठन में 2005-06 में संशोधन किए गए।

7.2.3 राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी (एस.एल.एन.ए.) के मुख्य कार्य निम्नानुसार होंगेः-
1. ब्लाॅक व जिला स्तर पर तैयार प्लान के आधार पर जलग्रहण विकास के लिये राज्य स्तरीय पर्सपेक्टिव व रणनीतिक प्लान का निर्माण करना व क्रियान्वयन रणनीति और आश्वित आउटपुट/परिणाम, वित्तीय आउटले को प्रदर्शित करना व केन्द्रीय नोडल एजेंसी को उससे अवगत कराकर क्लियरेंस लेना।

2. राज्य को स्वीकृत राशि में से एक राज्य स्तरीय डाटा प्रकोष्ठ स्थापित करना व इसे आॅन लाइन राष्ट्रीय डाटा केन्द्र से जोड़ना

3. सम्पूर्ण राज्य में डिस्ट्रिक्ट वाटरशेड डेवलपमेंट यूनिट (डी.डब्ल्यू.डी.यू) हेतु तकनीकी सहायता उपलब्ध करवाना

4. राज्य के भीतर समस्त जलग्रहण क्षेत्र दावेदारों के लिये क्षमता निर्माण कराने वाली स्वतंत्र संस्थानों की सूची का अनुमोदन करना।

5. उपर्युक्त वस्तुनिष्ठ चयन सिद्धांतों व पारदर्शी व्यवस्थाओं को अपनाकर जिला स्तरीय कमेटी/डी.डब्ल्यू डी.यू द्वारा चयनित/पहचानी हुई परियोजना क्रियान्वयन अभिकरणों को अनुमोदित करना

6. माॅनीटरिंग, मूल्यांकन व सीख व्यवस्थाओं को विभिन्न स्तरों (आंतरिक और बाहरी व्यवस्थाओं) पर स्थापित करना।

7. केन्द्रीय नोडल एजेंसी के सहयोग से राज्य में जलग्रहण परियोजनाओं की गुणवत्तापूर्वक व नियमित आॅन लाइन माॅनीटरिंग सुनिश्चित करना।

8. राज्य में स्थित समस्त जलग्रहण परियोजनाओं हेतु स्वतंत्र संस्थानिक मूल्यांकनकर्ताओं का पैनल गठित करना। केन्द्र स्तर पर संबंधित नोडल एजेंसी द्वारा इस पैनल को अनुमोदित करवाना एवं नियमित आधार पर गुणवत्तापूर्वक मूल्यांकन सुनिश्चित करना।

9. राज्य हेतु विशिष्ट प्रक्रिया मार्गदर्शिका, टैक्नोलॉजी मैन्युअल नोडल मंत्रालय/एन.आर.ए.ए. के समन्वय से तैयार कर उसका क्रियान्वयन कराना।

विद्यमान स्टाफ व आधारभूत ढाँचे की उपलब्धता व वास्तविक आवश्यकता के उपयुक्त आकलन उपरांत भू-संसाधन विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा एस.एल.एन.ए. व राज्य डाटा प्रकोष्ठ हेतु वित्तीय समर्थन प्रदान किया जाएगा। एस.एल.एन.ए. के गठन तक परियोजना स्वीकृति व राशि प्रवाह विद्यमान व्यवस्था अनुसार रहेगी।

7.2.4 जिलास्तर पर व्यवस्थाएँ
भारत सरकार द्वारा जारी नवीन काॅमन मार्गदर्शिका के अनुसार जिलास्तर पर जलग्रहण विकास यूनिट की स्थापना लगभग 25000 हेक्टेयर क्षेत्र होने पर की जाएगी जिसे जिला जलग्रहण विकास इकाई कहा जाएगा। यह जिले में जलग्रहण कार्यक्रम की देखरेख करेगी एवं इसका पृथक खाता होगा। 25000 हेक्टेयर से कम क्षेत्र होने पर विद्यमान व्यवस्था अनुरूप परियोजना क्रियान्वित की जाएगी। यद्यपि इन मामलों में जिला परिषद में एक अधिकारी जिलास्तर पर जलग्रहण परियोजनाओं के समन्वयन हेतु नियुक्त किया जाएगा। डी.डब्ल्यू.डी.यू. में नरेगा व बी.आर.जी.एफ क्रियान्वयन अभिकरणों का भी प्रतिनिधित्व होगा। वैकल्पिक तौर पर जिला स्तरीय कमेटी जिला/परिषद द्वारा स्वीकृति एवं क्रियान्वयन की प्रक्रिया चालू रह सकती है। डी.डब्ल्यू. डी.यू पूर्णकालिक परियोजना प्रबंधक व 3-4 विषय विशेषज्ञों (कृषि/जल प्रबंधन/सोशल मोबिलाइजेशन/प्रबंधन व वित्त) के साथ एक पृथक इकाई होगी जो कि उनकी योग्यता व विशेषज्ञता के आधार पर नियुक्त किए जाएँगे।

परियोजना प्रबंधक डी.डब्ल्यू.डी. यू प्रतिनियुक्ति पर सेवारत राजकीय अधिकारी होगा अथवा पारदर्शी प्रक्रिया द्वारा खुले बाजार से नियुक्त किया जा सकेगा। सेवारत राजकीय अधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाएगी जबकि खुले बाजार से नियुक्ति एस.एल.एन.ए. द्वारा की जाएगी। परियोजना प्रबंधक डी.डब्ल्यू.डी.यू न्यूनतम 3 वर्षों के लिये एक अनुबंध एस.एल.एन.ए के साथ करेगा जिसमें स्पष्टतया परिभाषित व इंगित वार्षिक लक्ष्य होंगे जिनके विरुद्ध उसकी कार्य दक्षता माॅनीटर की जाएगी। उपलब्ध स्टॉफ आधारभूत ढाँचा व वास्तविक आवश्यकता के आकलन उपरांत डी.डब्लयू.डी.यू/जिला डाटा प्रकोष्ठ की स्थापना/पुनर्गठन कार्य को भारत सरकार द्वारा वित्तीय समर्थन प्रदान किया जाएगा।

7.2.5 जिला जलग्रहण विकास इकाई के कर्तव्य
1. संबंधित राज्य सरकार द्वारा निर्धारित पैनल बनाने की प्रक्रिया अनुसार एस.एल.एन.ए. के मशविरे से क्षमतावान परियोजना क्रियान्वयन अभिकरणों (पी.आई.ए.) की पहचान करना।

2. संबंधित जिले में जलग्रहण विकास परियोजनाओं के लिये रणनीतिक व वार्षिक कार्य योजना को तैयार करने को सुविधाजनक बनाने की सम्पूर्ण जिम्मेदारी उठाना।

3. जलग्रहण विकास परियोजनाओं की आयोजना और क्रियान्वयन में पी.आई.ए. को पेशेवराना तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना।

4. रिसोर्स संगठनों के साथ मिलकर क्षमता निर्माण के लिये कार्य योजना को विकसित करना ताकि क्षमता निर्माण की कार्य योजना क्रियान्वित की जा सके।

5. नियमित माॅनीटरिंग, मूल्यांकन व सीखना।

6. जलग्रहण विकास परियोजनाओं तक फंड की आसान पहुँच व निर्मुक्त सुनिश्चित करना।

7. एस.एल.एन.ए/नोडल एजेंसी को वांछित दस्तावेजों को समय पर प्रस्तुत करना।

8. उत्पादकता व आजीविका वृद्धि हेतु जलग्रहण विकास परियोजनाओं के साथ कृषि, बागवानी, ग्रामीण विकास, पशुपालन के संबंधित कार्यक्रमों के समन्वय को सुविधाजनक बनाना।

9. समन्वित जलग्रहण विकास परियोजनाएँ/प्लान को जिला आयोजन समितिओं के साथ इन्टीग्रेट करना। जलग्रहण परियोजनाओं पर समस्त व्यय जिला आयोजन में प्रदर्शित होगा।

10. जिला स्तरीय डाटा प्रकोष्ठ की स्थापना कर इसे राज्य व राष्ट्रीय डाटा केन्द्र से जोड़ना।

पूर्व की मार्गदर्शिकाओं के अनुसार जिलास्तर पर जिला परिषद जलग्रहण परियोजना क्रियान्वयन हेतु नोडल एजेंसी है जो राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार के भू-संसाधन विभाग ग्रामीण विकास के मंत्रालय के पर्यवेक्षण एवं मार्गदर्शन में परियोजना का क्रियान्वयन कराती है। जिला परिषद जिले में चल रही समस्त जलग्रहण क्षेत्र विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन के प्रतिपूर्णतः उत्तरदायी है। मुख्य कार्यकारी अधिकारी जिला परिषद, जिले में चल रही जलग्रहण क्षेत्र विकास परियोजनाओं की योजना की मार्गदर्शिका के अनुसार जलग्रहण कार्यों के समयबद्ध क्रियान्वयन, लेखों का हिसाब-किताब, उपयोगिता प्रमाण पत्र, लेखा परीक्षित विवरणों (आॅडिट रिपोर्ट्स) प्रगति रिपोर्ट आदि महत्त्वपूर्ण कार्यों हेतु जिम्मेदार होते हैं। पूर्व में जिलास्तर पर जिला जलग्रहण विकास समिति का गठन किया जाता था जिसके अध्यक्ष जिला प्रमुख होते थे।

7.2.6 दर निर्धारण समिति
दर निर्धारण समिति विस्तृत परियोजना प्रस्ताव प्रतिवेदन की स्वीकृति जारी करती हैं। यह स्वीकृति समन्वित तकनीकी एवं वित्तीय स्वीकृति मानी जाती है। जिन कार्यों के लिये दर निर्धारित नहीं हैं समिति उनके दर निर्धारित करती हैं व अव्यवहारिक दरों में संशोधन करती हैं।

समिति के निम्न सदस्य हो सकते हैंः-

जिला कलेक्टर

अध्यक्ष

मुख्य कार्यकारी अधिकारी, जिला परिषद

सदस्य

उप निदेशक, जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण

सदस्य

उप वन संरक्षक, वन विभाग

सदस्य

अधिशाषी अभियंता (अभियांत्रिकी) जिला परिषद

सदस्य सचिव

7.2.7 परियोजना क्रियान्वयन संस्था (पी.आई.ए)
नई काॅमन मार्गदर्शिका के अनुसार एस.एल.एन.ए., पी.आई.ए. चयन व अनुमोदन हेतु उपर्युक्त व्यवस्था करेगा जो कि अलग-अलग जिलों में जलग्रहण परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु जिम्मेदार होंगे। ये पी.आई.ए. संबंधित लाइन विभाग, राज्य/केन्द्र सरकार के तहत स्वायत्तशाषी संगठन, राजकीय संस्थान/शोध निकाय, मध्यवर्ती पंचायतें, स्वयंसेवी संगठन (वी.ओ.) हो सकते हैं। यद्यपि इन पी.आई.ए. के चयन में निम्न बातों का ध्यान रखा जाएगा।

1. जलग्रहण विकास परियोजनाओं के प्रबंधक या जलग्रहण संबंधी पहलुओं में पूर्व अनुभव होना चाहिए।

2. उन्हें समर्पित जलग्रहण विकास दलों के गठन हेतु तैयार होना चाहिए। कार्यक्रम में स्वयंसेवी संस्थाओं की महत्त्वपूर्ण भूमि है व उनकी सेवाएँ जागृति लाने, क्षमता निर्माण, आई.ई.सी व सामाजिक अंकेक्षण आदि क्षेत्रों में प्रयोग की जा सकती है। जहाँ तक सीधे उनके द्वारा कार्यक्रम क्रियान्वयन किया जाना है वहाँ गैर सरकारी संस्थाएँ जिसकी स्थापित साख है उसे निम्नलिखित आधारों पर पी.आई.ए. चुना जा सकता है।

1. न्यूनतम 5 वर्षों से पंजीकृत कानूनी इकाई हो।
2. प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और आजीविका विकास क्षेत्र में समुदाय आधारित 3 वर्षों का न्यूनतम फील्ड अनुभव हो
3. कापार्ट या भारत सरकार अथवा राज्य सरकार के किसी विभाग द्वारा काली सूची में नहीं
4. उसके पास समर्पित लैंगिक समानता वाली बहुसंकायी दल होना चाहिए।
5. तीन वर्षों की बैलेंसशीट, लेखों का अंकेक्षित ब्यौरा व आयकर रिटर्न उपलब्ध कराएगी, संस्था के सभी लेखे आदि दिनांक तक पूर्ण होने चाहिए।
6. अपने निदेशक मंडल का विवरण उपलब्ध कराएगी।
7. स्वतंत्र रूप से सफलतापूर्वक परियोजनाएँ क्रियान्वित कर चुकी हो।

गैर सरकारी संस्थाओं को परियोजना आवंटित करते समय निम्न प्रावधानों को सुनिश्चित किया जाएगा।

1. एक जिले में किसी भी समय एक वी.ओ. को 10000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र नहीं सौंपा जा सकता है।
2. किसी भी समय एक वी.ओ. को एक राज्य में 30000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र नहीं सौंपा जा सकता है।
3. किसी भी समय एक राज्य में कुल परियोजनाओं का 1/4 हिस्से से अधिक वी.ओ. द्वारा क्रियान्वित नहीं किया जा सकेगा।

चयनित पी.आई.ए. द्वारा संबंधित डी. डब्ल्यू.डी.यू के साथ एक अनुबंध/एम.ओ.यू. किया जाएगा जिसमें सुस्पष्ट वार्षिक परिणाम अंकित होंगे जिसके विरुद्ध प्रत्येक पी.आई.ए. की कार्यदक्षता प्रत्येक वर्ष माॅनीटर की जाएगी और एस.एल.एन.ए/केन्द्रीय नोडल एजेंसी द्वारा अनुमोदित पैनल में से संस्थानिक मूल्यांकनकर्ताओं द्वारा नियमित आधार पर मूल्यांकन किया जाएगा।

प्रत्येक पी.आई.ए. डी.डब्ल्यू.डी.यू के अनुमोदन से एक समर्पित जलग्रहण विकास दल बनाएगा। जलग्रहण विकास दल अनुबंध/प्रतिनियुक्ति/स्थानांतरण आदि पर लिया जा सकेगा जिसकी अवधि परियोजना अवधि से अधिक नहीं होगी। जलग्रहण विकास दल का गठन अनुबंध/एम.ओ.यू में प्रदर्शित होगा। विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन व जलग्रहण कार्यों हेतु कोई परियोजना फंड किसी भी परिस्थिति में पी.आई.ए. या जलग्रहण कमेटी को तब तक नहीं निर्मुक्त किए जाएँगे जब तक कि जलग्रहण विकास दल का संगठन एम.ओ.यू/अनुबंध में स्पष्टतया प्रदर्शित नहीं हो जाए व दल के समस्त सदस्य पूर्णतया कार्यग्रहण कर चुके हों।

7.2.8 पी.आई.ए. के कर्तव्य व दायित्व
पी.आई.ए. ग्राम पंचायत को जलग्रहण क्षेत्र की विकास योजना जनभागिता आधारित ग्रामीण सिंहावलोकन (पी.आर.ए. अभ्यास) के माध्यम से तैयार करने, समुदाय को संगठित करने व ग्रामीण समुदायों को प्रशिक्षित करने, जलग्रहण विकास गतिविधियों का पर्यवेक्षण करने, परियोजना खातों का निरीक्षण व अधिस्वीकृति करने, कम लागत प्रौद्योगिकी अपनाने को प्रोत्साहित करने और स्थानीय तकनीकी ज्ञान को बढ़ावा देने, सर्वांगीण परियोजना क्रियान्वयन की समीक्षा व मॉनिटरिंग करने व परियोजना पश्चातवर्ती कार्यों हेतु संस्थानिक व्यवस्थाएँ करने व परियोजना काल में सृजित परिसम्पत्तियों के अग्रिम विकास व रख-रखाव हेतु आवश्यक तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करेगी।

पी.आई.ए. सावधानीपूर्वक परीक्षण उपरांत, जलग्रहण विकास परियोजनाओं हेतु कार्य योजना (एक्शन प्लान) डी.डब्ल्यू/जिला परिषद को अनुमोदन व अन्य व्यवस्थाओं हेतु प्रस्तुत करेगी। पी.आई.ए. डी. डब्ल्यू.डी.यू. के समय-समय पर प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। पी.आई.ए. किए गए कार्य की भौतिक, वित्तीय व सामाजिक अंकेक्षण की व्यवस्था करेगी। यह अन्य राजकीय कार्यक्रमों यथा नरेगा, बी.आर.जी.एफ., एस.जी.आर.वाय एन.एच.एम., ट्राइबल कल्याण योजनाएँ, कृत्रिम भूगर्भ जल भरण, ग्रीनिंग इंडिया आदि से अतिरिक्त वित्तीय संसाधन जुटाने को सुविधाजनक बनाएगी।

ग्रामीण विकास मंत्रालय की हरियाली मार्गदर्शिका के अनुसार जलग्रहण क्षेत्र विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन हेतु पंचायती राज संस्थाएँ ही परियोजना क्रियान्वयन संस्था रहेगी। जिलास्तर पर जिला परिषद, पंचायत स्तर पर पंचायत समितियाँ एवं ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायतें जलग्रहण परियोजनाओं क्रियान्वयन करेगी। परन्तु अगर कहीं पर पंचायती राज संस्थाएँ इस कार्य को करने में सक्षम नहीं है अथवा रुचि नहीं दिखाती है, तब कोई भी सरकारी विभाग या गैर सरकारी संस्था, पी.आई.ए. के रूप में कार्य कर सकती हैं। स्वयंसेवी संस्था या अन्य संस्थाओं का राजस्थान सोसायटी एक्ट के तहत पंजीकरण कराना आवश्यक है।

7.2.9 जलग्रहण विकास दल (डब्ल्यू.डी.टी.)
भारत सरकार द्वारा जारी नई काॅमन मार्गदर्शिका के अनुसार जलग्रहण विकास दल पी.आई.ए. का आंतरिक भाग है एवं पी.आई.ए द्वारा बनाया जाएगा। दल में न्यूनतम 4 सदस्य होंगे जिनका कृषि, मृदा विज्ञान, जल प्रबंधन, सामाजिक मोबिलाइजेशन व संस्था निर्माण में अनुभव और ज्ञान होगा। राजस्थान में पशुधन के व्यापक स्कोप को दृष्टिगत रखते हुए इस संकाय के सदस्य को भी दल में रखा जाएगा। दल में न्यूनतम एक सदस्य महिला होगी। दल सदस्यों के पास प्राथमिकता से एक पेशेवर डिग्री होनी चाहिए यद्यपि डी. डब्ल्यू डी.यू द्वारा उम्मीदवार के व्यावहारिक क्षेत्रीय अनुभव को दृष्टिगत रखते हुए एस.एल.एन.ए. के अनुमोदन उपरांत अन्यथा योग्य पाए जाने वाले योग्यता में शिथिलता प्रदान की जा सकती है। जलग्रहण विकास दल यथा संभव जलग्रहण विकास परियोजना के निकट मौजूद रहना चाहिए। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि डब्ल्यू.डी.टी. जिले व राज्य स्तर की विशेषज्ञ दल के निकट सहयोग से कार्य करें। पी.आई.ए. को प्रशासनिक सहायता से दल सदस्यों के वेतन का आहरण किया जाएगा। डी. डब्ल्यू डी.यू. डब्ल्यू डीटी. सदस्यों के प्रशिक्षण को सुविधाजनक बनाएगी।

7.2.10 जलग्रहण विकास दल सदस्यों का दायित्व व कर्तव्य
जलग्रहण विकास दल, जलग्रहण कमेटी (डब्ल्यू) को वाटरशेड एक्शन प्लान बनाने में मार्गदर्शन प्रदान करेगी। नीचे दायित्वों व कर्तव्यों को एक सांकेतिक दी जा रही है।

1. ग्राम पंचायत/ग्राम सभा को डब्ल्यू सी. के गठन और उसके कार्यकलाप में सहायता करना।
2. उपभोक्ता समूह व स्वयं सहायता समूहों को संगठित व पोषित करना।
3. महिलाओं को जलग्रहण एक्शन प्लान में उसके हित पर्याप्त रूप से सम्मिलित होना सुनिश्चित करने के लिये मोबिलाइज करना।
4. जनभागिता आधारित बेसलाइन सर्वे प्रशिक्षण व क्षमता निर्माण करना।
5. घरेलू स्तर पर टिकाऊ आजीविका को प्रोत्साहित करने हेतु जल व मृदा संरक्षण या रिक्लेमेशन आदि सहित संसाधन विकास प्लान तैयार करना।
6. सामूहिक संसाधन प्रबंधन व समतामूलक भागीदारी।
7. ग्रामसभा के विचारार्थ विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन तैयार करना।
8. ढाँचों के निर्माण हेतु इंजीनियरिंग सर्वेक्षण करना व इंजीनियरिंग ड्रॉइंग व लागत अनुमान तैयार करना।
9. क्रियान्वित कार्यों की माॅनीटरिंग जाँच परीक्षणात्मक आकलन (Assessment) करना व उनकी नाप लेना और भौतिक सत्यापन करना।
10. भूमिहीन हेतु आजीविका समर्थन विकास को सुविधाजनक बनाना।
11. परियोजना खाता संधारित करना।
12. क्रियान्वित कार्यों की भौतिक वित्तीय व सामाजिक अंकेक्षण की व्यवस्था कराना
13. परियोजना पश्चातवर्ती आॅपरेशन परियोजना अवधि के दौरान सृजित परिसम्पत्तियों के रख-रखाव और भविष्य में विकास हेतु उपर्युक्त व्यवस्थाएँ करना।

1 अप्रैल 2008 से पूर्व संचालित जलग्रहण परियोजनाओं के संदर्भ में प्रत्येक परियोजना क्रियान्वयन संस्था जलग्रहण परियोजना क्षेत्र में की जाने वाली गतिविधियों को एक बहुआयामी दल की मदद से संचालित करता है।

(i) यह एक बहुआयामी दल होता है जिसमें विभिन्न विषयों के विषय विशेषज्ञ शामिल होते हैं।
(ii) जलग्रहण विकास दल में कम से कम चार सदस्य होते हैं जिनमें सिविल/कृषि अभियांत्रिकी, पशुपालन विशेषज्ञ, वानिकी/वनस्पति विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान विषयों से एक सदस्य होते हैं।
(iii) जलग्रहण विकास दल में कम से कम एक महिला सदस्य अवश्य होनी चाहिए।
(iv) दल का वरिष्ठ सदस्य दल का प्रमुख मनोनीत होगा।
(v) प्रत्येक जलग्रहण विकास दल की नियुक्ति का कार्य परियोजना क्रियान्वयन संस्था को नामित किए जाने के दो महीने की अवधि में हो जाने चाहिए।
(vi) जलग्रहण विकास दल को परियोजना में निर्धारित मापदण्ड के अनुसार प्रशासनिक व्यय देय होता है।

किसी भी जलग्रहण क्षेत्र की सफलता के लिये जलग्रहण विकास दल के सभी सदस्यों का ज्ञानवान, कर्मठ एवं टीम भावना से काम करना अत्यधिक आवश्यक है। अतः जलग्रहण विकास दल के सदस्य के रूप में व्यापकता को देखते हुए निम्नलिखित भूमिकाओं का निर्वहन किया जाना हितकर होगा।

(i) जलग्रहण क्षेत्र के लोगों को जलग्रहण क्षेत्र विकास की संकल्पना से परिचित कराना।
(ii) जलग्रहण क्षेत्र की सीमा का निर्धारण करना।
(iii) जलग्रहण क्षेत्र के गाँवों की समस्याओं/बाधाओं/आवश्यकताओं को चिन्हित करने के लिये पी.आर.ए./पीएलए. अभ्यास कराना।
(iv) समस्याओं को प्राथमिकताबद्ध करना।
(v) जलग्रहण क्षेत्र की समस्याओं बाधाओं का विश्लेषण।
(vi) वैज्ञानिक तरीकों से जलग्रहण क्षेत्र की कार्य योजना बनाना।
(vii) जलग्रहण क्षेत्र के लोगों की राय से समस्या समाधान हेतु किए जाने वाले कार्यों की अनुशंसा करना।
(viii) भूमि अभिलेखों का उपयोग कर जलग्रहण क्षेत्र के भूमि धारकों को चिन्हित करना।
(ix) जलग्रहण क्षेत्र के लोगों को विभिन्न प्रयोक्ता समूहों में संगठित करना तथा उन्हें दीर्घकालिक लाभदायक गतिविधियों को संचालित करने हेतु प्रेरित करना।
(x) जलग्रहण क्षेत्र के गरीब लोगों को चिन्हित कर उनकी सूची तैयार करना तथा उन्हें स्वयं सहायता समूह के रूप में संगठित करना।
(xi) पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधियों, ग्राम पंचायत के सदस्यों, प्रयोक्ता समूह एवं स्वयं सहायता समूह के सदस्यों के क्षमता विकास एवं कौशल संवर्द्धन हेतु प्रशिक्षण की रूप-रेखा तैयार करना। जलग्रहण क्षेत्र की विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन तैयार करना।
(xii) जलग्रहण क्षेत्र के निवासियों को स्वेच्छा से निश्चित दिवस पर सामुदायिक कार्यों के लिये श्रमदान हेतु प्रेरित करना।
(xiii) राज्य, जिले एवं राज्य के बाहर संचालित सुल गतिविधियों को जानना तथा एक्सपोजर विजिट की व्यवस्था कराना क्योंकि देखने से ही लोगों की आस्था में अभिवृद्धि होती है।
(xiv) पंचायती राज संस्थाओं के जन प्रतिनिधियों, प्रयोक्ता समूहों तथा स्वयं सहायता समूहों की विभिन्न गतिविधियों पर आधारित प्रशिक्षण संपादित कराना।
(xv) गाँव के मौजूदा सामुदायिक संगठनों/स्वयं सहायता समूहों/समितियों की जलग्रहण क्षेत्र विकास के संवर्द्धन हेतु मदद लेना।
(xvi) अनुमोदित कार्य योजना को क्रियान्वित कराना।
(xvii) जलग्रहण समिति तथा ग्राम पंचायत को जलग्रहण क्षेत्र विकास के अंतर्गत की जाने वाली गतिविधियों हेतु आवश्यक तकनीकी मार्गदर्शन प्रदान करना।
(xviii) विभिन्न गतिविधियों की गुणवत्ता एवं प्रगति की निगरानी रखना।
(xix) परियोजना के अंतर्गत किये जाने वाले भुगतानों की तकनीकी जाँच व समय से भुगतान सुनिश्चित करना।
(xx) जलग्रहण क्षेत्र में कृषि/बागवानी, वानिकी तथा पशुपालन गतिविधियों से अधिकाधिक उत्पादक सुनिश्चित करना।
(xxi) सभी स्वयं सहायता समूह आर्थिक गतिविधियाँ संचालित कर रहे हैं, इसे सुनिश्चित करना।
(xxii) जलग्रहण क्षेत्र के निवासियों की निश्चित समयावधि, दिन, स्थल पर बैठक आयोजित कर अद्यतन समस्याओं, नवाचार, स्पष्टीकरण आदि पर चर्चा करना तथा पारस्परिक सौहार्द कायम करना।
(xxiii) सामान्य सभा की बैठकों में भाग लेना।
(xxiv) परियोजना क्रियान्वयन संस्था को मासिक तथा त्रैमासिक प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करना।
(xxv) जिले में संचालित विभिन्न विकास योजनाओं की जानकारी रखना तथा जलग्रहण क्षेत्र के निवासियों को उससे लाभान्वित करना।
(xxvi) भारत सरकार, राज्य सरकार एवं पंचायती राज विभाग की ग्रामीण विकास की अन्य योजनाओं की जलग्रहण परियोजना में समेकन करना।
(xxvii) परियोजना समाप्ति के उपरांत परियोजना के प्रबंधन को सुनिश्चित करना।

7.2.11 ग्राम स्तर पर व्यवस्थाएँ
काॅमन मार्गदर्शिका के अनुसार ग्रामसभा जलग्रहण विकास दल की तकनीकी सहायता से जलग्रहण परियोजना चलाने के लिये जलग्रहण समिति का गठन करेगी। जलग्रहण समिति को संस्था रजिस्ट्रेशन अधिनियम 1660 के अंतर्गत पंजीकृत कराया जाएगा। ग्रामसभा ग्राम के किसी उपयुक्त व्यक्ति को जलग्रहण कमेटी अध्यक्ष चुन/नियुक्त कर सकती है। जलग्रहण समिति का सचिव, डब्ल्यू सी. का भुगतान पाने वाला कार्यकर्ता होगा। जलग्रहण कमेटी में न्यूनतम 10 सदस्य होंगे, आधे सदस्य एस. एच. जी. व यू.जी, अनुसूचित जाति/जनजाति समुदाय, महिला व भूमिहीन व्यक्ति। होंगे जलग्रहण विकास दल का एक सदस्य भी जलग्रहण समिति में नामांकित किया जाएगा। जहाँ ग्राम पंचायत में एक से अधिक ग्राम होंगे वहाँ संबंधित ग्राम में जलग्रहण विकास परियोजना प्रबंधन हेतु प्रत्येक ग्राम में एक पृथक उप कमेटी गठित की जाएगी।


कुंडकुंड जहाँ एक जलग्रहण परियोजना में एक से अधिक ग्राम पंचायतें आती हैं वहाँ प्रत्येक ग्राम पंचायत हेतु पृथक कमेटी बनाई जाएगी। जलग्रहण समिति को स्वतंत्र किराए का कार्यालय स्थान उपलब्ध कराया जाएगा। जलग्रहण समिति जलग्रहण परियोजना हेतु फंड प्राप्त करने के लिये एक पृथक बैंक खाता खोलेगी एवं इसका उपयोग अपनी गतिविधियों के संचालन हेतु करेगी। डब्ल्यू.डी.टी. सदस्यों व डब्ल्यू सी. के सचिव का वेतन पी.आई.ए. को पेशेवर सहायता अंतर्गत प्रशासनिक व्यय के मदद से देय होगा।

7.2.12 सचिव, जलग्रहण कमेटी
जलग्रहण समिति का सचिव ग्राम सभा की बैठक में चयनित किया जाएगा। यह व्यक्ति पंचायत सचिव से पृथक होगा व भुगतान पाने वाला स्वतंत्र कार्यकर्ता होगा। वह एक समर्पित कार्यकर्ता होगा जिसके पास जलग्रहण समिति को सहायता प्रदान करने के अतिरिक्त अन्य कोई कार्य नहीं होगा एवं वह जलग्रहण समिति अध्यक्ष के सीधे पर्यवेक्षण में कार्य करेगा एवं योग्यता व अनुभव के आधार पर चयनित किया जाएगा। जलग्रहण समिति के सचिव को प्रदान किए जाने वाला मानदेय पी.आई.ए को देय प्रशासनिक सहायता से आहरित किया जाएगा।

सचिव, जलग्रहण समिति निम्न कार्यों हेतु जिम्मेदार होगा।
1. ग्रामसभा, ग्राम पंचायत, डब्ल्यू.सी. की बैठकें जलग्रहण विकास परियोजना के संदर्भ में निर्णय कारक प्रक्रियाओं को सुविधाजनक करने हेतु बुलाएगा।
2. समस्त लिये गए निर्णयों को क्रियान्विति करेगा।
3. जलग्रहण विकास परियोजना के लिये ग्राम पंचायत डब्ल्यू.सी. व अन्य संस्थाओं की बैठकों का विवरण व परियोजना गतिविधियों का समस्त रिकॉर्ड संधारित करेगा।
4. भुगतान व अन्य वित्तीय लेनदेन सुनिश्चित करेगा।
5. जलग्रहण विकास दल नामांकित सदस्य के साथ चेक पर जलग्रहण कमेटी की ओर से संयुक्त हस्ताक्षर करेगा।

7.2.13 ग्राम पंचायत
हरियाली मार्गदर्शिका के अनुसार ग्राम पंचायतें ग्राम सभा के मार्गदर्शन एवं नियंत्रण में जलग्रहण क्षेत्र विकास परियोजना के अंतर्गत कराए जाने वाले कार्यों को क्रियान्वित करेंगी। जिन स्थानों पर वार्ड सभाएँ सक्रिय है वहाँ वार्ड सभाएँ ग्राम सभा के उत्तरदायित्वों का वहन कर सकती है।

i. परियोजना क्रियान्वयन में ग्राम पंचायत के कार्य एवं उत्तरदायित्व अधोलिखित हैं-
ii. परियोजना के दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को संचालित करने का उत्तरदायित्व ग्राम पंचायतों का होगा।
iii. परियोजना के सुचारू क्रियान्वयन हेतु जलग्रहण विकास दल एवं जिला परिषदों से समन्वयन एवं तालमेल बनाए रखने का उत्तरदायित्व भी ग्राम पंचायतों का होगा।
iv. परियोजना के अंतर्गत कराए जाने वाले विकास कार्यों को कराने एवं उनके भुगतान की जिम्मेदारी भी ग्राम पंचायत की होगी।
v. ग्राम पंचायत जलग्रहण परियोजना हेतु एक पृथक खाता खुलवाएगी जिसमें जिला परिषद परियोजना क्रियान्वयन हेतु प्राप्त समस्त राशि जमा होगी।
vi. इस परियोजना खाते का संचालन ग्राम पंचायत के अध्यक्ष (सरपंच) एवं सचिव (ग्राम सेवक) द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा तथा समस्त लेन-देन सरपंच एवं ग्राम सेवक के संयुक्त हस्ताक्षर से किया जाएगा।
vii. ग्राम पंचायत तथा ग्राम सभा की बैठक आयोजित करने तथा उनके द्वारा लिये गये निर्णयों की अनुपालना का उत्तरदायित्व ग्राम पंचायत के सचिव का होगा।
viii. परियोजना के अन्तर्गत कराए जाने वाले समस्त कार्यों पर होने वाले व्यय संबंधित समस्त लेखों का संधारण।
ix. जलग्रहण विकास दल के सहयोग से जलग्रहण क्षेत्र के संसाधनहीन गरीब लोगों को स्वयं सहायता समूह के रूप में संगठित करना।
x. जलग्रहण विकास दल की सहायता से जलग्रहण क्षेत्र में प्रयोक्ता समूहों का गठन।
xi. सामुदायिक तथा पंचायत की भूमि पर किए गए पौधारोपण का रख-रखाव सुनिश्चित करना।
xii. परियोजना के अन्तर्गत निर्मित परिसम्पत्तियों पर लाभार्थी समुदाय से प्राप्त अंशदान एवं दानदाताओं से प्राप्त राशि को जलग्रहण विकास कोष में जमा कराना।
xiii. परियोजना समाप्ति पर परियोजना के अन्तर्गत निर्मित सामुदायिक परिसम्पत्तियों के रख-रखाव की व्यवस्था सुनिश्चित करना।
xiv. सृजित परिसम्पत्तियों के उपयोग पर कर वसूलना।

ग्राम पंचायत का मुख्य कार्य ग्राम सभा के समग्र पर्यवेक्षण व नियंत्रण के अधीन जलग्रहण विकास परियोजना के दिन-प्रतिदिन के कार्यकलापों को पूर्ण करवाना है। ग्राम पंचायत के मुख्य कार्यकर्ता अध्यक्ष, सचिव व स्वयं सेवकों की जलग्रहण विकास परियोजना में भूमिकाओं का निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

ग्राम पंचायत के अध्यक्ष की भूमिका -
i. जलग्रहण क्षेत्र विकास के लिये स्वीकृत योजना के अनुसार कार्य करवाना।
ii. परियोजना बैंक में खाता खुलवाना।
iii. परियोजना का जलग्रहण विकास निधि खाता खुलवाना तथा परिसम्पत्तियों के निर्माण के दौरान प्राप्त अंशदान की वसूली करवाकर इसमें जमा करवाने की कार्यवाही करना।
iv. नियमित बैठकों का आयोजन व संचालन करना।
v. कार्य परिमापन, सत्यापन व प्रमाणीकरण करना।
vi. स्वयं सहायता समूह एवं प्रयोक्ता समूह तथा जलग्रहण विकास दल सदस्यों के सहयोग से जलग्रहण विकास योजना/वार्षिक कार्य योजना तैयार करना एवं सक्षम स्तर से अनुमोदन कराना।
vii. श्रमिकों का नियोजन एवं कार्य निष्पादन तथा भुगतान की कार्यवाही कराना।
viii. भुगतान की कार्यवाही हेतु बिल तैयार कराना।
ix. समय पर भौतिक एवं वित्तीय प्रगति प्रतिवेदन तैयार कराकर प्रेषित करना।
x. पारदर्शिता व गुणवत्ता सुनिश्चित करना व सामाजिक अंकेक्षण कराना, व्यय का विस्तृत विवरण ग्राम पंचायत की बैठकों में पढ़कर सुनाना एवं अनुमोदन प्राप्त करना।
xi. ग्राम सेवक की सहायता हेतु स्वयं सेवकों की नियुक्ति एवं उनका कार्य तथा मानदेय दिलवाने की व्यवस्था करना।
xii. उपयोगिता प्रमाण पत्र समय पर भेजा जाना सुनिश्चित करना।

ग्राम पंचायत के सचिव (ग्रामसेवक) की भूमिका
i. ग्राम पंचायत के अध्यक्ष के निर्देशानुसार स्वीकृत कार्ययोजना का क्रियान्वयन करना।
ii. अध्यक्ष को कार्यों के क्रियान्वयन में पूर्ण सहयोग प्रदान करना।
iii. ग्राम पंचायत व ग्राम सभा की बैठकें/सभाएँ आयोजित करना व सभा की कार्यवाही का विवरण तैयार करना।
ix. बैठकों/सभाओं में लिये गए निर्णयों की अनुपालना करना।
v. स्वयं सहायता समूह व प्रयोक्ता समूह के रिकॉर्ड को सुनियोजित तरीके से रखना।
vi. कार्यों को माप-पुस्तिका में लिखना व भुगतान में सहायता प्रदान करना।
vii. समय पर भौतिक व वित्तीय प्रतिवेदन तैयार करके भेजना।
viii. बैंक खाते को अप-टू-डेट रखना तथा चेक कर संयुक्त हस्ताक्षर से परियोजना खाते से लेन-देन करना।
ix. उपयोगिता प्रमाण पत्र भेजना व अग्रिम राशि की मांग प्रस्तुत करना।

7.2.14 कार्यक्रम क्रियान्वयन हेतु विभिन्न समूहों का गठन
प्रयोक्ता/उपभोक्ता समूह

जन सहभागिता के माध्यम से जलग्रहण विकास कार्यक्रम के क्रियान्वयन हेतु चयनित जलग्रहण क्षेत्र में निम्न समूह गठित किए जाने का प्रावधान है।

i. उपभोक्ता समूह क्या है
ii. स्वयं सहायक समूह
iii. जलग्रहण संस्था
iv. जलग्रहण कमेटी v. जलग्रहण सचिव एवं स्वयं सेवक

उपभोक्ता समूह क्या है
उपभोक्ता समूह में उन लोगों को सम्मिलित किया जाता है जिनकी भूमि चयनित जलग्रहण क्षेत्र में आती है तथा जो जलग्रहण क्षेत्र में की जाने वाली प्रत्येक गतिविधि/कार्य से प्रत्यक्षतः प्रभावित एवं लाभान्वित होते हैं। ऐसे लोगों को छोटे-छोटे समान समूहों में संगठित किया जाना चाहिए। किसी भी जलग्रहण क्षेत्र में मुख्यतः निम्न प्रकार के समूह बनाए जा सकते हैं।

i. निजी भूमि पर मृदा संरक्षण संबंधी गतिविधियों जैसे मेड़बंदी कन्टूर बन्डिंग हेतु गठित उपभोक्ता समूह।
ii. निजी सार्वजनिक भूमि पर जल संग्रहण हेतु की जाने वाली गतिविधियों, जैसे खडीन टांका निर्माण हेतु उपभोक्ता समूह का गठन।
iii. सार्वजनिक भूमि पर की जाने वाली वानस्पतिक गतिविधियों यथा चारागाह विकास हेतु गठित उपभोक्ता समूह।
iv. निजी भूमि पर कृषि उत्पादन संबंधी गतिविधियों तथा फसल प्रदर्शन एवं बागवानी हेतु गठित समूह।
v. पशुधन विकास से संबंधित गतिविधियों हेतु उपभोक्ता समूह का गठन।
vi. नाला उपचार से संबंधित गतिविधियों तथा चेकडैम, एनीकट आदि के निर्माण हेतु समूह गठित किए जा सकते हैं।

उपभोक्ता समूह का गठन
परियोजना क्रियान्वयन संस्था जलग्रहण विकास दल के सदस्यों की सहायता से विभिन्न उपभोक्ता समूहों का गठन करेगी या दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जलग्रहण क्षेत्र के लोगों को विभिन्न समूह में संगठित होने के लिये प्रेरित करेगी। जिसमें सामुदायिक संगठनकर्ता तथा जल ग्रहण विकास दल के सामाजिक विज्ञानी की भूमिका मुख्य रूप से उल्लेखनीय है। जलग्रहण विकास कार्यक्रम से जुड़े प्रत्येक कार्य/गतिविधि से लाभान्वित एवं प्रभावित व्यक्तियों के समूह।

मुख्यत छः प्रकार के समूह बनाए जाते हैं-

1. निजी भूमि पर मृदा संबंधित विकास क्रियाएँ जैसे कंटूर बंडिंग हेतु।
2. निजी सार्वजनिक भूमि पर जल संबंधित विकास क्रियाएँ जैसे खडीन टांका हेतु।
3. सार्वजनिक जमीन पर वानस्पतिक क्रियाएँ जैसे चारागाह विकास हेतु।
4. निजी भूमि पर फसल संबंधित विकास क्रियाएँ जैसे-

(i) फसल प्रदर्शन हेतु
(ii) बागवानी हेतु

5. पशुधन विकास क्रियाएँ
6. नाला उपचार संबंधी विभिन्न क्रियाएँ जैसे चेकडैम एनिकट आदि।

समूह के गठन की प्रक्रिया निम्नवत होगीः-
i. जलग्रहण क्षेत्र के लोगों की बैठक आयोजित करना।
ii. प्रमुख समस्याओं तथा इनसे प्रभावित लोगों से चर्चा करना।
iii. समस्या के समाधान पर चर्चा तथा समस्या समाधान में जलग्रहण क्षेत्र के निवासियों की भूमिका व दायित्व का बोध करना।
iv. ऐसे सफल जलग्रहण क्षेत्रों का भ्रमण जहाँ जलग्रहण विकास संबंधी गतिविधियों के सफल संचालन द्वारा क्षेत्र की समस्याओं का सफलता पूर्वक समाधान किया गया हो।
v. प्रमुख समस्याओं के निराकरण हेतु गतिविधियों को चिन्हित करना तथा आवश्यक प्रशिक्षण व कार्य योजना का निर्माण।
vi. प्रत्येक गतिविधि ‘उपचार से प्रभावित’ लाभान्वित लोगों के छोटे-छोटे समूह बनाना।
vii. ये समूह केवल महिलाओं, पुरूषों तथा पुरूष महिला दोनों के बनाए जा सकते हैं।

उपभोक्ता समूह की उपयोगिता
i. समस्या से पीड़ित व्यक्ति ही अपनी समस्या का बेहतर समाधान जानता है, अतः जलग्रहण क्षेत्र के निवासी जिनकी भूमि उस क्षेत्र में है, वह इस क्षेत्र की समस्याओं से भली-भांति परिचित है तथा उनका सर्वोत्तम समाधान 7 उपचार क्या होगा? यह भी वे अच्छी तरह जानते हैं अर्थात जलग्रहण क्षेत्र में किए जाने वाले अभियान्त्रिकी कार्यों का स्वरूप कैसा हो कौन से स्थानीय देशी पौधों की प्रजातियाँ है, जो उस क्षेत्र के लिये सर्वथा उपयुक्त रहेगी? अथवा वहाँ फसल प्रतिरूप किस तरह का हो, इस संबंध में उपभोक्ता समूह के सदस्य ही बेहतर जानते हैं तथा-जलग्रहण विकास दल-की सहायता से सर्वथा उपयुक्त निर्णय ले सकते हैं।

ii. उपभोक्ता समूहों - के गठन से इन समूहों के सदस्य नियमित अंतराल पर आपस में मिलते रहेंगे जिससे जन सहभागिता सुनिश्चित करने में आसानी होगी।

iii. जलग्रहण विकास से संबंधित लगभग 80 प्रतिशत कार्य-या, गतिविधियाँ संबंधित उपभोक्ता समूहों द्वारा ही क्रियान्वित होगी तथा लाभार्थी भी वे स्वयं ही होंगे, अतः कार्य की गुणवत्ता बेहतर होगी।

iv. उपभोक्ता समूह के सदस्य परियोजना के अंतर्गत सृजित परिसम्पत्तियों के रख-रखाव तथा संचालन की जिम्मेदारी का वहन कर सकते हैं।

उपभोक्ता समूह के सफलता के मानदण्ड
i. जलग्रहण क्षेत्र के कम से कम लगभग 50 प्रतिशत परिवार किसी न किसी उपभोक्ता समूह के सदस्य होने चाहिए। जलग्रहण विकास संबंधी कार्यों अथवा गतिविधियों में से 80 प्रतिशत गतिविधियाँ उपभोक्ता समूह द्वारा संचालित की जानी चाहिए।

ii. उपभोक्ता समूह के लगभग 80 प्रतिशत सदस्य महीने में कम से कम एक बार आपस में मिलते हों तथा आपसी सहमति से परस्पर विचार विनिमय कर कोई भी निर्णय लेते हों।

iii. उपभोक्ता समूहों के 80 प्रतिशत सदस्य स्वेच्छा से अंशदान (नकद, सामग्री अथवा श्रम के रूप में) जमा करा कर योजना की विभिन्न, गतिविधियों का क्रियान्वयन करते हों।

iv. लगभग 80 प्रतिशत उपभोक्ता समूह अपने लेख ग्राम? पंचायत तथा जलग्रहण विकास दल को नियमित रूप से भेजते हों।

v. उपभोक्ता समूह के 80 प्रतिशत सदस्य सामुदायिक भूमि पर निर्मित परिसम्पत्तियों के रख-रखाव का कार्य अपने हाथ में लें।

उपभोक्ता समूह के कर्तव्य एवं अधिकार
i. जलग्रहण क्षेत्र विकास परियोजना के समस्त कार्य उपभोक्ता समूह द्वारा क्रियान्वित किया जाएगा।

ii. लाभांश का वितरण सभी सदस्यों में समान रूप में होना चाहिए।

iii. पारस्परिक विचार विनिमय द्वारा आपसी मतभेदों का निपटारा तथा मतैक्य बनाने का प्रयास भी उपभोक्ता समूह के सदस्यों का कर्तव्य है।

iv. प्रत्येक गतिविधि से होने वाले लाभ का वितरण का स्वरूप क्या हो? यह भी उपभोक्ता समूह के सदस्यों द्वारा तय किया जाना चाहिए। होने वाले लाभांश का तात्कालिक वितरण सभी सदस्यों में कर दिया जाए, कुछ निश्चित राशि लगातार मिलती रहे या लाभांश बाद में सभी में वितरित किया जाएगा। इसका निर्णय उपभोक्ता समूह द्वारा सामूहिक रूप से किया जाना चाहिए।

v. जलग्रहण क्षेत्र में की जाने वाली प्रत्येक गतिविधि समय, अनुमानित लागत, रूपरेखा आदि की कार्य योजना जलग्रहण विकास दल के सदस्यों की सहायता से बनाकर उसे ग्राम पंचायत को प्रेषित करना।

vi. प्रत्येक उपभोक्ता समूह स्वयं द्वारा क्रियान्वित प्रत्येक कार्य/गतिविधियों का लेखा-जोखा रखेंगे तथा रजिस्टर संधारित करेंगे जिसमें प्रत्येक सदस्य का नाम, उसके दिए गए अंशदान का विवरण तथा कीमत अंकित करेंगे।

vii. गतिविधियों के पूर्ण हो जाने पर परियोजना में सृजित परिसम्पत्तियों का रख-रखाव व संचालन का कार्य भी उपभोक्ता समूह के सदस्यों द्वारा हाथ में लिया जाना चाहिए।

उदाहरण
i. जल रिसाव तालाब निर्माण के निम्न समूह बनेंगे।
ii. तालाब के बनाने से लाभान्वित व्यक्तियों का समूह जिनके कुओं का जलस्तर बढ़ गया हो।
iii. तालाब के बनाने से जिन कृषकों की जमीनें डूब गई हो।
iv. गरीब संसाधनहीन किसान जो अपनी पानी की आवश्यकता क्षेत्र में स्थित कुओं से पूरी करते हो।
v. निचले क्षेत्र के वे किसान जो जल रिसाव तालाब बनने के पूर्व इस पानी का फायदा उठा रहे हो, तालाब बन जाने के कारण पानी न मिलने से नुकसान होगा।
vi. एनिकट निर्माण से लाभान्वितों का समूह।
vii. बागवानी कार्य में इच्छुक व्यक्तियों का समूह।

स्वयं सहायता समूह
स्वयं सहायता समूह ग्रामीण समुदाय में निर्मित गरीबों के वे समूह हैं जो अपनी आय में से अपने समूह के सदस्यों की सहमति से तय की गई राशियों की बचत के लिये स्वैच्छिक रूप से बनाए जाते हैं तथा इस प्रक्रिया के माध्यम से समूह की सामान्य निधि निर्मित की जाती है। इस बचत के आधार पर समूह के सदस्यों को उनकी उत्पादक व आकस्मिक जरूरतों की पूर्ति के लिये ऋण दिया जाता है जिससे वे जीविकोपार्जन के स्रोत विकसित कर सकें तथा अपना जीवन स्तर, ऊँचा उठा सकें।

स्वयं सहायता समूह का गठन एवं संभावित आय सृजित गतिविधियाँ
जलग्रहण विकास दल, जन सहभागिता से पी.आर.ए प्रक्रिया की मदद से आयमूलक गतिविधियों का चयन कर प्रत्येक गतिविधि हेतु स्वयं सहायता समूह का गठन करेगा। संभावित आय गतिविधियाँ निम्नलिखित प्रकार की हो सकती हैं-

i. कृषि श्रमिक
ii. कृषक
iii. दुग्ध उद्योग
iv. सब्जी बेचने वाला
v. कुटीर उद्योग
vi. अनुसूचित जाति जनजाति वंशानुगत आधारित कार्य
vii. रस्सी उद्योग
viii. अन्य समान उद्देश्य के कार्य करने वालों के अलग-अलग समूह
ix. टोकरी निर्माण
x. नर्सरी
xi. अल्प बचत
xii. मशरूम की खेती

स्वयं सहायता समूह के चयन मापदंड
i. समूह के सदस्यों की संख्या 10 तक होनी चाहिए।
ii. समूह पंजीकृत अथवा गैर पंजीकृत हो सकते हैं।
iii. सदस्यों की एक समान पृष्ठभूमि व रूचि होनी चाहिए।
iv. समूह कम से कम छः माह तक सक्रिय रूप से अस्तित्व में हो और इसके द्वारा सफलतापूर्वक बचत एवं आंतरिक ऋण गतिशीलन किया जा रहा हो।
v. समूह को लोकतांत्रिक ढंग से कार्य करना चाहिए जिसमें सदस्यों के विचारों का आदान-प्रदान व सहभागिता की छूट हो।
vi. समूह को सामान्य रिकॉर्ड अर्थात कार्यवृत पुस्तिका, सदस्यता रजिस्टर, उपस्थिति रजिस्टर बचत एवं ऋण रजिस्टर तथा सामान्य लेजर इत्यादि रखना चाहिए।
vii. समूह में गैर सरकारी संगठन अथवा प्रवर्तक संस्थाओं की रूचि स्पष्टतः परिलक्षित होनी चाहिए। समूह की स्थापना से सदस्यों की वास्तविक जरूरतों पर परस्पर कार्य करने की भावना का आभास होना चाहिए।
v. समूह को अपने सुचारू संचालन के लिये एक आचार संहिता बनानी चाहिए जिसमें बचत राशि ऋण की प्राथमिता ऋण की राशि समयावधि ब्याज दर समय पर ऋण अदायगी न होने पर जुर्माना आदि तय किए जाने चाहिए।
ix. समूह द्वारा बैंक में समूह के नाम से बचत खाता खोला जाना चाहिए।

समूह बनाते समय ध्यान देने योग्य बिंदु
1. समूह छोटे हो। (सदस्य संख्या 10-15 के मध्य हो)
ii. समूह का गठन आय बढ़ाने वाले कार्य एवं समस्या के आधार पर हो।
iii. समूह में एक समान हैसियत व समस्या वाले व्यक्ति हो।
iv. समूह के सदस्य सामूहिक रूप से कार्य करने व योजना बनाने हेतु अच्छी तरह से अभ्यस्त हो।

समूह बनाने का आधार
i. समूह चर्चा व पी.आर.ए चर्चा के दौरान समान विचार वाले व्यक्तियों की पहचान।
ii. उन्हें एकत्रित किया जाए।
iii. उनका ध्यान विशिष्ट समस्या/आवश्यकता/उद्देश्य पर केन्द्रित हो।
iv. समान समस्या आवश्यकता उद्देश्य वाले व्यक्ति आपस में मिलकर अपना अलग-अलग समूह बनाएँ।

स्वयं सहायता समूह निर्माण के चरण
चरण-1 स्वयं सहायता समूह का बैंक में बचत खाता खोलना।

खाता समूह के नाम से खोला जाता है। समूह के कम से कम 3 सदस्यों को बैंक खाते के संचालन के लिये प्राधिकृत करना होता है।

उक्त प्रस्ताव आवेदन पत्र के साथ बैंक को देना होता है। समूह के नियम बनाएँ हों तो उसके प्रति भी बैंक को प्रस्तुत की जा सकती है।

चरण-2 समूह द्वारा अपने सदस्यों को आंतरिक ऋण प्रदान करना

प्रारम्भिक बचत से बनी सामूहिक निधि का उपयोग समूह द्वारा जरूरतमंद सदस्यों को ऋण प्रदान करने के लिये किया जाता है। सदस्यों को ऋण राशि उद्देश्य ब्याज दर अदायगी समय इत्यादि का निर्णय समूह अपने बैठकों में चर्चा के अनुसार स्वयं निर्धारित करता है।

समूह को इस संबंध में कुछ लेखा बही पुस्तकों में समय-समय पर प्रविष्टि सुनिश्चित करनी होती है।

चरण-3 स्वयं सहायता समूहों का मूल्यांकन

इसके लिये कुछ मानदंड निर्धारित किए गए हैं जिनमें समूह की एकरूपता/एकता की भावना उद्देश्य कार्य प्रणाली नियमित बैठकों का आयोजन उपस्थिति बचत एवं उसकी नियमितता आंतरिक ऋण एवं अदायगी विभिन्न रजिस्टरों का रख-रखाव आदि मदों पर अंक दिए जाते हैं।

अच्छे अंक पाने वाले समूह ऋण के पात्र होते हैं।

चरण-4 समूहों को ऋण की मंजूरी

समूह के गठन के 6 माह पश्चात ऋण समूह के नाम से दिया जाता है व्यक्तिगत सदस्यों को नहीं। 2 वर्ष से अधिक में चुकने वाले मियादी कप एवं वार्षिक रूप से नवीनीकरण करने वाले ऋण कैश क्रेडिट के तहत दिए जाते हैं।

सामान्यतः सामूहिक बचत राशि का 1 से 4 गुणा तक बैंक कप दिया जा सकता है। समूह की बचत में, बचत खाते की शेष राशि प्राधिकृत व्यक्ति के पास जमा राशि सदस्यों की कुल बचत में से दी गई राशि, वितरित ऋण पर प्राप्त ब्याज राशि और समूह को प्राप्त अनुदान/दान राशि यदि कोई हो तो सम्मिलित की जाएँगी।

प्रयोजन जिसके लिये ऋण दिया जा सकता है

1. दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये।
2. काम धंधा शुरू करने के लिये-कार्यशील पूँजी एवं उपकरण आदि की खरीद इत्यादि का निर्णय समूह आपसी बैठकों में करता है। बैंक इस संबंध में समूहों को एक शुभचिंतक के रूप में परामर्श ही देता है, निर्देश नहीं।

7.2.15 जलग्रहण क्षेत्र विकास परियोजना में स्वयं सहायता समूहों हेतु आर्थिक प्रावधान
i. जलग्रहण विकास दल परियोजना के रिवोल्विंग कोष (1,00,000 रूपए) में से 10,000 रूपए ऋण के रूप में प्रत्येक स्वयं सहायता समूह को आर्थिक गतिविधि प्रारम्भ करने हेतु अग्रिम दिया जाएगा।

ii. राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजनान्तर्गत यह राशि रूपए 25000 निर्धारित है तथा यह भी शर्त है कि प्रत्येक समूह के पास उपलब्ध बचत राशि, स्वयं सहायता समूह के दोगुना तक रिवाल्विंग फंड दिया जा सकता है। प्रत्येक स्वयं सहायता समूह द्वारा प्रस्तावित कार्य योजना एवं लागत अनुमान प्रस्तुत की जानी होगी जिस हेतु वे ऋण चाह रहे हैं।

iii. यह राशि इन समूहों से लगभग 6 मासिक किस्तों में वसूल की जाएगी व वापस उस समूह या अन्य समूहों को दी जा सकेगी।

iv. परियोजना के अंतिम वर्ष में इस राशि को कार्यमद के उपयोग में लिया जाएगा।

7.2.16 स्वयं सहायता समूह साधारण रेटिंग

 

क्र.सं.

घटक

प्रमुख संकेतक

अंक

प्राप्त अंक

1

एकरूपता

() 80 प्रतिशत से अधिक सदस्य

() 60-80 प्रतिशत

() 60 प्रतिशत से कम

10

5

2

 

2

समूह नियमावली

() बनाई एवं लिखित

() समूह नियमपूर्ण नहीं

() समूह नियम बनाएँ नहीं

10

5

2

 

3

समूह गठन, जरूरत एवं उद्देश्य की जानकारी

() सभी सदस्यों को मालूम

() पदाधिकारियों एवं कुछ सदस्यों को मालूम

() केवल पदाधिकारियों का मालूम

10

5

2

 

4

बैठक आयोजन एवं उपस्थिति

() नियमित (90 प्रतिशत)

() अनियममित (70 प्रतिशत)

() कभी-कभी (70 प्रतिशत)

10

5

2

 

5

बचत राशि नियमितता

() 100 प्रतिशत सदस्यों के समय पर

() 70 प्रतिशत सदस्यों द्वारा समय पर

() 70 प्रतिशत सदस्यों से कम

10

5

2

 

6

आंतरिक ऋण

() एकत्रित राशि का 70 प्रतिशत

() एकत्रित राशि का 50 प्रतिशत

() बिल्कुल नहीं

10

5

2

 

7

बैंक बचत खाता संचालन

() नियमित

() अनियमित

() केवल खाता खुला है

10

5

2

 

8

साधारण रिकॉर्ड संधारण

() गठन के साल पूर्ण

() गठन के 4 माह के अंदर पूर्ण

() रिकॉर्ड अपूर्ण

10

5

2

 

9

आंतरिक ऋण की चुनौती आदि

() 100 प्रतिशत

() 70 प्रतिशत

() 70 प्रतिशत से कम

10

5

2

 

10

ऋण उपभोग, चुकौती आदि

() सभी सदस्यों को मालूम

() कुछ सदस्यों को मालूम

() केवल पदाधिकारियों को मालूम

10

5

2

 

 

 

रेटिंग

() 70 प्रतिशत से अधिक

1. बचत का 4 गुना

 

() 60-70 प्रतिशत

2. बचत का 3 गुना

 

() 50-60 प्रतिशत

3. बचत का दोगुना

 

() 50 प्रतिशत से कम

4. बिल्कुल नहीं

 

 

यह कमेटी जलग्रहण विकास योजना के विभिन्न पहलुओं जैसे प्रशिक्षण, सामुदायिक संगठन, प्रचार अभियान एवं इस प्रकार के अन्य कार्यों/गतिविधियों के क्रियान्वयन के बारे में सलाह एवं आवश्यक सहायता उपलब्ध कराती हैं।

7.3 जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम में जनसहभागिता (Participation in Watershed Development Programmes)
पूर्व में जलग्रहण क्षेत्र विकास कार्यक्रम के अंतर्गत मिट्टी और पानी के संरक्षण के उपायों को अलग-अलग क्षेत्रों में, खण्ड-खण्ड पद्धति अपनाते हुए क्रियान्वित किया जाता था और योजना को प्रदेश या केन्द्र स्तर पर मंज़ूर कर निचले स्तर पर लाकर क्रियान्वित कराने की विधि अपनाई जाती थी। संक्षेप में अभी तक योजना के क्रियान्वयन का दायित्व उन लोगों को सौंपा गया जो योजना से लाभान्वित (ग्रामीण समुदाय) नहीं थे। इस प्रक्रिया के कारण ग्रामीण समुदाय भावनात्मक रूप से योजना से जुड़ नहीं पाया और उसके अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सके। अब यह महसूस किया गया कि जलग्रहण क्षेत्र-विकास-कार्यक्रम की सफलता तभी? सुनिश्चित की जा, सकती है जब लाभान्वित समाज/व्यक्ति को योजना के विभिन्न पक्षों को जोड़ा जाए।

7.4 संस्थागत व्यवस्थाओं में जनसहभागिता क्यों (Why participation the institutional arrangements)
i. अनुपयुक्त प्रशासनिक प्रबंध के प्रभाव को कम करने के लिये।
ii. आवश्यकताओं एवं समस्याओं के कारण जानने, उनकी पहचान करने और उनकी महत्ता एवं वरीयता मालूम करने के लिये।
iii. पारम्परिक तकनीकी ज्ञान के उपयोग के लिये जाति आधारित ग्रामीण शक्ति के प्रभाव भू-स्वामियों क्या भूमिहीनों के बीच अंतर व धनवानों तथा निर्धनों के साथ किये जाने वाले भेद-भाव को कम करने के लिये।
iv. पूर्ण किये गये निर्माण कार्यों का संचालन रख-रखाव स्वयं उपभोक्ता द्वारा करने के लिये।
v. स्वामित्व का अहसास विकसित करने हेतु।

7.5 सारांश (Summary)
जलग्रहण विकास कार्यक्रम में राज्य स्तर पर राज्य जलग्रहण विकास समिति जिलास्तर और जिला जलग्रहण विकास समिति व कार्य क्रियान्वयन हेतु जल ग्रहण विकास दल व ग्राम पंचायत होती है। इसमें उपभोक्ता समूह तथा जलग्रहण कमेटी का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।

7.6 संदर्भ सामग्री (Reference Material)
1. जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन।
2. बारानी क्षेत्रों की राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना हेतु जारी वरसा-7 मार्गदर्शिका।
3. प्रशिक्षण पुस्तिका-जल ग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी।
4. जलग्रहण मार्गदर्शिका-संरक्षण एवं उत्पादन विधियों हेतु दिशा-निर्देश जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी।
5. जलग्रहण हेतु मैनुअल-जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी।
6. राजस्थान में जलग्रहण विकास गतिविधियाँ एवं उपलब्धियाँ-जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी।
7. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना के लिये जलग्रहण विकास पर तकनीकी मैनुअल।
8. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास - दिशा निर्देशिका।
9. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास - हरियाली मार्गदर्शिका।
10. Compendium of Circulars जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी।
11. विभिन्न परिपत्र-राज्य सरकार/जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग।
12. जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी स्वयं सहायता समूह मार्गदर्शिका।
13. इन्दिरा गांधी पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान द्वारा विकसित संदर्भ सामग्री-जलग्रहण प्रकोष्ठ।
14. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका।
15. प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं तकनीकी विश्वविद्यालय उदयपुर द्वारा विकसित सामग्री।
16. भारत सरकार द्वारा जलग्रहण विकास हेतु जारी नवीन काॅमन मार्गदर्शिका।

 

जलग्रहण विकास - सिद्धांत एवं रणनीति, अप्रैल 2010

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।)

1

जलग्रहण विकास-सिद्धांत एवं रणनीति

2

मिट्टी एवं जल संरक्षणः परिभाषा, महत्त्व एवं समस्याएँ उपचार के विकल्प

3

प्राकृतिक संसाधन विकासः वर्तमान स्थिति, बढ़ती जनसंख्या एवं सम्बद्ध समस्याएँ

4

जलग्रहण प्रबंधन हेतु भूमि उपयोग वर्गीकरण

5

जलग्रहण विकासः क्या, क्यों, कैसे, पद्धति एवं परिणाम

6

जलग्रहण विकास में जनभागीदारीःसमूहगत विकास

7

जलग्रहण विकास में संस्थागत व्यवस्थाएँःसमूहों, संस्थाओं का गठन एवं स्थानीय नेतृत्व की पहचान

8

जलग्रहण विकासः दक्षता, वृद्धि, प्रशिक्षण एवं सामुदायिक संगठन

9

जलग्रण प्रबंधनः सतत विकास एवं समग्र विकास, अवधारणा, महत्त्व एवं सिद्धांत

10

पर्यावरणःसामाजिक मुद्दे, समस्याएँ, संघृत विकास

11

राजस्थान में जलग्रहण विकासः चुनौतियाँ एवं संभावनाएँ

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