जनभागीदारी की क्या है तैयारी

13 Jun 2014
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Narendra Modi
Narendra Modi
गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी ने अपने राज्य के विकास के लिए कई काम किए और ड्रिप इरीगेशन, स्प्रिंकलर इरीगेशन और तालाबों व बावड़ियों का निर्माण करके जल संरक्षण के माध्यम से जहां कृषि का विकास सुनिश्चित किया, वहीं सिंगल विंडो सिस्टम यानी एकल खिड़की प्रणाली पूरी तरह से लागू करके फटाफट फैसले लेकर जमीन का अधिग्रहण तर्कसंगत बनाकर और उद्योगों को आवश्यक अनापत्ति प्रमाणपत्र तुरंत देने का प्रबंध करके उद्योगों को लाभ पहुंचाया। मोदी सरकार का आरंभिक कामकाज उत्साहजनक रहा है और जनता में अच्छा संदेश गया है। विवश होकर मोदी के आलोचकों को भी मोदी की प्रशंसा करनी पड़ रही है। प्रधानमंत्री मोदी को यह सुविधा है कि उनके पास पूर्ण बहुमत है और एनडीए के अन्य दल भी उनके साथ हैं।

पूर्ण बहुमत मिलने का लाभ यह भी हुआ कि यह ‘एनडीए सरकार’ या ‘भाजपा सरकार’ के बजाए विशुद्ध ‘मोदी सरकार’ है। राज्यसभा में भाजपा व एनडीए का बहुमत न होने के कारण मोदी ने कुछ मामूली समझौते किए हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि इस सरकार में सत्ता का असली केंद्र केवल नरेंद्र मोदी ही हैं।

गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी ने अपने राज्य के विकास के लिए कई काम किए और ड्रिप इरीगेशन, स्प्रिंकलर इरीगेशन और तालाबों व बावड़ियों का निर्माण करके जल संरक्षण के माध्यम से जहां कृषि का विकास सुनिश्चित किया, वहीं सिंगल विंडो सिस्टम यानी एकल खिड़की प्रणाली पूरी तरह से लागू करके फटाफट फैसले लेकर जमीन का अधिग्रहण तर्कसंगत बनाकर और उद्योगों को आवश्यक अनापत्ति प्रमाणपत्र तुरंत देने का प्रबंध करके उद्योगों को लाभ पहुंचाया।

प्रधानमंत्री के रूप में भी वे सरकार और प्रशासन में बनी अनावश्यक संस्थाओं को समाप्त करके निर्णय की प्रक्रिया को आसान और प्रभावी बनाने का काम शुरू कर चुके हैं। मंत्रियों पर नकेल लगाकर प्रशासनिक अधिकारियों को मंत्रियों की गलत बातें न मानने का आदेश देकर उन्होंने नौकरशाही को स्वच्छ और सशक्त बनाने की पहल की है।

गौरतलब है कि यूपीए-2 के अंतिम दिनों में राहुल गांधी ने जनता का दिल जीतने के लिए अध्यादेश लाकर छह अलग-अलग कानून बनवाने का प्रयत्न किया था, जिसमें वे सफल नहीं हो सके। इनमें जुडीशियल स्टैंडर्ड्स एंड एकाउंटेबिलिटी बिल, ह्विसल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन बिल, राइट ऑफ सिटिजन्स फॉर टाइम बाउंड डिलीवरी ऑफ गुड्स एंड सर्विसिज एंड रिर्डेसल ऑफ देअर ग्रीवेंसिज बिल, प्रिवेंशन ऑफ ब्राइबरी ऑफ फारेन पब्लिक ऑफिशियल्स एंड ऑफिशियल्स ऑफ पब्लिक इंटरनेशनल आर्गेनाइजेशन्स बिल, प्रिवेंशन ऑफ करप्शन (एमेंडमेंट) बिल और पब्लिक प्रोक्योरमेंट बिल, 2012 शामिल थे।

यदि ये अध्यादेश आ जाते और अंतत: कानून बन जाते तो जनता को लाभ ही होता। लेकिन अपने दस वर्ष के कार्यकाल में यूपीए सरकार तो शक्तिसंपन्न लोकपाल का कानून बनाने से भी बचती रही। अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में वाहवाही लूटने के लिए कोई कानून बनाना सिर्फ गलत नीयत का सूचक था और यह ठीक ही है कि राहुल गांधी अपनी मनमानी नहीं कर पाए।

पर तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि यूपीए सरकार द्वारा लागू किया गया सूचना का अधिकार मिल जाने से जनता को जो सीमित लाभ हुआ है, उसने भी हमारे लोकतंत्र को मजबूत किया है और भ्रष्टाचार के कई मामलों का पर्दाफाश किया है। इसी तरह तस्वीर का एक रुख यह भी है कि स्वयं मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात में लोकायुक्त नियुक्त करने की हर मांग को अस्वीकार किया।

मोदी के कार्यकाल में उनके गृहमंत्री हरेन पांड्या की संदिग्ध मृत्यु, भाजपा के अन्य नेताओं शंकर सिंह वाघेला, केशुभाई पटेल और संजय जोशी का दरकिनार होना आखिर मोदी की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति का ही द्योतक रहा है। यह सच है कि शक्ति व्यक्ति को भ्रष्ट करती है और असीमित शक्ति व्यक्ति को असीमित रूप से भ्रष्ट करती है।

बहरहाल मोदी की ईमानदारी पर तो शक नहीं किया जा सकता, लेकिन अपेक्षा तो फिर भी यही रहेगी कि हर हालत में लोकतंत्र मजबूत होना चाहिए। इसलिए यह आवश्यक है कि अपने बहुमत का लाभ उठाकर प्रधानमंत्री मोदी ऐसे कानून बनवाएं, जो सिस्टम का हिस्सा बन जाएं। प्रथाएं बदली जा सकती हैं, जैसे मोदी ने प्रधानमंत्री बनते ही कई प्रथाएं बदलने की पहल की है। पर कानून बदलना उतना सहज नहीं होता। अत: लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक कानून बनाना जरूरी है।

आवश्यक नहीं कि मोदी इसे अपनी सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल कर ही लें। इसलिए यह भी जरूरी है कि देश के प्रबुद्ध जन सेमिनारों, भाषणों, लेखों और सोशल मीडिया के माध्यम से सरकार पर दबाव बनाएं कि वह ऐसे कानून बनाएं, जिनसे सरकारी कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों की मनमानी पर अंकुश लगे और लोकतंत्र में ‘तंत्र’ के बजाए ‘लोक’ की महत्ता बढ़े।

‘न्यायिक मानकीकरण एवं उत्तरदायित्व विधेयक’ के माध्यम से न्यायपालिका के कामकाज में सुधार होगा, मामले सालों-साल अदालत में लटके ही नहीं रहेंगे और न्याय सस्ता व सुलभ होगा। ‘जनहित कार्यकर्ता सुरक्षा विधेयक’ से उन नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी, जो जनहित में विभिन्न घोटालों का पर्दाफाश करते हैं, जनहित में सूचनाएं लेते और देते हैं तथा सूचनाओं के आधार पर शासन-प्रशासन पर आलोचनात्मक आवाज उठाते हैं।

‘जनसेवा विधेयक’ के माध्यम से जनता को सरकारी अधिकारियों से सही समय पर काम होने की गारंटी होगी और समयबद्ध ढंग से उनकी शिकायतों का निराकरण हो सकेगा। भ्रष्टाचार निरोधी विधेयक के माध्यम से भारतीय और देश में कार्यरत विदेशी अधिकारियों को रिश्वत के लेनदेन पर रोक लगाना कुछ और सुविधाजनक हो जाएगा, साथ ही सरकारी खरीद में भ्रष्टाचार के मामलों पर अंकुश लग सकेगा।

इसी श्रृंखला में ‘जनमत विधेयक’ और ‘जनप्रिय विधेयक’ का महत्व भी नहीं भुलाया जाना चाहिए। ‘जनमत विधेयक’ का अर्थ है कि कोई भी कानून बनाने से पहले नागरिक समाज की राय ली जाएगी। एक निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से नागरिक समाज प्रस्तावित विधेयक में संशोधन सुझा सकेगा या फिर उसे पूरी तरह से रद्द करवा सकेगा। इस प्रकार कोई भी बिल कानून उसी रूप में बन सकेगा, जिस रूप में जनता को उसकी आवश्यकता है। ‘जनप्रिय विधेयक’ का अर्थ है कि यदि नागरिक समाज कोई कानून बनवाना चाहता है, जो कि पहले से अस्तित्व में नहीं है तो राज्य अथवा केंद्र के जनप्रतिनिधियों को वह कानून बनाना आवश्यक हो जाएगा।

‘नोटा’ के रूप में हमे यह अधिकार मिल गया है कि यदि चुनाव में खड़े उम्मीदवारों में से कोई भी हमारी पसंद का नहीं है तो हम वोटिंग मशीन पर दिए गए अतिरिक्त बटन दबाकर उपलब्ध उम्मीदवारों के प्रति अपनी नापसंदगी जाहिर कर दें। अब इससे आगे बढ़ने का समय है। ‘राइट टु रिकॉल’ यानी जनप्रतिनिधि को वापस बुलाने को अधिकार चुने गए जनप्रतिनिधियों को असंयत अथवा निरंकुश होने से रोकेगा। इससे जनप्रतिनिधियों पर विधानसभा अथवा संसद में अपना व्यवहार संयत रखने, विभिन्न सदनों में जनता की आवाज बनने तथा अपने क्षेत्र में विकास कार्य करवाने का दबाव बनेगा।

इन कानूनों के अस्तित्व में आने से सरकारी कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों पर अंकुश लगेगा, भ्रष्टाचार का अंत होगा और जनता की सर्वोच्चता स्थापित होगी, जो अंततः जनतंत्र को सार्थक बनाएगा। यदि ये कानून अमल में आएं तो जनता वास्तव में जनार्दन बन जाएगी और उन जनप्रतिनिधियों पर जनता की सुनवाई का दबाव बनेगा, जो सिर्फ चुनाव के समय ही जनता के दरवाजे पर जाते हैं। लोकतंत्र की महत्ता और सार्थकता इसी में है।

लेखक वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार व टिप्पणीकार हैं)

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