जंगल में घोर अमंगल

19 Oct 2009
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नदियों, पहाडों को नंगा कर अपनी झोली भर रहे खनन माफियाओं का निशाना इस बार देश का गौरव कहे जाने वाले वन्य जीव अभ्यारण्य बने हैं। उत्तर प्रदेश का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला कैमूर वन्य जीव अभ्यारण्य लुप्त होने के कगार पर है, धन कमाने की हवस में ललितपुर से लेकर सोनभद्र तक फैले समूचे अभ्यारण्य को चर डाला गया है, समूचे सेंचुरी क्षेत्र में जंगलों को नेस्तानाबूद करके बालू का अवैध खनन कराया जा रहा है, वहीं घातक विस्फोटकों का प्रयोग करके पहाडों को पत्थरों में तब्दील किया जा रहा है, इन सबका सीधा असर यहाँ की पारिस्थितकी पर पड़ा है, क्षेत्र से वन्य जीवों की विलुप्त प्राय प्रजातियों का सफाया हो रहा है, वहीँ इस क्षेत्र में मौजूद विश्व के सबसे प्राचीन जीवाश्मों और आदि मानवों के विकास से जुडी पुरातात्त्विक धरोहरों की अदभुत सम्पदा नष्ट हो रही है। हाल ये है कि हजारों एकड़ वन भूमि में जलस्तर तेजी से घटा है, जमीन की उपरी परत फट चुकी है और साथ ही अभ्यारण्य में मौजूद नदियाँ नालों में तब्दील हो गयी हैं।

सोन नदी के तट पर स्थित इन इलाकों में हो रहे अवैध खनन में प्रदेश सरकार की चुप्पी बेहद संदेहास्पद है, स्थिति का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के खनन मंत्री के बेहद नजदीक माने जाने वाले एक व्यक्ति को अभ्यारण्य के पूर्व अधिकारियों द्वारा इजाजत न दिए जाने के बावजूद, वन क्षेत्र में अवैध खनन और रास्ता बनाने की इजाजत दे दी गयी, जबकि इस मामले में जीओलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने भी आपत्ति दर्ज करायी थी। सुप्रीम कोर्ट के कड़े रुख के बावजूद दर्जनों की संख्या में चल रही इन अवैध खदानों को लेकर पर्यावरणविद महेशानंद भाई कहते हैं 'ये स्थिति बेहद खतरनाक है, देश की धरोहरों के साथ ये छेड़छाड़ संवेदनहीन होने के साथ-साथ मुर्खता का परिचायक है।

सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली समेत ५ जनपदों को आच्छादित कर रहे कैमूर वन्य जीव अभ्यारण्य का अस्तित्व संकट में है, अब यहाँ शेर,बाघों, मोर और काले हिरणों का शोर नहीं सुनाई देता यहाँ या तो धूल उड़ाते भारी वाहन नजर आते हैं या फिर नदी तटों पर भारी जनरेटर्स लगाकर नदी को चीरकर बालू निकालती मशीनें। सब कुछ शासन और सत्ता की नाक के नीचे। मौजूदा समय में यहाँ के रेडिया, बिजौरा, पटवध, गुरुदाह इत्यादि इलाकों में जोर शोर से बालू का अवैध खनन किया जा रहा है। नेताओं और अधिकारियों ने अवैध को वैध करार देने के लिए भी तमाम रास्ते निकाल लिए हैं, जिन जगहों पर सेंचुरी एरिया नहीं है वहां की भूमि के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र देकर सेंचुरी एरिया में खनन संक्रिया को खुलेआम अंजाम दिया जा रहा है, बिजौरा में खनन परिवहन के लिए मार्ग न होने की स्थिति में सीधे सेंचुरी क्षेत्र के बीचोंबीच से सड़क मार्ग बना दिया गया और उसमे घुसकर लाखों टन बालू का खनन किया गया। गौरतलब है की गुरुदाह, बिजौरा वो क्षेत्र हैं जिनका पुरातात्त्विक महत्व है, अभी दो वर्ष पूर्व ही लखनऊ विश्वव्दियालय के वैज्ञानिकों ने वहां आदि मानवों द्वारा प्रयोग किये जाने औजारों की पूरी खेप खोज निकाली थी। उस वक़्त वैज्ञानिकों ने दावा किया था की पुरातात्त्विक अध्ययनं के दृष्टिकोण से ये पूरा इलाका विश्व की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है और इस पूरा इलाके में सेंड माइनिंग का काम तात्कालिक तौर पर रोक देना चाहिए। इसी सेंचुरी एरिया में दुनिया का सबसे प्राचीन फासिल्स पार्क भी है, जिसमे स्ट्रोमेतोलाईट श्रेणी के जीवाश्मों का भण्डार है लेकिन खनन का भूत इन बेशकीमती पत्थरों को भी तहस नहस कर रहा है। कई क्षेत्रों में भारी मशीनें लगाकर जमीन से बालू निकलने की हवस में जीवाश्मों को भी जमींदोज कर दिया गया।

कैमूर वन्य जीव क्षेत्र में अवैध खनन का सर्वाधिक असर उत्तर प्रदेश और बिहार के लगभग ४० जनपदों को सिंचित करने वाली सोन नदी पर पड़ा है । खनन माफियाओं ने मंत्रियों और अधिकारियों की शाह पर समूची सोन को ही गुलाम बना दिया है, आलम ये है कि भारी वर्षा के बावजूद इस वक़्त जबकि देश की तमाम नदियों में बाढ़ की स्थिति है सोनभद्र में सोन सूखी हुई है, नदी का जल चूँकि खनन में बाधक है तो इस बात के पर्याप्त उपाय कर लिए जाते हैं कि नदी में कम से कम पानी आये। इसके लिए जगह जगह पर उसकी धाराओं का मार्ग बदलने की कोशिश की गयी, जब इससे भी काम नहीं हुआ, तो नदी में जगह-जगह इसमें पाइप डालकर उसे संकरा कर दिया गया। नतीजा ये हुआ कि उत्तर प्रदेश और बिहार के सोन से सटे तमाम जनपदों में खेती किसानी तो चौपट हो ही गयी, वन्य जीव अभ्यारण्य का स्वरुप भी छिन्न-भिन्न हो गया, सोन के जल पर निर्भर तमाम जंगली जानवर या तो अकाल मौत के शिकार हो गए या फिर नए इलाकों में चले गए। ये यकीन करना मुश्किल है मगर सत्य है कि जबसे सेंचुरी क्षेत्र में खनन शुरू किया गया है तबसे अब तक हजारों की तादात में हनुमान लंगूरों (एक विलुप्त प्रजाति) की मौत हो चुकी है।

हाल ही में उच्च न्यायालय ने वन क्षेत्रों में खनन पर प्रदेश सरकार को आडे हाथों लिया था और केंद्रीय एजेंसियों से पूरे क्षेत्र में खनन की स्थिति पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा था, लेकिन सरकार और सरकारी नुमाइंदे बार-बार न्यायालय की आँख में धूल झोंकने में सफल हो जाते हैं, स्थिति का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि न्यायालय को अँधेरे में रखकर एक नहीं कई बार सुरक्षित वन क्षेत्र को वन भूमि की सीमा से बाहर दिखा दिया गया, पूरे क्षेत्र में वन कानूनों की खुलेआम धज्जियाँ उडाई जा रही हैं चूँकि कानूनों के उल्लंघन में सरकार की सहमति होती है इसलिए कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ पाता। सोनभद्र से सोन उजड़ चुकी है, इसकी भद्रता का भी उजड़ना तय है।


 
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