‘कैलिप्सो’ की नजरों से बच नहीं पाएंगे मरुस्थल की धूल

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पृथ्वी के तापमान में लगातार उतार-चढ़ाव ने मौसम वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा दी है। अब वैज्ञानिक वायुमंडल में मौजूद धूल-कणों के अध्ययन में जुट गए हैं। वे इस बात की जांच करेंगे कि आखिर सहारा मरूस्थल से हर साल वायुंडल में जा रहे ये धूल हमारी जिंदगी और आबोहवा को कैसे प्रभावित करते हैं। इसके लिए वैज्ञानिक अगले तीन साल तक सहारा मरूस्थल से वायुमंडल में पहुंचने वाले करीब 770 मिलियन टन धूल पर फोकस करेंगे। इसके लिए खास कैलिप्सो उपग्रह की मदद ली जाएगी।

हंट्सवील के अलाबामा यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. एस. क्रिस्टोफर ने बताया कि मौसम मॉडल्स बनाने वाले विज्ञानी धूल के प्रभाव और उसके प्रभाव का अध्ययन करेंगे। इसके लिए 5,00,000 डॉलर लागत से बनी क्लाउड-एयरोसोल लिडार एंड इंफ्रारेड पाथफाइंडर सैटलाइट ऑब्जर्वेशन (कैलिप्सो) उपग्रह की मदद ली जाएगी। कैलिप्सो उपग्रह को नासा और फ्रांस के सेंटर नेशनल डीट्यूड्स स्पेटियल्स ने मिलकर बनाया है। कैलिप्सो पृथ्वी को अध्ययन करने वाला उपग्रह है। यह बादल और वायुमंडलीय एयरोसोल्स के प्रभाव को बताएगा। वैज्ञानिक क्रिस्टोफर अपनी रिसर्च में कैलिप्सो के अलावा एक्वा उपग्रह से जानकारी जुटाएंगे।

आंकड़ों के मुताबिक सहारा मरूस्थल से उड़ने वाले धूल में से कुछ भाग पृथ्वी पर वापस आ जाते हैं। इनमें से कुछ हिस्सा अटलांटिक महासागर और दक्षिण अमेरिका के अन्य भागों में हवाओं के साथ पहुंचता है। हाल के दिनों में पृथ्वी की आबोहवा और मौसम में कई अहम परिवर्तन देखने को मिले हैं। इसके कारण सूर्य प्रकाश पृथ्वी नहीं पहुंचकर अंतरिक्ष में लौट जाती है।

क्रिस्टोफर ने बताया कि हमलोग धूल की प्रकृति, वायमंडल पर प्रभाव और ग्लोबल इनर्जी के पारस्परिक रिश्ते का आकलन करेंगे। सामान्यतः धूल अथवा एयरोसोल एक तरह कण है जो वायुमंडल में चारों ओर तैरती रहती है। यह इंसान के धूम्रपान और अन्य प्रदूषणों से भी फैलता है। सहारा को चुनने के पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि पृथ्वी के वायुमंडल में मौजूद धूल-कणों में इसका करीब आधा हिस्सा है।

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