कैसे बने रेगिस्तान?

14 Sep 2011
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”चट्टानों के अध्ययन से यह स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि रेगिस्तान का अस्तित्व करोड़ों वर्षों से है। इस दीर्घकाल में बदलती हुई जलवायु तथा महाद्वीपों के विस्थापन के कारण रेगिस्तान स्वयं भी गतिशील बने रहे।“ - मार्टिन डब्ल्यू होल्डगेट इन ‘डिज़र्टः द एनक्रोचिंग वाइल्डरनेस’

अधिकतर रेगिस्तान व्यापक जलवायु परिवर्तन के कारण बनते हैं। रेगिस्तानीकरण कोई नई परिघटना नहीं है अपितु इसका इतिहास तो बहुत पुराना है। संसार के विशाल रेगिस्तान अनेक प्राकृतिक क्रियाओं से गुजर कर, दीर्घ अंतराल के पश्चात ही निर्मित हुए हैं। रेगिस्तान स्थिर नहीं होते, कभी फैलते हैं तो कभी सिकुड़ते हैं और निश्चित रूप से इन पर मानव का कोई नियंत्रण नहीं है।

रेगिस्तानीकरण एक सीधी लाइन में अथवा दिशा में अपना दायरा नहीं फैलाता तथा इसको मापने की कोई निश्चित विधि भी नहीं है। धरती की उर्वरक क्षमता में ह्रास कोई साधारण व अनायास होने वाली प्रक्रिया नहीं है अपितु एक जटिल प्रक्रिया है। भूमि ह्रास का कोई एक निश्चित कारण भी नहीं है। किसी भी धरती का ह्रास करने में अनेक कारण सहायक हो सकते हैं। विभिन्न स्थानों की भूमि की उवर्रकता के ह्रास की गति भी एक समान नहीं होती है और अनेक स्थानों पर यह जलवायु पर निर्भर करती है। रेगिस्तानीकरण किसी भी क्षेत्र की जलवायु को प्रभावित कर अति शुष्क बना सकता है और वहां की स्थानीय जलवायु में परिवर्तन कर सकने में सहायक हो सकता है।

रेगिस्तान का विस्तार एक अनिश्चित प्रक्रिया है तथा यह भी आवश्यक नहीं कि जहां रेगिस्तानीकरण हो रहा है वहां निकट ही कोई रेगिस्तान उपस्थित हो। यदि लंबे समय तक किसी भी उपजाऊ धरती का प्रबंधन ठीक से नहीं होता है तब चाहे वह स्थान किसी रेगिस्तान से कितना ही दूरस्थ क्यों न हो उसका रेगिस्तानीकरण हो सकता है। रेगिस्तानीकरण के प्रभावों का तुरंत पता करना संभव नहीं है। हमको इस विषय में जानकारी तभी हो पाती है जबकि रेगिस्तानीकरण की प्रक्रिया एक निश्चित क्रियात्मक दौर से गुजर जाए। इसलिए ऐसी कोई विधि नहीं है जिससे कि हमें रेगिस्तानीकरण होने के समय की पारिस्थितिकी अथवा धरती की उर्वरकता की दर का ज्ञान हो सके। रेगिस्तानीकरण से संबंधित अनेक प्रश्न जैसे, रेगिस्तानीकरण की प्रक्रिया क्या भूमंडलीय परिवर्तन का सूचक है, क्या यह स्थाई अथवा अस्थाई है और पुनः यथा स्थिति में परिवर्तन करने योग्य है आदि का समाधान प्राप्त नहीं हो सकता है।

सामान्यतः रेगिस्तान की रचना करने में शुष्क वायु ही मुख्य रूप से जिम्मेदार होती है। यहां नमी का औसत 10 से 20 प्रतिशत तक होता है। रेगिस्तान की रचना के मुख्य कारण निम्न हैं:

• उच्च दाब का क्षेत्र
• ठंडी महासागरीय धाराएं
• महाद्वीपीयता
• वृष्टिछाया

हालांकि रेगिस्तान के निर्माण में इनमें से कोई भी एक कारण ही पर्याप्त नहीं होता है।

उच्च दाब क्षेत्र


पृथ्वी के वायुमंडल में वायु निरंतर रूप से गतिशील रहती है। वायु के बहाव में सूर्य की मुख्य भूमिका होती है। वायु का भूमंडलीय स्तर पर बहाव वायुमंडल को गतिशील करता है जिसके कारण भूमध्यरेखा के निकटवर्ती स्थानों से गर्म वायु ऊंचे स्थानों की और बहती है जबकि ठंडी वायु वापस उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में आ जाती है। अधिकांश अध्रुवीय रेगिस्तान दो व्यापारिक पवनों की पट्टियों में स्थित होते हैं। ये पट्टियां कर्क व मकर रेखा के साथ भूमध्य रेखा से उत्तर तथा दक्षिण में 200 से 300 अक्षांश पर स्थित होती हैं। रेगिस्तान उच्च स्थाई दाब क्षेत्र के कारण उत्पन्न हो पाते हैं।

स्थायी उच्च दाब क्षेत्र के प्रभाव से रेगिस्तान विकसित होते हैंस्थायी उच्च दाब क्षेत्र के प्रभाव से रेगिस्तान विकसित होते हैंपृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने के कारण वायु प्रचंड बल उत्पन्न करती है। भूमध्य रेखा की सीध में पृथ्वी की गति 1676 कि.मी. प्रति घंटा होती है। जबकि ध्रुवीय क्षेत्र में यह गति लगभग नगण्य ही रहती है। भूमध्य रेखा पर गर्म वायु ठंडी होने से पहले उत्तर तथा दक्षिण की ओर फैलती है। हवा ठंडी होने पर, घनीकरण के पश्चात् अपनी नमी उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों को प्रदान कर देती है। इस प्रकार भूमध्य रेखा पर कम वायु दबाव का क्षेत्र बन जाता है। दोंनों उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों यानी कर्क रेखा और मकर रेखा के क्षेत्रों में उच्च दबाव का क्षेत्र निर्मित होता है। ध्रुवों के निकट कम दबाव के दो ठंडे क्षेत्र स्थापित होते हैं। ध्रुवीय क्षेत्रों में उच्च दाब की हवाएं नीचे को उतरती हैं। जैसे ही उच्च दाब के दोनों उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों की धरती पर सघन वायु उतरती है, पूर्वी हवाएं निर्मित होती हैं जो सूखी तथा नमी रहित होती हैं। यह सूखी हवाएं उस क्षेत्र की धरती से नमी सोख कर धरती को अधिक शुष्क बना देती हैं। पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध की पट्टी में कक रेखा के निकटवर्ती क्षेत्र में अनेक रेगिस्तान जैसे चीन का गोबी रेगिस्तान, उत्तरी अफ्रीका का सहारा रेगिस्तान, उत्तरी अमेरिका के दक्षिण-पश्चिम में स्थित रेगिस्तान तथा मध्य पूर्व के अरब तथा ईरानी रेगिस्तान स्थित हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा के निकटवर्ती क्षेत्रों में भी अनेक रेगिस्तान जैसे अर्जेंटाइना का पेटागोनिया रेगिस्तान, दक्षिणी अफ्रीका का कालाहारी रेगिस्तान तथा आस्ट्रेलिया में स्थित ‘विक्टोरिया’ व ‘ग्रेट सेंडी’ रेगिस्तान स्थित हैं।

अधिकतर रेगिस्तान 30 डिग्री उत्तरी और 30 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों के उच्च दाब क्षेत्रों में स्थित हैं। यह क्षेत्र हैडली सेल द्वारा निर्मित हैं जो सूर्य की शक्ति द्वारा वायु के संचरण पर आधारित तंत्रा है। इस क्रिया को इस प्रकार विभिन्न चरणों में समझा जा सकता है।

1. भूमध्य रेखा पर सूर्य (धूप) की सीधी पड़ती किरणों के कारण वायु बहुत अधिक गर्म हो जाती है। इसका अर्थ यह भी है कि कम से कम भू-भाग पर सर्वाधिक विकिरण (रेडिएशन) गिरता है, इसके कारण ताप बढ़ जाता है। जिससे उच्च ताप उत्पन्न होता है।

2. यह गर्म वायु भूमध्यरेखा पर फैलकर, कम दबाव के क्षेत्र का निर्माण करती है।

3. यह कम दबाव का क्षेत्र, नमीयुक्त वायुराशियों (या वायुसंहतियों) अथवा वर्षा मेघों को अपनी ओर खींचता है। यह भूमध्य क्षेत्रीय वायुराशियां जब ध्रुवों की ओर अग्रसर होती हैं तब जैसे ही यह ऊपर की ओर उठती हैं तो यह ठंडी होने लगती हैं, इनके लिए अधिक नमी को साथ रखना संभव नहीं हो पाता। जिससे ये वर्षा के रूप में भूमध्य रेखा के निकटवर्ती क्षेत्र में बरस पड़ती हैं। यही कारण है कि भूमध्य रेखा के निकटवर्ती क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है।

4. जैसे ही यह वायु भूमध्य रेखा से दूर जाती हैं, ठंडी हो कर अन्य भू-भागों में सतह के निकट बहने लगती है।

5. उच्च वायुदाब और बढ़ती शुष्कता के परिणामस्वरूप वायुराशियां सतह के निकट आती हैं।

6. 30 डिग्री उत्तरी और 30 डिग्री दक्षिणी अक्षांशों में वायु सतह की नमी को सोख लेती है क्योंकि इन क्षेत्रों का उच्च तापमान नमी सोखने में सहायक होता है।

ठंडी महासागरीय धाराएं


भूमंडलीय स्तर पर समुद्र का तापमान, नमी को सोखने की क्षमता तथा जल धाराओं को प्रभावित करता है। ध्रुवीय क्षेत्र में रेगिस्तान से दूर, समुद्र की ठंडी लहरें भूमध्यरेखा की ओर अग्रसर होती हैं और रास्ते में महाद्वीप के किनारों पर जा टकराती हैं। समुद्र की गहराई से ऊपर आता ठंडा जल इन धाराओं को और अधिक ठंडा करता रहता है। इस प्रकार यह ठंडी जल धाराएं द्वीप के ऊपर की वायु को अपनी नमी समुद्र में छोड़ने को विवश कर सकती है इसके परिणामस्वरूप ठंडी जल धाराएं तटीय क्षेत्र की आर्द्र हवा को तीव्रता से शुष्क बना देती है। ठंडी महासागरीय धाराओं से बने रेगिस्तान को तटीय रेगिस्तान कहते हैं।

तटीय रेगिस्तान महाद्वीप के पश्चिमी किनारों पर विशेष रूप से कर्क रेखा व मकर रेखा के निकटवर्ती क्षेत्रों में बनते हैं। इनकी रचना तट के सामानांतर चलने वाली ठंडी महासागरीय धाराओं पर निर्भर करती है। तटीय रेगिस्तान अन्य रेगिस्तानों की तुलना में कम स्थाई होते हैं। ठंडी धाराओं के कारण शीत ऋतु में तटीय रेगिस्तान कोहरे से ढक जाते हैं। जिससे सूर्य-विकरण की क्रिया सीमित हो जाती है। भूमि, महासागरों तथा पर्यावरण तंत्रा के मध्य स्थित होने के कारण तटीय रेगिस्तान तुलनात्मक रूप से बहुत जटिल पारिस्थितिकी तंत्रा होते हैं। पृथ्वी का सबसे शुष्क रेगिस्तान माने जाने वाला अटाकामा रेगिस्तान तटीय रेगिस्तान है।

महाद्वीपीयता (कंटिनेंटेलिटी)


यदि कोई क्षेत्र किसी महाद्वीप के मध्य में स्थित हो तो वहां समुद्र से आने वाली नमीयुक्त हवाएं कम ही पहुंच पाती हैं। इस परिघटना को महाद्वीपीयता कहते हें। महाद्वीपीयता के कारण समुद्रों से दूरस्थ क्षेत्रों में उच्च तापमान होता है और बारिश भी होती है। इस क्षेत्र में सागरीय ताप परिवर्ती प्रभाव कम होता है, जिससे यहां वार्षिक और प्रतिदिन के निम्नतम और उच्चतम तापमान में बहुत अंतर होता है। मध्य एशिया के रेगिस्तानों के निर्माण में महाद्वीपीयता की महत्वपूर्ण भूमिका है।

वृष्टिछाया रेगिस्तान


ऊंची पर्वत श्रृंखलाएं जिनके एक ओर तो नमी युक्त घने बादलों का अम्बार होता है तो वहीं पर्वत के दूसरी ओर अनुवात या रक्षित स्थान की तरफ वायु शुष्क रहती है। पर्वतों की ओर हवा का वृष्टिछाया क्षेत्रवृष्टिछाया क्षेत्रबहाव अपनी नमी खो देता है। जिसके फलस्वरूप शुष्क वायु शिखर में दूसरी ओर के ढलानों पर बहने के साथ मिट्टी की नमी सोख लेती है तथा धरती को शुष्क बना देती है। इस प्रकार वहां रेगिस्तान बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। उत्तरी अमेरीका के पश्चिमी क्षेत्र में विशेष रूप से पश्चिमी संयुक्त राष्ट्र में स्थित रॉकी पर्वत वाले रेगिस्तान के निर्माण में वृष्टिछाया परिघटना की भूमिका महत्वपूर्ण है।

ध्रुवीय रेगिस्तान


ध्रुवीय रेगिस्तान में वार्षिक वर्षा 250 मि.मी. से कम ही होती है तथा यहां ग्रीष्म ऋतु के सबसे गर्म महीने का औसत तापमान 100 सेल्सियस से कम ही रहता हैं। ये रेगिस्तान धरती के 50 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्र में स्थित है और अधिकतर यह सपाट ध्रुवीय रेगिस्तान में रेतीले टीले नहीं होते हैंध्रुवीय रेगिस्तान में रेतीले टीले नहीं होते हैंभूमि है जो पत्थर के छोटे टुकड़ों से ढकी रहती है। रेतीले टीले यहां नहीं होते अपितु उन भागों में जहां जल का अभाव अधिक है वहां बर्फ के टीले अवश्य दिखाई देते है। यहां तापमान में तेजी से बदलाव होने के कारण यहां का तापमान जमाव बिंदु से भी कम हो जाता है। पिघलती हुई बर्फ (फीज़ थ्रो) के बड़े-बड़े लगभग 5 मीटर व्यास के आकार की संरचनाएं धरती पर बन जाती हैं।

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