काली किनारे के गांवों में बांझपन का खतरा

3 Dec 2019
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काली किनारे के गांवों में बांझपन का खतरा
काली किनारे के गांवों में बांझपन का खतरा

काली नदी में प्रदूषण का आलम यह है कि मेरठ में इसके निकट के उन गांवों में बांझपन का खतरा बढ़ गया है, जहां प्रदूषण का स्तर काफी अधिक है। काली में मौजूद हैवी मेटल्स न सिर्फ हार्मोन अवरोधक बन रहे हैं, बल्कि इससे शुक्राणु घटने से लेकर डीएनए में विकार तक दिखने लगा है।

कुछ मरीजों के सैंपल पर शोध के बाद वरिष्ठ एंड्रोलॉजिस्ट डॉ. सुनील जिंदल का कहना है कि केवल पुरुष ही नहीं, कम उम्र की महिलाओं में भी जल जनित प्रदूषण से गर्भाशय की समस्याएं पैदा हो रही हैं।डॉ. जिंदल का कहना है कि दो-तीन वर्ष में काली नदी किनारे के गांवों के लोग बच्चे न होने की शिकायत बढ़ी है। इनकी चिकित्सकीय जांच में पाया गया कि यहां के पुरुषों में हार्मोस अवरोधक पैदा हो गए है तथा शुक्राणुओं की संख्या घट गई है। जो हैं, उनकी ताकत भी क्षीण हो गई थी। इनकी वजहों के बारे में जब जानने की कोशिश की गई तो पता चला कि काली नदी के पानी में लोहा, शीशा, क्रोमियम की अत्यधिक मात्र में मिल रहा है, जिससे यह दिक्कतें बढ़ी हैं।  महिलाओं के मामले में पाया गया कि भारी तत्वों की वजह से उनके गर्भाशय में अंडे डेवलप नहीं हो पा रहे हैं और कई बार गर्भपात जैसी दिक्कतें पेश आती हैं। दरअसल, चिकित्सकों का कहना है कि शुक्राणुओं में साइटोप्लाज्म की मात्र काफी कम होती है जिसकी वजह से बाहरी तत्व (हैवी मेटल्स) उन्हें आघात पहुंचाते हैं। बार-बार के आघात से डीएनए खराब होने का खतरा बढ़ जाता।

दूषित शुक्राणुओं का शोध अमेरिका में : डॉ. सुनील जिंदल का कहना है कि डीएनए विखंडन की समस्या के निदान की दिशा में अमेरिका के ओहिया स्थित क्लीवनेंड क्लिनिक, सेंटर फॉर मेल रिप्रोडक्शन के डॉ. अशोक अग्रवाल के साथ मिलकर दूषित शुक्राणुओं के प्रोटियोनॉमिक्स और डीएनए की जांच कर पता लगाया जाएगा कि शुक्राणु के कौन-कौन से प्रोटीन खराब हो रहे हैं, ताकि उसका सटीक उपचार किया जा सके।

 

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