कांठा नदी को जीवित करने में जुटे शामली के मुस्तकीम

20 Dec 2019
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कांठा, क्रिकेटर और एक लोटा जल
कांठा, क्रिकेटर और एक लोटा जल

उम्र 30 साल। रंग सांवला। निवास स्थान - गांव रामड़ा, तहसील कैराना, ज़िला शामली, राज्य उत्तर प्रदेश। भावुक इतना कि बात-बात पर रो पड़ता है। ईमानदार इतना कि खुद कह उठता है, '' उस बखत तक मैं यूँ भी नी जानता था कि एसडीएम बड़ा होवे है कि तहसीलदार।'' कहने वाले उसे ग़रीब कहते हैं; क्योंकि वह एक मल्लाह का बेटा है; क्योंकि पैसे की कमी के कारण कभी उसे अपनी पढ़ाई आठवीं में ही रोकनी पढ़ी। उसे अपनी रोज़ी कमाने के लिए, पढ़ने की उम्र में कई काम करने पडे़। उसने आइसक्रीम बेची; अख़बार बेचे। वह अमीर है; क्योंकि उसका हौसला दाद देने लायक है। हौसला, कभी हालात का मोहताज नहीं होता। वह भी नहीं है। इसी हौसले के बूते आज वह सामाजिक कार्य की पढ़ाई में भी ग्रेजुएट है और नदी के ज़मीनी कार्य में भी। उस पर झूठे मुक़दमे हुए। हतोत्साहित करने वाले भी हज़ारों मिले। किंतु वह भलीभांति जानता है कि नदी, मल्लाह की जिंदगी है। नदी सूख जाए, तो मल्लाह की जिंदगी का सुख सूखते क्या वक्त लगता है! नदी की जिंदगी में एक मल्लाह के सुख का अक्स देखते-देखते अब उसे नदियों से मोहब्बत हो गई है। उसका नदी प्रेम, उसके लिए खुदा की इबादत जैसा हो गया है। वह कहता है - ''तमाम मखलूक, खुदा की बनाई हुई है। नदियों में आई गंदगी, उनकी जान ले रही है। नदियों का सूख जाना, और भी तक़लीफदेह है। मलीन नदियों को निर्मल करके, हम करोड़ों जिंदगिया बचा सकते हैं।' वह, नदियों का दोस्त है। कांठा नदी को पानीदार बनाने का उसका प्रयास, उसकी दोस्ती का पुख्ता प्रमाण है। वह मुस्तकीम है। वर्ष - 2019 के प्रतिष्ठित भगीरथ प्रयास सम्मान से नवाजी गई अब तक की सबसे कम उम्र की शख्सियत।

भगीरथ प्रयास सम्मान -इण्डियन रिवर फोरम द्वारा वर्ष 2014 में नियोजित एक ऐसा सम्मान, जो कि प्रति वर्ष नदी पुनर्जीवन के एक ऐसे प्रयास को दिया जाता है, जो कम प्रचारित; किंतु अधिक प्रेरक हो। इस वर्ष 2019 में इस सम्मान के प्राप्तकर्ता मुस्तकीम को 60 हज़ार रुपए की धनराशि, शाल और सम्मान चिन्ह भेंट किया गया; डब्लयूडब्लयूएफ (WWF) ने नदी कार्य के लिए आर्थिक सहयोग का वचन किया, सो अलग। कांठा, यमुना नदी की सहायक धारा है। इसकी लंबाई लगभग 100 किलोमीटर है। इसका जन्म उत्तर प्रदेश के ज़िला सहारनपुर, ब्लॉक नाकुर, गांव नया बांस के एक तालाब से हुआ है। ज़िला मुज़फ्फरनगर में यमुना नदी और पूर्वी यमुना नहर के बीच के इलाके से सफर करती कांठा जहां जाकर यमुना से संगम करती है, वह स्थान है - ज़िला शामली के कैराना ब्लॉक का गांव मावी।

तलहटी का सिक्का, पानी के ऊपर से चमके। घड़ियाल को देख, लोग किनारे लग जायें। किनारे पर खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूज की खेती ऐसी कि रोजी की बेफिक्री खुद-ब-खुद हासिल हो जाए। पांच दशक पहले तक कांठा, एक ऐसी ही नदी थी। कांठा के पास अपना पानी था। इसी बीच नहर आई। नहर और नलकूप आधारित सिंचाई ने कांठा का पेट खाली कर दिया। शामली के पांचों ज़ोन, डार्क ज़ोन हो गए। पेट खाली हो, तो नदी की सतह भूरी हो जाती है। कांठा भी भूरी हो गई। लड़कों ने भूरी कांठा को क्रिकेट का मैदान बना लिया। लालची जमीर वालों ने भूरी कांठा की ज़मीन कब्जा ली। कभी बारहमास लहराते पानी वाली ज़मीन, बारहमासी खेती वाली ज़मीन में तब्दील हो गई। कांठा, महज बरसाती नाला बनकर रह गई। गांवों के खेतिहर, दूसरा आसरा खोजने को मज़बूर हुए। बीमार पानी, बीमारी ले आया। रामड़ा में भी काला पीलिया फैला। कोई घर नहीं बचा। फिर भी कोई घर नहीं जागा। क्रिकेट खेलते लड़के जागे भी तो सिर्फ आते-जाते सरकारी साहबों से पूछने तक - ''म्हारे कांठे में पानी कद आवेगा ?'' एक दिन यमुना नदी का एक दोस्त, इस इलाके में आया; भीम सिंह बिष्ट - यमुना जिये अभियान और वर्तमान में सैड्रप से जुडे एक बेहद सरल, किंतु बेहद समर्पित अध्ययनकर्ता। भीम जी ने कहा कि कांठे में पानी तब आयेगा, जब तुम कुछ करोगे। मुस्तकीम को यह बात जंच गई। वर्ष 2010 का वह दिन और आज का दिन मुस्तकीम, कांठा के हो गए।

मुस्तकीम ने यमुना ग्राम सेवा समिति का सदस्य बनकर कांठा को जाना। क्रिकेट के अपने दोस्तों को नदी का दोस्त बनाया। मुस्तकीम ने गागर से सागर की बात सुनी थी। मुस्तकीम ने इस बात को लोगों को कांठा से जोड़ने वाला औजार बनाया। मुस्तकीम ने 'एक लोटा जल दान' नदी अभियान चलाया। गांव-गांव जाकर कांठा पुनर्जीवन के फायदे बताए। ज़िम्मेदारी और हक़दारी के गठजोड़ को आगे लाने के लिए कांठा पर सीधे निर्भर केवट-मल्लाह समाज की एकता समिति बनाई। प्रशासन को जगाया। परिदों को प्रिय मामूर झील की बदहाली का आईना दिखाया। स्कूली बच्चों को पौधारोपण में लगाया। नदी में भर आई गाद पर फावड़ा चलाया। प्रशासन और समाज के सहयोग से नदी के बीच दो कच्चे बाँध बनाये। कुओं और तालाबों को कब्जामुक्त करने की पैरवी की। अवैध खनन के खिलाफ आवाज़ उठाई। बाढ़ के दिनों में यमुना से कांठा में आने वाले बैकवाटर को रोक रहे रेगुलेटर को खुलवाया। इस पूरी जद्दोजहद में अखबार बांटने के साथ-साथ रिपोर्टरों को इलाके की खबर देने का रिश्ता काम आया।

शामली के पत्रकार उमर शेख, चिट्ठी-पत्री लिखने जैसे मामूली काम से लेकर तक़नीकी समझ देने व आवाज़ को आवाम तक पहुंचाने में मीडिया सहयोग दिलाने वाले मुख्य सहयोगी सिद्ध हुए, तो प्रशासन भी सहयोगी हो गया। शामली ज़िला प्रशासन ने 'गार्डियन ऑफ़ रिवर सम्मान - 2017' सम्मानित किया। जुलाई - 2019 में काम को पुनः सराहा। सराहना, घमण्ड लाती है। किन्तु मुस्तकीम अभी भी विनम्र हैं। वह गांव-गांव घूमकर कब्जा हुए कुओं-तालाबों की सूची बनाने में लगे हैं। वर्षाजल को संचित करने के ढांचे बनाने के लिए सहयोग जुटा रहे हैं। कहते हैं - ''इनकी कब्जा मुक्ति के लिए पहले लोगों से हाथ जोडूंगा। उसके बाद प्रशासन के पास जाऊंगा।'' मुस्तकीम नहीं जानते कि नदी पुनर्जीवन का सही मॉडल क्या है और ग़ल़त क्या। अतः हो सकता है कि कांठा पुनर्जीवन के उनके प्रयासों की समग्रता पर कोई सवाल उठाए, किंतु कांठा पुनर्जीवन की महत्ता पर भला कौन सवाल उठा सकता है ? हथिनीकुण्ड बैराज से वजीराबाद बैराज के बीच की दूरी में यमुना से जल सिर्फ लिया ही जाता है; देने के नाम पर करनाल में धनुआ और पानीपत में नाला नंबर दो, यमुना में मल और औद्योगिक अवजल के अलावा कुछ नहीं मिलाते। इस बीच के सफर में मिलने वाली तीसरी नदी, कांठा ही है। इसलिए भी कांठा पुनर्जीवन प्रयास की इस दास्तान का अधिक महत्व है। कांठा, पुनः पानीदार हुई, तो संभव है कि दिल्ली की यमुना की कुछ सांसें भी लौट आयी।

 

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