कबाड़ से कारोबार


तकनीक के बढ़ते उपयोग के कारण ई-वेस्ट की बढ़ोत्तरी चिन्ता का विषय है। मोबाइल फोन, कम्प्यूटर या दूसरे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स का मार्केट बढ़ने के साथ ही रिसाइकिलिंग के कारोबार में काफी सम्भावनाएँ हैं। आइए जानें, जरूरी ट्रेनिंग लेकर कैसे बढ़ें इस कारोबार की राह पर...

प्लास्टिक, पॉल्यूशन बढ़ाते हैं, ड्रेनेज को ब्लॉक करते हैं, उन्हें हम रिसाइकिल करके एक तो यूटीलिटी प्रोडक्ट बना सकते हैं। दूसरे प्लॉस्टिक को रिसाइकिल करके ग्रेन्यूल बना सकते हैं, जो फिर से प्लॉस्टिक की चीजें बनाने में काम आ सकती है। इस वेस्ट प्लॉस्टिक का तीसरा उपयोग यह है कि इससे फ्यूल/गैस बना सकते हैं। जो इंडस्ट्रियल कार्य के लिये इस्तेमाल हो सकता है। इसी तरह, ई-वेस्ट में मेटल पार्ट को सेग्रीगेट (अलग) कर सकते हैं। चूँकि अपने देश में अभी सेग्रीगेशन का काम थोड़ा कमजोर है, इसलिये सरकार भी इस पर काफी जोर दे रही है। ई-वेस्ट यानी इलेक्ट्रॉनिक कचरा। इस कचरे के अन्तर्गत पुराने खराब हो चुके कम्प्यूटर, मोबाइल फोन, टीवी, फ्रिज या अन्य इलेक्ट्रॉनिक प्रोडक्ट्स आते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का यह बाजार लगातार बढ़ ही रहा है। इसकी वजह से पुराने बेकार हो चुके इलेक्ट्रॉनिक कचरे की तादाद भी तेजी से बढ़ रही है।

लेकिन ई-वेस्ट से कई उपयोगी चीजें फिर से तैयार हो सकती हैं। इसके लिये ई-वेस्ट मैनेजमेंट को अपनाने की जरूरत है। इसमें सबसे पहली चीज जो हम कर सकते हैं वह यह कि प्लॉस्टिक को अलग करके इसकी रिसाइकिलिंग कर सकते हैं। रिसाइकिल करने के बाद इससे कोई ड्यूरेबल (उपयोगी) चीजें बना सकते हैं। उससे दोबारा कैरी बैग बना सकते हैं। पैकेजिंग मैटीरियल तैयार कर सकते हैं।

खिलौने और ऑटोमोबाइल के पार्ट्स बना सकते हैं। यानी उन प्रोडक्ट्स को जो हमारे काम के नहीं हैं, कचरा हैं, पॉल्यूशन बढ़ाते हैं, ड्रेनेज को ब्लॉक करते हैं, उन्हें हम रिसाइकिल करके एक तो यूटीलिटी प्रोडक्ट बना सकते हैं। दूसरे प्लॉस्टिक को रिसाइकिल करके ग्रेन्यूल (प्लास्टिक का दाना) बना सकते हैं, जो फिर से प्लॉस्टिक की चीजें बनाने में काम आ सकती है।

इस वेस्ट प्लॉस्टिक का तीसरा उपयोग यह है कि इससे फ्यूल/गैस बना सकते हैं। जो इंडस्ट्रियल कार्य के लिये इस्तेमाल हो सकता है। इसी तरह, ई-वेस्ट में मेटल पार्ट को सेग्रीगेट (अलग) कर सकते हैं। चूँकि अपने देश में अभी सेग्रीगेशन का काम थोड़ा कमजोर है, इसलिये सरकार भी इस पर काफी जोर दे रही है। ऐसे में सम्भावनाओं के साथ-साथ इस कारोबार में 15 से 20 प्रतिशत अच्छी प्रॉफिट मार्जिन भी है।

कारोबारी सम्भावनाएँ


स्टडी रिपोर्टस की मानें, तो 2020 तक ई-वेस्ट के कारोबार में करीब 30 फीसदी और वृद्धि देखने को मिल सकती है। इस समय देश में ई-वेस्ट लगभग 22 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। देश में हर साल लगभग कुल आठ लाख टन ई-वेस्ट पैदा हो रहा है। भारत इस समय विश्व में पाँचवा सबसे बड़ा ई-वेस्ट उत्पादक देश बन चुका है, जहाँ औसतन 2.7 मिलियन (27 लाख) टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा हर साल पैदा हो रहा है। साथ में, देश में पिछले कुछ सालों से इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का इस्तेमाल भी लगातार तेजी से बढ़ रहा है। लोग इस्तेमाल करने के साथ-साथ इन प्रोडक्ट्स को जल्दी-जल्दी बदल भी रहे हैं। जो बाद में या तो घरों में बेकार पड़े रहते हैं या उन्हें फेंक दिया जाता है, जो ई-वेस्ट में तब्दील हो रहे हैं। जानकारों की मानें, तो ई-वेस्ट पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिये खतरनाक है। ऐसे में सरकारों के सामने भी अब ई-वेस्ट मैनेजमेंट ही आखिरी उपाय रह गया है। ऐसोचैम के अनुसार, अभी कुल ई-वेस्ट का सिर्फ डेढ़ से दो फीसदी हिस्सा ही फार्मल तरीके रिसाइकिल हो पा रहा है। यही वजह है कि सरकारें भी इस कारोबार को प्रोत्साहित कर रहीं हैं।

डिमांडिंग फील्ड


रिसाइकिल प्लांट : यह प्लांट लगाने के लिये कम-से-कम 25 से 30 लाख रुपए चाहिए। इसमें इतनी ज्यादा लागत इसलिये आती है, क्योंकि मशीनें चाहिए, जगह चाहिए। यह जगह भी करीब 300 गज की होनी चाहिए। साथ में छोटे लेवल पर काम शुरु करने के लिये कम-से-कम पाँच लोग भी चाहिए, जो ट्रेंड होने चाहिए। बहरहाल, ई-वेस्ट का यह कारोबार अभी शहरी क्षेत्रों में ही अच्छा चल सकता है। नगर-कस्बों में यह प्लांट नहीं चल सकता। क्योंकि शहरों में ही पैक्ड फूड, इलेक्ट्रॉनिक आइटम, कमोडिटी या इंडस्ट्रियल आइटम ज्यादा होते हैं। जहाँ से ई-वेस्ट मिलने में आपको आसानी होगी। अगर छोटे शहरों या कस्बों में ऐसा कोई प्लांट लगाना चाहते हैं, तो एग्रो बेस्ड प्लांट लगाना ठीक रहेगा।

ई-वेस्ट सेग्रीगेशन : ई-वेस्ट में ही दूसरा विकल्प यह है कि आप सेग्रीगेशन यूनिट लगा सकते हैं, जहाँ आस-पास के एरिया से ई-वेस्ट को इकट्ठा करके उससे प्लास्टिक, मेटल जैसे कम्पोनेंट को अलग-अलग करके उसे दूसरी कम्पनियों में सप्लाई करने का कारोबार कर सकते हैं। सबसे अच्छी बात है कि इसे छोटे-बड़े शहरों में कहीं भी शुरू किया जा सकता है। इसके लिये न तो बड़ी-बड़ी मशीनें खरीदने की आवश्यकता है और न ही बहुत अधिक पूँजी चाहिए। सिर्फ ई-वेस्ट के कलेक्शन के लिये एक गोदाम चाहिए। इसके अलावा, कुछ लोग चाहिए, जो वेस्ट के कलेक्शन और सेग्रीगेशन का काम देखेंगे।

ट्रेनिंग लेकर आएँ


इस फील्ड में बिना ट्रेनिंग लिये नहीं आना चाहिए। इसलिये सुझाव यही है कि पहले इसकी कहीं से सही ढंग से ट्रेनिंग ले लें, फिर इसमें आएँ। साथ में कारोबार का लागत का खर्च भी देख लें, इसका ब्रेकअप निकाल लें। इसके अलावा, प्लांट के लिये वेस्ट मैटीरियल कहाँ मिलेगा, यह सब भी पहले से पता होना जरूरी है। दिल्ली स्थित भारतीय पैकेजिंग संस्थान लोगों को यह ट्रेनिंग कराता है। यह हफ्ते भर की ट्रेनिंग होती है, जिसमें लोगों को यह बताया जाता है कि इस कारोबार की मार्केट वैल्यू क्या है। इसमें कौन सी टेक्नोलॉजी लगेगी। क्या मशीन लगेगी। यह मशीन लगाने से क्या फायदा होगा। इसमें कितनी इनकम हो सकती है। फंडिंग कहाँ-कहाँ से हो सकती है...इत्यादि। इस एक हफ्ते की ट्रेनिंग से आपको इतनी जानकारी हो जाएगी कि अपना प्रोजेक्ट लगा सकते हैं।

अनुदान राशि


वेस्ट मैनेजमेंट फिल्ड में अभी सरकार की ओर से कई पायलट प्रोजेक्ट चलाए जा रहे हैं। कारोबार शुरू करने के लिये लोगों को अनुदान राशि भी उपलब्ध कराई जा रही है। सरकार स्टार्टअप में भी फंडिंग कर रही है। एनएचआइसी से भी कॉन्ट्रैक्ट कर सकते हैं। यह संस्था भी फंडिंग करती है। बैंकों से भी सम्पर्क कर सकते हैं।

1- 8 लाख टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा हो रहा है देश में हर साल
2- 2020 तक ई-कचरे में करीब 18 गुना का इजाफा होगा
3- 15-20 प्रतिशत तक नेट प्रॉफिट है हर महीने रिसाइकिलिंग के इस कारोबार में

सोशल एंटरप्रेन्योर बनने का मौका
ई-वेस्ट मैंनेजमेंट में ब्राइट फ्यूचर है। यह एक तरह से सोशल एंटरप्रेन्योरशिप भी है। यानी आने वाले दिनों में हम ऐसा बिजनेस करने जा रहे हैं, जिससे पॉल्यूशन भी कम होगा। वैसे भी, पॉल्यूशन आज देश के सामने सबसे बड़ा मसला है। ऐसे में अगर आप इस फील्ड में आते हैं, तो इससे अपने साथ-साथ समाज का भी भला होगा। इस कारोबार में आने के लिये बहुत अधिक पढ़ा-लिखा होना भी आवश्यक नहीं है। बस, आपके अन्दर बिजनेस की समझ होना जरूरी है, यानी आपमें बिजनेस चलाने की ललक होनी चाहिए। अगर आपमें यह औद्योगिक समझ है, तो आराम से यह कारोबार चला सकते हैं। इसके लिये कतई जरूरी नहीं कि आप डॉक्टर-इंजीनियर ही हों...डॉ. तनवीर आलम, ज्वाइंट डायरेक्टर, भारतीय पैकेजिंग संस्थान, दिल्ली


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