केन-बेतवा लिंक, मंजिल अभी दूर है

24 Sep 2018
0 mins read
केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना
केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना

केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना (फोटो साभार - स्क्रॉल)सुखाड़ प्रभावित बुन्देलखण्ड इलाके में सिंचाई और पीने के लिये पानी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से तैयार की गई केन्द्र सरकार की बहु-प्रतीक्षित केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना एक बार फिर चर्चा में है। खबर है कि इस योजना के कार्यान्वयन में आ रही मुख्य बाधा का हल ढूँढ लिया गया है। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारें इस परियोजना को लेकर समझौते के लिये तैयार हो गई हैं और आने वाले कुछ ही दिनों में इसकी आधिकारिक घोषणा कर दी जाएगी।

हालांकि इस योजना के कार्यान्वयन सम्बन्धी कई अड़चने हैं। सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल इम्पावर्ड कमिटी (central empowered committee) के पास और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (national green tribunal) में यह मामला लम्बित है। इसके साथ ही इसे अभी तक फॉरेस्ट क्लीरेंस नहीं मिला है।

यह परियोजना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में तैयार की गई ‘नदी जोड़ो योजना’ का ही हिस्सा है। इस योजना के तहत देश की तीस प्रमुख नदियों को जोड़े जाने की योजना है जिनमें 14 हिमालय क्षेत्र और 16 प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ शामिल हैं।

इस योजना के अनुसार 30 नहरों के साथ ही 3000 जलाशयों और 34,000 मेगावाट क्षमता वाली विभिन्न जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण कराया जाना है। इसके अतिरिक्त इसके पूरा होने पर 87 मिलियन हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराई जा सकेगी। केन-बेतवा लिंक परियोजना इस वृहद नदी जोड़ो योजना की ही पहली कड़ी है।

गौरतलब है कि सिंचाई की व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिये ब्रिटिश काल में ही नदियों को जोड़ने की योजना बनाई गई थी। हालांकि उस समय औपनिवेशिक सत्ता का उद्देश्य था ज्यादा-से-ज्यादा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन। ऐसा इसलिये था कि उस समय भी भारतीय अर्थव्यवथा की रीढ़ कृषि ही थी और फसलों पर लगान की दर काफी ऊँची थी।

इसी योजना के तहत ब्रिटिश शासन द्वारा गंगा नदी पर नहर का निर्माण कराया गया था जिसका भारत के तत्कालीन राजा- महाराजाओं और समाज के अग्रणी लोगों ने पुरजोर विरोध किया था। विरोध को मुखर बनाने के लिये 1916 में हरिद्वार में एक सभा का भी आयोजन किया गया था।

इसके बाद इस योजना को 1982 में तत्कालीन सरकार के द्वारा फिर से पुनर्जीवित किया गया। इसके लिये इसी वर्ष नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी (National Water Development Agency) का गठन किया गया। इसे ही नदियों को जोड़ने की योजना तैयार करने का जिम्मा दिया गया। फिर कई वर्षों तक यह मामला ठंडे बस्ते में रहा और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार ने इसे आगे बढ़ाया। अब फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में एक बार फिर इस योजना को लेकर हलचल शुरू हो गई है।

केन नदी मध्य प्रदेश स्थित कैमूर की पहाड़ी से निकलती है और 427 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद उत्तर प्रदेश के बांदा में यमुना में मिल जाती है। वहीं बेतवा मध्य प्रदेश के रायसेन जिले से निकलती है और 576 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में यमुना में मिल जाती है।

इस प्रोजेक्ट को पूरा होने पर मध्य प्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़ और पन्ना जिले के 3.96 लाख हेक्टेयर और उत्तर प्रदेश के महोबा, बांदा और झाँसी जिले के 2.65 लाख हेक्टेयर हिस्से पर सिंचाई की व्यवस्था उपलब्ध हो सकेगी। ये सभी जिले बुन्देलखण्ड क्षेत्र के हैं जो सूखा प्रभावित क्षेत्र हैं। इसके अन्तर्गत केन नदी का अतिरिक्त पानी 230 किलोमीटर लम्बी नहर के माध्यम से बेतवा नदी में डाला जाना है।

इस परियोजना को धरातल पर लाने के लिये इससे जुड़े राज्यों, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच 2005 में ही समझौता हुआ था लेकिन विभिन्न अड़चनों के कारण इसे अब तक नहीं शुरू किया जा सका है। जिनमें पन्ना टाइगर रिजर्व, पर्यावरण मंजूरी, पारिस्थितिकी को होने वाले नुकसान से जुड़े मुद्दे, राज्यों के बीच विवाद, फसलों के वर्तमान पैटर्न पर पड़ने वाला प्रभाव आदि शामिल हैं। अब यह बताया जा रहा है कि दोनों राज्यों के बीच जल्द ही नए सिरे से एमओयू होने वाला है।

विवाद की मुख्य वजह मध्य प्रदेश द्वारा योजना के दोनों फेजों को एक साथ जोड़े जाने की माँग और उत्तर प्रदेश द्वारा गैर वर्षा काल यानि खरीफ की फसल के लिये अधिक जल की माँग थी। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच नदियों को जोड़ने के लिये हुए पुराने समझौते के मुताबिक मध्य प्रदेश को 2650 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) और उत्तर प्रदेश को 1700 एमसीएम पानी दिया जाना था।

लेकिन उत्तर प्रदेश, खरीफ फसल के लिये 935 एमसीएम अतिरिक्त पानी माँग रहा है जिसे मध्य प्रदेश की सरकार मानने से इनकार कर रही है। मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश को इसके लिये 750 एमसीएम से ज्यादा पानी नहीं देना चाह रहा है। परन्तु केन्द्र सरकार की मध्यस्थता के बाद विषय पर भी दोनों राज्यों में सहमति बन गई है।

इसके अलावा पानी के बँटवारे सम्बन्धी इस विवाद के बाद मध्य प्रदेश की सरकार ने केन्द्र से इस परियोजना के दोनों फेजों को एक साथ जोड़ देने की माँग की थी। मध्य प्रदेश सरकार की माँग थी कि कोथा बैराज, लोअर ओर्र और बीना कॉम्प्लेक्स जैसी द्वितीय फेज की स्थानीय परियोजनाओं को पहले फेज में ही जोड़ दिया जाये।

मध्य प्रदेश की इस माँग को स्वीकार करते हुए केन्द्र सरकार दोनों ही फेजों को एक साथ जोड़ने पर अपनी सहमति जता दी है। इस तरह इस योजना पर कुल 26,651 करोड़ रुपए की लागत आने का अनुमान है। यह लागत वित्तीय वर्ष 2015-16 के मूल्यों पर निर्धारित की गई है।

हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल से बात करते हुए साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम्स, रिवर्स एंड पीपल (south asia network on dams, rivers and people) हिमांशु ठक्कर ने कहा कि नितिन गडकरी ने इस प्रोजेक्ट को जल्द शुरू करने की बात पिछले सितम्बर में ही कहा था लेकिन अब तक कुछ नहीं हो सका। उन्होंनेे आगे बताया कि ऐसा किया जाना अभी सम्भव नहीं दिखता क्योंकि कई ऐसी आपत्तियाँ हैं जो कोर्ट में विचाराधीन हैं।

केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना के सन्दर्भ में एक अन्य मुख्य आपत्ति थी पन्ना टाइगर रिजर्व के 5500 हेक्टेयर से ज्यादा हिस्से का योजना क्षेत्र में आना। लेकिन नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ (national board for wild life) ने सशर्त इस पर अपनी सहमति दे दी है।

बोर्ड के मुताबिक इस योजना के अन्तर्गत आने वाले जमीन के हिस्से की पूर्ति सरकार को करनी होगी। सरकार ने बोर्ड के इस शर्त का पालन करते हुए नौरादेही, रानी, दुर्गावती और रानीपुर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को पन्ना टाइगर रिजर्व का हिस्सा बनाने पर अपनी सहमति दे दी है। इसे टाइगर रिजर्व का बफर एरिया घोषित किया जाएगा।

पन्ना टाइगर रिजर्व क्षेत्र में ही 73 मेगावाट क्षमता वाली प्रस्तावित डवढ़न जलविद्युत प्रोजेक्ट को लेकर अभी भी आपत्ति उठाई जा रही है। कहा जा रहा है कि यह प्रोजेक्ट इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा। यह आपत्ति एक्सपर्ट अप्रेजल कमिटी (Expert Appraisal committee) द्वारा भी उठाई गई थी लेकिन 30 दिसम्बर 2016 को उसने इस प्रोजेक्ट के लिये अपनी स्वीकृति दे दी थी।

लेकिन यह मामला सुप्रीम कोर्ट चला गया था और पन्ना टाइगर रिजर्व पर इस प्रोजेक्ट से पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाने के लिये कोर्ट ने सेंट्रल इम्पावर्ड कमिटी (central empowered commitee) का गठन किया था। यह मामला अभी भी इसके पास लम्बित है। इसके अलावा इस प्रोजेक्ट को अभी तक फॉरेस्ट क्लीयरेंस नहीं मिला है और इससे सम्बन्धित मामला भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के पास लम्बित है।

 

 

 

TAGS

ken-betwa link, madhya pradesh, uttar pradesh, panna tiger reserve, bundelkhand, irrigation, hydropower, canal, central empowered committee, national green tribunal, National Water Development Agency, south asia network on dams, rivers and people, national board for wildlife, Expert Appraisal committee, forest clearance, environment clearance, national board for wildlife upsc, national board for wildlife is chaired by, national board for wildlife pib, indian board of wildlife was established in, national board of wildlife standing committee, wildlife board of india wiki, state board for wildlife, indian board for wild life (ibwl), expert appraisal committee wiki, expert appraisal committee meaning, expert appraisal committee upsc, expert appraisal committee members moef, expert appraisal committee gktoday, expert appraisal committee of the ministry of environment and forests, expert appraisal committee infra 2, expert appraisal committee (eac, ken betwa project upsc, the proposed ken-betwa river linking project is in which state, ken betwa link project wiki, ken betwa river linking project map, ken betwa interlinking project ias, ken betwa link news, ken betwa river map, ken betwa link project current affairs, forest clearance for ken betwa river linking project, environment clearance for ken betwa river linking project, ken betwa river linking project, daudhan dam on which river, ken betwa project wiki, makodia dam on which river, dhaudhan dam.

 

 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading