कहाँ आते हैं भूकम्प (Where Frequent Earthquake)

13 Feb 2017
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Uttarakhand map
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जैसा कि हम जान गये हैं, ज्यादातर भूकम्प जमीन के अन्दर होने वाली गतिविधियों के कारण ही आते हैं और हमारी पृथ्वी महाद्वीप के आकार के भूखण्डों से मिलकर बनी है जो एक दूसरे के सापेक्ष गतिमान हैं। भूखण्डों की इस गति के कारण इन भूखण्डों के छोर पर स्थित चट्टानें तनाव या दबाव की स्थिति में रहती है और यही भूकम्प का कारण है। यही वजह है कि ज्यादातर भूकम्प महाद्वीप के आकार के इन भूखण्डों के छोर पर आते हैं।

 

 

प्रशान्त महासागर में स्थित विभिन्न भूखण्डों की सीमाओं से मिलकर बने 40,000 किलोमीटर लम्बे क्षेत्र को आग का घेरा (Ring of Fire) कहा जाता है। यह क्षेत्र भूकम्पों के साथ ही ज्वालामुखी विस्फोटों के प्रति भी अत्यन्त संवेदनशील है।


घोड़े की नाल के आकार के इस क्षेत्र में 452 ज्वालामुखी स्थित हैं जोकि विश्व भर में स्थित सभी ज्वालामुखियों का 75 प्रतिशत हैं। विश्व भर में आने वाले भूकम्पों में से लगभग 90 प्रतिशत का अभिकेन्द्र भी इसी क्षेत्र में स्थित होता है।

 

कहीं धरती न हिल जाये

 

यहाँ यह समझना जरूरी है कि पूर्व में क्षेत्र में आये भूकम्पों के साथ ही क्षेत्र की भू-वैज्ञानिक, संरचना, क्षेत्र में अवस्थित अवसंरचनाओं के प्रकार व अन्य सम्बन्धित पक्षों का अध्ययन करने के बाद भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा भूकम्प संवेदनशीलता मानचित्र तैयार किया जाता है और साथ ही भूकम्प से हो सकने वाली क्षति को कम करने के लिये विभिन्न जोनों में अवसंरचना विकास के लिये रीति संहितायें या कोड विकसित किये जाते हैं।


2001 में भुज में आये भूकम्प के बाद देश की भूकम्प संवेदनशीलता और भूकम्प सुरक्षित निर्माण सम्बन्धित रीति संहिताओं पर पुनर्विचार किया गया और 2002 में इन्हें संशोधित किया गया।


इससे पहले भारतीय भारतीय भू-भाग को भूकम्प संवेदनशीलता के आधार पर पाँच भागों में बाँटा गया था (जोन ।,II,III,IV और V)।


वर्ष 2002 में जारी किये गये भूकम्प मानचित्र से जोन I को हटा दिया गया। पूर्व के प्रकाशनों में आपको जोन I का भी उल्लेख मिलेगा और वह उस समय की व्यवस्था व्यवस्था के अनुसार सही है।

 

कहीं धरती न हिल जायेजैसा कि हम अब तक जान गये हैं हिमालय की उत्पत्ति भारतीय व यूरेशियाई भूखण्डों के मध्य हुये टकराव के कारण उत्पन्न दबाव की वजह से हुयी है।

भारतीय भूखण्ड के लगातार उत्तर-उत्तरपूर्व की ओर खिसकने के कारण इन भूखण्डों के बीच स्थित टैथिस सागर की सतह पूरी तरह समाप्त हो गयी जिसके बाद यह भूखण्ड आपस में टकरा गये। भूखण्डों के इस टकराव से उत्पन्न भीषण दबाव के कारण टैथिस सागर में जमा अवसाद; यानी मिट्टी, पत्थर व गाद कई किलोमीटर ऊपर उठ गये। समुद्र की सतह से ऊपर उठ गये इसी भू-भाग को हम आज हिमालय के नाम से जानते-पहचानते हैं।


भारतीय व यूरेशियाई भूखण्ड आपस में टकराये तो जरूर, परन्तु इससे भारतीय भूखण्ड रुका नहीं और यह आज भी 5 सेन्टीमीटर प्रति वर्ष की गति से उत्तर-उत्तरपूर्व की ओर खिसक रहा है।



कहीं धरती न हिल जाये

भूखण्डों के छोर पर स्थित होने और भारतीय भू-भाग के आज भी उत्तर-उत्तरपूर्व की ओर गतिशील होने के कारण यहाँ स्थित चट्टानों की परतों में लगातार ऊर्जा जमा होती रहती है जो एक सीमा के बाद अवमुक्त हो जाती है। ऊर्जा के जमा व अवमुक्त होने का यही चक्र हिमालयी क्षेत्र को भूकम्प के प्रति अत्यन्त संवेदनशील बनाता है। तभी तो यहाँ प्रायः भूकम्प के झटके महसूस होते हैं।



भूकम्प संवेदनशीलता के आधार पर भारतीय भू-भाग को चार भागों में बाँटा गया है; जोन II, III, IV, व V। पूरा का पूरा उत्तराखण्ड राज्य भूकम्प के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील जोन IV व V में अवस्थित है। चमोली, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर व पिथौरागढ़ जनपदों का पूरा भू-भाग तथा अल्मोड़ा, चम्पावत, टिहरी, पौड़ी व उत्तरकाशी जनपदों का कुछ भाग जोन V में पड़ता है। शेष पूरा राज्य जोन IV में पड़ता है।







 

कहीं धरती न हिल जाये

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम

अध्याय

1

पुस्तक परिचय - कहीं धरती न हिल जाये

2

भूकम्प (Earthquake)

3

क्यों आते हैं भूकम्प (Why Earthquakes)

4

कहाँ आते हैं भूकम्प (Where Frequent Earthquake)

5

भूकम्पीय तरंगें (Seismic waves)

6

भूकम्प का अभिकेन्द्र (Epiccenter)

7

अभिकेन्द्र का निर्धारण (Identification of epicenter)

8

भूकम्प का परिमाण (Earthquake Magnitude)

9

भूकम्प की तीव्रता (The intensity of earthquakes)

10

भूकम्प से क्षति

11

भूकम्प की भविष्यवाणी (Earthquake prediction)

12

भूकम्प पूर्वानुमान और हम (Earthquake Forecasting and Public)

13

छोटे भूकम्पों का तात्पर्य (Small earthquakes implies)

14

बड़े भूकम्पों का न आना

15

भूकम्पों की आवृत्ति (The frequency of earthquakes)

16

भूकम्प सुरक्षा एवं परम्परागत ज्ञान

17

भूकम्प सुरक्षा और हमारी तैयारी

18

घर को अधिक सुरक्षित बनायें

19

भूकम्प आने पर क्या करें

20

भूकम्प के बाद क्या करें, क्या न करें

 

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