किसानों का पानी कंपनियों को

बिजली बनानी हो तो किसानों-आदिवासियों की कुर्बानी ली जाती है। सड़क बनानी हो तो किसानों की जमीन छीन लो, एसईजेड बनाना हो तो किसानों की जमीन हड़प लो, शहरीकरण करना हो, मॉल्स बनाने हों या फिर आवासीय कालोनी बनानी हो तो किसानों की जमीन का अधिग्रहण कर लो। फिर होता यह है कि हर परियोजना भ्रष्टाचार के घेरे में आ जाती है। जिन उद्देश्यों को लेकर परियोजनाएं शुरू होती हैं, वे कभी पूरे नहीं हो पाते हैं। बेचारा किसान सरकार और विकास के सपने के बीच ऐसा फंस जाता है कि जमीन न छोड़े तो विकास विरोधी कहलाता है और जमीन छोड़ दे तो भिखारी बन जाता है। महाराष्ट्र के विदर्भ में जहां किसान सूखे की वजह आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं वहीं सरकार ने बिजली परियोजनाओं के लिए पानी देने का वादा किया है।

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