कोसी को क्यों कोसते हो?/

3 Sep 2008
0 mins read
कोसी बाढ़
कोसी बाढ़

प्रेम शुक्ल/ बाढ़: एशिया की दो नदियों को दुखदायिनी कहा जाता है. एक है चीन की ह्वांग-हो जिसे पीली नदी के नाम से जाना जाता है और दूसरी है बिहार की कोसी नदी. अगर चीन की ह्वांग-हो को 'चीन का शोक' कहा जाता है तो कोसी नदी 'बिहार का शोक' है. इन नदियों की शोकदायिनी क्षमता ही बिहार और चीन के बीच विकास का अंतर भी स्पष्ट करती हैं. ह्वांग-हो की बाढ़ पर चीन ने पूरा नियंत्रण स्थापित कर लिया है. अब वहां बाढ़ की विभीषिका नहीं झेलनी पड़ती जबकि कोसी साल-दर-साल डूब और विस्थापन का दायरा बढ़ाती जा रही है.

पिछले एक पखवाड़े में ही २०० से अधिक लोग मारे गये हैं और कोई २५ लाख लोगों के विस्थापित होने का अनुमान है. मरने और विस्थापित होनेवाले आंकड़े निश्चित रूप से इससे कहीं ज्यादा होंगे. वैसे भी यह विपदा असंभावित नहीं थी. अरसे से जल-वैज्ञानिक यह चेतावनी दे रहे थे कि कोसी बैराज की कमजोरी के चलते न केवल उत्तर बिहार बल्कि बंगाल और बांग्लादेश तक संकट में आ सकते हैं. कोसी को आप घूमती-फिरती नदी भी कह सकते हैं. पिछले २०० सालों में इसने अपने बहाव मार्ग में १२० किलोमीटर का परिवर्तन किया है. नदी के इस तरह पूरब से पश्चिम खिसकने के कारण कोई आठ हजार वर्गकिलोमीटर जमीन बालू के बोरे में बदल गयी है. नगरों और गांवों के उजड़ने-बसने का अंतहीन सिलसिला चलता ही रहता है. इस सनातन उठा-पटक के बीच जो जीव और संपत्ति हानि होती है उसका हिसाब किताब अलग है.

हिमालय से निकलने वाली कोसी नदी नेपाल से बिहार में प्रवेश करती है। इस नदी के साथ कई कहानियां जुड़ी हुई है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कोसी का संबंध महर्षि विश्वामित्र से है। महाभारत में इसे `कोशिकी´ कहा गया है। वहीं इस नदी को `सप्तकोसी´ भी कहा जाता है। हिमालय से निकलने वाली कोसी के साथ सात नदियों का संगम होता है, जिसे सन कोसी, तमा कोसी, दूध कोसी, इंद्रावती, लिखू, अरुण और तमार शामिल है। इन सभी के संगम से ही इसका नाम `सप्तकोसी´ पड़ा है। कोसी नदी दिशा बदलने में माहिर है। कोसी के मार्ग बदलने से कई नए इलाके प्रत्येक वर्ष इसकी चपेट में आ जाते हैं। बिहार के पूर्णिया, अरररिया, मधेपुरा, सहरसा, कटिहार जिलों में कोसी की ढेर सारी शाखाएं हैं। कोसी बिहार में महानंदा और गंगा में मिलती है। इन बड़ी नदियों में मिलने से विभिन्न क्षेत्रों में पानी का दबाव और भी बढ़ जाता है। बिहार और नेपाल में `कोसी बेल्ट´ शब्द काफी लोकिप्रय है। इसका अर्थ उन इलाकों से हैं, जहां कोसी का प्रवेश है। नेपाल में `कोसी बेल्ट´ में बिराटनगर आता है, वहीं बिहार में पूर्णिया और कटिहार जिला को कोसी बेल्ट कहते हैं।

बिहार आज जिस तरह से बेहाल हुआ है उसकी चेतावनी पर्यावरणविद बहुत पहले से इस बात की चेतावनी दे रहे थे. मार्च १९६६ में अमेरिकन सोसायटी आफ सिविल इंजीनियरिंग द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार कोसी नदी के तट पर १९३८ से १९५७ के बीच में प्रति वर्ष लगभग १० करोड़ क्यूबिक मीटर तलछट जमा हो रहा था. केन्द्रीय जल एवं विद्युत शोध प्रतिष्ठान के वी सी गलगली और रूड़की विश्वविद्यालय के गोहेन और प्रकाश द्वारा बैराज निर्माण के बाद प्रस्तुत अध्ययन में भी आशंकाएं जताई गयी थी कि बैराज निर्माण के बाद भी तलछट जमा होने के कारण कोसी का किनारा उपर उठ रहा है. कोसी बैराज निर्माण के कुछ वर्षों बाद १९६८ में बाढ़ आयी थी. उस साल जल प्रवाह का नया रिकार्ड बना था २५,००० क्यमेक्स (क्यूबिक मीटर पर सेकेण्ड). उसके बाद डूब के लिए पर्याप्त जल प्रवाह नौ से सोलह हजार क्यूमेक्स पानी तो हर साल ही बना रहता है. एक अरसे से जल वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे थे कि कोसी पूर्व की ओर कभी भी खिसक सकती है. अनुमान भी वही था जो आज हकीकत बन गया है. जिस चीन की पीली नदी का जिक्र हम उपर कर आये हैं उसने भी १९३२ में अपना रास्ता बदल लिया था और उस प्रलय में पांच लाख से अधिक लोग मारे गये थे. कोसी नदी के विशेषज्ञ शिलिंग फेल्ड लंबे समय से चेतावनी दे रहे थे कि जब कोसी पूरब की ओर सरकेगी तो वह पीली नदी से कम नुकसान नहीं पहुंचाएगी.

वैज्ञानिकों की चेतावनी को कुछ पर्यावरणविद यह कहकर टाल रहे थे कि कोसी को अपनी मूल धारा की ओर लौटने देना चाहिए. कोसी की बाढ़ को रोकने का एकमेव उपाय था कि नेपाल में जहां कोसी परियोजना है वहीं पानी भंडारण के लिए ऊंचे बांध बनाये जाते. लेकिन पर्यावरणविदों का एक वर्ग लगातार यह तर्क देता रहा कि लोगों को बाढ़ का सम्मान करना चाहिए. ऐसा कहनेवालों का नजरिया यूरोप और चीन के हालात देखकर बने हैं जहां बाढ़ अंशकालिक नुकसान पहुंचाती है, जबकि आज जो उत्तर बिहार में हुआ है वह स्थाई क्षति है.

कोसी की समस्या को समझने के लिए उसकी भौगोलिक स्थिति को समझना जरूरी है. यह नदी गंगा में मिलने से पहले २६,८०० वर्गमील क्षेत्र को प्रभावित करती है जिसमें ११,४०० वर्गमील चीन, ११,९०० वर्गमील नेपाल और ३६०० वर्गमील भारत का इलाका शामिल है. उसके उत्तर में ब्रह्मपुत्र, पश्चिम में गंडकी, पूर्व में महानंदा और दक्षिण में गंगा है. कमला, बागमती और बूढ़ी गंडक जैसी नदियां कोसी में आकर मिलती हैं. गंडक और कोसी के चलते लगभग हर मानसून में बिहार में बाढ़ आती है. इसका नतीजा यह होता है कि सालभर में बाढ़ से जितनी मौतें होती हैं उसमें से २० प्रतिशत अकेले बिहार में होती है. नेपाल में कोसी कंचनजंगा के पश्चिमी हिस्से में बहती है. वहां इसमें सनकोसी, तमकोसी, दूधकोसी, इंद्रावती, लिखू, अरूण और तमोर नदियां आकर मिलती हैं. नेपाल के हरकपुर गांव में दूधकोसी आकर सनकोसी में मिलती है. त्रिवेणी में सनकोसी, अरूण और तंवर से मिल जाती है इसलिए इसे यहां सप्तकोसी कहा जाता है. ये नदियां चारों ओर से माउण्ट एवरेस्ट को घेरती हैं और इन सबको दुनिया के सबसे ऊंचे ग्लेशियरों से पानी मिलता है.

चतरा के पास कोसी नदी मैदान में उतरती है और ५८ किलोमीटर बाद भीमनगर पास बिहार में प्रवेश करती है. वहां से २६० किलोमीटर की यात्रा कर यह कुरसेला में गंगा में आकर समाहित हो जाती है. इसकी कुल यात्रा ७२९ किलोमीटर है. पूर्वी मिथिला में यह नदी सबसे १८० किलोमीटर लंबा और १५० किलोमीटर चौड़े कछार का निर्माण करती है जो दुनिया का सबसे बड़ा कछार त्रिशंकु है. कोसी बैराज में १० क्यूबिक यार्ड प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष रेत का जमाव होता है जो दुनिया में सर्वाधिक है. सबसे ज्यादा रेत अरूण नदी के कारण कोसी में पहुंचता है जो कि तिब्बत से निकलती है. यहां इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि चीन की महत्वाकांक्षी तिब्बत रेल परियोजना के कारण भारी मात्रा में अरूण नदी में रेत का प्रमाण बढ़ा है जिसके कारण रेत का जमाव और फैलाव बिहार में बढ़ा है. क्योंकि सप्तकोसी का पानी कोसी में आयेगा और कोसी की तलछट मैदानी इलाके में जमा होगा जिसका सबसे बड़ा हिस्सा भारत में है इसलिए कोसी के मार्ग में आगे भी बदलाव आता रहेगा और मानसून-दर-मानसून बिहार डूबने के लिए अभिशप्त ही बना रहेगा. अगर इससे निजात पाना है तो हमें कुछ स्थायी समाधान के बारे में दीर्घकालिक रणनीतिक के तहत उपाय करने होंगे.


प्रेम शुक्ल मुंबई से प्रकाशित हिन्दी सामना के कार्यकारी संपादक. पिछले 20 सालों से पत्रकारिता. पत्रकारिता के साथ ही मुबंई में हिन्दीभाषी समाज के विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय. आप उन्हें सीधे संपर्क कर सकते हैं-

premshukla@rediffmail.com

कोसी को क्यों कोसते हो?/ प्रेम शुक्ल/ विस्फोट/ बाढ़

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading