कर्ज में डूबे किसानों को उबार पाएँगे जेटली


सरकार से देश के किसानों की उम्मीदों की बात करें तो दो साल से लगातार सूखे की मार के चलते वे गम्भीर आर्थिक संकट व कर्जों में दबे हुए हैं। उनकी परेशानी भी सरकार को पता है, इसलिये किसानों को लेकर सरकार की जिम्मेदारियाँ पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं। किसानों की तीन फसलें खराब हुई हैं। वहीं फसलों की एमएसपी ज्यादा नहीें बढ़ी है। दूसरी तरफ फसलों की लागत में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है और सूखे की मार से वे कर्ज में डूब गए हैं। सरकारी योजनाओं से भी किसानों को राहत नहीं मिल पा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन के अनुरूप इस बार का आम बजट कैसा होगा, इस पर पूरे देश की नजरें हैं। ऐसे में बजट लोक-लुभावन हो या आर्थिक सुधार वाला, इसे लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली पर कितना दबाव है, इसे समझा जा सकता है। यह सच है कि बजट तैयार करते समय वित्त मंत्री को पीएम मोदी की सलाह और उनके विजन को शामिल करते हुए देश के सभी वर्गों, संकट झेल रहे किसानों, घर के बजट को येन-केन प्रकारेण सम्भालने की चुनौती से जूझ रहे नौकरी पेशा लोगों, कारपोरेट जगत व कारोबारियों की उम्मीदों पर भी खरा उतरने की बड़ी चुनौती ही। अब देखना यह है कि अरुण जेटली इन उम्मीदों पर खरा उतरने में कितने सफल हो पाते हैं।

ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि आम बजट को देश हित में सुधारवादी और लोकहित में लोक लुभावन कैसे बनाया जाए, इस बात पर वित्त मंत्री जेटली की अगुवाई में केन्द्रीय वित्त मंत्रालय में काफी समय से गहन मंथन जारी है और यह सम्भावना है कि बजट को अन्तिम रूप देने तक माथा-पच्ची जारी रहेगी। सरकार के समक्ष चुनौती यह भी है कि पंजाब, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में विधानसभा के आगामी चुनावों को देखते हुए भाजपा के खिसक रहे वोट बैंक को कैसे सहेज कर रखा जाये।

जहाँ तक समाज के दबे-कुचले लोगों व बदहाली से जूझ रहे किसानों या नौकरी पेशा लोगों की बात है तो हर बजट में उनकी अपेक्षा रहती है कि सरकार उन्हें राहत दे, लेकिन जब बजट पेश होता है, उनमें से अधिकांश के हाथ निराशा ही लगती है।

अगर हम आम आदमी की बात करें तो उसकी जरूरतों व समस्याओं का पता सत्ताधारी दल को भी रहता है। हर आदमी को बुनियादी सुविधाओं सड़क, बिजली, पानी, सस्ता परिवहन, बेहतर शिक्षा व सस्ती व अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं की दरकार रहती है। सरकार से आम आदमी को बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं रहती हैं। रोजगार सहित उसकी बुनियादी जरूरतें ही पूरी हो जाएँ तो वह अपने परिवार के भरण-पोषण में लगा रहता है। हाँ, नौकरी पेशा लोगों व बड़े व्यवसायियों की इससे इतर उम्मीदें होती हैं। एक तरफ जहाँ नौकरी पेशा लोग महंगाई की मार से उबरने के लिये वेतन-भत्तों में बढ़ोत्तरी चाहते हैं तो व्यवसायी वर्ग की अपेक्षा रहती है कि उसे कारोबार के लिये पहले से ज्यादा सहूलियतें व बेहतर वातावरण मिले। कराधान सरल हो और सरकार सुरक्षित कारोबार सुनिश्चित करे।

ऐसे में लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिये सरकार करों में बढ़ोत्तरी करती है और राजस्व के दूसरे स्रोतों की तलाश में रहती है। ताकि सरकार योजना और गैर योजनागत मदों में जो भी लक्ष्य तय करे, उसे वित्तीय वर्ष के अन्त तक पूरा कर दिखाए।

सरकार की सफलता भी इसी बात पर निर्भर करती है कि वो इस जिम्मेदारी और जवाबदेही का निर्वाह कितनी बखूबी से कर ले जाती है। वहीं लोग भी बजट पेश होने के बाद सरकार के बारे में अपनी धारणा तय करते हैं।

चूँकि सरकार ने साफ संकेत दिये हैं कि ये बजट गरीबों की उन्नति, किसानों की समृद्धि और युवाओं को रोजागर देने वाला होगा। ऐसे में ये माना जा रहा है कि इस बार के बजट का फोकस गाँव और किसान होंगे। ग्रामीण अर्थव्यवस्था का बुरा हाल है और ये बात सरकार भी समझती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था की सेहत सुधारने के लिये कौन से उपाय जरूरी हैं, सरकार को इस पर काम करने की जरूरत है।

अगर सरकार से देश के किसानों की उम्मीदों की बात करें तो दो साल से लगातार सूखे की मार के चलते वे गम्भीर आर्थिक संकट व कर्जों में दबे हुए हैं। उनकी परेशानी भी सरकार को पता है, इसलिये किसानों को लेकर सरकार की जिम्मेदारियाँ पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं। किसानों की तीन फसलें खराब हुई हैं। वहीं फसलों की एमएसपी ज्यादा नहीें बढ़ी है। दूसरी तरफ फसलों की लागत में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है और सूखे की मार से वे कर्ज में डूब गए हैं। सरकारी योजनाओं से भी किसानों को राहत नहीं मिल पा रही है।

इन परेशानियों से तंग आकर महाराष्ट्र में 2015 में 3,228 किसानों ने आत्महत्या की थी। 2015 में किसानों की आत्महत्या का यह आँकड़ा 15 सालों में सबसे ज्यादा है। इस साल जनवरी में पूरे महाराष्ट्र में 124 किसानों ने जान दी है। इससे पहले 2014 में पूरे देश में 12,360 किसानों ने आत्महत्या की थी। जबकि 1995 के बाद से करीब 3 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। इसलिये इस गम्भीर मुद्दे पर सरकार को सोचने की जरूरत है।

बजट में सरकार से किसानों की अपेक्षा है कि वह उन्हें सस्ते बीज और खाद उपलब्ध कराए। खेती की लागत घटाई जाये। मनरेगा को खेती से जोड़ने पर फोकस हो। किसानों को आसान कृषि बाजार उपलब्ध कराया जाये तथा किसानों को कर्ज के बोझ से मुक्ति दिलाई जाये। सिंचाई के लिये सस्ता डीजल या बिजली मिले।

सरकार ने कृषि और किसानों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए खाद्य सुरक्षा कानून, नई फसल बीमा, किसानों को आसान कर्ज, स्वास्थ्य बीमा योजना जैसी पहल भी की है। लेकिन इन योजनाओं से किसानों को राहत मिलती नहीं दिख रही हैं।

यहाँ तक कि किसानों को मनरेगा से भी राहत नहीं है। ऐसे में सवाल ये है कि कैसे सुधरेगी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की हालत? खेती कैसे बनेगी मुनाफे का सौदा।

दूसरी तरफ इस बार के बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली से हर कोई उनसे कुछ-न-कुछ चाहता है। फार्मा सेक्टर की अलग उम्मीदें हैं। ऐसे में सोमेन चक्रवर्ती का कहना है कि बजट में हेल्थ केयर सेक्टर को ज्यादा फंड मिलना चाहिए। सरकार को हेल्थ केयर इंफ्रा फंड और मेडिकल इनोवेशन फंड बनाने पर फोकस करना चाहिए। बजट में हेल्थ इंश्योरेंस को बढ़ावा देने वाले कदम उठाने चाहिए। साथ ही बजट में हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर टैक्स छूट बढ़ाने का एलान करना चाहिए।

वहीं फाइनेंशियल सेक्टर की भी उम्मीदें बहुत ज्यादा हैं। इस सेक्टर से जुड़े केके मिस्त्री का कहना है कि शहरी इलाकों की अर्थव्यवस्था में सुधार देखने को मिल रहा है। जबकि मॉनसून के चलते ग्रामीण अर्थव्यवस्था को झटका लगा है। लिहाजा बजट में सरकार को ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिये कदम उठाने की जरूरत है।

केके मिस्त्री ने ये भी कहा कि देश में निवेश और रोजगार बढ़ाने के लिये कदम उटाने की जरूरत है। साथ ही हाउसिंग सेक्टर को भी बढ़ावा देने के लिये कदम उठाने चाहिए।

वहीं बजट में हाउसिंग सेक्टर को टैक्स में रियायतें मिलने की उम्मीद है। ऐसे संकेत भी हैं कि बजट में हाउसिंग सेक्टर को मजबूती मिल सकती है। लोग अच्छी बचत कर सकें, सरकार को ऐसे कदमों पर भी विचार करना चाहिए।

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