कटे वृक्षों को नया जीवन देते नितिन

काटे जा रहे वृक्षों की जड़े कहीं और प्रत्यारोपित कर ‘सिटिजंस फॉर ग्रीन’ न सिर्फ वृक्षों को बल्कि पर्यावरण को भी नया जीवन दे रहा है।

पर्यावरण कार्यकर्ता जया सिंह कहती हैं जब करोड़ों रुपए परियोजनाओं में खर्च किए जा सकते हैं तो पेड़ों को प्रत्यारोपित करने में कुछ हजार क्यों खर्च नहीं किए जा सकते?

विकास की आपाधापी और शहरीकरण, पर्यावरण और हरियाली का दुश्मन बन गये हैं। सड़कें, औद्योगिकीकरण और आवासीय कॉलोनियों के विस्तार से पर्यावरण लगातार प्रभावित हो रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य गठन के बाद अकेले दून घाटी में विकास के नाम पर 50,000 पेड़ काट डाले गए। लेकिन जहां एक ओर पेड़ों का कटना जारी है वहीं दूसरी ओर एक संस्था काटे गए इन पेड़ों को नया जीवन देने की मुहिम में जुटी हुई है। ‘सिटिजंस फॉर ग्रीन दून’ सड़क चौड़ीकरण के दौरान काटे जा रहे पेड़ों को प्रत्यारोपित कर उन्हें पुनर्जीवित कर रही है। काटे जा रहे पेड़ों की जड़ों को उखाड़कर उन्हें किसी खाली स्थान पर प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। प्रत्यारोपित किए जा रहे पेड़ न सिर्फ जीवित रहते हैं बल्कि इनके जीवन की रफ्तार भी बढ़ जाती है। इनके बढ़ने की रफ्तार सामान्य पेड़ों से अधिक है।

‘सिटिजंस फॉर ग्रीन दून’ के संयोजक डॉ. नितिन पांडे का कहना है कि संस्था ने एसएसपी कार्यालय और घंटाघर में सड़क चौड़ीकरण की जद में आ रहे पेड़ों को पुलिस लाइन और दून विश्वविद्यालय के प्रांगण में प्रत्यारोपित किया है। पांडे के मुताबिक प्रत्यारोपित पेंड़ों में से अस्सी प्रतिशत पेड़ जीवित रहते हैं। जड़ें सुरक्षित होने की स्थिति में प्रत्यारोपित वृक्ष सामान्य पेड़ों की तुलना में तेजी से बढ़ता है। एक ओर जहां वृक्षारोपण के बाद केवल 15 से 20 प्रतिशत पौधे ही बच पाते हैं वहीं प्रत्यारोपित किए गए 80 प्रतिशत पेड़ जल्दी ही हरे-भरे हो जाते हैं। वृक्षों के प्रत्यारोपण की यह तकनीक भले ही पेड़ों को बचाने और सुरक्षित दूसरे स्थान पर लगाने की अचूक तकनीक हो लेकिन विशाल पेड़ों को जड़ से उखाड़कर दूसरे स्थान पर पहुंचाना आसान नहीं है। एक बड़े पेड़ को उखाड़ने और गंतव्य तक पहुंचाने में पांच से दस हजार रुपए खर्च होते हैं। पर्यावरण कार्यकर्ताओं का मानना है कि सरकार वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण के नाम पर जितना खर्च करती है उतना ही वृक्षों के प्रत्यरोपण के लिए भी करे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य गठन के बाद दून घाटी में विकास और निर्माण के नाम पर 50,000 पेड़ काट डाले गए। दूसरी ओर सरकार इस घाटी में दस सालों के भीतर तीन वन रेंजों देहरादून, मसूरी और कालसी को मिलाकर 22 लाख पेड़ लगाने का दावा भी करती है। जबकि घाटी के वन क्षेत्र में एक प्रतिशत की भी बढ़त दर्ज नहीं की गई। ऐसे में यदि वृक्षों के प्रत्यारोपण की पहल तेज किया जाए तो बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।

देहरादून में चौराहों के चौड़ीकरण का काम इन दिनों जोर-शोर से चल रहा है। जेएनयूआरएम परियोजना के तहत शहर के 16 चौराहों को चौड़ा किया जा रहा है। इस अभियान से जहां संकरे चौराहों से दुखी शहरवासियों के चेहरे खिले हुए हैं वहीं काटे जा रहे दर्जनों पेड़ों के कारण पर्यावरण प्रेमी दुखी भी हैं। हालांकि ‘सिटिजंस फॉर ग्रीन दून’ ने वृक्षों के प्रत्यारोपण की पहल तो की है लेकिन आर्थिक संसाधनों की कमी संस्था के काम में बाधक बन रही है। संस्था की अगली योजना घंटाघर स्थित एमडीडीए पार्किंग में बन रहे मॉल और सड़क चौड़ीकरण के कारण चकराता रोड से काटे जा रहे 20 से अधिक पेड़ों को दून विवि. में प्रत्यारोपित करने की है। फिलहाल संस्था के इस खर्चीले अभियान को एमडीडीए और शहर के पर्यावरण प्रेमी सहायता कर रहे हैं। संस्था की वीनू ढिंगरा ने बताया एक पेड़ को प्रत्यारोपित करने में एक बड़े ट्रक और कई बार दो क्रेनों की जरूरत होती है। दून के पर्यावरण प्रेमी सरकार से इस बात की भी मांग कर रहे हैं कि काटे जा रहे पेड़ों को प्रत्यारोपित करने का सरकारी आदेश जारी किया जाए। पर्यावरण कार्यकर्ता जया सिंह कहती हैं जब करोड़ों रुपए परियोजनाओं में खर्च किए जा सकते हैं तो पेड़ों को प्रत्यारोपित करने में कुछ हजार क्यों खर्च नहीं किए जा सकते? देहरादून शहर में हरे पेड़ किस रफ्तार से काटे जा रहे है इसकी एक बानगी यह है कि पिछले छह महीनों के दौरान वनाधिकारी कार्यालय को पेड़ काटने के 150 आवेदन प्राप्त हुए हैं। प्रत्यारोपण के लिए सरकारी आदेश की मांग को लेकर पर्यावरणकर्मी 8 दिसंबर 2010 को मुख्यसचिव से भी मिल चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने मुख्य वन संरक्षक और एफआरआई अधिकारियों से भी मुलाकात की है।

देहरादून से महेश पाण्डे और प्रवीन कुमार भट्ट

Mahesh.pandey@naidunia.com

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