कुमाऊं के जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरू

3 May 2012
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वन महकमें के हिस्से आने वाली रकम का ज्यादातर भाग वन विभाग के अफसरों और कर्मचारियों की तनख्वाह वगैरह में खर्च हो जाता है। राज्य का जंगलात महकमा यहां के जंगलों की आमदनी के मुकाबले वनों की हिफाजत, पौधा-रोपण और विकास के काम में नाममात्र की रकम खर्च करता है। वन विभाग के अपर मुख्य वन संरक्षक एमसी पंत बताते हैं कि जंगलों की आग से निपटने के लिए हालांकि अभी तक बजट नहीं मिला है। बावजूद इसके जंगलों को आग से बचाने के लिए वन महकमें ने प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया है।

नैनीताल, 1 मई 2012। गर्मी का मौसम आते ही उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो गया है। अप्रैल के पहले पखवाड़े में कुमाऊं मंडल के जंगलों में आग लगने के दर्जनों घटनाएं हो चुकी हैं। कई जंगल राख हो गए हैं। उत्तराखंड में मौजूद जंगलों के एवज में ग्रीन बोनस की मांग करने वाली राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने पहाड़ के जंगलों को आग से बचाने में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है। कुमाऊं मंडल में पिछले सात साल के दौरान वन महकमे ने जंगलों में आग लगने के 1686 मामले दर्ज किए। इन हादसों में 4399.25 हेक्टेयर वन क्षेत्र जल कर राख हो गया था। कुमाऊं में 2005 में आरक्षित वन क्षेत्र, सिविल वन व पंचायती वन क्षेत्रों में आग लगने की 403 घटनाएं हुईं, इसमें 1196.25 हेक्टेयर वन क्षेत्र राख हो गया। 2006 में आग लगने के 37 हादसों में 76.35 हेक्टेयर जंगल जले। 2007 में वनों में आग लगने की 96 घटनाएं हुईं। 196.75 हेक्टेयर जंगल आग की भेंट चढ़े। 2008 में आग लगने की 305 घटनाओं में 824.95 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ।

2009 में आग लगने के 485 हादसों में 1314.17 हेक्टेयर वन क्षेत्र जला। 2010 में आग लगने की 313 घटनाएं हुई। जिनमें 691.60 हेक्टेयर वन क्षेत्र आग के हवाले हो गया था। पिछले साल जंगलों में आग लगने के 47 मामले दर्ज हुए, इसमें 78.65 हेक्टेयर वन क्षेत्र जला। एक हेक्टेयर वन क्षेत्र में वृक्षारोपण तबाह हो गया था। जबकि इस साल अप्रैल के पहले पखवाड़े में ही कुमाऊं मंडल के जंगलों में आग लगने के 17 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें 26.60 हेक्टेयर वन क्षेत्र स्वाहा हो गया है।

साढ़े तीन हेक्टेयर वन क्षेत्र आग की भेंट चढ़ चुका है। वनों में आग लगने के सबसे ज्यादा मामले वन विभाग के नियंत्रण वाले आरक्षित वन क्षेत्रों में हुए। इस दौरान आरक्षित वन क्षेत्रों में आग लगने की 1040 घटनाएं दर्ज हुई। इन हादसों में 2474.70 हेक्टेयर आरक्षित वन क्षेत्र आग के सुपुर्द हो गया। आग लगने की सबसे ज्यादा घटनाएं चीड़ बहुल वाले वन क्षेत्रों में हुईं।

वनों में आग की इन घटनाओं में करोड़ों की वन संपदा तबाह हो गई। अनेक प्रजाति के पौधे, दुर्लभ जड़ी-बूटी और वनस्पतियां भस्म हो गईं। कई वन्य जीव और पशु– पक्षियों की मौत हो गई थी। आग बुझाने की कोशिश में कई लोग जख्मी हो गए थे। पहाड़ के जंगलों में हर साल लगने वाली आग की तपिश भी वन विभाग की नींद नहीं तोड़ पाई। राज्य सरकार ने जंगलों में आग लगने की घटनाओं को कभी गंभीरता से नहीं लिया। हर साल आग के बाद वन महकमा इसके कारणों की सतही जांच के बाद नुकसान का मामूली आकलन कर मामले की दाखिल-दफ्तर कर देता है। दुर्भाग्य से जंगलों में आग लगने का मुद्दा पहाड़ में राजनीतिक चिंता का विषय भी नहीं बन सका है।

जंगल में लगी भीषण आगजंगल में लगी भीषण आगउत्तराखंड के जंगलो के प्रति केंद्र और राज्य सरकार का रवैया शुरू से ही विवेकपूर्ण नहीं रहा है। दरअसल यहां के जंगलों के साथ ब्रिटिश हुकूमत के दिनों से ही दोहन होता रहा है। तब उत्तराखंड की वन संपदा को हरा सोना मान कर यहां के जंगलों का जम कर दोहन हुआ। तब यहां पहाड़ में ज्यादातर मोटर लायक सड़कें, यहां के लोगों की सहुलियत के लिए नहीं बल्कि इस हरे सोने की लूट और सामरिक नजरिए से बनीं। पर आजाद भारत की सरकार ने भी यहां के वन और जल संपदा के व्यावसायिक दोहन को ही ज्यादा तरजीह दी।

राजस्व का एक बड़ा हिस्सा उत्तराखंड की वन उपज से आता है। लेकिन यहां के वनों से आमदनी का एक चोटा हिस्सा ही यहां के वनों की हिफाजत में खर्च हो रहा है। वन महकमें के हिस्से आने वाली रकम का ज्यादातर भाग वन विभाग के अफसरों और कर्मचारियों की तनख्वाह वगैरह में खर्च हो जाता है। राज्य का जंगलात महकमा यहां के जंगलों की आमदनी के मुकाबले वनों की हिफाजत, पौधा-रोपण और विकास के काम में नाममात्र की रकम खर्च करता है।

वन विभाग के अपर मुख्य वन संरक्षक एमसी पंत बताते हैं कि जंगलों की आग से निपटने के लिए हालांकि अभी तक बजट नहीं मिला है। बावजूद इसके जंगलों को आग से बचाने के लिए वन महकमें ने प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया है। अग्नि सुरक्षा पट्टियां बनाई गई हैं। वन विभाग वनों को आग से बचाने के लिए जागरुकता अभियान चला रहा है।

एमसी पंत के मुताबिक फायर वॉच टावरों और वायरलैस सेट उपलब्ध कराए गए हैं। सीजनल फायर वॉचर तैनात किए जा रहे हैं। अग्नि सुरक्षा दल बनाए जा रहे हैं। उन्हें नए उपकरणों से लैस करने का प्रस्ताव है। पंत मानते हैं कि इन सारे उपायों के बावजूद जंगलों में आग को रोका जाना नामुमकिन है। इससे आग की घटनाओं और आग लगने पर वनोपज के नुकसान को जरूर कम किया जा सकता है।

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