कुओं का कायाकल्प

29 Oct 2014
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टेढ़ा पद्धति

हाल ही में कर्नाटक से सुखद खबर आई है कि वहां कुओं को फिर से पुनर्जीवित किया जा रहा है। बेलगांव शहर में जो कुएं सूख गए थे, गाद या कचरे से पट गए थे उनका नगर निगम और नागरिकों ने मिलकर कायाकल्प कर दिया है। और शहर की करीब आधी आबादी के लिए कुओं से पीने के पानी की आपूर्ति की जा रही है।


बेलगांव में 1995 में जब पीने के पानी का मुख्य स्रोत सूख गया तब वैकल्पिक पानी के स्रोतों की खोज हुई। यहां के वरिष्ठ नागरिक मंच ने कुओं का कायाकल्प करने का सुझाव दिया। इस पर अमल करने से पहले गोवा विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के प्रमुख चाचडी से सलाह मांगी। उन्होंने इसका अध्ययन इस प्रोजेक्ट को हरी झंडी दी।

बहरहाल, यह एक आसान काम नहीं था। यहां कुएं से गाद निकालने के लिए भारी यंत्रों का इस्तेमाल करना संभव नहीं था और मजदूर भी इस काम को नहीं करना चाह रहे थे। तब एक स्थानीय आदमी रस्सी और घिर्री के सहारे कुएं में नीचे उतरा और उसने गाद को बाल्टी में भरा और ऊपर खींच लिया। इसी प्रकार अन्य कुओं का भी कायाकल्प किया गया।

इस तरह 21 बड़े और 32 छोटे कुओं को पुनर्जीवित किया जा चुका है। इनमें से एक बारा घादघायची विहिर भी शामिल है जो 1974 तक पीने के पानी का मुख्य स्रोत था।


टेढ़ा पद्धतिटेढ़ा पद्धतिअब इन कुओं से शहर की 2 लाख आबादी को पीने का पानी मुहैया कराया जा रहा है, जबकि कुल आबादी 5 लाख है। इस कदम से भूजल से सतही जल और बढ़ेगा।


20-25 साल पहले गांवों में लोग कुओं से पानी भरते थे। सुबह और शाम कुओं पर भारी भीड़ हुआ करती थी। महिलाएं कुओं पर पानी भरती थी।

जब सार्वजनिक कुओं में गाद या कचरा हो जाता था तब गांव और मुहल्ले के लोग मिलकर उसकी साफ-सफाई करते थे। इन पर लोग नहाते थे तो इस बात का ख्याल रखा जाता था कि गंदगी न हो और गंदा पानी वापस कुओं में न जाए।


छत्तीसगढ़ में मरार और सोनकर समुदाय के लोग अपने कुओं में टेड़ा पद्धति से सिंचाई करते हैं। टेड़ा पद्धति में कुएं से पानी निकालने के लिए बांस के एक सिरे पर बाल्टी और दूसरे सिरे पर वजनदार पत्थर या लकड़ियां बांध देते हैं जिससे पानी खींचने में आसानी हो।

टेढ़ा पद्धतिटेढ़ा पद्धति टेड़ा से सब्जी-भाजी की सिंचाई होती हैं। वहां अब भी ग्रामीण अपनी बाड़ियों में अपने घर के उपयोग के लिए भटा, टमाटर, मूली, प्याज, लहसुन, धनिया और अन्य सब्जियां लगाते हैं।

आज जब जल संकट बहुत विकट रूप से सामने आ रहा है, कुएं पानी का स्थायी स्रोत साबित हो सकते हैं। भूजल स्तर हर साल नीचे खिसकता जा रहा है। कुएं पीढ़ियों तक हमारा साथ दे सकते हैं, हैंडपंप और नलकूप नहीं।

कुओं से हम उतना ही पानी निकालते हैं जितनी जरूरत होती है। जबकि नलकूप या मोटर पंप में व्यर्थ ही पानी बहता रहता है। सार्वजनिक नलों का भी यही हाल है। फिर ये इतनी भारी पूंजी वाली योजना है कि नगर निगम, नगर पालिका या ग्राम पंचायत इनका खर्च भी वहन नहीं कर पाती।


पानी के निजीकरण की कोशिशें चल रही हैं, नदियों से पानी शहरों को दिया जा रहा है, नदी जोड़ योजनाएं चल रही हैं। न तो वे स्थाई जलस्रोत हैं और न ही सस्ती। इसलिए हमें कुओं, तालाब और नदियों के कायाकल्प की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। पर्यावरण का संरक्षण करना चाहिए। फिलहाल, कर्नाटक से कुओं के कायाकल्प की खबर सराहनीय ही नहीं अनुकरणीय भी है।जिन>कुएं>यहां>
 

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