क्या आप जानते हैं, सिंचाई योजनाओं की भी गणना होती है?


हमारे देश में जिस तरह आबादी की गणना होती है उसी तरह जल संसाधनों की क्षमता की भी गणना होती है? जब भी मध्यम व बड़ी सिंचाई परियोजनाएं तैयार होती हैं तब उनकी क्षमता को उपलब्ध सिंचाई क्षमता में जोड़कर रिकार्ड को अद्यतन कर लिया जाता है। इस तरह ये आंकड़े केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सालाना रिपोर्ट में जारी होते रहते हैं। लेकिन लघु एवं सूक्ष्म परियोजनाओं की सिंचाई क्षमता का नियमित रिकार्ड रख पाना संभव नहीं हो पाता है क्योंकि कुएं, नलकूप तलाब आदि स्रोत संस्थागत या निजी तौर पर नियमित बनते रहते हैं। ऐसे में एक नियमित अंतराल के बाद लघु सिंचाई योजनाओं (Minor Irrigation Schemes) की गणना की जाती है। लघु सिंचाई योजनाओं के अंतर्गत वे समस्त भूजल योजनाएं और सतही जल योजनाएं वर्गीकृत की जाती हैं जिनका लाभ क्षेत्र 2000 हेक्टेयर तक होता है। इनमें से लघु भूजल योजनाओं के अंतर्गत खुदे हुए कुंए, नलकूप युक्त कुंए, बोरिंग, निजी उथले नलकूप एवं गहरे नलकूप आते हैं। जबकि लघु सतही सिंचाई योजनाओं के अंतर्गत सतही प्रवाह योजनाएं और लिफ्ट सिंचाई योजनाएं आती हैं। मोटे तौर पर इन योजनाओं को पांच श्रेणियों में अर्थात खुदे हुए कुंए, उथले नलकूप, गहरे नलकूप, सतही प्रवाह योजनाएं, सतही लिफ्ट योजनाओं के अंतर्गत बांटा गया है। चूंकि ये योजनाएं निजी एवं संस्थागत स्तर पर भी स्थापित किए जाते हैं इसलिए इनका नियमित रिकार्ड रखना संभव नहीं हो पाता है। इसलिए सरकार ने एक नियमित अंतराल में इन योजनाओं की गणना करना तय किया। गणना करने की यह जिम्मेदारी केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत लघु सिंचाई विभाग की है। इस तरह लघु सिंचाई परियोजनाओं की पहली गणना सन 1986-87 में की गई, जबकि दूसरी गणना सन 1993-94 में की गई और तीसरी गणना सन 2000-01 में की गई।

लघु सिंचाई परियोजनाओं की विस्तृत गणना करने का पहला सुझाव सन 1970 में योजना आयोग द्वारा स्थापित सिंचाई सांख्यिकी उप समिति ने दिया था। उस समय राष्ट्रीय कृषि आयोग ने लघु सिुंचाई की तत्कालीन स्थिति का अवलोकन करने के बाद इसकी आवश्यकता महसूस की थी। आयोग ने अवलोकन किया कि हालांकि कई राज्य सरकारें अपने कृषि सांख्यिकी रिपोर्टो में प्रमुख सिंचाई स्रोतों के बारे में जानकारी प्रकाशित करती हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर पूरी जानकारी मौजूद नहीं होती थी। इस तरह राष्ट्रीय कृषि आयोग ने सुझाव दिया कि कृषि के बारे में गणना के साथ-साथ हर पांच साल में सिंचाई स्रोतों की भी गणना की जाए। इस तरह सन 1980-81 में लघु सिंचाई के अंतर्गत किन स्रोतों कोे शामिल किया जाय यह तय किया गया। लघु सिंचाई योजनाओं के आंकड़े जमा करने के लिए चार प्रमुख स्रोतों का सहयोग लिया जाता है: (1) कृषि मंत्रालय द्वारा एकत्र भू-उपयोग आंकड़े, (2) राज्य सरकार के विभागों की नियमित प्रगति रिपोर्ट, (3) राज्य सरकारों द्वारा तैयार सालाना प्रशासनिक रिपोर्ट, एवं (4) विभिन्न एजेंसियों द्वारा समय समय पर तैयार होने वाले अस्थाई रिपोर्ट। तब से लेकर आज तक 29 साल गुजर चुके हैं लेकिन इन स्रोतों की सिर्फ तीन बार ही गणना कराई गई है। केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय के पास नवीनतम रिकार्ड सन 2000-01 में कराए गए गणना पर आधारित है, जबकि सूत्रों के अनुसार अभी अगली गणना के लिए आंकड़े एकत्र करने का काम जारी है।

नवीनतम आंकड़ों के अर्थात तीसरी गणना के अनुसार भारत में 1,97,52,199 लघु सिंचाई योजनाओं से कुल 7,43,47,330 हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता तैयार की जा चुकी है। जिसमें से 1,85,03,268 योजनाओं से 62,40,80,900 हेक्टेयर भूजल स्रोतों से एवं 12,48,931 योजनाओं से 1,19,39,240 हेक्टेयर सतह प्रवाही स्रोतों से तैयार किए जा चुके हैं। हालांकि इनमें से केवल 5,19,69,930 हेक्टेयर सिंचाई क्षमता का ही इस्तेमाल किया गया है। इन आंकडत्रों को एकत्र करने के लिए वर्ष 2000-01 को आधार बानाया गया। इसके लिए 33 राज्यों (केन्द्र शासित राज्य सहित) के 586 जिलों के 6,37,611 गांवों का सर्वेक्षण राज्यों के विभिन्न नोडल विभागों की निगरानी में किया गया। ये लघु सिंचाई योजनाएं हमारे देश की सिंचाई व्यवस्था में काफी ज्यादा महत्व रखती हैं। सच में देखा जाय तो लघु सिंचाई परियोजनाएं मध्यम व बड़ी सिंचाई परियोजनाओं के मुकाबले करीब डेढ़ गुना इलाके की सिंचाई करती हैं। जबकि इसके विपरीत पंचवर्षीय योजनाओं में मध्यम व बड़ी परियोजनाओं के लिए लघु परियोजनाओं के मुकाबले कई गुना ज्यादा धन आबंटन किया जाता है। स्रोतों के आधार पर विशेष जानकारी के लिए संलग्न सारिणी देखें।

Tags: Minor irrigation, census, 3rd census, source wise, dugwell, tube well, surface flow

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