क्यों बढ़ रहा है तापमान

यदि पृथ्वी के औसत तापमान का बढ़ना इसी प्रकार जारी रहा तो आगामी वर्षो में भारत को इसके दुष्परिणाम झेलने होंगे। पहाड़, मैदानी, रेगिस्तान, दलदली क्षेत्र व पश्चिमी घाट जैसे समृद्ध क्षेत्र ग्लोबल वार्मिंग के कहर का शिकार होंगे। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कृषि, जल, पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैव विविधता व स्वास्थ्य ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न समस्याओं से जूझते रहेंगे..

मौसम विभाग के अनुसार इस बार मानसून के देर से आने की संभावना है, इसलिए गर्मी से निजात जल्द नहीं मिलने वाली। इतनी ज्यादा गर्मी हीट वेव के बनने की वजह से है। अधिकतम तापमान सामान्य से पांच डिग्री सेल्सियस अधिक होने पर हीट वेव की स्थिति बनती है। तेज धूप के साथ ही नमी भी काफी कम हो जाती है, ऐसे में सूरज की तपिश और जमीन गर्म होने पर हवा के गर्म थपेड़े परेशानी की वजह बनते हैं। उत्तर भारत में जमीन से पांच किलोमीटर ऊपर मौजूद एक एंटीसाइक्लोन गर्मी को और गरम बनाने का काम कर रहा है। एंटीसाइक्लोन में हवाएं एंटीक्लॉकवाइज चलती हैं। यानी हवाएं ऊपर से नीचे की ओर आती हैं। इस स्थिति में वायुमंडलीय दाब बढ़ जाता है। वायुमंडलीय दाब बढ़ने के साथ ही तापमान भी बढ़ता है। इस स्थिति में गरम हवाएं और भी गरम हो गईं हैं।

मौसम विभाग के अनुसार इस बार मानसून के देर से आने की संभावना है, इसलिए गर्मी से निजात जल्द नहीं मिलने वाली। जहां एक तरफ समूचे मैदानी इलाकों में पछुआ हवाओं ने तापमान ऊपर उठा दिया है, वहीं दूसरी तरफ कमजोर वेस्टर्न डिस्टर्बेंस चढ़े हुए पारे को लगातार ऊपर ही रहने दे रहे हैं। हीट वेव कंडीशन (यानि तीव्र लू) ने गर्मी के प्रकोप को और बढ़ा दिया है। अब हालात यह है कि बढ़े हुए पारे के बीच लू का सामना भी करना पड़ रहा है। भारत में लू लगने से हाइपोथेमिया और हृदय और सांस से संबंधित रोगी बढ़ रहे हैं। मौसम विभाग के मुताबिक अगले कुछ हफ्तों में वेस्टर्न डिस्टर्बेंस की वजह से एंटीसाइक्लोन कमजोर पड़ सकता है, जिससे लोगों को थोड़ी राहत मिल सकती है। ये राहत मामूली होगी। अधिकतम तापमान सामान्य से ऊपर बना रहेगा।

पिछले दिनों पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने जलवायु परिवर्तन पर इंडियन नेटवर्क फॉर क्लायमेट चेंज असेसमेंट की रिपोर्ट जारी करते हुए चेताया है कि यदि पृथ्वी के औसत तापमान का बढ़ना इसी प्रकार जारी रहा तो आगामी वर्षो में भारत को इसके दुष्परिणाम झेलने होंगे। पहाड़, मैदानी, रेगिस्तान, दलदली क्षेत्र व पश्चिमी घाट जैसे समृद्ध क्षेत्र ग्लोबल वार्मिग के कहर का शिकार होंगे। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कृषि, जल, पारिस्थितिकी तंत्र एवं जैव विविधता व स्वास्थ्य ग्लोबल वार्मिंग से उत्पन्न समस्याओं से जूझते रहेंगे। वर्ष 2030 तक औसत सतही तापमान में 1.7 से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। इस रिपोर्ट में चार भौगोलिक क्षेत्रों- हिमालय क्षेत्र, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, पश्चिमी घाट व तटीय क्षेत्र के आधार पर पूरे देश पर जलवायु परिवर्तन का अध्ययन किया गया है। इन चारों क्षेत्रों में तापमान में वृद्धि के कारण बारिश और गर्मी-ठंड पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन कर संभावित परिणामों का अनुमान लगाया गया है। यह रिपोर्ट बढ़ते तापमान के कारण समुद्री जलस्तर में वृद्धि एवं तटीय क्षेत्रों में आने वाले चक्रवातों पर भी प्रकाश डालती है।

आर्कटिक में पूरे उत्तरी गोलार्ध की तुलना में तीन गुना तेजी से तापमान बढ़ रहा है और इसकी वजह मानवीय गतिविधियों से पैदा हो रही कार्बन डाई ऑक्साइड है। अमेरिका में हुए नए शोध के मुताबिक आर्कटिक क्षेत्र में पिछले दो हजार सालों में ताममान सबसे अधिक हो गया है, जो इस बात का संकेत है कि मानवीय गतिविधियों के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आर्कटिक में पूरे उत्तरी गोलार्ध की तुलना में तीन गुना तेजी से तापमान बढ़ रहा है और इसकी वजह मानवीय गतिविधियों से पैदा हो रही कार्बन डाई ऑक्साइड है। यह शोध अमेरिकी पत्रिका जर्नल साइंस में छपा है। शोध के अनुसार पिछले सात हजार वर्षों में एक ऐसी प्राकृतिक स्थिति बननी थी, जिसमें आर्कटिक के क्षेत्र को सूरज की कम से कम रोशनी मिलनी चाहिए थी। इस प्रक्रिया के तहत आर्कटिक को अब भी ठंडा होते रहना था, हालांकि ऐसा हुआ नहीं। वर्ष 1900 के बाद आर्कटिक का तापमान बढ़ता जा रहा है और 1950 के बाद इसमें और अधिक तेजी आ गई है।

पिछले 2000 वर्षों में आर्कटिक का तापमान अभी सबसे अधिक है। पिछली एक सदी में आर्कटिक का तापमान पूरे उत्तरी गोलार्ध की तुलना में तीन गुना तेजी से बढ़ा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इसमें अब कोई शक नहीं रह गया है कि तापमान बढ़ने की वजह सिर्फ और सिर्फ मानवीय गतिविधियों के कारण पैदा होने वाला कार्बन डाई ऑक्साइड है। वैज्ञानिकों ने भूगर्भीय रिकार्डों और कंप्यूटरों की मदद से पिछले दो शताब्दियों में तापमानों का खाका तैयार किया है। वैज्ञानिकों ने चेताया है कि अगर आर्कटिक का तापमान बढ़ता ही रहा तो इससे समुद्र के जल स्तर में तेजी से बढ़ोतरी हो सकती है।

भारत, बांग्लादेश और मलेशिया में जलवायु परिवर्तन के कारण हर साल डेंगू, मलेरिया, डायरिया, चिकनगुनिया और जापानी इंसेफ्लाइटिस के कारण काफी तादात में मौत होती है। विशेषज्ञों के अनुसार पारा 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाना, एक गंभीर संकेत है और इसका संबंध ग्लोबल वार्मिंग से है। इस तरह का हीट वेव अब पहले के मुकाबले लंबा खिंच सकता है और इससे सतर्क रहने की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन के अंतरराष्ट्रीय पैनल के मुताबिक विश्व के औसत तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। पैनल का मानना है कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में रुकावट नहीं आने के कारण जलवायु में कई परिवर्तन आए हैं, जो कि स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रहे हैं। इस बात की आशंका जताई जा रही है कि आने वाले 90 वषों में तापमान में 1.8 से 4 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो जाएगी। ग्लोबल वार्मिंग और बेमौसम होने वाली बारिश के कारण बीमारियों में इजाफा हुआ है। साथ ही कुपोषण के मामले भी बढ़े हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण सर्दी और गरमी के मौसम में मरने वालों की संख्या बढ़ी है। भारत में लू लगने से हाइपोथेमिया (हीट वेव) और हृदय और सांस से संबंधित रोगी बढ़ रहे हैं। भारत, बांग्लादेश और मलेशिया में जलवायु परिवर्तन के कारण हर साल डेंगू, मलेरिया, डायरिया, चिकनगुनिया और जापानी इंसेफ्लाइटिस के कारण काफी तादात में मौत होती है। वहीं वायरल हेपेटाइटिस के मरीजों की संख्या में तेजी आई है। बदलते मौसम के कारण बीमारियों के प्रति मनुस्य का शरीर संतुलन नहीं बना पा रहा है, जिससे हर साल मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। भारत में बदलते मौसम की मार अन्य देशों की अपेक्षा ज्यादा है। सरकार को अपनी योजना में इस ओर भी ध्यान देना होगा कि जलवायु बदलाव के इस दौर में उसकी मशीनरी गंभीर आपदाओं व प्रतिकूल मौसम के लिए कहीं अधिक तैयार रहे। सरकार और समाज के स्तर पर लोगों को भी पर्यावरण के मुद्दे पर गंभीर होना होगा नहीं तो साल दर साल तापमान में वृद्धि का ये चक्र चलता ही रहेगा।

(लेखक विज्ञापनपीडिया.कॉम के संपादक हैं, संपर्क-Email: dwivedi.shashank15@gmail.com)

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