क्यों हो रही है हवा खराब

18 Apr 2015
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यह सच ही तो है, दुनिया में कहीं भी चले जाएँ, सांस लेने लायक हवा के लिए तरस जाएँगे और वास्तव में यही शुद्ध वायु प्राण है, जो जिन्दगी का अत्यन्त आवश्यक तत्व है। सांस लेने के लिए जरूरी शुद्ध हवा में जहर घुलने का स्तर चरम पर है, जिसे वायु प्रदूषण कहा जाता है। वायु प्रदूषण का मतलब है, हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मापदण्ड से अधिक होना। गौर करें तो पाएँगे कि ऐतिहासिक रूप से वायु प्रदूषण अग्नि के आविष्कार के साथ ही शुरू हो गया था। 18वीं शताब्दी में भाप के इंजन का आविष्कार हुआ और शुरू हो गई औद्योगिक क्रान्ति, जिसके साथ ही बेतहाशा बढ़ती मोटर गाड़ियों के साथ प्रदूषण के नए युग ने दस्तक दे दी।

वायु प्रदूषण का मतलब है, हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मापदण्ड से अधिक होना।देश के शहरों में लोग जिस हवा में सांस लेते हैं, उसकी गिनती दुनिया की सबसे प्रदूषित हवा में होती है। पिछले दस सालों में देश में वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या में छह गुना इजाफा हुआ है। चीन का तो यह हाल है कि प्रदूषित धुएँ और धुँध से निपटने के लिए ड्रोन का सहारा लिया जा रहा है। यह आकाश से ही पर्यावरण को गन्दा करने वाले अवैध कारकों पर नजर रखते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले साल 91 देशों के 1600 प्रमुख शहरों पर आधारित रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट ने बताया कि दुनिया के सर्वाधिक 20 प्रदूषित शहरों में भारत के 13 शहर शामिल हैं। रिपोर्ट के अनुसार देश के बड़े शहरों में निर्धारित मानकों से वायु प्रदूषण का स्तर दो-तीन गुना अधिक है। दिल्ली को प्रदूषित पीएम 2.5 कणों की सान्द्रता के मामले में दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बताया था। 2.5 माइक्रोमीटर से भी कम व्यास वाले यह कण शरीर में आसानी से पहुँचकर खून में मिल जाते हैं। हवा में इनकी अधिकता से फेफड़ों की गम्भीर बीमारी ब्रांकाइटिस, कैंसर और हृदय रोगों को बढ़ावा मिलता है। वायु प्रदूषण से सांस सम्बन्धी बीमारियों, हृदय रोग और कैंसर होने का सबसे ज्यादा खतरा होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकलन के अनुसार, साल 2012 में सिर्फ वायु प्रदूषण से करीब 70 लाख लोगों की मौत हुई, यानी कि दुनिया भर में होने वाली आठ मौतों में से एक मौत वायु प्रदूषण से होती है और पर्यावरण से जुड़ा सेहत सम्बन्धी ये दुनिया का अकेला सबसे बड़ा खतरा है।

हाल ही में केन्द्र सरकार ने जन स्वास्थ्य के लिए एक अहम कदम उठाया और प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी कि एयर क्वालिटी इण्डेक्स की शुरुआत कर दी। यह इण्डेक्स फिलहाल देश के दस बड़े शहरों में वायु प्रदूषण के बारे में आगाह करेगा और जल्द ही 46 अन्य बड़े शहरों व 20 राज्यों की राजधानियों में भी शुरू हो जाएगा। यह आठ तत्वों पर नजर रखेगा, जिसमें पीएम 10, पीएम 2.5, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, अमोनिया और सीसा की चौबीस घण्टे जानकारी देगा। इस सूचकांक के जारी होने से भारत अब अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, मेक्सिको और चीन जैसे देशों की सूची में शामिल हो गया। इस इण्डेक्स के शुरू होने से काफी फायदों के साथ एक अहम बात यह है कि अब लोगों के बीच वायु प्रदूषण को लेकर जागरुकता फैलाने में मदद मिल सकेगी।

यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो हार्वर्ड और येल के अध्ययन से खुलासा हुआ कि भारत की आधी से ज्यादा आबादी के जीवन के तीन वर्ष तो उस प्रदूषित हवा में सांस लेने से कम हो जाते हैं, जिसमें भारी मात्रा में प्रदूषकों की मौजूदगी है।यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो हार्वर्ड और येल के अध्ययन से खुलासा हुआ कि भारत की आधी से ज्यादा आबादी के जीवन के तीन वर्ष तो उस प्रदूषित हवा में सांस लेने से कम हो जाते हैं, जिसमें भारी मात्रा में प्रदूषकों की मौजूदगी है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया कि विकासशील देशों में वायु प्रदूषण दिल के दौरे व तनाव का प्रमुख कारक हो सकता है। डब्ल्यूएचओ का यह भी कहना है कि जो कम तथा मध्यम आय वाले देश हैं, वहाँ घर के भीतर होने वाले वायु प्रदूषण से 33 लाख लोगों की जान गई।

अपना ज्यादातर समय घर में बिताने वाले बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को घर के अन्दर होने वाले वायु प्रदूषण का भारी खामियाजा भुगतना पड़ता है। अधिकतर लोग घरेलू ईन्धन जैसे-कोयला, गोबर और लकड़ी से पैदा होने वाले प्रदूषकों के कारण जान गंवाते हैं। जैविक ईन्धन के जलने से बनने वाली विषैली गैसों से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि प्रदूषक निकलते हैं। रेफ्रिजरेटर, एयर कण्डीशनर से निकलने वाली क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस ओजोन परत को सबसे ज्यादा हानि पहुँचा रही है। घर के बाहर पाए जाने वायु प्रदूषण से करीब 26 लाख मौतें हुई हैं।

क्यों हो रही है हवा खराब 2ताप बिजलीघरों की चिमनियों से निकलने वाली गैसें, कोयले की राख के कण, फसलों में कीटनाशकों का उपयोग, खनिज कार्यों में विस्फोटकों का प्रयोग, खदानों से निकलने वाली गैसें, नाभिकीय खनिजों के उत्खनन में निकलने वाले विकिरण जीवधारियों के लिए बहुत हानिकारक हैं। तेल शोधक कारखाने और मोटर वाहन से निकलने वाले बैंजीन से ल्यूकीमिया, मोटर वाहनों से निकले धुएँ में पाए जाने वाले कार्बन मोनो ऑक्साइड से फेफड़ों में खराबी, हड्डियों की कमजोरी, ऑक्सीजन की कमी और हृदय रोगों को बढ़ावा देते हैं।

डीजल की गाड़ियाँ या जनरेटर से निकलने वाले धुएँ में ऐसे बारीक तत्व होते हैं, जो फेफड़े खराब कर देते हैं, धमनियों को कमजोर और दिमाग की कोशिकाओं को बेकार कर देते हैं व पार्किंसन, अलझाईमर, कैंसर, हार्ट अटैक, सांस की परेशानी, आँखों में जलन आदि बीमारियाँ पैदा कर देते हैं। कार्बन मोनो ऑक्साइड इत्यादि पौधों की श्वसन वृद्धि, फल बनना, पुष्पीकरण में बाधक बनते हैं। फ्लोराइड घास स्थलों में जमा होकर जन्तुओं को प्रभावित करते हैं। अम्ल वर्षा से नदियाँ, तालाब, जलाशय और मिट्टी प्रदूषित होती है।

एक अध्ययन के अनुसार देश के 39 शहरों की 138 विरासतीय स्मारकों पर भी वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव पड़ा है। पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक वायुमण्डल में मौजूद सूक्ष्म अपशिष्ट पदार्थों में पाया जाने वाला कार्बन स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है और यह दुनिया भर में होने वाली मौतों के शीर्ष 10 कारणों में से एक है। डीजल के वाहनों पर नियन्त्रण, सीएनजी को प्रोत्साहन, धुआँ उगलने वाली चिमनियों पर नियन्त्रण, बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया जाना जरूरी होगा। समय रहते हम नहीं चेते तो वो दिन दूर नहीं, जब सांस लेने के लिए शुद्ध हवा भी खरीदनी पड़ जाए।

वायु प्रदूषण सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है। यह सरहदों को नहीं मानता। यह दूर-दूर तक वायुमण्डल और लोगों को गिरफ्त में ले लेता है। वैश्विक स्तर पर नीतिगत समाधान की दरकार है। सरकार की नीतियों पर अमल करने के साथ ही व्यक्तिगत तौर पर भी कोशिश हो कि हमारे आसपास की हवा शुद्ध हो सके। हम जिस हवा में सांस लेते हैं, उसे स्वच्छ रखने की बेहद जरूरत है। यदि वायु प्रदूषण को कम किया जा सके तो लाखों जिन्दगियाँ बचाई जा सकती हैं।

ई-मेल : preetikatiyar0209@gmail.com

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