खेती बदली रे, आस जागी रे


हमारी खेती केवल अनाज पैदा करने का साधन मात्र नहीं है बल्कि हमारी संस्कृति से जुड़ी हुयी है। हमारी खेती, जल-जमीन-जंगल, जानवर, जन के सहचर्य- सहजीवन और सह-अस्तित्व की परिरचायक हैं। ये पाचों एक दूसरे का पोषण करने वाले और एक दूसरे को संरक्षण देने वाले हैं सबका जीवन और अस्तित्व एक-दूसरे पर निर्भर है।

अब तो अधिकतर कृषि वैज्ञानिक, जानकार आदि भी मानने लगे हैं कि हमारी परम्परागत फसल पद्वति ही बेहतर और टिकाऊ है। अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिये हमें अपनी खेती को बेहतर बनाना होगा। रसायनिक खादों, कीटनाशकों, पानी और बीज के अनियंत्रित उपयोग को रोकते हुये एवं जैविक खेती पद्वतियों को अपनाते हुए खेती की लागत कम और उत्पादकता बढ़ाने के प्रयास करने होंगे ।

फिल्म मे यही दर्शाया गया है की किस तरह मेरठ की स्वयं सेवी संस्था जनहित फाउंडेशन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों के बीच जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिये काम कर रहा है। इस फिल्म में बीज से बाजार तक का सफर दिखाया गया है और इस बात पर रोशनी डाली गई है कि जैविक खेती से कैसे एक किसान न केवल अपनी फसल की उत्पादकता बढ़ा सकता है बल्कि आय भी बढ़ा सकता है।

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