खुबसूरत सुन्दरवन को बचाने का प्रयास


मैंग्रोव वनविश्व वन्यजीव कोष का भारत चैप्टर न केवल बाघों की जनसंख्या के लिये बल्कि इसके आस-पास रहने वाले लोगों की सुरक्षा के लिये सुन्दरवन की अभिनव पारिस्थितिकी बचाने के प्रयास में लगा हुआ है। बाघ, भारत में 4262 वर्ग किलोमीटर इलाके में फैले इस कच्छ वनस्पति क्षेत्र की सबसे महत्त्वपूर्ण प्रजाति है। इस पूरे क्षेत्र का 2585 वर्ग किलोमीटर इलाका बाघ आरक्षित वन क्षेत्र के तहत आता है। इस कच्छ वनस्पति क्षेत्र का एक बहुत बड़ा हिस्सा बांग्लादेश में भी पड़ता है। दो देशों में फैली इस सम्पूर्ण पारिस्थितिक प्रणाली को अब एक प्राथमिकता प्राप्त बाघ संरक्षण भू-क्षेत्र का दर्जा मिल गया है जो विश्व वन्यजीव कोष की विश्वव्यापी बाघ संरक्षण नीति के दायरे में आता है।

सुन्दरवन के बाघ कच्छ वनस्पति क्षेत्र के अपने पर्यावास की तरह ही अनूठे हैं। यहाँ के बाघ अपनी सहज प्रवृत्ति को नहीं अपनाते। इसके अलावा चीतल, जंगली सूअर जैसे अपने प्रिय शिकार के अलावा ये मछलियाँ और केकड़े भी खाते हैं और कभी-कभी तो आदमियों को भी खा जाते हैं। जमीन की तरह ये पानी में भी उतने ही सहज रहते हैं शिकार की तलाश में ये तैर कर एक द्वीप से दूसरे द्वीप जाते हैं। कभी-कभी तो चार-पाँच किलोमीटर नदी के पाट को भी तैर कर पार कर जाते हैं।

बाघ के आतंक की वजह से वनों में दाखिल होने से पहले हर धर्म के लोग बानो बीबी का नाम लेते हैं। बानो बीबी एक स्थानीय देवी हैं जिसके बारे में कहा जाता है वह बाघों से लोगों की रक्षा करती हैं। सुन्दरवन में आजीविका कमाने के लिये दाखिल होने वाले लोगों को खतरे का सामना करना पड़ता है। बाघ आमतौर से वन कर्मचारियों, मछुआरों और शहद इकट्ठा करने वाले लोगों पर हमला करते हैं। झींगा मछली के बीज इकट्ठे करने वालों को तो एक और खतरे का भी सामना करना पड़ता है। पानी में शार्क मछली और खारे पानी के दस-दस मीटर लम्बे नरभक्षी मगरमच्छों की भरमार है और अगर इनसे किसी तरह बच निकले तो इस इलाके में जल-दस्युओं का सम्भावित खतरा उनके सिर पर मंडराता रहता है।

संसाधनों का इस्तेमाल करने वाले और उनकी रक्षा करने वाले- दोनों के लिये ही सुन्दरवन एक चुनौती है। बाघ और वन के बीच की सांठ-गांठ सुन्दरवन में आम देखने में आती है। दुर्गम कच्छ वनस्पति क्षेत्र बाघ की रक्षा करते हैं। जबकि नरभरक्षी प्रवृत्तियों के कारण बाघ आदमी से वन की रक्षा करता है। इसलिये इसमें हैरानी की कोई बात नहीं कि इस क्षेत्र में सबसे अधिक संख्या में बाघ पाये जाते हैं। बाघ संरक्षण क्षेत्र में सरकारी आँकड़ों के हिसाब से लगभग 240 बाघ मौजूद हैं। साथ ही इस आरक्षित क्षेत्र से बाहर कच्छ वनस्पति क्षेत्र में भी 35 बाघों की खबर है। इतने ही बाघ बांग्लादेश में पड़ने वाले सुन्दरवन इलाके में पाये जाते हैं।

विश्व वन्यजीव कोष-भारत कई सालों से अपने बाघ संरक्षण कार्यक्रम के तहत शिक्षा और जागरुकता के क्षेत्र में काम कर रहा है और बाघ संरक्षण के काम में मदद पहुँचा रहा है। इसमें शिविरों का निर्माण, संचार और परिवहन उपकरणों की व्यवस्था तथा अवैध शिकार को रोकने के लिये खुफिया जानकारी के लिये ढाँचा शामिल है।

हाल ही में विश्व वन्यजीव कोष की विश्वव्यापी बाघ संरक्षण रणनीति के तहत सजनाखाली में कच्छ वनस्पति क्षेत्र में एक कार्यशाला आयोजित की गई थी। भारत और बांग्लादेश में सुन्दरवन के प्रबंधकों के लिये आयोजित इस कार्यशाला में पहली बार बांग्लादेश के वन अधिकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों ने भारत आकर सुन्दरवन देखा और यहाँ इसकी प्रबन्ध व्यवस्था के बारे में जानकारी प्राप्त की। भारत और बांग्लादेश दोनों में ही फैले गंगा और ब्रह्मपुत्र के कच्छ वनस्पति वाले मुहानों में बाघ के इस विशाल पर्यावास के संरक्षण के लिये विश्व वन्यजीव कोष द्वारा अगले पाँच से दस सालों तक मदद की जाती रहेगी।

(पत्र सूचना कार्यालय से साभार)

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