लक्ष्य से भटक गई मप्र सरकार की मर्यादा योजना

13 Aug 2014
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कागज पर दर्ज आकड़ों की अपेक्षा शौचालयों की मैदानी स्थिति ज्यादा खराब है। बने हुए शौचालयों में से ज्यादातर अनुपयोगी हैं उनकी दीवारें अधूरी हैं उनसे छत गायब हैं कमोड मिट्टी में दवा दिया गया है उसका किसी सैप्टिक टैंक से कनेक्शन ही नहीं है। पानी की कैसी भी कोई सुविधा नहीं है ऐसे आधे हजारों शौचालय पूरे जिले में मौजूद है। जिनके घर में शौचालय बने हैं उन्होंने अपना 900 रुपए का अंशदान बचा लिया तो बाकी पैसा ठेकेदार पंच सरपंच और इस योजना की देखरेख करने वाली एजंसी जिला पंचायत के अधिकारी कर्मचारी खा पी गए। लोग आज भी खुले में शौच कर रहे हैं। गरीब परिवारों के घरों में शौचालय बनाने की मध्य प्रदेश सरकार की मर्यादा योजना अपने लक्ष्य से भटक गई है। 2003 में शुरू की गई इस योजना के तहत मुरैना जिले की सभी 490 ग्राम पंचायतों के लगभग चार लाख गरीब परिवारों के घरों में शौचालय बनाए जाने थे ताकि ये परिवार खुले में शौच करने से मुक्ति पा सकें। लेकिन आज 12 साल बाद भी इनमें से आधे घरों में सरकार शौचालय नहीं बनवा सकी है अब तक जितने शौचालय बनाए जाने का दावा किया जा रहा है उनकी हालत भी ठीक नहीं है।

2003 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना को मप्र सरकार मर्यादा योजना के नाम से चला रही है उसने शौचालय बनाने का जिम्मा ग्राम पंचायतों को दे रखा है पंच सरपंच मिलकर गरीबों के इन शौचालयों की दीवोरें, छतें, पानी की टंकियां कमोड सैप्टिक टैंक और मौका लगा तो पूरा का पूरा शौचालय ही डकार गए हैं। गांवों में मौजूद ऐसे आधे-अधूरे शौचालयों के अवशेष इस योजना में फैले भ्रष्टाचार को उजागर करते हैं इनमें से ज्यादातर कंडे या भूसा भरने के काम में आ रहे हैं। जिनके पास पैसे थे या जिन्हें शौचालय की जरूरत थी उन्होंने अपने पैसे लगाकर ऐसे आधे-अधूरे शौचालयों को उपयोगी बना लिया है।

पूरी दुनिया में खुले शौच के लिए होने वाली बदनामी से परेशान भारत सरकार ने 2003 में समग्र स्वच्छता अभियान के नाम से गरीबी की रेखा से नीचे के पिरवारों के कच्चे-पक्के घरों में शौचालय बनाने की योजना शुरू की थी सरकार इन बीपीएल परिवारों को घर में शौचालय बनाने के लिए 500 रुपए की प्रोत्साहन राशि देती थी जो धीरे-धीरे बढ़कर 1200 रुपए और 2012 तक 3200 रुपए कर दी गई थी। तब माना गया था कि एक छोटा सा चारदीवारों वाली एक छत एक कमोड, एक सैप्टिक टैंक, एक पानी की टंकी युक्त शौचालय 3500 रुपए में बनकर तैयार होता है। इसमें 300 रुपए का इंतजाम उस व्यक्ति को करना होता था जिसके घर में शौचालय बन रहा होता था। बाकी 3200 रुपए सरकार देती थी।

केंद्र द्वारा 2012 में इस अभियान का नाम संशोधित करके निर्मल भारत अभियान कर दिया गया। मप्र सरकार ने इसे मर्यादा अभियान के नाम से लागू किया। प्रोत्साहन राशि 3200 रुपए से बढ़ाकर 4600 रुपए हो गई साथ में मनरेगा से इसमें 4400 रुपए और जोड़े गए। हितग्राही का अंशदान बढ़ाकर 900 रुपए कर दिया गया। इस तरह शौचालय की लागत 9900 रुपए हो गई। 2014 में इसमें 1000 रुपए और बढ़ाकर 10900 रुपए कर दिया गया पहले जो योजना केवल बीपीएल परिवारों के लिए थी उसमें एपीएल अनुजाति, अनुजनजाति, निषक्तजन, भूमिहीन किसान लघु सीमांत किसान परिवारों को भी इससे जोड़ दिया गया। साथ ही शौचालय निर्माण की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों को सौंप दी गई जिन्हें अपने गांव के जरूरतमंदों के घरों में उनसे 900 रुपए जमा कराकर उनके लिए शौचालय बनवाने थे। लोग 900 रुपए नगद या शौचालय निर्माण में मजदूरी करके भी अपने इस अंशदान का भुगतान कर सकते थे।

मुरैना जिले में 2003 में ग्राम पंचायतों के माध्यम से गांव-गांव सर्वे कराकर कुल तीन लाख 76 हजार 398 परिवारों को इस योजना के लिए चुना गया था। इन सभी के लिए 2018 तक शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया था। आज 12 साल होने को हैं लेकिन अब तक जिले में कुल एक लाख 49 हजार 195 शौचालय ही बन सके हैं। भौतिक सत्यापन में इनमें से कितने काम करते मिलेंगे यह जांच का विषय है। अपने शुरुआती साल से ही यह अभियान कभी अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सका। 2013-14 के जो आंकड़े उपलब्ध हैं उनमें उस साल 122 ग्राम पंचयातों में 35267 शौचालय बनाए जाने थे जिनमें से 22017 को मंजूरी मिली। उनमें से भी पूरे साल में कुल 9672 यानी लगभग 27 फीसद शौचालय ही बन सके। इस वित्तीय वर्ष के लिए 63437 शौचालय बनाने का लक्ष्य रखा गया लेकिन अब तक कुल 3380 शौचालय बन सके हैं।

कागज पर दर्ज आकड़ों की अपेक्षा शौचालयों की मैदानी स्थिति ज्यादा खराब है। बने हुए शौचालयों में से ज्यादातर अनुपयोगी हैं उनकी दीवारें अधूरी हैं उनसे छत गायब हैं कमोड मिट्टी में दवा दिया गया है उसका किसी सैप्टिक टैंक से कनेक्शन ही नहीं है। पानी की कैसी भी कोई सुविधा नहीं है ऐसे आधे हजारों शौचालय पूरे जिले में मौजूद है। जिनके घर में शौचालय बने हैं उन्होंने अपना 900 रुपए का अंशदान बचा लिया तो बाकी पैसा ठेकेदार पंच सरपंच और इस योजना की देखरेख करने वाली एजंसी जिला पंचायत के अधिकारी कर्मचारी खा पी गए। लोग आज भी खुले में शौच कर रहे हैं।

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