लोगों को मिलेगा मंडुवे (कोदो) के आटे की बर्फी का स्वाद

18 Oct 2017
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मंडुआ (कोदो)
मंडुआ (कोदो)


मंडुआ (कोदो)sweets of finger millet flour

उतराखण्ड के मंडुवे की माँग सात समंदर पार तक है। बशर्ते इस ओर हम लोग ध्यान देंगे तो आने वाले समय में मंडुआ लोगों की आजीविका का साधन बन जाएगा। पहले पहल लोग मंडुआ को कइयों स्तर पर उपयोग में लाते थे। मंडुवे की रोटी तो आम बात थी, चूँकि यदि किसी दूधमुहे बच्चे को जुकाम, खाँसी इत्यादि की समस्या होती थी तो लोग एक बाउल में पानी उबालकर उसमें मंडुवे का आटा डालकर उसकी भाप सुँघाना ही ऐसी बीमारी का यह तरीका रामबाण इलाज था।

मंडुवे के आटे से स्थानीय स्तर पर कई प्रकार की डीस भी तैयार होती थी जो ना तो तैलीय होती थी और ना ही स्पाइसी बजाय लोग इसे अतिपौष्टिक कहते थे। जैसे सीड़े, डिंडके जिन्हें सिर्फ-व-सिर्फ हल्की आँच के सहारे दो बर्तनों में रखकर पानी के भाप से पकाया जाता है। इसमें चीनी गुड़ और मंडुवे के आटे के अलावा और कुछ प्रयोग नहीं होता था। मगर बाजार ने इस मंडुवे को गेहूँ के सामने एक बारगी पछाड़ दिया परन्तु अब धीरे-धीरे मंडुवे की पौष्टिकता का पता चलने लग गया और मंडुवे का बाजार ऊपर होने लग गया है।

गौरतलब हो कि लोग और वैज्ञानिक संस्थाएँ मंडुवे के आटे और मंडुवे के दाने को लेकर विभिन्न प्रयोग कर रहे हैं। देहरादून स्थित कटियार एक मात्र बेकरी है जहाँ मंडुवे के आटे से बनी डबल रोटी आपको मिल जाएगी। कटियार बेकरी का कहना है कि मंडुवे के आटे से बनी डबल रोटी की माँग बहुत बढ़ रही है, परन्तु वे इस बाबत मंडुवे के आटे की पूर्ति माँग के अनुरूप नहीं कर पा रहे हैं। इसके अलावा हाल ही में कृषि विज्ञान केन्द्र रानी चौरी ने मंडुवे के आटे से बर्फी बनाने का सफल प्रयोग किया है। यही नहीं पिछले कई वर्षों से कृषि विज्ञान केन्द्र रानी चौरी मोटे अनाजों पर शोध कर रहा है। इस बाबत केन्द्र ने पहली बार मंडुवे के आटे से बर्फी बनाने का सफल परिक्षण कर पाया।

सनद रहे कि आपने पहाड़ी अनाज मंडुवे (कोदो) की रोटी तो जरूर खाई होगी, इससे आगे आप अब जल्द ही मंडुआ की बर्फी का रसास्वादन भी ले सकेंगे। कृषि विज्ञान केन्द्र रानी चौरी (टिहरी) से मंडुवे की बर्फी बनाने का प्रशिक्षण लेकर शिक्षित बेरोजगार संदीप सकलानी और कुलदीप रावत दीपावली तक इसे बाजार में लाने की तैयारी कर रहे हैं। औषधीय गुणों से भरपूर इस जैविक बर्फी की कीमत 400 रुपए प्रति किलो होगी। अब तक उन्हें फोन पर दो सौ किलो बर्फी का आर्डर मिल चुका है।

मंडुवे का वैज्ञानिक नाम इल्यूसीन कोराकाना है। मंडुवे को कुछ वर्ष पूर्व तक गरीबों का आहार कहा जाता था। लेकिन, आज इसी मंडुवे के लोग दीवाने होते जा रहे हैं। वर्षों पूर्व मंडुवे को सर्वाधिक रोटी व बाड़ी (सादा हलुवा) के रूप में ही खाया जाता था। जैसे-जैसे लोगों की निर्भरता बाजार पर बढ़ने लगी तो मंडुआ गाँव और खेती से लुप्तप्रायः होने लगा। वैज्ञानिक और पकवान बनाने के शौकीन लोगों ने मंडुवे के औषधीय गुण ढूँढ निकाले। अब मंडुवे की पौष्टिकता को देखते हुए कुछ वर्षों से रोटी के अलावा बिस्कुट और माल्ट यानि मंडुवे की चाय के रूप में भी इसका उपयोग हो रहा है। और.. अब इससे भी आगे मंडुआ बर्फी के रूप में बाजार में बिकने को तैयार है। बता दें कि कुछ समय से औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय रानी चौरी का कृषि विज्ञान केन्द्र (केवीके) पारम्परिक अनाजों पर शोध कर रहा है और उनके नए-नए उत्पाद बनाने को प्रयोग भी किये जा रहे हैं। केन्द्र के वैज्ञानिकों ने सबसे पहले मंडुआ की बर्फी बनाने का प्रयोग किया, जो सफल रहा।

इसके बाद कृषि विज्ञान केन्द्र रानी चौरी ने आस-पास के गाँवों में युवाओं, महिला समूहों को बर्फी बनाने का प्रशिक्षण देना आरम्भ किया। एक माह पूर्व बर्फी बनाने के प्रशिक्षण में टिहरी के युवा संदीप सकलानी और चंबा के कुलदीप रावत ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात इन दो युवाओं ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और मंडुवे की बर्फी को बाजार में उपलब्ध करवाने का संकल्प लिया। हुआ भी ऐसा ही कि प्रायोगिक तौर पर कुछ दिन पूर्व उन्होंने दस किलो बर्फी बनाकर उसे अपने परिचितों व अन्य लोगों को खिलाया। लोगों को मंडुवे की बर्फी का स्वाद सिर चढ़कर बोला साथ ही लोगों ने इस बर्फी की गुणवत्ता की जमकर तारीफ की है। जब संदीप व कुलदीप ने मंडुवे की बर्फी को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया तो बर्फी की डिमांड तुरन्त आने लग गई। उन्होंने बताया कि अब तक विभिन्न स्थानों से उनके पास दो सौ किलो बर्फी की डिमांड आ चुकी है। कहा कि दीपावली से पहले उन्हें बर्फी उपलब्ध करा दी जाएगी।

विशेषज्ञ एवं मुख्य प्रशिक्षक कृषि विज्ञान केन्द्र, रानी चौरी की कीर्ति कुमारी ने बताया कि उनका ध्येय पारम्परिक अनाजों को बढ़ावा देकर किसानों की आर्थिकी को सुधारना है। इसीलिये मंडुआ, झंगोरा आदि मोटे अनाज के कई उत्पाद तैयार किये जा रहे हैं। मंडुआ की बर्फी इसी का हिस्सा है। संदीप व कुलदीप ने इसे बनाया और अब व्यापार के रूप में आगे बढ़ाना चाहते हैं। यही तो कृषि विज्ञान केन्द्र चाहता है।

 

मिठाई के साथ औषधि भी


शुद्ध देशी घी में इस बर्फी को ड्राई फ्रुट के साथ तैयार किया गया है। बर्फी में मिठास के लिये शक्कर मिलाई गई। यह पूरी तरह जैविक है। मंडुआ में वैसे भी कई तरह के पोषक तत्व पाये जाते हैं, उस पर ड्राई फ्रुट के कारण इसकी गुणवत्ता और बढ़ गई है। यह एकदम अलग तरह की मिठाई होगी, जो औषधीय गुणों से भी भरपूर होगी।

 

ऐसे हुई बर्फी बनाने की शुरुआत


26 वर्षीय संदीप सकलानी ने बीटेक करने के बाद दो साल अकाउंट इंजीनियर के रूप में राजस्थान में नौकरी की। लेकिन, वहाँ मन न रमने के कारण वह घर लौट आया और कुछ हटकर करने का निर्णय लिया। इसी दौरान 25 वर्षीय कुलदीप रावत से उसकी दोस्ती हो गई, जो स्नातक की पढ़ाई कर रहा था। दोनों के विचार मिले तो दो वर्ष पूर्व देवकौश नाम से एक कंपनी का गठन किया। इसके माध्यम से उन्होंने फलों व सब्जियों पर आधारित उत्पाद बनाने शुरू किये। इसी दौरान उन्हें पता चला कि केवीके रानीचौरी उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दे रहा है तो उन्होंने भी इसमें भाग लिया और वहाँ मंडुआ की बर्फी बनानी सीखी।

 

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