मालवा क्षेत्र में महामारी बन रहा कैंसर

30 Apr 2010
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हाल में पंजाब के मालवा क्षेत्र में महामारी बन रहे कैंसर रोग की चर्चा पंजाब विधानसभा चुनावों में हुई। अकाली दल और कांग्रेस दोनों ही मालवा क्षेत्र में कैंसर हस्पताल बनवाने का वायदा किया था। यह एक अच्छा कदम होगा,परंतु होगा अधूरा। अधूरा इसलिए कि कैंसर हस्पताल कैंसर रोगियों और उनके परिजनों को राहत और इलाज की सुविधा तो देगा परंतु कैंसर जिन कारणों से मालवा में मारक बना है, उन कारक तत्त्वों का समाधान नहीं देगा। वास्तव में कैंसर का यह प्रकोप पंजाब के समूचे पर्यावरण तंत्र के ध्वस्त होने का एक संकेत भर है। पंजाब जिस विकराल पर्यावरणीय स्वास्थ्य संकट में फंसा हुआ है कैंसर तो उसका एक पक्ष मात्र है। पर्यावरण में हुई उथल पुथल वातावरण में घुले रसायनों और लगातार प्रदूषित होते जल ने पंजाब की कमोबेश समूची भोजन श्रृंखला को ही विषाक्त बना दिया है। आज कैंसर के साथ-साथ आयुपूर्व बुढ़ापे के लक्ष्ण उभरना, हिड्डियों के रोग और प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी रोग अपनी जकड़ में ले रहे हैं। इसलिए मुद्दा एक मात्र कैंसर नहीं वरण समूचा पर्यायवरणीय स्वास्थ्य का विषय है।

कैंसर को एक मात्र रोग मानकर उसके उपचार के वायदों को चुनावों में भुनाना पेचीदा समस्याओं के सरलीकरण करने की राजनीतिक आदत का प्रतीक है। हम समस्याओं की सतही समझ रखते हैं तो समाधान भी उथले होते हैं। किसी भी राजनीतिक दल ने कैंसर के अलावा पर्यावरणीय स्वास्थ्य के अन्य पहलुओं पर गौर नहीं किया है। अब प्रजनन स्वास्थ्य संकट को ही लें। यह पंजाब में प्रमुख स्वास्थ्य चुनौतियों में सबसे गम्भीर है। आंकड़े बताते हैं कि पंजाब में प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी रोग पिछले कुछ ही वर्षों में अत्यंत गम्भीर हो गए हैं। जहां एक ओर जन्मजात मंद बुद्धि बच्चों की जन्मदर बढ़ी है वहीं दूसरी ओर जन्मजात शारीरिक विकृति और विकलांगता भी गम्भीर समस्या बन रही है। न्यूरल टयूब डिफेक्ट और सेरिबलपालसी (सी.पी.) इनका सम्बन्ध पर्यावरण एवं आहार श्रृंखला में आई विषाक्ता से जोड़ा जाता है। पंजाब में जितनी बड़ी मात्रा में कृषि रसायन इस्तेमाल किए जाते हैं उसका स्वभाविक परिणाम ऐसा ही होना था। जब देश के 1.5 प्रतिशत भूक्षेत्र पर देश भर की खपत का लगभग 18 प्रतिशत कीटनाशकों का इस्तेमाल होगा तो वह प्रदेश के पर्यावरण में भारी मात्रा में विषाक्त अपशिष्ट छोड़ेगा ही। एक ग्राम के लाखवें हिस्से के बराबर का भी कीटनाशक मानव शरीर की सूक्ष्म कोशिकाओं पर घातक प्रभाव डालने में सक्षम होते हैं। दुनिया भर में हुए अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि प्रतिबन्धित होने के पैंतीस वर्ष पूर्ण होने के बावजूद डीडीटी विनाश रच रहा है। दुनिया भर में डीडीटी ने प्रजनन स्वास्थ्य ओर कैंसर को बढ़ाया है। आज पंजाब में जगह-जगह खुले फर्टिलिटी क्लीनिक किस बात का संकेत हैं? कुछ वर्ष पूर्व सेना में भर्ती के लिए पंजाब का तयशुदा कोटा पूरा करने में सेना प्रशासन को विचित्र परेशानी का सामना करना पड़ा। भर्ती के इच्छुक पंजाबी नौजवान सेना द्वारा निश्चित शारीरिक क्षमताओं के मानदण्डों को पूरा नहीं कर पा रहे थे। इसी तरह कई अध्ययनों से यह भी स्पष्ट हुआ है कि पंजाब में प्रदूषण और विषाक्त तत्त्वों का थोड़ा सा भी प्रभाव मानव के गुण-सूत्र (क्रोमोसोम) को विकृत कर सकता है। गुरु नानक देव विश्वविद्यालय अमृतसर में हुए अध्ययन इस बात का संकेत देते है कि यह विनाश पंजाब में शुरू हो चुका है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) द्वारा संचालित आल इण्डिया कोआर्डिनेटिड रिसर्च प्रोजेक्ट आन पेस्टिसाईड के अनुसार पंजाब में डीडीटी, एचसीएच और बीएचसी ने आहार श्रृंखला में घुसपैठ कर ली है। आज इनकर उपस्थिति फल, दूध, मक्खन, शिशु आहार, चावल, अन्य अनाज और सब्जियों तक में है। सर्वाधिक चिंता की बात तो यह है कि पंजाब की सब्जियों में इण्डोस्लफान, क्पामिलफोस, क्लोरोपेरिफोस, मेलाथियोन, पेराथियोन और मोनोकोटोफास के अंश भी पाए गए हैं। फिर फलों में फासमोडोन और क्वानिलफोस भी हैं। वहीं दिल्ली की विख्यात पर्यावरण संस्था सेंटर फार साईस एंड इन्वायरमेंट के अनुसंधान के अनुसार तलवंडी साबो क्षेत्र के लोगों के खून के नमूनों में मोनोकोटोफास, क्लोपेरिफास, फारमीडोन और मेलाथियोन के अंश घातक रूप में पाए गए। खून के ज्यादातर नमूनों में 6 से 13 प्रकार के कीटनाशक मिले। यह कीटनाशक ओरगेनोक्लोरीन और ओरगेनोफासफेटस दोनों प्रकार की श्रेणी के थे। फिर पंजाब में माँ के दूध में कीटनाशक पाए जाने की पहले ही पुष्टि हो चुकी है। यह पंजाब के स्वास्थ्य को एक भयानक तस्वीर प्रस्तुत करती है। यह कीटनाशक अनेक भयानक रोगों का कारण तो बन ही रहे हैं। पंजाब में कन्याभ्रूण क्षरण का भी बड़ा कारण बन रहे हैं। कन्याभ्रूण हत्या के अलावा कीटनाशकों को भी कम होती स्त्रीजन्म दर का एक कारण माना जा रहा है। जयपुर के विख्यात पर्यावरणीय रोग विशेषज्ञ डॉ. श्रीगोपाल काबरा कन्याभ्रूण हत्या के कन्याभ्रूण क्षरण को ज्यादा घातक मानते हैं। कीटनाशक चूंकि चर्बी में शीघ्र घुल जाते हैं और स्त्री शरीर में पुरुष की अपेक्षा ज्यादा चर्बी होने के कारण वे उसे ज्यादा प्रभावित करते हैं। इसका एक प्रमाण है पंजाब में कैंसर का प्रकोप पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा होना। नेशनल कैंसर रजिस्ट्री के पंजाब के आंकड़ों के अनुसार प्रति एक लाख आबादी के पीछे कैंसर रोगी महिलाओं की संख्या पुरुषों से डेढ से दो गुणा है। जैसा बठिण्डा में प्रति लाख के पीछे 28.4 पुरुष तो 43.2 महिलाएँ, रोपड़ में 27.4 पुरुष - 40.9 महिलाए, फरीदकोट में 19.8 पुरुष तो 32.3 महिलाए और मुक्तसर में 17.2 पुरुष तो 32.1 महिलाए। यह आंकड़े स्थिति की गम्भीरता को बताते है।

आप किसी भी स्त्री रोग अथवा बाल रोग विशेषज्ञ से पूछें, आज उनके पास प्रतिदिन आने वाले जटिल रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। जिस गति से स्त्री स्वास्थ्य और विशेषकर किशोरी स्वास्थ्य में गड़बड़ी आई है उसने चिकित्सकों की नींद उड़ा दी है। आज कई चिकित्सक इस विषय पर सिर्फ चिंतित ही नहीं विचारशील और सक्रिय भी हो रहे हैं। पर्यावरणीय स्वास्थ्य एक गम्भीर विषय है। इस पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है। कैंसर हस्पताल रोगियों को उपचार सुविधा मात्र देगा, नए रोगी बनने से नहीं रोक पाएगा। किसी भी सरकार की प्राथमिकता लोगों को राहत देने की नहीं समस्या के समूह निदान की होनी चाहिए। कैंसर हस्पताल तो स्थापित होना ही चाहिए परंतु उसके साथ-साथ कुछ अन्य पग भी उठाए जाने आवश्यक होंगे।

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