मां के गर्भ तक पहुंचा वायु प्रदूषण, हो रहा मूक गर्भपात

16 Oct 2019
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मां के गर्भ तक पहुंचा वायु प्रदूषण, हो रहा मूक गर्भपात। फोटो-cnn
मां के गर्भ तक पहुंचा वायु प्रदूषण, हो रहा मूक गर्भपात। फोटो-cnn

गर्भावस्था के दौरान भ्रूण का स्वास्थ्य मां के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है। गर्भवती के आसपास के परिवेश का भी बच्चे पर प्रभाव पड़ता है, इसलिए गर्भावस्था के दौरान महिला को सकारात्मक और स्वस्थ वातावरण में रहने की हिदायत दी जाती है तथा नियमित रूप से पोषाहार दिया जाता है, लेकिन इस पोषाहार का क्या फायदा जब हवा ही जहरीली हो और बच्चों की गर्भ में ही ‘मूक मृत्यु’ हो जाए। आज के समय में ऐसा ही हो रहा है। बढ़ते वायु प्रदूषण का ज़हर अब मां के गर्भ तक पहुंच गया है और मूक गर्भपात का कारण बन रहा है। जिसका गर्भवती को न तो अंदाजा होता है और न ही पता चलता है।

बीजिंग नाॅर्मल विश्वविद्यालय, कैपिटल मेडिकल विश्वविद्यालय, पेकिंग विश्वविद्यालय, टोंगजी विश्वविद्यालय तथा चीनी अकादमी ने वर्ष 2009 से 2017 तक बीजिंग में 2 लाख 55 हजार 668 महिलाओं के रिकाॅर्ड का विश्लेषण किया था। इस दौरान पीएम 2.5, एसओ 2, ओ 3 और सीओ प्रदूषकों की भूमिका की जांच की गई, जिसमें  पता चला कि करीब 6.8 प्रतिशत यानी करीब 17 हजार 497 महिलाओं ने एमएएफटी का अनुभव किया है। जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिलिटी में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार जब गर्भवती महिला कण प्रदूषक (पीएम 2.5), सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ 2), ओजोन (ओ 3) और कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) जैसे वायु प्रदूषकों के संपर्क में आती है तो पहली तिमाही (एमएएफटी) में गर्भपात हो जाता है। एमएएफटी तब होता है, जब बच्चा बढ़ना बंद हो जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है, लेकिन दर्द या रक्तरिसाव जैसे कोई लक्षण नहीं दिखते हैं। महिलाएं अक्सर इस बात से अनजान रहती हैं कि गर्भवस्था समाप्त हो चुकी है। 

दरअसल जब प्रदूषक प्लेसेंटा में प्रवेश करता है तो मातृ-भ्रूण के रक्त में अवरोध उत्पन्न होता है तथा भ्रूण का रक्त अवरुद्ध और भ्रूण के विकास को प्रभावित करता है। ये प्रदूषक तत्व भ्रूण के ऊतक तत्वों से बात भी कर सकते हैं, जिससे भ्रूण की कोशिकाएं विभाजित हो जाती हैं और कोशिकाओं को अपरिवर्तनीय नुकसान होता है। इससे हाइपोक्सिक नुकसान या इम्युनोमेडियेटेड ट्रिगर हो सकता हैं। विशेषकर विकासशील देशों में चिकित्सकीय मान्यता प्राप्त गर्भधारित करीब 15 प्रतिशत महिलाओं को एमएएफटी हो सकता है। इसलिए प्रदूषक तत्वों से महिलाओं को खुद बचना चाहिए। इसका सबसे ज्यादा असर किसानी के कार्य से जुड़ी महिलाओं और ब्लू काॅलर वर्कर में 39 से अधिक आयु की महिलाओं में प्रत्येक वायु प्रदूषक के संपर्क में आने से एमएएफटी का जोखिम बढ़ गया है।

 

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