मानसून में कई रूप दिखते हैं हिमालय के…

30 Aug 2011
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लोहाजंग के पास
लोहाजंग के पास

मानसून में हिमालय के कई रूप दिखते हैं। जरा-सा मौसम खुले तो समूचा पहाड़ पॉलिश किया सा लगता है और वहीं पल भर में मौसम ने करवट बदली और प्रकृति का दूसरा भयावह चेहरा सामने दिखता है। तूफानी बारिश के साथ ही चारों ओर फैला कोहरा अजीब सी सिहरन पैदा कर देता है। पर्वतारोहियों की एक टोली जब नंदा खाट की क्लाइंबिंग से वापस लौटी तो उनका रोमांच सुन, मन हिमालय में जाने के लिए बैचेन सा हो उठा। पर्वतारोही योगेश परिहार ने मानसून में रूपकुंड जाने का प्रस्ताव रखा तो दीपक, महेश, गुड्डू, नितिन व मेरे समेत छह जनों का दल बन गया। बागेश्वर से वाण गाँव तक के लिए प्रदीप की जीप किराए पर कर ली गई। पहले दिन वेदनी बुग्याल पहुँचने का इरादा कर सुबह ही घर से निकल करीब 6 बजे ग्वालदम पहुँचे। हल्का नाश्ता ले दूसरे कच्चे रास्ते से देवाल को चल पड़े। नंदकेशरी के पास नीचे पिंडर नदी में कई ट्रक-ट्रैक्टरों का काफिला रेत के कारोबार में व्यस्त दिखे। हल्द्वानी के गौला नदी में रेत के खनन के वर्चस्व की लड़ाई के अंश यहाँ भी दिखने लगे हैं जो भविष्य के लिए खतरनाक हैं। अलसायी हुई सी देवाल की बाजार धीरे-धीरे खुल रही थी। मंदोली होते हुए 2530 मी. की ऊँचाई पर लोहाजंग पहुँचे। यहाँ गढ़वाल विकास निगम व जिला पंचायत के डाक बंगले हैं। तीन वर्ष बाद इधर आना हुआ लेकिन कोई खास बदलाव नहीं दिखा। एक टूर आपरेटर की दुकान जरूर खुली दिखी। सड़क किनारे बोर्ड में ‘आली- बेदनी- बगजी बुग्याल संरक्षण समिति’ के दिशा- निर्देश देता बोर्ड के नीचे पत्थर का चूल्हा बना दिखा। ऐसा महसूस हुआ कि चुल्हे में जली आग में ये निर्देशों की खिचड़ी पक रही है जो सच होता हुआ सा लगा। उत्तराखंड में पर्यटन रूपी सुनहरी चिड़िया के पर हर कोई कतरने में जुटा है और हमारी राज्य सरकार देश-विदेश में उत्तराखंड में पर्यटन के विकास का दावा करते थक नहीं रही है। सुनने में आया कि केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय की मार्केट रिपोर्ट में उत्तराखंड की काफी चिंताजनक रिपोर्ट दी है। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड विदेशी पर्यटकों को तो दूर, देशी पर्यटकों को आकर्षित करने लायक नहीं रहा। पर्यटक स्थलों को जाने वाले रास्तों-पड़ावों में पर्यटकों को कभी भी सही जानकारी नहीं मिलती, उल्टा विभाग ने पर्यटकों के लिए कई नियम-कानून बना दिए हैं। वन विभाग कहता है कि हिमालय में जाने-रहने का टैक्स देना होगा। लेकिन कहाँ..? मालूम नहीं। रास्ते में कहीं भी वन विभाग की इस तरह की पोस्ट/बैरियर नहीं दिखे।

हवा सिंह अपने में घर मेंहवा सिंह अपने में घर मेंप्रदीप हमें वाण गाँव छोड़ वापस चला गया। वाण गाँव से हमने उम्मेद सिंह उर्फ हवा सिंह का घोड़ा टैन्ट-सामान के लिए कर लिया। चंचल स्वभाव होने की वजह से उसका नाम हवा सिंह पड़ गया। गाँव में उसके बिरादर की बारात बलान गाँव गई थी। उसे वहाँ काम पर जाना था। थोड़ी मान-मनौव्वल के बाद वो तैयार हो गया। वाण गाँव के शीर्ष, रणधार में एक फॉरेस्ट गार्ड मदन सिंह खत्री जी बेदनी से आ रहे थे। हमें देख काफी जोर में आ गए कि परमिशन कहाँ है दिखाओ। हमने पूछा, कहाँ से लेनी है…. आफिस तो कहीं दिखा नहीं। बोले लोहाजंग वापस चलो वहीं दिखेगा। हमने लाचारी दिखाई तो वो कुछ ले-दे के मामले को सुलझाने का इशारा करने लगे। अपना परिचय देने पर फिर वो राज्य सरकार के साथ ही अपने वन महकमे की कमियों का बखान करने लगे, ‘‘साहब क्या कहें किसी भी पर्यटक को इन निर्देशों के बारे में मालूम नहीं हो पाता… दफ्तर ठीक जगह में नहीं हुए तो पर्यटक को मालूम ही कैसे चलेगा।’’ हमसे अपना पिंड छुड़ाने के लिए उसने बताया कि एक टूरिस्ट की मौत हो गई है उसे उसकी टीम वाले नीचे को ला रहे हैं। हम आगे को बढ़े तो रास्ते में एक खच्चर में इन्द्रानगर, कर्नाटक निवासी 32 वर्षीय मोहन का शव दिखा। उसके साथ चल रहे अजय ने बताया कि इंडिया हाईक ग्रुप का यह 14 सदस्यीय ग्रुप है। मोहन इस आखिरी 12वें ग्रुप का सदस्य था। बेदनी में सांस की दिक्कत होने के बावजूद वो जबर्दस्ती ‘पातर नचैनियाँ’ तक चला गया। ज्यादा परेशानी पर उसे बेदनी लाया गया जहाँ उसने अंतिम सांस ली।

रणधार से करीब किमी भर तिरछा उतरने के बाद नीलगंगा गधेरे से बेदनी को तीखी खड़ी चढ़ाई है। चढ़ाई में बलान से वापस आ रहे बारातियों संग वर-वधु सधे कदमों से नीचे को उतर रहे थे। चढ़ाई के बावजूद बैंड की धुन में हमारे साथी भी कमर मटकाए बिना नहीं रह सके। बेदनी से लगभग तीन किमी पहले गैरोली पातर में अब वन विभाग ने ईको टूरिज्म के अंतर्गत 20 लोगों की क्षमता वाले दो फाईबर की हट बना दी हैं। इसी तरह की हट बेदनी, पातर नचैनियाँ, बगुवावासा व अली बुग्याल में भी बनी हुई हैं। बेदनी पहुँचते हुए रात हो गई। अपने तंबू तान हम खाना बनाने की जुगत में लग गए। करीब 11 बजे निपटे तो बारिश होनी शुरू हो गई। ऊँचाई में होने की वजह से कुछ साथियों को नींद ढंग से नहीं आ पाई। सुबह बेदनी का नजारा देखने लायक था। दूर-दूर तक फैली हरियाली। सामने कुहरे से झाँकता नंदा घुंघट व त्रिशूल पर्वत। ये आनंद के पल भी ज्यादा देर तक नहीं रहे। कोहरे ने धीरे-धीरे प्रकृति को अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया। सामान पैक कर हमारे दल ने आज बगुवावासा की राह पकड़ी। बेदनी में वन विभाग की शह में हो रहे निर्माण की झलक दिखी। लगभग 50 मी. के दायरे में 15 फीट ऊँचे लोहे के पोलों द्वारा झोपड़ीनुमा फ्रेम बनाया गया है। हवा सिंह ने बताया कि मेले-ठेले के वक्त इसमें तिरपाल डाला जाएगा। इस ऊँचाई पर क्या ये ठीक है पूछने पर वो चुप ही रहा। क्योंकि वो भी सच्चाई जानता था। विभाग के कारिन्दे ही तो इस तरह के उलूल-जलूल कामों से कुछ पैसा इस महंगाई के जमाने में बचा लेते हैं। उन्हें विकास-विनाश से कुछ भी लेना-देना नहीं। इसी बेदनी में 12 वर्ष पहले सीमेंट के पिलर खड़े करने की कोशिश की गई लेकिन वो पहली बर्फबारी में ही धराशायी हो गए। बेदनी के चारों ओर लोहे के एंगलों में तार-बाड़ की गई थी, जो ध्वस्त पड़ी हैं। वन विभाग की बे-सिर पैर की छेड़-छाड़ से बुग्यालों का सौन्दर्य भी खटकता है।

पाथर नाचनीपाथर नाचनीलाटू देवता व बेदनी कुंड के दर्शन कर मीठी सी चढ़ाई के बाद पातर नचैनियाँ पहुँचे। रास्ते में बारिश होती रही। कुछ देर विश्राम करने यहाँ बने फाईबर हट में गए तो मासूम सा एक चेहरा दिखा। 16 वर्षीय वाण गाँव का मान सिंह यहाँ तीन माह से रखवाला था। उसे चाय के लिए कह हम बैठ गए। इन हटों के बारे में पूछने पर यहाँ पता चला कि वन विभाग ने इको टूरिज्म के तहत 11 वाण गाँव तथा 2 कुलिंग के बेरोजगार युवाओं की टीम गठित कर देवाल रेंज ऑफिस में बुला यूको टूरिज्म व्यवस्थापक समिति के नाम से उनके कार्ड बना दिए। सभी को वाण, गैरोली पातल, बेदनी, पातर नचैनियाँ, बगुवावासा तथा अली बुग्याल में तैनात होने के आदेश दे दिए। सभी में सात-सात स्लीपिंग बैग व मैटरेस रखे गए। किचन टैंट बाद में देने को कहा गया लेकिन अभी तक नहीं मिला। विभाग ने इन युवकों को झाँसा देते हुए कहा कि हट का किराया टूरिस्ट से दो सौ रुपये उनका बनेगा। अली बुग्याल में कुलिंग गाँव के दो लोग रखे गए थे, कुछ नहीं मिलने पर वो वहाँ गए ही नहीं। टूरिस्ट तो रुकते हैं पर कुछ बिना रसीद के पैसे देने को मना कर देते हैं। रसीद बुक है नहीं। हाँ! फारेस्ट गार्ड खत्रीजी जब-जब रहे किराया वसूल किया टूरिस्टों से। हमारे बारे में कहा गया कि ये सफाई के लिए रखे गए हैं। वन विभाग से जब रसीद बुक मांगी तो वो हमें अब जाने के लिए ही कहने लगे।

चाय पीकर दल ने कैलुवाबिनायक की चढ़ाई की ओर रुख किया। मान सिंह भी हमारे साथ हो लिया। आगे रास्ते के दोनों ओर बिखरे विशाल शिलाखंड कई कहानियाँ कह रहे थे। बारिश की रिमझिम फुहारें पड़ने पर सभी ने अपनी छाता तान लीं। दो घंटे की मीठी चढ़ाई के बाद कैलुवाबिनायक मंदिर के दर्शन हुए। यहाँ से बगुवावासा लगभग एक किमी. की दूरी पर है। यहाँ दशकों पूर्व बनाई गई छोटी-छोटी झोपड़ियाँ इस यात्रा मार्ग में आने-जाने वालों के ठहराव की कई कहानियाँ कहती हैं। थोड़ा आगे फाईबर हट बनी दिखी तो उसी की ओर चले गए। दरवाजा खुला था। टैंट तानने का विचार त्याग दिया। ज्योरागली पास व रूपकुंड बादलों से घिरा था। तीखी हवाओं से ठंड बढ़ रही थी। योगेश खाना बनाने में, नितिन फोटो खींचने में तो अन्य सभी साथी गाना गाने में मसगूल थे। सुबह रूपकुंड जा वापस वेदनी बुग्याल ठहरने पर सभी साथियों की सहमति बन गई। सुबह मौसम साफ था। जरूरी सामान ले सभी साथी रूपकुंड की ओर चल पड़े। लगभग तीन किमी की तिरछी व दो किमी की खड़ी चढ़ाई के बाद रूपकुंड है। मार्ग में अल्पाईन ग्लेशियरों को पार कर लगभग दो घंटे में हम रूपकुंड में थे। रूपकुंड का सौन्दर्य देख सभी सकते में आ बच्चे बन अठखेलियाँ करने लग गए। चारों ओर बर्फ ही बर्फ और बीच में अद्भुत सा कुंड। ज्योरागली से सामने त्रिशूल देखने का मोह ताजा गिरी बर्फ के कारण त्यागना पड़ा। मौसम भी घिरने लगा था। वापसी में बर्फ गिरने लगी जो बगुवावासा पहुँचने तक बंद हो गई। भोजन लेने के बाद बेदनी की राह पकड़ी। बारिश की फुहार पड़ने लगी। रास्ते में कई जगहों पर तिरछी हवा के साथ बारिश भी तिरछी आ रही थी। जिससे सभी को छाते सिर में ना कर बगल को करने पड़ रहे थे। साँझ होने तक बेदनी पहुँच फाईबर हट में घुस गए। आज ट्रैकिंग का ये अंतिम पड़ाव था। तीन दिन में प्रकृति ने जो रंग दिखाए थे उस पर सभी हतप्रभ थे। सभी अपना-अपना अनुभव बाँट रहे थे। हवा सिंह भी बीच में कूद पड़ा तो सभी ने उससे इस क्षेत्र की कहानियाँ सुनाने को कहा। मासूम बच्चे की तरह वो कई कहानियाँ सुनाता चला गया जो उसने बचपन में सुनी होंगी। कहानियों में प्रकृति को बचाने का संदेश था। गधेरे…बुग्याल…ग्लेशियर…रास्तों की कई बातें वो कहता चला गया। उसे ठीक से पढ़ाई न कर पाने का बहुत मलाल था। उसका भाई हाईस्कूल में पढ़ रहा है। भाई की एक पर्सनल कॉपी को वो पातर नचैनियाँ से उठा लाया था। उसमें शायरियों की भरमार थी। हवा सिंह गुस्से में था कि वो भाई को पढ़ा रहा है और भाई है कि लबेरिया का बाण दिल में घुसाए बौरा रहा है। लेकिन हवा सिंह अपने भाई की आधी-अधूरी लिखी आत्मकथा का कायल था। साहब देखो कितनी सच्चाई से उसने अपने प्यार के तीन झटकों को लिखा है अब समझ में आ रहा है कि क्यों वो खोया सा रहता है हमेशा। थोड़ा पीता है कभी कभार। रात गहराते ही हवा सिंह का भी भाई के प्रति अब गुस्सा खत्म हो चुका था।

रूपकुंडरूपकुंडसुबह कोहरे में बेदनी से वापसी की राह पकड़ी। अपने जीप वाले साथी प्रदीप को रास्ते से हमने वाण आने को कह दिया था। वाण पहुँचने पर 70 वर्षीय शूर सिंह बिष्ट की दुकान में प्रदीप के इंतजार में रुक गए। बुबू ने बताया कि आज गाँव में कम्प्यूटर का उद्घाटन है जिसकी वजह से लाईट दिन भर है नहीं तो रात में ही आती है और सुबह गायब हो जाती है। नाश्ता बन चुका था और प्रदीप भी अपनी जीप ले मंद-मंद मुस्कराते हुए आ रहा था। जीप सामान लाद चल पड़ी। वाण से मंदोली का सफर काफी जोखिम भरा है। कई जगहों पर तो लगा कि अब गिरे तब गिरे। प्रदीप सावधानी से जीप चलाते हुए मिनमिना भी रहा था कि आखिऱ तुम्हें इस तरह की खतरनाक जगहों में जाकर क्या मिलता है। प्रदीप की मिनमिनाहट पर सभी मुस्कराने लगे। देर रात सभी अपने घरों में सफर की मीठी यादों को बाँट रहे थे। उत्तराखंड सरकार हर बार पर्यटन के नए मास्टर प्लान, टूरिस्ट- डेस्टिनेशन, टूरिस्ट-सर्किट, रोपवे प्रोजेक्ट जैसे हसीन सपने दिखाने की कोशिश वर्षों से करती आ रही है लेकिन धरातल में कहीं कुछ भी तो नहीं दिख रहा है। पर्यटन के नाम पर प्राकृतिक धरोहरों का सिर्फ दोहन ही किया जा रहा है।
 

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