मानसून मिशन

भारत में हर साल जितनी वर्षा होती है उसका अधिकांश भाग ग्रीष्मकालीन मानसून से आता है जो जून से सितम्बर के बीच पड़ता है। साल-दर-साल इनमें तरह-तरह की विभिन्नता दिखाई देती है। हालाँकि ग्रीष्मकालीन मानसून की वर्षा के दौरान विभिन्नता बहुत ज्यादा नहीं होती लेकिन इसका खेती की पैदावार पर पूरे देश में असर पड़ता है और इसके जरिये देश की अर्थव्यवस्था काफी हद तक प्रभावित होती है। भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वैश्विक जलवायु तन्त्र का एक प्रमुख घटक है। भारत में हर साल जितनी वर्षा होती है उसका अधिकांश भाग दक्षिण पश्चिम (ग्रीष्मकालीन) मानसून से आता है जो जून से सितम्बर के बीच पड़ता है। साल-दर-साल इनमें तरह-तरह की विभिन्नता (यानी मानक विभिन्नता) दिखाई देती है। इसी का नतीजा है कि अखिल भारतीय स्तर पर ग्रीष्मकालीन मानसून की वर्षा (आईएसएमआर) कुल औसत लगभग 89 से.मी. के दस प्रतिशत के बराबर है। ऐतिहासिक रिकॉर्ड से साबित होता है कि 68 प्रतिशत से अधिक मानसून सामान्य रहने के आसार कम होते हैं। लेकिन अगर इसमें दस प्रतिशत की कमी हुई तो अनावृष्टि (अकाल) हो सकता है। अगर 17 प्रतिशत या इससे ज्यादा (10 प्रतिशत से) वर्षा होने पर अत्यधिक वर्षा कही जाएगी। हालाँकि ग्रीष्मकालीन मानसून की वर्षा के दौरान विभिन्नता बहुत ज्यादा नहीं होती लेकिन इसका खेती की पैदावार पर पूरे देश में असर पड़ता है और इसके जरिये देश की अर्थव्यवस्था काफी हद तक प्रभावित होती है।

सकल घरेलू उत्पाद में विभिन्नता के हाल ही के एक विश्लेषण से पता चला है कि वर्षा न होने से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) कुल के 2 से 5 प्रतिशत तक ही सीमित रहा। इस अध्ययन की एक प्रमुख बात यह थी कि जितना ज्यादा मानसून में विभिन्नता रही, उसके अनुसार ही देश में अनाज की पैदावार पर भी असर पड़ा और सकल घरेलू उत्पाद प्रभावित हुआ। इस प्रकार सिद्ध होता है कि भारतीय मानसून के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत महत्वपूर्ण असर पड़ता है। यही कारण है कि मानसून का सही-सही पूर्वानुमान लगाकर हम मानसून में विभिन्नता के असर का भी पूर्वानुमान लगा सकते हैं और उससे फायदा उठा सकते हैं। कुछ भी हो, यह महत्वपूर्ण बात है कि हम मौसम में होने वाली कुल वर्षा का ही पूर्वानुमान न लगा लें बल्कि यह भी समझ सकें कि मौसम की वर्षा कितनी कम या ज्यादा होगी। इसके जरिये काफी हद तक हम राष्ट्रीय स्तर पर खेती की पैदावार, सिंचाई की सम्भावनाओं आदि की योजना बना लेते हैं। इसके साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली वर्षा के कम या ज्यादा होने से ग्रामीण आबादी की जीविका पर सीधा असर पड़ता है।

ग्रीष्मकालीन वर्षा के मौसम में वर्षा की मात्रा में विभिन्नता का एक बड़ा घटक इस बात से निकलता है कि दो मौसमों के बीच में होने वाली वर्षा में कितनी घट-बढ़ है। वर्षा ऋतु में अगर काफी समय तक बारिश में व्यवधान पड़ा जैसाकि जुलाई 2002 में देखा गया था, तो इससे अकाल की स्थिति पैदा हो सकती है। सामान्य वर्षा वाले साल में भी अगर कुछ समय तक वर्षा न हुई तो इससे खेती बुरी तरह से प्रभावित होती है। इसीलिए यह बात बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है कि हम इस बात का भी पूर्वानुमान लगा पाएँ कि कब वर्षा होगी और कब नहीं होगी। इसकी अवधि और घनत्व का पूर्वानुमान भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यही नहीं, औसत और लम्बे समय तक (10 दिनों तक) मौसम का पूर्वानुमान लगा पाना भी प्राकृतिक आपदा, कृषि, पर्यटन और सार्वजनिक परिवहन आदि क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही इन बातों का पूर्वानुमान लगाना भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि कब मौसम अत्यधिक गर्म या ठण्डा रहेगा, कब भारी वर्षा होगी, कब बाढ़ अथवा शीत या ऊष्ण लहर चलेगी आदि। ये बातें प्राकृतिक आपदा के बेहतर प्रबन्धन के लिए जरूरी हैं।

मानसून पूर्वानुमान के तरीके


विभिन्न समय पर मौसम का पूर्वानुमान लगाने के दो स्पष्ट तरीके अपनाए जाते हैं। पहले तरीके के अनुसार मानसून के कम या ज्यादा होने के ऐतिहासिक आँकड़ों का विश्लेषण किया जाता है जो कई तरह के मॉडलों पर आधारित होता है। ऐसे विश्लेषण में वातावरण और निकटवर्ती समुद्री भागों के तापमान आदि पर निर्भर करती है। दूसरे तरीके में पिछले दिनों के जलवायु सम्बन्धी आँकड़े इस्तेमाल किए जाते हैं जिनके जरिये वस्तुपरक आँकड़े और समीकरण निकाले जाते हैं जिनका इस्तेमाल मौसम की भविष्यवाणी में किया जाता है। दूसरे प्रकार के तरीके को डायनेमिकल मेथड भी कहा जाता है और इसमें पूर्वानुमान उन समीकरणों पर आधारित होते हैं जो वातावरण और समुद्र के तापमान आदि से सीधे जुड़े होते हैं। डायनेमिकल मॉडल्स से मौसम की भविष्यवाणी के लिए बड़े पैमाने पर गणना और आँकड़ों के भण्डारण के सामानों की जरूरत होती है।

डायनेमिकल मॉडलों का लाभ यह है कि इससे जो सूचनाएँ मिलती हैं उनका इस्तेमाल बाद वाली भविष्यवाणियों में किया जा सकता है जिससे फसलों की पैदावार की पूर्वानुमान की जा सकती है।भारत संचालन सम्बन्धी मौसमी पूर्वानुमान निकालने में अग्रणी रहा है। भारत में इस तरह की मानसून की वर्षा का पहली बार पूर्वानुमान 4 जून, 1886 को जारी किया गया था। उस समय हिमालय की बर्फ से ढँकीं चोटियों और भारतीय मानसून के बीच सम्बन्धों पर ध्यान दिया गया था। 1920 में भारतीय मौसम विभाग के तत्कालीन निदेशक, सर गिल्बर्ट वाकर ने आँकड़ों पर आधारित एक मॉडल विकसित किया था जिसके आधार पर वे मौसम की भविष्यवाणी किया करते थे। तब से भारतीय मौसम विभाग में बहुत परिवर्तन हुए हैं और इनके तरीके और सम्भावनाएँ बदलती रहीं हैं। भारतीय मौसम विभाग के मौसमी पूर्वानुमान अखिल भारतीय वर्षा पर आधारित है और लगभग ठीक साबित होते हैं। फिर भी इन पूर्वानुमानों की कुशलता पिछले वर्षों में नहीं बढ़ी है। अथक प्रयासों से आँकड़ों सम्बन्धी मॉडल सुधर गए हैं और मानसून की घट-बढ़ की बेहतर समझ विकसित हुई है। आँकड़ों पर आधारित मॉडलों की भी कुछ मुश्किलें हैं जो मौसम की भविष्यवाणी में बाधक साबित होती हैं। ऐसे मॉडलों की उपयोगिता तब कम हो जाती है जब उनका इस्तेमाल अस्थायी बातों का पूर्वानुमान लगाने में किया जाता है। यही कारण है कि अधिकांश डायनेमिकल मॉडल बेहतर साबित होते हैं।

करीब एक दशक पहले भारतीय मानसून का पूर्वानुमान लगाने में डायनेमिकल मॉडल की गुणवत्ता संतोषजनक नहीं थी। असलियत यह थी कि इन मॉडलों में कई गम्भीर सीमाएँ थीं जिनके कारण मुश्किलें पैदा होती थीं लेकिन तब से जबरदस्त प्रयास किए गए हैं और विभिन्न अनुसन्धान समूहों की कोशिशों के फलस्वरूप इन मॉडलों की कुशलता में सुधार आया है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान डायनेमिकल मॉडलों की मौसम का पूर्वानुमान लगाने में कुशलता आमतौर पर सामान्य रूप से बढ़ी है और खासतौर से भारतीय मानसून के पूर्वानुमान में बहुत सुधार आया है। ये उपलब्धियाँ मॉडलों में सुधार और उनके बेहतर प्रयोग और कुशलता के कारण आए हैं। इस समय इस्तेमाल किए जा रहे अति आधुनिक मॉडलों की कुशलता बेहतर स्तर पर पहुँच गई है और उसकी आँकड़ों के मॉडलों से तुलना की जा सकती है। डायनेमिकल मॉडलों का लाभ यह है कि इससे जो सूचनाएँ मिलती हैं उनका इस्तेमाल बाद वाली भविष्यवाणियों में किया जा सकता है जिससे फसलों की पैदावार की पूर्वानुमान की जा सकती है। स्पष्ट है कि अगर इस दिशा में अनुसन्धान जारी रहे तो डायनेमिकल मॉडलों की कुशलता में और सुधार आएगा तथा उपभोक्ताओं की जरूरतें पूरी की जा सकेंगी।

मानसून मिशन के उद्देश्य


भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मन्त्रालय के पृथ्वी तन्त्र विज्ञान संगठन ने हाल ही में एक मानसून मिशन शुरू किया है जिसका उद्देश्य देश भर में हर समय और हर स्तर पर मानसून के पूर्वानुमान में सुधार लाना है। इस मिशन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं :

1. अधिक अवधि के लिए मौसम के पूर्वानुमान (15 दिन अथवा पूरे मौसम के लिए) में भारतीय क्षेत्र में मानसून की ग्रीष्मकालीन वर्षा पर जोर दिया जाएगा।
2. अल्प से मध्यम अवधि तक के पूर्वानुमान (10 दिनों तक) के अन्तर्गत वर्षा, तापमान, हवाओं और सर्दी-गर्मी के पूर्वानुमान लगाए जाएँगे।

कार्यान्वयन कार्यनीति


मानसून मिशन अगले पाँच वर्षों के दौरान 2012 से 2017 लागू किया जाएगा। इसके लिए लगभग 400 करोड़ रुपए का बजट रखा गया है। इस मिशन के अन्तर्गत दो उप-मिशन होंगे और दो स्तर पर संचालित किए जाएँगे। पहला, विस्तारित क्षेत्र वाला सीजनल टाइम स्केल जिसमें तालमेल पुणे का इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी लाएगा और दूसरा, अल्प से औसत क्षेत्र वाला जिसमें तालमेल लाने का काम नेशनल सेण्टर फॉर मीडियम रेंज वेदर फोरकॉस्टिंग को सौंपा गया है। ये सेण्टर पूर्वानुमान के लिए जरूरी समुद्र सम्बन्धी आँकड़े जुटाएगा और उपलब्ध कराएगा। भारतीय मौसम विभाग (ईएसएसओ) भी इस अनुसन्धान के परिणाम पर अमल करेगा और सीजनल टाइम स्केल सम्बन्धी पूर्वानुमानों के मॉडल विकसित करेगा।

कपल्ड फोरकॉस्ट सिस्टम वरजन 2.0 और यूके मौसम दफ्तर द्वारा विकसित यूनीफाइड मॉडल को बेस मॉडल के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। कपल्ड फोरकॉस्ट सिस्टम राष्ट्रीय पर्यावरण पूर्वानुमान केन्द्र द्वारा विकसित किया गया है। इन दोनों मॉडलों का चयन उस मानसून मिशन के लिए किया गया है जो भारतीय मानसून के पूर्वानुमान की बेहतर कुशलता पर आधारित है।इस मिशन के अन्तर्गत प्रस्ताव है कि दो प्रकार के महासागर के वातावरण सम्बन्धी मॉडल इस्तेमाल किए जाएँ साथ ही कपल्ड फोरकॉस्ट सिस्टम वरजन 2.0 और यूके मौसम दफ्तर द्वारा विकसित यूनीफाइड मॉडल को बेस मॉडल के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा। कपल्ड फोरकॉस्ट सिस्टम राष्ट्रीय पर्यावरण पूर्वानुमान केन्द्र द्वारा विकसित किया गया है। इन दोनों मॉडलों का चयन उस मानसून मिशन के लिए किया गया है जो भारतीय मानसून के पूर्वानुमान की बेहतर कुशलता पर आधारित है। कोशिश यह होगी कि इन मॉडलों की कुशलता में सुधार किए जाएँ और इसके लिए सन्दिग्ध क्षेत्रों में अनुसन्धान पर जोर दिया जाए। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य देश-विदेश में सक्रिय अनुसन्धान संस्थानों के साथ सहयोग करना है। इस मिशन के जरिये राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय अनुसन्धान समूहों के साथ बेहतर तालमेल लाया जाएगा और उम्मीद है कि इससे सुनिश्चित उद्देश्य पूरे होंगे और मॉडलों में सुधार आएगा। इस मिशन के जरिये दक्षिण एशियाई क्षेत्र के महासागरीय प्रेक्षण कार्यक्रमों को सहायता मिलेगी जिससे दक्षिण एशिया में मानसून सम्बन्धी बेहतर समझ पैदा होगी। इसमें किए जाने वाले अनुसन्धान मोटे तौर पर 5 पक्षों से सम्बन्धित होंगे। ये हैं- 1. प्रेक्षण, 2. प्रक्रिया अध्ययन, 3. मॉडलिंग, 4. आँकड़ों का मिलान और उपयोग और 5. पूर्वानुमान के तौर-तरीके।

उक्त उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित क्षेत्रों में अनुसन्धान के प्रस्ताव आमन्त्रित किए जाते हैं :

1. भारतीय क्षेत्र में (अल्प औसत और विस्तारित सीजनल टाइम स्केल पर) मानसून की वर्षा के पूर्वानुमान के डायनेमिक मॉडल में सुधार, सीएफएस मॉडल वरजन 2.0 में सुधार

2. यूके मौसम दफ्तर के यूनीफाइड मॉडल में सुधार खासतौर से हवा के प्रवाह, तापमान और वर्षा के दस दिन तक के लिए पूर्वानुमान। इसमें दिन-प्रतिदिन से लेकर पूरे सीजन तक के लिए भारतीय क्षेत्र हेतु सुधरे हुए मानसून पूर्वानुमान के तरीके शामिल होंगे।

3. यूनीफाइड मॉडल में चालू भू-प्रेक्षण के लिए आँकड़ों के मिलान के विभिन्न मॉड्यूलों का विकास और उनका समेकन।

4. मॉडलों में फिजिकल पैरामीटराइजेशन योजनाओं में सुधार और वातावरण सम्बन्धी प्रक्रियाओं की बेहतर समझ।

5. विभिन्न कम्प्यूटिंग प्लेटफार्मों पर मॉडलों और उनके घटकों की फ्लेक्सीबल पोर्टेबिलिटी में सुधार।

6. विभिन्न अर्थ सिस्टम मॉड्यूलों का सीएफएस मॉडल में समेकन मानसून मिशन के तहत विभिन्न अनुसन्धान कार्यों में काफी बड़े पैमाने पर गणना और वातावरण महासागर मॉडलों का इस्तेमाल शामिल है। इस मिशन के सफलतापूर्वक कार्यान्वयन के लिए शक्तिशाली कम्प्यूटर बहुत जरूरी हैं। हमें ऐसी पर्याप्त गणना व्यवस्था की जरूरत है जो हजारों-लाखों की गणनाएँ बहुत कम समय में कर सके। फिलहाल ईएसएसओ के पास एक ऐसा गणना तन्त्र है जो 120 टेरा लाप (120 ट्रिलियन 10 की घात 12) गणनाएँ प्रति सेकण्ड कर सकते हैं। लेकिन इस अनुसन्धान और विकास कार्य के लिए ये काफी नहीं है। हमें एक ऐसे गणना तन्त्र की जरूरत है जो 2.5-3 पेटा लॉप (10 की घात 15 की गति से प्रति सेकण्ड गणनाएँ कर सके) ताकि मानसून मिशन के अन्तर्गत मॉडलिंग और पूर्वानुमान में सुधार लाया जा सके।

मॉनिटरिंग और तन्त्र समीक्षा


इस मिशन को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए ईएसएसओ ने दो अलग-अलग समितियाँ बनाई हैं। ये समितियाँ मॉनिटरिंग और समीक्षा कार्यक्रम का संचालन करेंगी। साइण्टिफिक रिव्यू एण्ड मॉनिटरिंग कमेटी देश-विदेश के विभिन्न समूहों से प्राप्त अनुसन्धान प्रस्ताव की समीक्षा करेगी। इस समिति में देश भर के अनुसन्धान संस्थानों और शिक्षा संस्थानों के विशेषज्ञ हैं। साइण्टिफिक स्टियरिंग कमेटी इसकी शीर्ष संस्था है जो मानसून मिशन का संचालन और मिडकोर्स करेक्शन का काम सम्भालेगी।

मिशन का प्रभाव


मिशन सफल होने पर अति आधुनिक डायनेमिकल प्रेडिक्शन सिस्टम लागू करेगा जिसका उद्देश्य भारत के हर क्षेत्र और हर समय के लिए सही पूर्वानुमान करना है। इस पूर्वानुमान व्यवस्था पर आधारित भविष्यवाणियाँ कृषि, जल संसाधन प्रबन्धन, अकाल प्रबन्धन, आपदा प्रबन्धन, बिजली उत्पादन, पर्यटन और सार्वजनिक परिवहन जैसी विशेष क्षेत्रों की जरूरतें पूरी कर सकेगा।

(लेखकद्वय में से प्रथम पृथ्वी विज्ञान मन्त्रालय में सचिव एवं द्वितीयवहीं सलाहकार हैं)
ई-मेल : secretary@moes.nic.in, mn.rajeevan@nic.in

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